नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) भारत के 58 से अधिक संगठनों ने संयुक्त रूप से एक श्वेत पत्र का समर्थन किया है, जिसमें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के दूसरे चरण को अधिक प्रभावी एवं जवाबदेह बनाने का आह्वान किया गया है।
श्वेत पत्र में सरकार से आग्रह किया गया है कि वह इसकी पहुंच को व्यापक बनाए, निगरानी तंत्र को मजबूत करे और वायु गुणवत्ता में तेजी से सुधार लाने के लिए स्पष्ट जिम्मेदारी तय करे।
‘एनसीएपी 2.0 : भारत के लिए एकीकृत वायु गुणवत्ता ढांचे की ओर’ शीर्षक वाले इस श्वेत पत्र में अगले चरण में वर्तमान में 130 शहरों पर केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ने और एक ऐसे एयरशेड (वायु क्षेत्र) तथा राज्य-स्तरीय दृष्टिकोण को अपनाने की सिफारिश की गई है, जो शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में फैले प्रदूषण स्रोतों को समग्र रूप से शामिल करे।
लेखकों ने कहा कि वायु प्रदूषण प्रशासनिक सीमाओं से परे है और इस वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए कार्यक्रम को नये सिरे से तैयार किया जाना चाहिए।
भारत ने 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया था, जिसका लक्ष्य 2017 को आधार वर्ष मानकर 2024 तक कण (पीएम) प्रदूषण के स्तर में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना था। बाद में इसमें संशोधन किया गया और 2019-20 को आधार वर्ष मानकर 2026 तक 40 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया।
प्रदर्शन आकलन के लिए वास्तव में केवल पीएम10 सांद्रता पर ही विचार किया जा रहा है।
श्वेत पत्र में कहा गया है कि तत्काल कार्रवाई के लिए राज्यों के नेतृत्व वाला ‘हाइब्रिड’ संस्थागत मॉडल अधिक व्यावहारिक होगा, जिसमें राज्य पर्यावरण विभाग नोडल समन्वयक के रूप में कार्य करेंगे, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बड़े पैमाने पर प्रदूषण के लिए जिम्मेदार स्रोतों को संभालेंगे और शहरी स्थानीय निकाय सड़क धूल नियंत्रण, अपशिष्ट प्रबंधन और हरियाली जैसे शहर-स्तरीय उपायों का नेतृत्व करना जारी रखेंगे।
श्वेत पत्र में कहा गया है कि इससे क्षेत्राधिकार संबंधी भ्रम कम होगा और प्रत्येक राज्य की प्रदूषण स्थिति के आधार पर योजनाएं तैयार की जा सकेंगी।
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में 560 से अधिक सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र और 800 से अधिक ‘मैनुअल’ निगरानी केंद्र हैं, फिर भी कई शहर एक ही सतत निगरानी केंद्र पर निर्भर हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में कवरेज नगण्य है।
उन्होंने मौजूदा सतत निगरानी केंद्रों के साथ-साथ कम लागत वाले सेंसर का उपयोग करते हुए एक सघन नेटवर्क तैयार करने, निगरानी स्थलों के स्वतंत्र ऑडिट और एक ऐसी ‘हाइब्रिड’ प्रणाली अपनाए जाने की मांग की, जो डेटा की विश्वसनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए पीएम10 और पीएम2.5 से परे भी प्रदूषकों पर नजर रखे।
वायु गुणवत्ता विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा तैयार तथा विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नीति अध्ययन केंद्र, ऊर्जा एवं स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) इंडिया और असर सहित पर्यावरण समूहों एवं थिंक टैंक द्वारा समर्थित इस श्वेत पत्र में बजटीय आवंटन को सीधे क्षेत्रीय और भौगोलिक प्रदूषण में कमी से जोड़ने का आग्रह किया गया है, ताकि वित्तपोषण को ऐसे परिणामों से जोड़ा जा सके, जिनका आकलन किया जा सके।
इस श्वेत पत्र को एनसीएपी निदेशक पीवी पिल्लई के साथ औपचारिक रूप से साझा किया गया है।
भाषा सिम्मी पारुल
पारुल
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.