नयी दिल्ली, 26 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में मौत के सजायाफ्ता एक दोषी सहित दो लोगों को बरी कर दिया और इसे “ढुलमुल और घटिया जांच का उत्कृष्ट उदाहरण” बताया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दोनों आरोपियों से न तो रक्त के नमूने एकत्र करने संबंधी कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया गया और न ही साक्ष्य के रूप में प्रदर्शित किया गया, जिससे डीएनए रिपोर्ट “रद्दी का टुकड़ा” बन कर रह गई।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष दोनों अपीलकर्ताओं के अपराध को साबित करने में “बहुत बुरी तरह” विफल रहा है, क्योंकि उसके पास ऐसे ठोस सबूत नहीं थे जिन्हें मामले को सभी संदेहों से परे साबित करने वाला कहा जा सकता है।
फैसले में कहा गया, “हमारा मानना है कि वर्तमान मामला ढुलमुल और घटिया जांच का एक और उत्कृष्ट उदाहरण है, साथ ही सुस्त सुनवाई प्रक्रिया भी है, जिसके कारण एक मासूम बच्ची के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या से जुड़े मामले की जांच नाकाम रही।”
शीर्ष अदालत का फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2018 के फैसले के खिलाफ अपील पर आया।
उच्च न्यायालय ने आरोपी पुतई को निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि की थी तथा उसकी दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया था।
अधीनस्थ अदालत ने इस मामले में आरोपी दिलीप को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
अपीलों पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस बात से अवगत है कि यह 12 वर्ष की लड़की के साथ दुष्कर्म और उसकी नृशंस हत्या का जघन्य मामला है।
फैसले में कहा गया है, “हालांकि, आपराधिक न्यायशास्त्र का यह स्थापित सिद्धांत है कि पूर्णतः परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में अभियोजन पक्ष को अपना मामला उचित संदेह से परे साबित करना होगा।”
पीठ ने कहा कि उसके पास अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ देकर बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
उसने कहा कि जांच अधिकारियों ने, जहां नाबालिग का शव मिला था वहां आस-पास के खेतों में किसी से भी पूछताछ करने की जहमत नहीं उठाई।
फैसले में कहा गया, “अभियोजन पक्ष जांच के दौरान कथित रूप से एकत्र किए गए फोरेंसिक नमूनों की कड़ी को साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय साक्ष्य पेश करने में विफल रहा और इसलिए केवल इसी आधार पर डीएनए रिपोर्ट महत्वहीन हो जाती है।”
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि पुलिस के कुत्ते ने अपराध स्थल पर मिली पुरुषों द्वारा आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक छोटी कंघी को सूंघा और फिर दिलीप के घर का पता चला। लेकिन शीर्ष अदालत ने पुलिस द्वारा बरामद कंघी के रंग को लेकर महत्वपूर्ण विरोधाभासों को रेखांकित किया।
इसमें कहा गया है, “श्वान दस्ते द्वारा तलाशी के लिए कोई भी समकालीन दस्तावेज तैयार न करना पूरी प्रक्रिया को संदिग्ध बनाता है।”
नाबालिग चार सितंबर 2012 को लापता हो गई थी और उसका शव एक खेत में पाया गया था, जिसके बाद अपीलकर्ताओं को सितम्बर 2012 में गिरफ्तार कर लिया गया था।
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