लखनऊ, 18 सितंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक आवास सहकारी समिति के पूर्व पदाधिकारियों द्वारा करोड़ों रुपये मूल्य के भूखंडों की अवैध बिक्री और उससे मिली धनराशि के गबन से संबंधित जांच बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश सतर्कता विभाग के निदेशक को हस्तांतरित कर दी।
पीठ ने निदेशक को 25 सितंबर तक अपनी पहली कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने बहुजन निर्बल वर्ग सहकारी गृह निर्माण समिति लिमिटेड के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों द्वारा दायर एक रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘जिस तरह से जांच चल रही है, उसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस अदालत के पास जांच को उत्तर प्रदेश सतर्कता विभाग के निदेशक को हस्तांतरित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’
सुनवाई के दौरान पीठ ने पाया कि यह सोसाइटी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के कल्याण के लिए स्थापित की गई थी। सरकार ने इसे आम जनता से जमीन अधिग्रहीत करके जमीन का एक टुकड़ा दिया था। यह जमीन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों को दी जानी थी लेकिन इसके बजाय अयोग्य व्यक्तियों को जमीन के अलग-अलग टुकड़े दे दिए गए।
इसके दो पदाधिकारियों बाफिला और बलियानी ने अयोग्य व्यक्तियों को जमीन बिक्री के दस्तावेज तैयार किए और उसके बाद करोड़ों रुपये की बिक्री राशि को अपने निजी इस्तेमाल के लिए हड़प लिया।
पूर्व में की गयी सुनवाई में पीठ ने कहा था कि उत्तर प्रदेश राज्य में सहकारी आवास समितियों में भ्रष्टाचार की गहरी समस्या व्याप्त है। पीठ ने कहा था कि जहां तक वर्तमान सोसाइटी में भ्रष्टाचार का सवाल है तो अदालती सुनवाई के दबाव में राज्य सरकार ने मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
पीठ ने जांच की स्थिति की जानकारी लेते हुए तफ्तीश के तरीके और सुस्ती से संतुष्ट नहीं हुई।
पीठ ने राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता राहुल शुक्ला की सहायता से अपर महाधिवक्ता प्रीतिश कुमार द्वारा दिए गए जांच की कथित धीमी प्रगति के बारे में स्पष्टीकरण पर असंतोष व्यक्त किया।
पीठ ने उनकी दलीलों का खंडन करते हुए कहा, ‘पदाधिकारियों के खिलाफ रिकॉर्ड में पर्याप्त सुबूत होने के बावजूद बिक्री से हुई आमदनी को वापस पाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।’
भाषा सं. सलीम अमित
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