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Sunday, 12 October, 2025
होमफीचरबीइंग बनिया, बनिया किचन, बनिया सा: आखिरकार अब बनिया ब्रांडेड खाना आपकी थाली में

बीइंग बनिया, बनिया किचन, बनिया सा: आखिरकार अब बनिया ब्रांडेड खाना आपकी थाली में

बनिया व्यंजन अब सिर्फ घर की रसोई तक सीमित नहीं हैं, बल्कि Zomato, Swiggy, Amazon और Blinkit तक पहुंच रहे हैं. यह हिस्सा है मेहनत का, हिस्सा है प्यार का — ‘लोग इसके बारे में ज़्यादा नहीं जानते’.

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दिल्ली: दीप्ति बंसल खुद को किसी एक्टिविस्ट से कम नहीं मानती, जो दुनिया को ‘बनियों के तरीके’ बताना चाहती हैं. अपने स्नैक ब्रांड Being Bania के जरिए वह इस व्यंजन को उसकी लंबित मान्यता दे रही हैं और खोए हुए स्वादों को फिर से ज़िंदा कर रही हैं. मारवाड़ी खासियत, संड्राइड सांगरी, उनका सबसे बेस्टसेलर है. उन्होंने कहा, “हां, हमारे पास है”, जैसे ही लाइन के दूसरी ओर किसी ग्राहक की जोरदार खुशी की आवाज़ आई.

बनियों ने व्यापार, वित्त और तकनीक में सफलता हासिल की है. अब उन्होंने भोजन की दुनिया में भी कदम रखा है और वहां भी टॉप पर रहना चाहते हैं.

एक शांत स्वर वाली महिला बसंल ने कहा, “मैं बनिया हूं और मैं अपनी संस्कृति को गहराई से जानती हूं. तभी मुझे लगा — क्यों न अपने ही खाने के बारे में बात करूं? क्योंकि और कोई इसके बारे में बात नहीं कर रहा है.”

बंसल और उनके कोफाउंडर कोनार्क मुरारका बनिया उद्यमियों की नई पीढ़ी हैं, जो परंपरा को नए डिजिटल मार्केट के साथ जोड़ रहे हैं. उनका ब्रांड पारंपरिक सामुदायिक खाने की आदतों में डूबा है: अचार से लेकर पापड़ और गट्टे की सब्ज़ी तक, सब कुछ पुराने स्टाइल के मुंशीजी के लोगो के तहत पैक किया गया है, जिसमें टोपी, मूंछ और टीका है. हर आइटम बनिया नियमों के अनुसार तैयार किया जाता है — न लहसुन, न प्याज.

शेफ गुंजन गोएला ने कहा, “प्याज और लहसुन उग्र (violent) खाद्य पदार्थ हैं — ये अंदर बेचैनी पैदा करते हैं और अगर हम बेचैन हैं, तो हम बिजनेस कैसे चलाएंगे? क्या आपने कभी किसी बनिया को अपना सब्र खोते देखा है?”

बनिया खाना नया नहीं है, लेकिन इसे आमतौर पर सामान्य शाकाहारी स्नैक्स में ही रखा जाता था. अब इसके लिए अधिक स्पष्ट पहचान उभर रही है. मालवा से लेकर मारवाड़ी तक, बनिया और संबंधित क्षेत्रीय व्यंजनों का परिदृश्य अब मार्केटिंग और ब्रांडिंग के जरिए अधिक दिखाई दे रहा है.

अमेज़न पर, लौंग फ्लेवर्ड सेव पैक किया गया है, “Bania Bhaiyaji Ratlami Sev” के नाम से. इंदौर का Malwa Story हर तरह के सेव बेचता है, रतलाम से उज्जैनी तक. इसके आईआईटी-आईआईएम पढ़े संस्थापक अक्षांश गुप्ता इसे कहते हैं, “दुनिया को सेव से प्यार करने के लिए प्रेरित करने की कोशिश.” राजस्थान में मारवाड़ी बाइ्ट्स हैं, जिसमें 25 तरह के खाखरा और “थिन बाइट्स ” हैं. इसका लोगो और कर्सर भी पगड़ी और मूंछ वाले व्यक्ति का है. एक और लेबल Baneeya Sa अमेज़न पर मठरी, बूंदी और मेवाड़ी चना दाल बेचता है, साथ में पगड़ी वाला मैस्कॉट. गुरुग्राम में Baniya’s Kitchen होली, नवरात्रि और कॉर्पोरेट पार्टियों के लिए थाली परोसता है. यहां तक कि एक रिसर्च बेस्ड कुकबुक भी है, The Baniya Legacy of Old Delhi: Culture and Cuisine, शेफ गुंजन गोएला द्वारा.

दिल्ली के बडली यूनिट में Being Bania के लिए बेसन मसाला गट्टा पैक किया जा रहा है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
दिल्ली के बडली यूनिट में Being Bania के लिए बेसन मसाला गट्टा पैक किया जा रहा है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

गुंजन गोएला के अनुसार, बनिया खाने की मांग 1990 के दशक से बढ़ रही है. उन्होंने पहली बार आईटीसी के शाकाहारी मेन्यू में बनिया व्यंजन पेश किए थे.

60 साल के एक आईटीसी कंसल्टेंट जो, खुद एक बनिया हैं, उन्होंने कहा, “यह शाकाहारियों के लिए बड़ा चौंकाने वाला था. उन्हें नहीं पता था कि बिना प्याज और लहसुन खाना इतना स्वादिष्ट हो सकता है.”

उन्होंने तब से अंबानी, अडाणी, अमिताभ बच्चन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी खाना तैयार किया है.

गोएला ने कहा, “वे सब मेरे खाने को पसंद करते हैं.” उन्होंने कहा कि समुदाय अपने खाने की आदतों के प्रति सख्त है. बनियों के लिए, उनके खाने का तरीका उनके बिजनेस में सफलता का वाहन है.

Being Bania ने इस सामुदायिक खाने की पहल को एक नई ऊंचाई दी है. उनके ग्राहक केवल बनिया ही नहीं हैं, बल्कि देशभर के लोग हैं जो इस समुदाय के खाने की संस्कृति को जानना चाहते हैं.

शेफ गुंजन गोएला ने समुदाय की खाने की परंपराओं को संजोने और मनाने के लिए लिखा ‘Baniya Legacy of Old Delhi’ | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट
शेफ गुंजन गोएला ने समुदाय की खाने की परंपराओं को संजोने और मनाने के लिए लिखा ‘Baniya Legacy of Old Delhi’ | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट

बंसल ने कहा, “जब भी आप सोचते हैं कि बनिया क्या खाते हैं, तो आप इसे सिर्फ आलू तक सीमित कर देते हैं. हां, वो बहुत खाते हैं, लेकिन सिर्फ आलू ही नहीं खाते.”

बंसल और मुरारका के लिए, ब्रांड बनाना समुदाय और उसकी पुरानी जड़ों के साथ व्यक्तिगत पुनः जुड़ाव का भी मतलब था.

उन्होंने कहा, “मुझे कई खाने की चीज़ें नहीं पता थीं जो हम पहले खाते थे. माइग्रेशन और आधुनिकता के कारण हमारी पारंपरिक खाने की आदतें पीछे छूट गई हैं, जब मैंने अपने माता-पिता से पूछा, ‘क्या आप इसे खाते हैं?’ तो उन्होंने कहा, ‘हम खाते थे, लेकिन अब कोई नहीं खाता — इसलिए हम भी नहीं खाते’.”

बिजनेस और प्यार, बनिया अंदाज़

दिल्ली के बडली में तीन मंजिला Being Bania ऑफिस में, दीप्ति बंसल एक साधारण कमरे में बैठी हैं, जिसमें सादा सफेद दीवारें, एक रोलिंग चेयर और साधारण लकड़ी की मेज है. यहीं से वह फैक्ट्री-कम-वेयरहाउस के ऑपरेशन पर नज़र रखती हैं. अब 20 कर्मचारियों की टीम वह काम संभालती है, जो कुछ साल पहले अकेले वह खुद करती थीं — सफाई, पैकिंग और खाने की डिलीवरी.

कुकिंग एरिया में, एक महिला बड़ी कड़छी और गर्म, तैलीय पैन के साथ पापड़ तल रही हैं — वह पापड़ जो बनियों को मसालों के साथ पसंद हैं. “मैंने पापड़ का एक बॉक्स बना दिया!” वे चिल्लाती हैं. एक युवक दौड़ता है और इसे दूसरी जगह ले जाता है, जहां पापड़ ठंडा होने के बाद सावधानी से पैक किए जाते हैं.

दीप्ति बंसल मुस्कुराते हुए कहती हैं, “बनिया अपने खाने को पापड़ और अचार के बिना नहीं खा सकते.”

दीप्ति बंसल, को-फाउंडर, Being Bania ने कहा, “भारत में हर 100 किलोमीटर पर खाने की पसंद बदल जाती है. यही वजह थी कि हमने एक ऐसा ब्रांड बनाया जो बनिया खाने की आदतों के हिसाब से हो.”

जब ब्रांड ने 2021 में अपनी शुरुआत की थी, तब बंसल ही कामकाजी, क्रिएटर, डिज़ाइनर और फाउंडर, सभी थीं. बिजनेस बढ़ने के साथ, कुछ अन्य लोगों को काम सौंपा गया, लेकिन अब वह ब्रांड की पोस्टर गर्ल हैं. Being Bania की वेबसाइट पर उनका फोटो ब्रांड के सिग्नेचर पेस्टल-और-ब्लैक पैकेजिंग के साथ दिखता है. एक अन्य इमेज में वह पारंपरिक बनिया नमकीन का आनंद लेती दिखती हैं. साइट पर एक पॉप-अप ग्राहकों को आमंत्रित करता है: “सांस्कृतिक स्वाद चखिए.”

जबकि पापड़ और अचार बडली फैक्ट्री में बनाए जाते हैं, अन्य पारंपरिक खासियतें जैसे गट्टे और सांगरी राजस्थान के वेंडरों से लाई जाती हैं.

बंसल ने कहा, “हमने सोचा कि वेंडरों को यहां बुला लें, लेकिन वे दिल्ली आने को राज़ी नहीं थे, इसलिए हम हर महीने उनसे खाना मंगाते हैं.”

दीप्ति बंसल के साथ केर सांगरी का अचार. वे कहती हैं कि अचार और पापड़ दो ऐसी चीज़ें हैं, जिनके बिना बनिया नहीं रह सकते | फोटो: सबिका कमाल खान/दिप्रिंट
दीप्ति बंसल के साथ केर सांगरी का अचार. वे कहती हैं कि अचार और पापड़ दो ऐसी चीज़ें हैं, जिनके बिना बनिया नहीं रह सकते | फोटो: सबिका कमाल खान/दिप्रिंट

बंसल के अनुसार, ब्रांड ने साल-दर-साल 100% वृद्धि की है, महीने के 50,000 रुपये से बढ़कर अब मासिक 50 लाख रुपये से अधिक रेवेन्यू तक पहुंच गया है. वे हर महीने 30,000 से अधिक यूनिट डिलीवर करते हैं और अब 1 मिलियन डॉलर वार्षिक रन रेट हासिल करने की राह पर हैं.

यह सब पांच साल पहले दो दोस्तों, कोनार्क मुरारका और ईशान परदेशी, के बीच डिनर टेबल की बातचीत से शुरू हुआ था, दोनों सेल्स मैनेजर थे, लगातार ट्रेवल करते थे और घर जैसा खाना चाहते थे.

बंसल ने कहा, “भारत में हर 100 किलोमीटर पर खाने की पसंद बदल जाती है. यही वजह थी कि हमने ऐसा ब्रांड बनाया जो बनिया खाने की आदतों के हिसाब से हो.”

मुरारका ने शुरू में Big Brands Consumer Private Limited कंपनी बनाई, जिसमें पंजाबी और बनिया दोनों खाने को मार्केट करने की योजना थी. इसी दौरान बंसल को टीम में शामिल किया गया. वे डिज़ाइनर के रूप में आईं, लेकिन बिज़नेस डिटेल्स पर चर्चा के दौरान वह को-फाउंडर भी बन गईं.

बंसल ने कहा, “पंजाबी खाना तो जाना-पहचाना है, लेकिन बनिया खाना नहीं. तभी हमने बनिया खाने और उनकी आदतों की लिस्ट बनाई.”

दिल्ली में Being Bania यूनिट में पैकिंग के लिए पापड़ तैयार किए जा रहे हैं | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
दिल्ली में Being Bania यूनिट में पैकिंग के लिए पापड़ तैयार किए जा रहे हैं | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

उन्होंने समुदाय की खाने की आदतों पर रिसर्च की, परिवारों और रिश्तेदारों से जानकारी ली, मार्केट सप्लाई और डिमांड को समझा और राजस्थान का दौरा किया — बनिया व्यंजन का हॉटस्पॉट. खाटू श्याम और बीकानेर में उन्होंने केर, सांगरी और बीन्स के लिए मार्केट का पता लगाया और दिल्ली के शेफ्स के लिए सबसे ऑथेंटिक फ्लेवर्स के नमूने लाए.

लेकिन जैसे ही बंसल और मुरारका महीनों तक साथ काम कर रहे थे, कुछ और भी पनप रहा था — एक प्रेम कहानी. 2021 में ब्रांड के आधिकारिक लॉन्च से ठीक पहले, मुरारका ने उनसे कहा, “तुम मुझमें सबसे अच्छा देखती हो.” उन्होंने जवाब दिया, “तुम भी मेरे लिए ऐसा ही करते हो.”

उनकी खाने की पसंद भी मेल खाती थी. दोनों को सांगरी पसंद नहीं और दोनों को कैर की सब्ज़ी पसंद थी. ब्रांड व्यक्तिगत बन गया — पुरानी खाने की परंपराओं को फिर से टेबल पर लाना और साथ में कुछ बनाना.

बनिया दुनिया में, खाना उतना ही बिजनेस है जितना प्यार.

बिजनेस के हिसाब से सही स्वाद

शेफ गुंजन गोएला ने कहा, बनियों के लिए, उनका खाना उनके व्यापारिक मनोवृत्ति के अनुरूप होता है. शांति बनाए रखने के लिए वे प्याज़ और लहसुन से बचते हैं, जो बिजनेस में ज़रूरी है.

उन्होंने कहा, “प्याज़ और लहसुन उग्र (violent) खाद्य पदार्थ हैं — ये अंदर से बेचैनी पैदा करते हैं और अगर हम बेचैन हैं, तो बिज़नेस कैसे चलाएंगे?”

उन्होंने कहा, “क्या आपने कभी किसी बनिया को सब्र खोते देखा है?”

लेकिन सही तरह का खाना होटल और रेस्तरां में कम ही मिलता था, जहां कई बनियों ने व्यापारिक सौदे किए. जब गोएला 1998 में आईटीसी में शामिल हुईं, बनिया और जैन बहुत कम ही आईटीसी के होटलों में खाते थे. उन्होंने प्याज़ और लहसुन के बिना बनिया व्यंजन जोड़ने का प्रस्ताव रखा. इसका दोहरा फायदा हुआ: शाकाहारी लोगों के पास अब ज्यादा ऑप्शन थे और बनिया व जैन आईटीसी के रेगुलर ग्राहक बन गए.

गुंजन गोएला अपने दिल्ली घर में अपनी किताब Baniya Legacy of Old Delhi: Culture and Cuisine के साथ | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट
गुंजन गोएला अपने दिल्ली घर में अपनी किताब Baniya Legacy of Old Delhi: Culture and Cuisine के साथ | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट

उन्होंने आगे कहा, “कुछ महीनों बाद, मैंने एक नया शाकाहारी मेनू तैयार किया जिसमें बनिया खाना शामिल था. आईटीसी उनके लिए एक बैंक्वेट बन गया.”

उनके अनुसार, बनिया अपने खाने की आदतों में बहुत जिद्दी होते हैं. पहले के दिनों में, महिलाओं के पास केवल खाना बनाने के कपड़े अलग होते थे और कोई और उन्हें छू नहीं सकता था.

उन्होंने कहा, “बनिया पवित्रता और अशुद्धता के प्रति बहुत सजग हैं. उनके समुदाय के किसी ब्राह्मण या व्यक्ति के अलावा कोई खाना नहीं बना सकता. वे बहुत बैकग्राउंड चेक करते हैं.”

गोएला ने अपने ज्ञान को अब किताब में बदल दिया. 2023 में उन्होंने Baniya Legacy of Old Delhi: Culture and Cuisine प्रकाशित की, जिसमें समुदाय की खाने की आदतों और रेसिपीज़ की बारीक डिटेल्स हैं.

नेहा गुप्ता, होम शेफ, Baniya Kitchen ने कहा, “हम ग्रेवी के लिए बहुत सारा हींग, दही, मलाई और आमचूर इस्तेमाल करते हैं. हमारा खाना बनाने का तरीका अलग है.”

किताब में लिखा है, “दोपहर के सामान्य खाने में अरहर की दाल, चावल, भुने आलू और एक सूखी सब्ज़ी जैसे बैगन या टिंडा होती है. वैकल्पिक रूप से कढ़ी-चावल. कोई भी खाना धनिया-पुदीना चटनी के बिना पूरा नहीं होता.” अगस्त में उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को भी एक प्रति दी.

गोएला के लिए, बनिया खाने की संस्कृति को दस्तावेज़ करना ज़रूरी था क्योंकि पहले किसी ने ऐसा नहीं किया था. सब इसे जानते थे, लेकिन मान्यता नहीं मिली थी. प्रेरणा उन्हें अपनी मां से मिली, जो बनिया आहार के प्रति बहुत सख्त थीं. पांच-सितारा होटल ओबेरॉय में भी वह केवल नान और दही खाती थीं, उसमें काली मिर्च और नमक.

गोएला ने कहा, “उनके लिए ऑप्शन बहुत कम थे, तभी मैंने सोचा कि मैं कुछ करूं जिससे बनिया खाना कहीं भी और हर जगह उपलब्ध हो.”

नेहा गुप्ता, जो गुरुग्राम में Baniya’s Kitchen में चांदनी चौक–प्रेरित व्यंजन बनाती हैं, ने कहा कि दिल्ली के बनिया दूसरों को ‘बाहर वाले’ कहते हैं और अलग तरीके से खाना बनाते हैं | फोटो: फेसबुक
नेहा गुप्ता, जो गुरुग्राम में Baniya’s Kitchen में चांदनी चौक–प्रेरित व्यंजन बनाती हैं, ने कहा कि दिल्ली के बनिया दूसरों को ‘बाहर वाले’ कहते हैं और अलग तरीके से खाना बनाते हैं | फोटो: फेसबुक

शुद्धता के प्रति पुराने दिनों की मानसिकता के बाद, समुदाय अब विकसित हो गया है. पहले वे केवल अपने घर का ताज़ा खाना ही खाते थे, लेकिन अब थोड़े साहसी हैं और बाहर खाना खाने से भी डरते नहीं हैं. इसलिए संरक्षण उनकी नज़र में और जरूरी हो गया है.

गोएला ने कहा, “जहां भी मैं जाती हूं, गैस्ट्रोनॉमी पर लेक्चर देने या छात्रों से बात करने के लिए, मैं उन्हें बनिया खाना सीखने पर ज़ोर देती हूं.” वे चाहती हैं कि यह मेनस्ट्रीम में जाए और बनिया स्टैम्प के साथ रहे.

इसी बीच, कुछ होम शेफ अपने घर से बनिया खाने की मार्केट को सर्व कर रहे हैं.

नेहा गुप्ता, 42, गुरुग्राम में सात साल से Baniya Kitchen चला रही हैं. यह शहर में चांदनी चौक का स्वाद लाती है.

उन्होंने कहा, “मुझे पुराने दिल्ली के बनिया खाने से प्यार था, इसलिए मैं शेफ बनी.”

समुदाय के अंदर भी विभाजन है. दिल्ली के बनिया दूसरों को ‘बाहर वाले बनिया’ कहते हैं. नवरात्रि के दौरान भी उनका खाना अलग होता है. टमाटर की जगह वे टैंग के लिए दही और मलाई इस्तेमाल करते हैं.

गुप्ता ने कहा, “हम ग्रेवी के लिए बहुत सारा हींग, दही, मलाई और आमचूर इस्तेमाल करते हैं. हमारा खाना बनाने का तरीका अलग है.”

पूरे भारत में पैलेट के लिए पापड़ और अचार

बनिया होने के बावजूद, दीप्ती बंसल को समुदाय के व्यंजनों की जड़ों तक जाने के लिए गहराई में जाना पड़ा. राजस्थान की कई यात्राओं के अलावा, उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों की यादों को भी खंगाला.

एक कहानी जो उनके दादा-दादी ने सुनाई, वह उस अकाल की थी जो उस क्षेत्र में आया था. पास में कोई सब्ज़ी न होने के कारण गट्टे की सब्ज़ी बनी — बेसन और मसाले से बने पतले रोल्स, जिन्हें काटकर तला जाता था. यह अंततः समुदाय की मुख्य व्यंजन बन गई.

लखनऊ में जन्मी और पली-बढ़ी बंसल, ये कहानियां पहली बार सुन रही थीं.

उन्होंने कहा, “राजस्थान में बहुत ज़्यादा हरियाली नहीं है. अकाल के बाद, लोगों ने मटर, फली इकट्ठा करना और सुखाना शुरू किया. बेसन और मसालों से बने सब्ज़ी के व्यंजन उसी ज़रूरत से जन्मे.”

दीप्ती बंसल एक खुश ग्राहक का मैसेज दिखाती हैं. वे कहती हैं कि Being Bania के लगभग 60 प्रतिशत खरीदार रेगुलर ग्राहक हैं | फोटो: सबिका खान/दिप्रिंट
दीप्ती बंसल एक खुश ग्राहक का मैसेज दिखाती हैं. वे कहती हैं कि Being Bania के लगभग 60 प्रतिशत खरीदार रेगुलर ग्राहक हैं | फोटो: सबिका खान/दिप्रिंट

ये पारंपरिक व्यंजन अब सीधे खाटू श्याम और बीकानेर से खरीदे जाते हैं, Being Bania के बादली वेयरहाउस में कलेक्ट किए जाते हैं और अमेज़न, फ्लिपकार्ट और हाल ही में दो महीने पहले लॉन्च हुए ब्लिंकिट पर बेचे जाते हैं.

संस्थापकों के लिए हैरानी की बात यह थी कि उनके कई ग्राहक बनिया नहीं थे. इससे उन्हें पता चला कि भारतीय बाज़ार यह जानने के लिए उत्सुक है कि बनिया क्या खाते हैं.

बंसल ने कहा, “वो दक्षिण भारत, बंगाल और बिहार से थे और हम पूरी तरह हैरान थे.”

उन्होंने गर्व से ग्राहकों से मिले कई प्रशंसा संदेश दिखाए. एक में केर संगरी आचार और आलू पापड़ की तारीफ की गई.

मैसेज में लिखा था, “हम स्विगी इंस्टामार्ट के रेगुलर ग्राहक हैं और आपका सामान बहुत पसंद है. यह हमें हमारी नानी और दादी द्वारा तैयार किए गए प्रामाणिक पारंपरिक स्वाद देता है.”

पिछले तीन सालमें, Being Baniya ने लगभग 60 प्रतिशत रेगुलर ग्राहक हासिल किए हैं. अगले कदम के बारे में बंसल ने कहा कि उनका उद्देश्य बनिया समूहों में अपनी उपस्थिति मजबूत करना और वर्ल्ड बनिया फोरम में शामिल होना है, जो व्यवसायियों, उद्यमियों, निवेशकों और अन्य पेशेवरों का एक समुदाय मंच है.

उन्होंने हंसते हुए कहा, “यह सबके लिए है कि वे बनिया खाना एक्सप्लोर कर सकें, लेकिन पहले बनियों को यह पता होना चाहिए कि उनका पारंपरिक खाना बस एक क्लिक दूर है.”

यह “बनिया बेसिक्स” सीरीज़ की तीसरी रिपोर्ट है, जो भारत की व्यापारी बिरादरी के बदलते चेहरे पर तीन हिस्सों में प्रकाशित हो रही है.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: वर्ल्ड बनिया फोरम का मकसद—अगला अडाणी और अंबानी तैयार करना, 1991 के बाद का भारत अब हसल पर चलता है


 

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