नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय में केंद्र ने सहमति से यौन संबंध बनाने की वैधानिक आयु 18 वर्ष निर्धारित किए जाने का बचाव करते हुए कहा कि यह निर्णय “समझ-बूझकर, सुविचारित और सुसंगत” नीतिगत विकल्प है, जिसका उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है।
केंद्र ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के माध्यम से लिखित दलीलों में तर्क दिया कि सहमति की उम्र को कम करना या किशोरावस्था के प्रेम की आड़ में अपवाद पेश करना न केवल कानूनी रूप से अनुचित होगा, बल्कि खतरनाक भी होगा।
सरकार ने कहा कि वह उन दुराचारियों के लिए भी सुरक्षा तंत्र उपलब्ध कराएगी जो बच्चों की भावनात्मक निर्भरता या चुप्पी का फायदा उठाते हैं।
केंद्र ने आगे कहा कि सहमति की मौजूदा वैधानिक आयु को सख्ती से और समान रूप से लागू किया जाना चाहिए
उसने कहा, “इस मानक से कोई भी विचलन, यहां तक कि सुधार या किशोर स्वायत्तता के नाम पर भी, बाल संरक्षण कानून में दशकों की प्रगति को पीछे धकेलने के समान होगा, और पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम, 2012 और बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) जैसे कानूनों के निवारक चरित्र को कमजोर करेगा।”
इसके अलावा, केंद्र ने तर्क दिया कि मामला-दर-मामला आधार पर विवेकाधिकार न्यायिक ही रहना चाहिए तथा इसे कानून में सामान्य अपवाद या कमजोर मानक के रूप में नहीं पढ़ा जाना चाहिए।
केंद्र ने कहा, “कानून में अगर ‘क्लोज-इन-एज एक्सेप्शन’ (कम उम्र के किशोरों के बीच सहमति से संबंध की अनुमति) शामिल की जाती है या सहमति की उम्र घटाई जाती है, तो इससे बाल संरक्षण कानून की मूल भावना — यानी बच्चों को स्वाभाविक रूप से संवेदनशील मानने की कानूनी धारणा — कमजोर हो जाएगी। इस तरह के कमजोर कानून से यह खतरा पैदा होता है कि तस्करी और अन्य प्रकार के बाल शोषण को ‘सहमति’ के नाम पर छिपाया जा सकेगा, जिससे बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ेगा।”
केंद्र सरकार ने कहा है कि सहमति की उम्र घटाने से (बच्चों की) तस्करी और बाल शोषण के अन्य रूपों के लिए रास्ते खुल सकते हैं, जिन्हें ‘सहमति’ के नाम पर जायज ठहराया जा सकता है।
भाषा प्रशांत अविनाश
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