बेंगलुरु, 17 अगस्त (भाषा) कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खरगे ने दावा किया है कि भारत में दो राष्ट्रों की अवधारणा सबसे पहले विनायक दामोदर सावरकर ने रखी थी, जबकि बाद में मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने इसे अपनाया था।
कर्नाटक के सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियंक खरगे ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘दो राष्ट्रों का विचार सबसे पहले ‘वीर’ सावरकर ने रखा था और उनके ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ ने इसका समर्थन किया था।’
उन्होंने सावरकर के लेखों और भाषणों का हवाला देते हुए घटनाक्रम का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, ‘‘ ‘एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व’ (1922 में लिखी) में सावरकर ने हिंदुत्व को धर्म से नहीं, बल्कि मातृभूमि से परिभाषित किया है, भारत को ‘पितृभूमि और पवित्रभूमि’ दोनों के रूप में परिभाषित किया है।’’
खरगे ने कहा कि सावरकर ने 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा के 19वें अधिवेशन के दौरान कहा था, ‘‘भारत में दो विरोधी राष्ट्र साथ-साथ रह रहे हैं। आज भारत को एकात्मक और समरूप राष्ट्र नहीं माना जा सकता। इसके विपरीत, भारत में मुख्य रूप से दो राष्ट्र हैं: हिंदू और मुसलमान।’’
उन्होंने सावरकर की 1943 में नागपुर में की गई टिप्पणी का हवाला दिया जिसमें कहा गया है, ‘‘मेरा श्री जिन्ना के दो-राष्ट्र सिद्धांत से कोई झगड़ा नहीं है। हम, हिंदू, अपने आप में एक राष्ट्र हैं और यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं।’’
यह सवाल उठाते हुए कि क्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस इतिहास को स्वीकार करती है, खरगे ने बी आर आंबेडकर की टिप्पणी को उद्धृत किया जिसमें कहा गया है, ‘‘यह अजीब लग सकता है, लेकिन श्री सावरकर और श्री जिन्ना एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के मुद्दे पर एक-दूसरे के विरोधी होने के बजाय इस बारे में पूरी तरह सहमत थे। दोनों न केवल सहमत थे, बल्कि इस बात पर जोर दिया कि भारत में दो राष्ट्र हैं – एक मुस्लिम राष्ट्र और दूसरा हिंदू राष्ट्र। वे केवल उन नियमों और शर्तों के संबंध में भिन्न थे, जिनके आधार पर दोनों राष्ट्रों को रहना चाहिए।’’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियंक खरगे ने विभाजन की विभीषिका स्मृति दिवस पर यह टिप्पणी की और हिंदुत्ववादी नेताओं और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के बीच वैचारिक संबंधों पर प्रकाश डाला।
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भाषा अमित संतोष
संतोष
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