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Tuesday, 9 September, 2025
होमदेशइंटर-स्टेट बाल तस्करी गिरोह का पर्दाफाश: फर्ज़ी गोद लेना, ‘मिडिल क्लास’ एजेंट और ‘लड़के के 7 लाख’

इंटर-स्टेट बाल तस्करी गिरोह का पर्दाफाश: फर्ज़ी गोद लेना, ‘मिडिल क्लास’ एजेंट और ‘लड़के के 7 लाख’

दिल्ली पुलिस ने जिस गिरोह का भंडाफोड़ किया, वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली तक फैला था. गैंग से छह अपहृत बच्चों को छुड़ाया गया है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी की पुलिस ने 23 अगस्त को सराय काले खां बस अड्डे से अगवा किए गए छह महीने के बच्चे को 48 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद उसके माता-पिता से मिला दिया. बच्चा सुरक्षित वापस आ गया और इसी दौरान पुलिस ने एक बड़े बाल तस्करी गिरोह का पर्दाफाश किया, जिसके चलते 10 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया.

जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, पुलिस ने अलग-अलग राज्यों से पांच और अगवा बच्चों को बरामद किया, जिससे इस बाल तस्करी गिरोह के बड़े नेटवर्क का पता चला. अब माता-पिता इन बच्चों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं.

दक्षिण-पूर्व दिल्ली पुलिस की एक विशेष जांच टीम ने छह महीने के बच्चे के अपहरण का मामला सुलझाया और यहीं से इस गिरोह की जांच शुरू हुई.

गिरोह कथित तौर पर बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर कमज़ोर परिवारों को निशाना बनाता था और वहां से शिशुओं और छोटे बच्चों का अपहरण कर लेता था. बाद में इन बच्चों को कथित तौर पर बिचौलियों, परिवारों और यहां तक कि एक डॉक्टर के ज़रिये बेचा जाता था.

अब तक जिन बच्चों को बचाया गया है, उनमें 10 दिन के नवजात तक शामिल हैं. गिरफ्तार 10 संदिग्धों से पूछताछ के बाद पुलिस को और सुराग मिले हैं और आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां और बरामदगी की संभावना है.

यह सब 22 अगस्त की रात शुरू हुआ, जब उत्तर प्रदेश के रहने वाले सुरेश, जो ईंट भट्ठे में काम करते हैं, अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ राजस्थान जा रहे थे. रास्ते में वे आईएसबीटी सराय काले खां पर रुके. लंबी यात्रा से थके हुए परिवार के सभी लोग प्लेटफॉर्म पर सो गए.

करीब रात 11 बजे सुरेश की नींद खुली तो उन्होंने पाया कि उनका सबसे छोटा बच्चा गायब है. घबराए हुए उन्होंने प्लेटफॉर्म से लेकर सब जगह तक खोजा, लेकिन बच्चे का कोई पता नहीं चला. धीरे-धीरे उन्हें समझ आया कि बच्चे को उठा लिया गया है.

कई घंटों तक हड़बड़ाहट में खोजने के बाद, अगली सुबह परिवार सनलाइट कॉलोनी थाने पहुंचा. पुलिस ने तुरंत अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया.

ऑपरेशन

लापता बच्चों के मामलों में शुरुआती 24 घंटे सबसे अहम माने जाते हैं—हर घंटे बीतने के साथ बच्चे को सुरक्षित वापस लाने की संभावना कम हो जाती है. यही बात पुलिस मैनुअल और अदालत की टिप्पणियों में भी बार-बार दोहराई गई है.

दिल्ली पुलिस ने एक पल भी बर्बाद नहीं किया. एसीपी मिहिर साकरिया के नेतृत्व में एक विशेष जांच टीम बनाई गई और इसकी निगरानी की जिम्मेदारी अतिरिक्त डीसीपी (दक्षिण-पूर्व) ऐश्वर्या शर्मा को सौंपी गई.

बस अड्डे के सीसीटीवी फुटेज खंगालते हुए जांचकर्ताओं को परिवार के पास मंडराते कुछ लोग दिखे. एक शख्स बच्चे को उठाकर स्टेशन से बाहर ले जाता दिखा. इसके बाद पूरा ग्रुप तुरंत गायब हो गया. स्थानीय पूछताछ और निगरानी के जरिए पुलिस ने जल्द ही एक शख्स की पहचान कर ली, ब्रेकथ्रू भी जल्दी मिला, आगरा के फतेहाबाद निवासी वीरभान को सबसे पहले हिरासत में लिया गया.

पूछताछ में वीरभान ने कथित तौर पर कबूल किया कि उसने और अपने ससुर कालीचरण ने रामबरन नाम के व्यक्ति के कहने पर बच्चे का अपहरण किया था. रामबरन बच्चे को बेचना चाहता था। बाद में बच्चे को आगरा के निजी केके हॉस्पिटल ले जाया गया, जो डॉक्टर कमलेश कुमार का है.

इसके बाद पुलिस ने लगातार छापेमारी और गिरफ्तारियों की एक कड़ी शुरू की. डॉक्टर को सतर्क न करने के लिए पुलिस ने अस्पताल पहुंचने की खास योजना बनाई.

मरीज बनकर पुलिसकर्मी क्लिनिक में दाखिल हुए और मौके पर ही डॉक्टर कुमार को पकड़ लिया. उनकी पूछताछ में एक और नाम सामने आया सुंदर, जिसने कथित तौर पर बच्चे को डॉक्टर से खरीदा था. सुंदर पकड़ में आसानी से नहीं आया. पुलिस को उसे पकड़ने के लिए 50 किलोमीटर तक पीछा करना पड़ा. आखिरकार उसे यूपी-राजस्थान बॉर्डर पर रोक लिया गया, उसकी गिरफ्तारी के साथ ही बच्चे की बरामदगी का रास्ता साफ हुआ. सुंदर ने पुलिस को आगरा के एक दंपति, शर्मा परिवार, तक पहुंचाया, जिनके पास बच्चा था. वहां से बच्चे को सुरक्षित बरामद कर लिया गया.


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और भी बच्चे बचाए गए

महत्वपूर्ण गिरफ्तारियों से पता चला कि तस्करी का यह नेटवर्क कितना बड़ा फैला हुआ था. पुलिस ने बताया कि शर्मा दंपति इस बच्चे को रितु नाम की बिचौलिया महिला के जरिए बेचने वाले थे.

पूछताछ में दंपति ने कथित तौर पर एक और बच्चे को पहले नैनीताल के एक दंपति को बेचने की बात कबूल की. वह बच्चा भी ढूंढकर बरामद कर लिया गया. यह इस केस में दूसरी बड़ी कामयाबी थी.

इसके बाद निगरानी तकनीकों की मदद से रितु को भी खोज लिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया. उससे पूछताछ में तस्करी रैकेट के अहम चेहरे सामने आए, जिसके बाद लखनऊ और आगरा में छापे मारे गए.

इन्हीं छापों में, पुलिस ने आगरा में एक और बिचौलिया ज्योत्स्ना के पास से दो महीने का बच्चा बरामद किया और उसे मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया.

इसके बाद बिचौलिया रचिता मित्तल उर्फ़ रुबीना अग्रवाल को पकड़ा गया. उसकी जानकारी पर एक और दो महीने का बच्चा बचाया गया. उसके बयान से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में फैले इस नेटवर्क के और सिरों का खुलासा हुआ.

जांच में आगे चलकर पुलिस ने आगरा के एक और परिवार के पास से 10 दिन का शिशु ढूंढ निकाला और फतेहाबाद (यूपी) में सुंदर द्वारा बेची गई एक साल की बच्ची को भी बरामद किया.

दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी डॉ. हेमंत तिवारी ने बताया, “कुछ फरार कथित तस्करों की गिरफ्तारी के लिए प्रयास जारी हैं. मामले की आगे की जांच भी चल रही है.”

पुलिस ने गिरफ्तार 10 आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 143 (मानव तस्करी), 3(5) (सामूहिक इरादे से किए गए अपराधों की जिम्मेदारी), और 61(2) (आपराधिक साजिश—गंभीर अपराधों में उकसाने के बराबर सजा या अन्य मामलों में छह महीने तक की कैद/जुर्माना) समेत किशोर न्याय अधिनियम की धारा 80 (बिना तय प्रक्रिया के अवैध गोद लेना) के तहत केस दर्ज किया है.

कैसे चलता था रैकेट

रैकेट के तरीके को बताते हुए डीसीपी तिवारी ने कहा कि यह गैंग ज़्यादातर बिचौलियों के जरिए काम करता था, जो अक्सर मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि की महिलाएं होती थीं और आसानी से अलग-अलग सामाजिक दायरों में घुलमिल जाती थीं.

तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, “ये बहुत गरीब महिलाएं नहीं थीं बल्कि मध्यमवर्गीय और सामाजिक रूप से जुड़ी हुई लोग थीं. ये परिवारों में उठना-बैठना करती थीं, भरोसा जीतती थीं और धीरे-धीरे पता लगाती थीं कि कौन बच्चा चाहता है, खासकर लड़का.”

जैसे ही उन्हें मांग का पता चलता, ये महिलाएं बच्चे का इंतजाम करने का ख्याल डालतीं. अक्सर वे किसी डॉक्टर या अस्पताल का नाम लेतीं जिन्हें वे ‘जानती’ हों. धीरे-धीरे यह बात रखी जाती कि कोई ऐसा बच्चा है जिसका कोई रिश्तेदार नहीं है और उसे चुपचाप दे दिया जा सकता है. लेन-देन को वैध दिखाने के लिए दंपति से कहा जाता कि उन्हें बस बच्चे के इलाज या अस्पताल का बिल चुकाना है.

गोद लेने की दरें बहुत ऊंची थीं. पुलिस के मुताबिक, संभावित माता-पिता से बच्चे के लिंग के हिसाब से 1.8 लाख रुपये से लेकर 7.5 लाख रुपये तक वसूले जाते थे. लड़के सबसे महंगे बिकते थे.

तिवारी ने कहा, “सबसे कम रेट लड़की का 1.8 लाख रुपये था, जबकि आगरा में एक लड़का 7.5 लाख तक में बेचा गया. आमतौर पर रेट 3.5 लाख से 5 लाख रुपये के बीच रहता था.”

गौरतलब है कि पुलिस का कहना है कि कई दत्तक माता-पिता यह मानकर बच्चे ले रहे थे कि वे अनाथ या छोड़े हुए हैं, न कि अपहृत शिशु.

डीसीपी ने कहा, “कोई भी माता-पिता जानबूझकर अवैध बच्चा नहीं चाहता. वो अक्सर हमदर्दी में बच्चा लेते हैं और फिर उसकी अच्छी देखभाल करते हैं. असली गुनहगार तो बिचौलिए और डॉक्टर हैं जो यह नेटवर्क चलाते हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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