scorecardresearch
Sunday, 12 October, 2025
होममत-विमतPoK में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा, कश्मीर-में मगन पश्चिमी मीडिया यह नहीं दिखाएगा

PoK में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा, कश्मीर-में मगन पश्चिमी मीडिया यह नहीं दिखाएगा

कश्मीर और पीओके के बीच का फर्क अनदेखा करना नामुमकिन है. एक तरफ लोग भोजन और बिजली के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विकास और शिक्षा की बातें होती हैं.

Text Size:

जम्मू और कश्मीर में भारतीय सरकार की नीतियों से तेज़ विकास और फलती-फूलती अर्थव्यवस्था देखने को मिल रही है, लेकिन बहुत दूर नहीं, पाकिस्तान-के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) में काफी गुस्सा भड़क रहा है. 29 सितंबर को पूरे इलाके में प्रदर्शन हुए, जिसने इस्लामाबाद के नियंत्रण को हिला दिया और दशकों की उपेक्षा के नीचे छिपी गहरी दरारों को उजागर किया.

जो प्रदर्शन शुरू में बिजली की बढ़ती कीमतों और सब्सिडी वाले गेहूं की कमी के खिलाफ थे, जल्द ही पाकिस्तान की आर्थिक शोषण और राजनीतिक दबाव के खिलाफ बड़े स्तर की नाराज़गी में बदल गए.

पीओके के लोग उस सिस्टम के खिलाफ लड़ रहे हैं, जो उन्हें नागरिक नहीं बल्कि केवल विषय मानता है.

व्यापारियों, सिविल सोसायटी समूहों और स्थानीय कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन ने मुख्य शहरों को पूरी तरह ठप कर दिया और यह पिछले 40 साल में पीओके में सबसे बड़े विद्रोहों में से एक बन गया, जो सड़कें पहले रोज़मर्रा की हलचल से भरी रहती थीं, अब नारे और गुस्से से गूंज रही थीं. कम से कम 12 नागरिक मरे, कई पुलिसकर्मी घायल हुए और सैकड़ों लोग चोटिल हुए, जिससे पूरा क्षेत्र अशांत बन गया.

नारे, नागरिकों की मौतें और क्षेत्र की न्याय की पुकार वैश्विक अखबारों की सुर्खियों में मुश्किल से जगह पा रही हैं. सवाल उठता है: क्यों जम्मू और कश्मीर में केवल थोड़ी सी इंटरनेट बंदी भी वैश्विक चर्चा का विषय बन जाती है, लेकिन पीओके में रहने वाले लोगों की वास्तविक जिंदगी की परेशानियों पर केवल एक लाइन मुश्किल से आती है? यह फर्क नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है. यह एक विवेक को उजागर करता है, जहां गुस्सा बस उस दुख पर सीमित रहता है जो पहले से परिचित कहानी से मेल खाता हो.

संख्याओं की कहानी

दुनिया की नज़र अक्सर ताकत और कहानी पर रहती है, दर्द और सच्चाई पर नहीं. दशकों से पाकिस्तान ने खुद को कश्मीर की “आवाज़” के रूप में पेश किया है, हमेशा खुद को पीड़ित दिखाया और कब्ज़े वाले इलाके की सच्चाई को सेंसर और प्रचार के पीछे दबाए रखा. अंतरराष्ट्रीय मीडिया, जो इस परिचित कहानी में सहज है, शायद ही कभी नियंत्रण रेखा (LoC) के पार देखता है कि पीओके में असल ज़िंदगी कैसी है. वहां विरोध को राष्ट्रद्रोह माना जाता है, आवाज़ें दबा दी जाती हैं और अधिकार केवल कागज़ों में मौजूद हैं और रिपोर्टिंग की कमी सिर्फ उपेक्षा नहीं है, यह चुपचाप मिलीभगत है, जो अन्याय को छाया में पनपने देती है.

LoC के पार, जम्मू और कश्मीर पूरी तरह अलग दिशा में बढ़ रहा है. सड़कें बन रही हैं, निवेश आ रहे हैं, और संभावना की भावना बढ़ रही है. इसमें भी समस्याएं और चुनौतियां हैं, लेकिन पीओके के मुकाबले फर्क साफ दिखता है. एक तरफ लोग बिजली, पानी, खाना और डर के बिना बोलने के अधिकार के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. दूसरी तरफ बातचीत पर्यटन, शिक्षा और नए कारोबार की हो रही है.

संख्याएं साफ कहानी बताती हैं. फरवरी में, भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए जम्मू और कश्मीर के लिए 14 बिलियन डॉलर आवंटित किए. वहीं पाकिस्तान ने पीओके के लिए केवल 790 मिलियन डॉलर का प्रबंध किया. फर्क इतना बड़ा है कि तुलना बेकार है. 2024-25 के लिए अनुमानित कश्मीर की जीडीपी 7.06 प्रतिशत बढ़ी—जो भारत के राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है—जबकि पीओके की अर्थव्यवस्था इस साल मई में 37.97 प्रतिशत की महंगाई के नीचे ढह रही है.

जम्मू और कश्मीर में चार हवाई अड्डे हैं, जबकि पीओके में दो. हवाई यातायात कश्मीर में पीओके से 12 गुना ज्यादा है. 2022 तक, जम्मू और कश्मीर में 2,812 अस्पताल थे, जबकि पीओके में केवल 23. ये सिर्फ कागज़ों के आंकड़े नहीं हैं—ये दो बिल्कुल अलग हकीकतें दिखाते हैं: एक इलाका विकास की राह में बाधाओं को पार कर रहा है, जबकि दूसरा उपेक्षा में डूब रहा है.

कश्मीर और पीओके के बीच का फर्क दिखाता है कि दो राष्ट्र सिद्धांत कितना खाली है. धर्म को राष्ट्र की पहचान मानने वाला विचार तब टूट जाता है जब आप पीओके को देखते हैं—वहीं धर्म, वही कश्मीर के साथ, लेकिन विरोध, आर्थिक पतन और मानवाधिकार उल्लंघन से जकड़ा हुआ.

दशकों तक पाकिस्तान ने पीओके के अस्तित्व को यह कहकर सही ठहराया कि कश्मीरी मुसलमान सिर्फ उसके झंडे तले ही सुरक्षित और “स्वतंत्र” रह सकते हैं, इसे “अधूरा विभाजन” कहा. पाकिस्तान में कई लोग मानते थे कि सिर्फ धर्म ही पहचान तय करता है. अब यह झूठ सामने आ चुका है.

(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: ‘सबका साथ’ या ‘पाइजान’? असम बीजेपी का एंटी-मुस्लिम वीडियो पीएम मोदी के संदेश के खिलाफ


 

share & View comments