देहरादून, आठ अक्टूबर (भाषा) उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की जगह लेने वाले अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक—2025 को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए कांग्रेस ने बुधवार को राज्य की भाजपा सरकार पर इसे केवल अपने ‘धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे के तहत’ लाने का आरोप लगाया और कहा कि इसका अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा में सुधार से कोई लेना—देना नहीं है ।
इस वर्ष अगस्त में इस विधेयक को पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में हुए राज्य विधानसभा सत्र के दौरान इसे पारित किया गया था । इस विधेयक को सोमवार को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) ने अपनी स्वीकृति दे दी है जिसकी अधिसूचना जारी होने के बाद यह कानून के रूप में प्रदेश में लागू हो जाएगा ।
कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (संगठन) सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक है और भारतीय संविधान की धारा 25 और 26 का खुला उल्लंघन है । उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर अदालत में इसे चुनौती दी गई तो सरकार को इस मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ेगी ।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘धामी सरकार यह कानून केवल अपने धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे के तहत लाई है और इसका राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा में सुधार या शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दृष्टि से कोई लेना—देना नहीं है।’’
नए कानून के तहत अल्पसंख्यक समुदायों के सभी शिक्षण संस्थानों को उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड से संबद्धता लेने की बाध्यता पर भी सवाल उठाते हुए धस्माना ने कहा कि इन संस्थानों का संचालन राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने तथा सोसायटी ऑफ रजिस्ट्रेशन कानून का पालन करने के बाद ही किया जाता है लेकिन उन्हें यह तय करने की आजादी होती है कि वे अपने संस्थान की किस बोर्ड से संबद्धता लें ।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में सिख संस्थाओं तथा ईसाई मिशनरियों के अनेक स्कूल सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड या अंतराष्ट्रीय बोर्डों से संबद्धता रखते हैं तो ऐसे में राज्य सरकार किसी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान को उत्तराखंड बोर्ड की संबद्धता लेने के लिए कैसे बाध्य कर सकती है ।
धस्माना ने आरोप लगाया, ‘‘सरकार की मंशा किसी अल्पसंख्यक वर्ग के शैक्षणिक उत्थान की नहीं बल्कि केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के मदरसों को निशाना बना कर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने की है।’’
उन्होंने कहा कि राज्य में संचालित होने वाले मदरसों के पंजीकरण व संचालन के लिए सरकार के पहले से ही नियम व कानून हैं किन्तु अगर कोई उनका पालन नहीं कर रहा तो उसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार के अधीन कार्यरत मदरसा बोर्ड की है और इसके लिए नियमानुसार चल रहे मदरसों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता ।
दूसरी तरफ, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने इसे सरकार का बहुत अच्छा कदम बताया और कहा कि इससे मुसलमान समुदाय के बच्चों को भी अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी और वे मुख्यधारा में शामिल होंगे ।
नए कानून के तहत, प्रदेश में मुसलमान समुदाय के साथ ही अन्य अल्पसंख्यक समुदायों—सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के शिक्षण संस्थानों को भी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा । अभी तक अल्पसंख्यक संस्थानों की मान्यता केवल मुस्लिम समुदाय तक सीमित थी।
नए कानून में एक ऐसे प्राधिकरण के गठन का प्रावधान है जिससे सभी अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थानों को मान्यता लेना अनिवार्य होगा । प्राधिकरण यह भी सुनिश्चित करेगा कि इन संस्थानों में उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार शिक्षा दी जाए और विद्यार्थियों का मूल्यांकन निष्पक्ष एवं पारदर्शी हो ।
इस कानून के लागू होने के बाद मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2016 समाप्त हो जाएगा । यह कानून कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में पारित किया गया था ।
राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि निश्चित तौर पर यह कानून राज्य में शिक्षा व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण बनाने में सहायक सिद्ध होगा।
मुख्यमंत्री ने पहले यह भी कहा था कि मदरसा शिक्षा व्यवस्था में वर्षों से केंद्रीय छात्रवृत्ति वितरण में अनियमितताएं, मध्याह्न भोजन योजना में गड़बड़ियां और प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी जैसी गंभीर समस्याएं आ रही थीं ।
उन्होंने कहा था कि इस विधेयक से सरकार को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के संचालन की प्रभावी निगरानी एवं आवश्यक निर्देश जारी करने का अधिकार प्राप्त होगा जिससे राज्य में शैक्षिक उत्कृष्टता और सामाजिक सदभाव और सुदृढ़ होगा ।
भाषा दीप्ति
मनीषा
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