नयी दिल्ली, दो अगस्त (भाषा) लेखक सैम डेलरिम्पल ने कहा है कि ब्रिटेन को लंबे समय तक अपने औपनिवेशिक इतिहास के बारे में कुछ भी याद नहीं था, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं। साल 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन और भारत की आज़ादी की कहानी को अब ब्रिटेन के स्कूलों में भी पढ़ाया जाने लगा है।
इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल के बेटे सैम डेलरिम्पल ने अपनी पहली किताब, ‘शैटर्ड लैंड्स: फाइव पार्टिशन्स एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न एशिया’ लिखी है।
इस किताब में वह बताते हैं कि ब्रिटिश राज में हुए कई विभाजन को अलग-अलग देशों में लोग अलग-अलग तरह से याद करते हैं।
उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, बांग्लादेश अपने देश की कहानी में 1971 के मुक्ति संग्राम को सबसे ज़्यादा महत्व देता है। वहीं, भारत में ज़्यादातर लोग 1947 में पाकिस्तान के साथ हुए विभाजन को ही याद करते हैं, जो देश के पश्चिमी हिस्से में हुआ था, लेकिन इसके साथ ही वे यह भूल जाते हैं कि देश के दक्षिण में भी बड़ी उथल-पुथल हुई थी — जैसे कि हैदराबाद की रियासत से बहुत बड़ी संख्या में लोग पाकिस्तान चले गए थे, जो संख्या में पश्चिम के मुकाबले तीन गुना ज़्यादा थी।
डेलरिम्पल ने बताया कि उनके बचपन में ब्रिटेन में लोग अपने साम्राज्य के बारे में कुछ नहीं जानते थे। यह हाल ही में हुआ है कि उन्होंने स्कूली छात्रों के लिए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को कोर्स में शामिल किया है।
उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले तक तो ब्रिटिश पाठ्यक्रम में विभाजन का कोई ज़िक्र ही नहीं था, लेकिन अब यह एक बड़ा बदलाव है।
उन्होंने कहा कि यह बदलाव 2018 में शुरू हुआ, जब कुछ लोगों ने मिलकर इसे पाठ्यक्रम में शामिल करवाने के लिए कोशिश की। उन्होंने कहा कि अब यह एक विषय के तौर पर उपलब्ध है।
भाषा
योगेश दिलीप
दिलीप
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.