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Tuesday, 11 November, 2025
होममत-विमतममदानी की जीत से भी बड़ा संदेश है—मॉडरेट डेमोक्रेट्स का उभार. पार्टी फिर से मजबूती पकड़ रही है

ममदानी की जीत से भी बड़ा संदेश है—मॉडरेट डेमोक्रेट्स का उभार. पार्टी फिर से मजबूती पकड़ रही है

न्यूयॉर्क अमेरिका का सबसे अंतरराष्ट्रीय शहर है, देश का असली दिल नहीं. इसलिए 4 नवंबर को अमेरिका के बाकी हिस्सों में क्या हुआ, यह देखना ज़रूरी है.

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जोहरान ममदानी की न्यूयॉर्क मेयर चुनाव में जीत ने दुनिया भर में काफी ध्यान खींचा, लेकिन राजनीतिक कहानी इससे कहीं बड़ी है. नवंबर 2024 में हुए अपने चुनाव के बाद पहली बार राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को जनता की ओर से बड़ा राजनीतिक झटका मिला है. चुनाव नतीजों के बाद उन्होंने दुर्लभ रूप से स्वीकार किया कि “यह रिपब्लिकन के लिए बुरा दिन था.”

क्या हुआ? और इसे कैसे समझा जाए?

आइए शुरुआत करते हैं जोहरान ममदानी से, खासकर उनकी विजय भाषण में जवाहरलाल नेहरू का ज़िक्र करने से.

नेहरू को फिर जिंदा करना

“इतिहास में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक दौर खत्म होता है और लंबे समय से दबे हुए राष्ट्र की आत्मा अपनी अभिव्यक्ति पाती है.” नेहरू ने ये अमर शब्द 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को दिल्ली में दिए गए ऐतिहासिक भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी में कहे थे. ममदानी ने तो सिर्फ मेयर का चुनाव जीता है, कोई राष्ट्रीय चुनाव नहीं. तो फिर उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के इस भाषण का हवाला क्यों दिया?

नेहरू, ममदानी के लिए कई स्तरों पर एक महत्वपूर्ण प्रतीक हैं. नेहरू की तरह ममदानी भी एक डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट हैं. “लंबे समय से दबे हुए राष्ट्र की आत्मा” का विचार एक प्रतीक था, कोई गणित की तरह सटीक वाक्य नहीं. यह उस राजनीतिक लड़ाई की तस्वीर थी, जो ममदानी और उनके 1,00,000 स्वयंसेवकों ने न्यूयॉर्क के सबसे बड़े राजनीतिक घरानों में से एक, एंड्रयू कुओमो, के खिलाफ लड़ी.

तीन बार के राज्यपाल और बिल क्लिंटन की कैबिनेट के सदस्य रहे कुओमो के साथ न्यूयॉर्क के अमीर वर्ग और ट्रंप का समर्थन था. ममदानी के लिए फंडिंग लाखों छोटे व्यक्तिगत दान से आई. तमाम मुश्किलों के बावजूद जीतना, और 34 साल की उम्र में नई राजनीतिक सुबह का स्वागत करने के लिए तैयार महसूस करना—यही वह भाव था जिसे ममदानी ने नेहरू के शब्दों से व्यक्त किया.

ममदानी का ताल्लुक भारत से है. वह अपनी राजनीतिक कथा में भारतीय संदर्भों का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करते. नेहरू के अलावा उनके विजय समारोह में बॉलीवुड संगीत भी शामिल था. उन्होंने खुद को जोर देकर एक मुस्लिम अमेरिकी के रूप में भी प्रस्तुत किया. इस वजह से चुनाव जीतना और कठिन था, और इसलिए जीत और भी मीठी थी.

लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि नेहरू का उपयोग भारतीय अमेरिकियों के लिए एक संदेश भी था—जिनमें से अधिकतर मोदी समर्थक हैं. मोदी नेहरू के विपरीत हैं; इसलिए मोदी ममदानी के लिए कोई आदर्श नहीं हैं. ममदानी के भाषण बहुत सोच-समझकर तैयार होते हैं. नेहरू का नाम कोई संयोग नहीं था. शायद वे नई पीढ़ी के भारतीय अमेरिकियों के मन में नेहरू को फिर से जीवित करना चाहते हैं, जो आजकल सिर्फ मोदी के बारे में सुनते हैं.

अब भारतीय संदर्भ से आगे बढ़ें और पूछें: जोहरान ममदानी ने आखिर हासिल क्या किया है?

‘वामपंथी लोकलुभावनवाद’

अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश में समाजवाद कोई सम्मानित शब्द नहीं है. फिर भी जोहरान ममदानी के प्रस्ताव—फ्री बस सेवा, फ्री चाइल्ड-केयर, किराए पर रोक, 30 डॉलर प्रति घंटे की न्यूनतम मज़दूरी—जिन्हें सबसे अमीर व्यक्तियों और कंपनियों पर अधिक कर लगाकर वित्तपोषित किया जाना है, जीत गए. इस तरह के समाजवाद को आज की राजनीतिक भाषा में “वामपंथी पॉपुलिज़्म” कहा जाता है, ताकि इसे ट्रंप के “दक्षिणपंथी पॉपुलिज़्म” से अलग किया जा सके. परंपरागत रूप से, समाजवाद का मतलब सरकारी नियोजित उत्पादन प्रणाली भी होता था. जोहरान ममदानी उस दिशा में नहीं जा रहे. उनकी योजना उत्पादन-आधारित नहीं बल्कि कल्याण-आधारित है. वह न्यूयॉर्क को कम-आय और यहाँ तक कि मध्यम-आय वाले परिवारों के लिए भी सुलभ बनाना चाहते हैं.

न्यूयॉर्क अमेरिका का सबसे अमीर और शायद सबसे विश्वनगरीय शहर है. इसका वार्षिक बजट अमेरिका के केवल चार राज्यों—कैलिफ़ोर्निया, टेक्सास, फ्लोरिडा और न्यूयॉर्क राज्य—से ही छोटा है. इसकी एक-तिहाई तक आबादी विदेश-जन्मी है, जो इसे सचमुच अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क वाला शहर बनाती है. अमेरिका में अभिजात्य  विमर्श पर इसका प्रभाव ऐसा है जैसा किसी और शहर का नहीं. न्यूयॉर्क का मेयर सिर्फ एक स्थानीय नेता नहीं होता, बल्कि राष्ट्रीय और कई लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व भी होता है. कुछ ही वर्षों के राजनीतिक अनुभव में न्यूयॉर्क के चुनावों ने जोहरान ममदानी को एक बहुत ऊंचे मंच पर खड़ा कर दिया है. उनकी योजनाएँ सफल होंगी या नहीं, यह अलग मुद्दा है.

लेकिन अंत में एक बात स्पष्ट है—न्यूयॉर्क की राजनीति पूरे देश पर लागू नहीं की जा सकती. यह शहर अमेरिका का सबसे विश्वनगरीय कोना है, देश का “दिल” नहीं. जब मैं इंडियाना के साउथ बेंड में रहता था, तब मैंने कई लोगों से बात की जिनके लिए न्यूयॉर्क वास्तव में किसी विदेशी देश जैसा था.

इसीलिए यह देखना ज़रूरी है कि 4 नवंबर को बाकी जगहों पर क्या हुआ.

डेमोक्रेट्स पुनर्जीवित हुए 

दो महत्वपूर्ण और अधिक व्यापक रूप से प्रासंगिक राज्यों—न्यू जर्सी और वर्जीनिया—में डेमोक्रेट्स ने गवर्नर की दौड़ और कई अहम सीटें जीतीं. वर्जीनिया की उप-गवर्नर निर्वाचित उम्मीदवार हैदराबाद में जन्मी ग़ज़ाला हाश्मी हैं. कैलिफ़ोर्निया में गवर्नर गेविन न्यूज़म ने उस जनमत संग्रह में जीत हासिल की, जिसमें अगले साल के हाउस चुनावों के लिए पांच संभावित डेमोक्रेटिक सीटें जोड़ने का प्रस्ताव था. इससे टेक्सास के रिपब्लिकन गवर्नर द्वारा कुछ महीने पहले जोड़ी गई पांच संभावित रिपब्लिकन सीटें संतुलित हो गईं. पेंसिलवेनिया में तीन डेमोक्रेटिक जज, जहां जजों का चुनाव होता है, 10 साल के लिए फिर से चुने गए. जॉर्जिया के यूटिलिटी बोर्ड की दो सीटें, जो पहले रिपब्लिकन के पास थीं, अब डेमोक्रेट्स के पास चली गईं. नवंबर ४ की रात के अंत तक यह स्पष्ट नहीं था कि रिपब्लिकन पार्टी किसी भी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चुनावी मजीत हासिल कर पाई.

इसके अलावा, जोहरान ममदानी के विपरीत—जो डेमोक्रेटिक पार्टी के वामपंथी धड़े से आते हैं—इन अन्य जीतों का श्रेय पार्टी के मध्यमार्गी या सेंटरिस्ट नेताओं को जाता है. अगर मध्यमार्गी जीत नहीं पाते, तो वामपंथी धारा पार्टी को अपनी दिशा में धकेल देती और एक गंभीर आंतरिक संघर्ष पैदा हो जाता. लेकिन अब जब दोनों धड़ों ने जीत दर्ज की है, तो उन्हें साथ काम करना होगा. इससे अगले साल के बेहद अहम मिड-टर्म चुनावों में पार्टी और मज़बूत होने की संभावना है. अगर डेमोक्रेट्स हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स जीत लेते हैं, तो व्हाइट हाउस की शक्ति पहले जैसी नहीं रहेगी.

ट्रंप की भारी जीत के एक साल के भीतर ही अमेरिका एक ऐसे राजनीतिक दौर में प्रवेश कर रहा है जहां दो पार्टियां सक्रिय होंगी, सिर्फ एक नहीं. अब ट्रम्प के रास्ते में राजनीतिक प्रतिरोध पहले से कहीं अधिक होगा.

आशुतोष वार्ष्णेय इंटरनेशनल स्टडीज़ और सोशल साइंसेज़ के सोल गोल्डमैन प्रोफेसर और ब्राउन यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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