नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) भारत कागज-रहित व्यापार प्रणाली को व्यापक रूप से अपनाकर अपनी व्यापार लागत में बड़ी कटौती कर सकता है और इससे निर्यात प्रतिस्पर्धा में भी वृद्धि होगी। एक शोध रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है।
यह रिपोर्ट शोध संस्था ‘भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद’ (इक्रियर) और रिसर्च एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) ने संयुक्त रूप से तैयार की है।
रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इस तरह की पहल से सदस्य देशों की व्यापार लागत में करीब 25 प्रतिशत तक कमी आने की संभावना है।
‘कागज-रहित व्यापार’ का मतलब व्यापारिक दस्तावेजों और सूचनाओं का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आदान-प्रदान करना है जिससे कागजी प्रक्रियाएं खत्म हो जाती हैं।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सीमापार कागज-रहित व्यापार को बढ़ावा देने वाला प्रमुख ढांचा सीपीटीए है, जिसमें अब तक 16 देश शामिल हो चुके हैं। इस समझौते से जुड़ने वाले देशों को व्यापार प्रक्रियाओं में सरलीकरण, परिवहन लागत में कमी और नियामक सहयोग में सुधार का लाभ मिलता है।
भारत ने ‘व्यापार को सुगम बनाने वाली एकल खिड़की व्यवस्था’ (स्विफ्ट) और अप्रत्यक्ष कर दस्तावेजों के इलेक्ट्रॉनिक प्रबंधन जैसे कई घरेलू सुधार किए हैं, लेकिन वह अभी तक सीपीटीए का हिस्सा नहीं बना है।
इक्रियर की प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी ने कहा, “भारत के व्यापार तंत्र में डिजिटलीकरण बड़ा परिवर्तन लेकर आया है, पर अब अगला कदम सीमापार डिजिटल एकीकरण का होना चाहिए।”
रिपोर्ट के मुताबिक, सीपीटीए से जुड़ने पर भारत के निर्यातकों और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को लाभ मिलेगा, क्योंकि इससे लालफीताशाही घटेगी और सीमा शुल्क प्रक्रियाएं सरल होंगी।
रिपोर्ट कहती है कि सीपीटीए में शामिल होना भारत को नीतिगत लचीलापन प्रदान करेगा, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सुधारों को चरणबद्ध तरीके से लागू कर सकेगा।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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