नई दिल्ली: मनोज सिंह ने पिछले एक दशक में नरेला स्थित बस स्टॉप पर डीटीसी बस का इंतज़ार करते हुए अपनी ज़िंदगी के कई घंटे बिताए हैं. अब उनके पास उम्मीद की वजह है कि आने वाले साल कुछ अलग होंगे. 15 मिनट का उनका इंतज़ार अब घटकर पांच मिनट रह गया है.
पिछले महीने, सिंह ने नरेला डिपो से 105 नई ऑरेंज रंग की देवी बसों को नए रंग-रोगन और राजनीतिक धूमधाम से निकलते देखा, जिन्हें मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने हरी झंडी दिखाई थी. डिपो भी नया था—सिर्फ़ 90 दिनों में बनकर तैयार हुआ, जिसमें बस स्टैंड, हाई-टेक शेड, आरओ प्लांट, ईवी चार्जिंग स्टेशन और कर्मचारियों व यात्रियों के लिए कैंटीन भी है. इस उत्साह ने उन्हें लगभग 15 साल पहले डीटीसी के सुनहरे दिनों की याद दिला दी.
लगभग 20 सालों से डीटीसी बसों का इस्तेमाल कर रहे 46 वर्षीय सिंह ने कहा, “मैंने 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के आसपास डीटीसी का सुनहरा दौर देखा और जिया है, जब बसें बहुत आती-जाती थीं. लेकिन पिछले एक दशक में मैंने इंतज़ार करते हुए बहुत समय गंवाया. यह मेरे लिए एक बड़े बदलाव जैसा है.”

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) का ‘खोया हुआ दशक’ आखिरकार खत्म हो रहा है. भाजपा के नेतृत्व वाली नई सरकार खुद को डीटीसी के रक्षक के रूप में पेश कर रही है.
पिछले चार महीनों में 400 से ज़्यादा देवी (दिल्ली इलेक्ट्रिक व्हीकल इंटरकनेक्टर) बसें सड़कों पर उतर चुकी हैं, डिपो को बेहतर बनाया जा रहा है और नए रूटों की योजना बनाई जा रही है. डीटीसी, जिसका अस्तित्व कभी संदेह के घेरे में था, अब एक इलेक्ट्रिक और अधिक कुशल भविष्य की ओर बढ़ रहा है.
लेकिन अभी बहुत कुछ सुधारना बाकी है. पिछले एक दशक में कांग्रेस और आप की सरकारों के शासनकाल में, डीटीसी सिर्फ़ कल्याणकारी साधन बनकर रह गई थी और भारी परिचालन घाटे, नियमित हड़तालों, सवारियों में गिरावट और बसों की कमी के कारण गंभीर आंतरिक संकट का सामना कर रही थी.
नरेला में उद्घाटन के दौरान मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, “बसें दिल्ली की लाइफ लाइन हैं. लेकिन पिछली सरकार के कार्यकाल में, रूट कम कर दिए गए, बसें कम कर दी गईं और भ्रष्टाचार होता रहा.”
इस तरह का उत्साह आखिरी बार राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान देखा गया था, लेकिन यह शुरू होते ही लगभग खत्म हो गया. 2011 और 2022 के बीच केवल दो बसें डीटीसी के बेड़े में शामिल की गईं. 2015 और 2022 के बीच परिचालन घाटा 14,000 करोड़ रुपये को पार कर गया. दैनिक सवारियों की संख्या में भी लगाताप भारी गिरावट आती चली गई.
दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव और 2006 से 2008 तक डीटीसी के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक (सीएमडी) रहे अंशु प्रकाश ने कहा, “कॉमनवेल्थ खेलों के आसपास डीटीसी ने गति पकड़ी, लेकिन वो कायम नहीं रह पाई. बेड़े को बनाए रखने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए. लगातार जारी परिचालन घाटे से डीटीसी का काम नहीं चलेगा. हमें शहर में और बसों की ज़रूरत है और संचालन से राजस्व अर्जित करना है.”
मॉडल फ्लीट से लेकर अव्यवस्था तक
दिल्ली स्थित अपने घर पर, अंशु प्रकाश 2006 से 2010 के “महत्वपूर्ण वर्षों” के दौरान खरीदी गई बसों की विशिष्टताओं का विवरण देने वाले कागज़ों के ढेर के साथ बैठे थे.
उन्होंने बताया कि इससे पहले, बसें मूल रूप से ट्रक जैसी हुआ करती थीं, लेकिन उनमें मोनोकॉक चेसिस, लो फ्लोर और रियर इंजन लगाए गए.
उस समय, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बसों की खरीद के फैसलों में, यहां तक कि बसों के रंग क्या होंगे, उसमें भी गहरी दिलचस्पी लेती थीं. उन्होंने याद करते हुए कहा, “शुरुआत में, एसी बसों के लिए हरा और नॉन-एसी बसों के लिए लाल रंग प्रस्तावित था. लेकिन जब फाइल उनके पास गई, तो उन्होंने इसे पलट दिया.”

2010 में हुआ राष्ट्रमंडल खेल डीटीसी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था—एक आधुनिक बेड़ा, नए रूट, महत्वाकांक्षा की भावना. लेकिन उसके बाद के दशक में, डीटीसी उपेक्षा का शिकार हो गई. लगभग आधा बेड़ा पुराना हो गया और नई बसें कभी नहीं आईं. पुनरुद्धार के यदा-कदा प्रयासों के बावजूद, यह जड़ता का एक उदाहरण बन गया.
हसनपुर डिपो के प्रभारी और पिछले दो दशकों से डीटीसी से जुड़े सत्य प्रकाश ने कहा, “डीटीसी बसों की खरीद से लेकर राजस्व घाटे और संविदात्मक नौकरियों के मुद्दों तक, आंतरिक प्रबंधन की समस्याओं में फंसी हुई है.”

हसनपुर डिपो से 19 अलग-अलग रूटों पर 200 बसें चलती हैं.
एक समय था जब दिल्लीवासी बसों पर निर्भर थे और ये उनकी दिनचर्या का एक अभिन्न अंग था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है.
उन्होंने आगे कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी ने भी इस विभाग को ठीक से चलाने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया.”
डीटीसी बसों को लेकर राजनीतिक दलों ने कई वादे किए लेकिन कोई बड़ा बदलाव नहीं आया. इसका एक ज्वलंत उदाहरण संविदा नौकरियों को लेकर किए गए आश्वासन और हड़तालें हैं. डीटीसी के लगभग 30,000 कर्मचारियों में से अधिकांश संविदा पर कार्यरत ड्राइवर और कंडक्टर हैं.
2013 में 49 दिनों की आप सरकार के दौरान, अरविंद केजरीवाल डीटीसी कर्मचारियों की हड़ताल में शामिल हुए थे और वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी बहुमत से वापसी करती है तो उन्हें स्थायी नौकरियां दी जाएंगी. डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के अध्यक्ष और दूसरी पीढ़ी के कर्मचारी ललित चौधरी ने याद किया कि चुनावों में कई ड्राइवरों और कंडक्टरों ने उनके लिए प्रचार किया था. लेकिन कुछ नहीं बदला.
पिछले पांच वर्षों में, संविदा कर्मचारियों ने स्थायी दर्जा और समान वेतन के लिए समय-समय पर बाइक रैलियां, भूख हड़तालें और मजदूर दिवस पर विरोध प्रदर्शन किए हैं. 2025 के दिल्ली चुनावों से पहले, यह एक चुनावी मुद्दा बन गया. भाजपा ने सत्ता में आने के 60 दिनों के भीतर उनकी सभी समस्याओं का समाधान करने का वादा किया था.
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने डीटीसी बस में सवार होकर ड्राइवरों, कंडक्टरों और मार्शलों से बात की. प्रियंका गांधी ने एक्स पर पोस्ट किया, “उनके मन की बात सुनना ज़रूरी है.” लेकिन कुछ महीने बाद, नवंबर में डीटीसी के संविदा कर्मचारियों की हड़ताल ने शहर में कई दिनों तक अराजकता फैला दी.
चौधरी ने कहा कि हर सरकार ने इस समस्या को नज़रअंदाज़ किया और अब यह संकट “एक राक्षस जितना बड़ा” हो गया है.
उन्होंने आगे कहा, “लोगों को डीटीसी पर भरोसा था, लेकिन अब वह भावना खत्म हो गई है.”
डीटीसी की बदहाली
डीटीसी लंबे समय से घाटे में चल रही है. पिछले 15 वर्षों में कांग्रेस और आप सरकारों के कार्यकाल में, इसका राजस्व घाटा और कर्ज़ और भी बढ़ गया है. कम बसों और सिकुड़ते रूटों के कारण यात्रियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.
इस साल की शुरुआत में जारी एक कैग रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार से नियमित राजस्व अनुदान के बावजूद, डीटीसी का संचित घाटा 2015-16 में 25,299 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 तक 60,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा हो गया. उस अवधि में अकेले परिचालन घाटा 14,000 करोड़ रुपये को पार कर गया.

ये घाटे एक ठप पड़ी व्यवस्था की कहानी बयां करते हैं. 2009 से किराए की कीमतों में संशोधन नहीं किया गया है. अंतरराज्यीय बस सेवाएं—जो कभी राजस्व का एक प्रमुख स्रोत थीं—15 वर्षों से बंद पड़ी हैं. डीटीसी संपत्तियों के व्यावसायीकरण के प्रयास लंबे समय से बंद थे, हालांकि अब निगम को पार्किंग, विज्ञापन और मोबाइल टावर लीज़ के लिए बंदा बहादुर मार्ग और सुखदेव विहार में डिपो विकसित करके 2,600 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है.

लेकिन सबसे बड़ी विफलताओं में से एक बेड़े की ही खराब स्थिति थी. 2011 और 2022 के बीच, डीटीसी ने केवल दो बसें जोड़ीं. और बसों के रिटायर्ड होने और उनकी जगह नई बसें न आने के कारण, फ्लीट 2015-16 में 4,344 से घटकर 2022-23 में 3,937 रह गया.
डीटीसी के नए आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा फ्लीट 3,603 है, जिसमें 2,000 से अधिक इलेक्ट्रिक गाड़ियां और 463 एनसीआर मार्गों पर चलने वाली लगभग 1,300 सीएनजी लो-फ्लोर बसें शामिल हैं. लेकिन कई सीएनजी बसें अपने अंतिम चरण में हैं—ओवरएज लो-फ्लोर बसों की संख्या 2018-19 में 0.13 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में लगभग 45 प्रतिशत हो गई. इस वर्ष अधिकांश बसों को योजना बनाकर हटाया जा रहा है.
2013 और 2021 के बीच, जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री थे, डीटीसी बोर्ड ने बसों की खरीद के नौ प्रस्तावों को मंज़ूरी दी थी. इनमें से कोई भी प्रस्ताव अमल में नहीं आया. 2022 में, तत्कालीन दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने भाजपा नेता विजेंद्र गुप्ता की शिकायतों के बाद 1,000 लो-फ्लोर बसों के टेंडर में कथित अनियमितताओं की जांच के आदेश दिए.
कैग की रिपोर्ट, जिसका टाइटल “दिल्ली परिवहन निगम की कार्यप्रणाली रिपोर्ट” है, ने भी इस पर चिंता जताई. इसमें कहा गया है, “ये बसें या तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) से औपचारिक मंज़ूरी न मिलने या जीएनसीटीडी द्वारा विनिर्देशों में बदलाव के कारण निविदा चरण तक नहीं पहुंच सकीं.”

जैसे-जैसे दिल्ली की आबादी बढ़ी और प्रदूषण का स्तर बढ़ा, विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन की ज़रूरत और भी ज़रूरी हो गई. लेकिन डीटीसी की गिरावट और तेज़ होती गई, बार-बार हड़तालें होने लगीं और औसतन हर दिन 100 से ज़्यादा बसें खराब होने लगीं.
आप सरकार के 10 साल के कार्यकाल में उपराज्यपाल और नौकरशाही के साथ बार-बार टकराव भी होता रहा.
आप सरकार के कार्यकाल के दौरान सेवा दे चुके एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “सरकार अधिकारियों और उपराज्यपाल से भी जूझ रही थी, जिससे कई पुनरुद्धार प्रयास ठप हो गए. जो पहले से ही मृतप्राय था, वह अब भी मृतप्राय है. डीटीसी किसी भी सरकार का पहला प्यार नहीं है और इसे हमेशा तिरस्कार की नज़र से देखा जाता रहा है.”
कुल मिलाकर, ऐसा लग रहा था कि बसों के एक युग का अंत हो गया है. दिल्ली ने, कई अन्य शहरों की तरह, कार-केंद्रित बुनियादी ढांचे और मेट्रो को प्राथमिकता दी है, जबकि बसों की उपेक्षा की है.
2019 और 2025 के बीच, मेट्रो की दैनिक सवारियां 50 लाख से बढ़कर 65 लाख हो गईं, जबकि बसों की दैनिक सवारियां 33 लाख से घटकर 14.5 लाख रह गईं. लेकिन शहर के भीतर अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी और किफायती छोटी यात्राओं के लिए बसें अभी भी ज़रूरी हैं.
ग्रीनपीस इंडिया के अभियान प्रबंधक अविनाश चंचल ने कहा, “मेट्रो जैसी परियोजनाओं की आकांक्षा रखने के बजाय, हमें शहर की आबादी, मौजूदा बुनियादी ढांचे और उपयोग की प्राथमिकताओं के आधार पर अपनी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है.”
डीटीसी फ्लीट का मॉडर्नाइजेशन
डीटीसी अब एक दशक से भी ज़्यादा समय में अपने बेड़े के सबसे बड़े पुनर्गठन के दौर से गुज़र रही है, लेकिन मॉडर्नाइजेशन की दिशा में प्रयास कुछ साल पहले आप सरकार के कार्यकाल में शुरू हुए थे.
जनवरी 2022 में, केजरीवाल ने इंद्रप्रस्थ डिपो में पहली इलेक्ट्रिक बस को हरी झंडी दिखाई—2011 के बाद डीटीसी की पहली नई बस. उद्घाटन समारोह में हवन के बाद उन्होंने कहा था, “लोग कहते थे कि डीटीसी बदकिस्मत है. अब यह बात दूर हो गई है.”
2023 में, आप सरकार ने दिसंबर 2025 तक अपने फ्लीट में 2,000 से ज़्यादा इलेक्ट्रिक बसें जोड़ने का ऑर्डर दिया था. अब, दिल्ली की नई भाजपा सरकार ने बड़े पैमाने पर यह ज़िम्मेदारी संभाली है.
पदभार ग्रहण करने के बाद से, मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने डीटीसी के भविष्य पर केंद्रित कई बैठकों की अध्यक्षता की है. 15 जुलाई को एक उच्च-स्तरीय समीक्षा में, उन्होंने डीटीसी को वर्षों के कुप्रबंधन के कारण कमज़ोर और घाटे में चल रही संस्था बताया और उपस्थित अधिकारियों के अनुसार, इसे एक मज़बूत परिवहन सेवा में बदलने का वादा किया. अब छोटी और बड़ी, दोनों तरह की बसों की संख्या बढ़ाने की योजनाएं चल रही हैं और नए रूटों की रणनीतिक योजना बनाई जा रही है.

पिछली सरकार के कार्यकाल में कई डिपो पहले ही इलेक्ट्रिक डिपो में तब्दील होने लगे थे. उदाहरण के लिए, हसनपुर डिपो को पिछले साल सीएनजी डिपो से इलेक्ट्रिक डिपो में बदल दिया गया था, जहां 30 चार्जिंग स्टेशन और एक नया बिल्डिंग बनाया गया है. अब यहां लगभग 200 बसें हैं.
डीटीसी अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में दिल्ली की सड़कों पर 12 मीटर लंबी 1,800 और 9 मीटर लंबी 404 इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं.
इलेक्ट्रिक बसों पर लिखा है, ‘मैं अब इलेक्ट्रिक हो गया हूं. आप भी? 100% इलेक्ट्रिक, 0% धुआं.’ कुछ बसों पर तो और भी राजनीतिक संदेश लिखे हैं—जेएलएन स्टेडियम स्टॉप पर लगी एक बस पर लिखा है, “उपेक्षित रही सालों साल, अब बदल रहा यमुना का हाल.”

डीटीसी के डिप्टी सीजीएम (मैकेनिकल) नवनीत चौधरी ने कहा, “देवी बसें छोटे रूटों और दूर-दराज के इलाकों तक कनेक्टिविटी के लिए डिज़ाइन की गई हैं. पिछले कुछ महीनों में 404 देवी बसों को हरी झंडी दिखाई गई है और बाकी इस साल के अंत तक आ जाएंगी.”
किराया 10 रुपये से 25 रुपये तक है और महिला यात्रियों के लिए यात्रा निःशुल्क है. विश्व पर्यावरण दिवस पर, प्रधानमंत्री मोदी ने 200 ई-बसों को हरी झंडी दिखाई और इसे दिल्लीवासियों के जीवन स्तर में सुधार की दिशा में एक कदम बताया.
दिल्ली के परिवहन मंत्री पंकज कुमार सिंह ने कहा कि सरकार डीटीसी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने कहा, “हम सिर्फ़ बैठकें ही नहीं कर रहे, बल्कि डीटीसी को मुनाफ़े में लाने के लिए काम कर रहे हैं. हम वो करेंगे जो इतने सालों में नहीं हुआ. हम डीटीसी व्यवस्था को बदल देंगे.”
यह डीटीसी के इतिहास के कुछ और यादगार पलों की याद दिलाता है. सबसे पहले 2001 में, जब पूरे बेड़े को सीएनजी में बदल दिया गया था. फिर कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले, जब 3,000 से ज़्यादा लो-फ़्लोर बसें जोड़ी गईं; उन सभी बसों का परिचालन काल लगभग 2022 में पूरा हो गया.

डीटीसी के पूर्व सीएमडी अंशु प्रकाश ने अपने आवास पर चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “पहली बार, किसी भारतीय शहर में लो-फ़्लोर बसें शुरू की गईं. बसें गर्व का स्रोत बन गईं. लोगों के बस यात्रा के अनुभव में एक बड़ा बदलाव आया. वह बहुत संतोषजनक समय था.”
उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली एक आदर्श बन गई, और जयपुर और बेंगलुरु जैसे शहरों ने भी यही रास्ता अपनाया है. अब, पहले की तरह, राष्ट्रीय राजधानी एक बार फिर इलेक्ट्रिक बसों के मामले में आगे है.

इस महीने की शुरुआत में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने चेन्नई में 120 लो-फ्लोर इलेक्ट्रिक बसों को हरी झंडी दिखाई—जो राज्य की पहली बस थी.
इस बीच, मोदी सरकार प्रमुख शहरों में अपनी पीएम ई-ड्राइव योजना लागू कर रही है. मई में, भारी उद्योग मंत्रालय ने मौजूदा चरण में बेंगलुरु के लिए 4,500, दिल्ली के लिए 2,800, हैदराबाद के लिए 2,000, अहमदाबाद के लिए 1,000 और सूरत के लिए 600 ई-बसों की घोषणा की थी. इस योजना का लक्ष्य अप्रैल 2024 से मार्च 2026 तक 10,900 करोड़ रुपये के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ 14,028 इलेक्ट्रिक बसें चलाना है.
केंद्रीय भारी उद्योग एवं इस्पात मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा, “हम केवल इलेक्ट्रिक बसें आवंटित नहीं कर रहे हैं – हम नवाचार और पर्यावरणीय जागरूकता के साथ भारत की परिवहन प्रणाली के भविष्य को आकार दे रहे हैं.”
गुलाबी वादा
36 वर्षीय शबनम के लिए, 2022 में डीटीसी से बुलावा आने से सब कुछ बदल गया. वह दिल्ली के मिशन परिवर्तन के तहत शुरुआती भर्तियों में शामिल थीं, जो महिलाओं को भारी मोटर वाहन चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए शुरू किया गया एक कार्यक्रम है.
आज, शबनम नोएडा डिपो से सीएनजी बस चलाती हैं. उन्होंने कहा, “चार महीनों में, मेरे डिपो को ई-बसें मिल जाएंगी. मैं इलेक्ट्रिक बस चलाना चाहती हूं.”
चार महीने पहले, शबनम ने नंदनगरी ट्रेनिंग स्कूल में अपनी इलेक्ट्रिक बस ट्रेनिंग पूरी की—यह सभी डीटीसी ड्राइवरों के लिए छह दिवसीय कार्यक्रम है, जिन्हें इलेक्ट्रिक वाहन चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
उन्होंने आगे कहा, “बसों की कमी के कारण यात्री सड़कों पर परेशान थे. अब, कई आधुनिक सुविधाओं वाली नई बसों के आने से स्थिति बदल गई है.”
पिछले तीन वर्षों में, डीटीसी में महिला बस ड्राइवरों की संख्या शून्य से बढ़कर लगभग 100 हो गई है. बसों में महिलाओं की भागीदारी केवल ड्राइविंग तक ही सीमित नहीं थी. 2019 में, केजरीवाल सरकार ने महिलाओं के लिए डीटीसी बसों में “गुलाबी टिकट” के साथ मुफ्त बस यात्रा की सुविधा शुरू की थी.

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर, “महिलाओं के लिए किराया-मुक्त बस यात्रा योजना: दिल्ली से सबक” के अनुसार, इस योजना से महिला यात्रियों को अपनी मासिक आय का 8 प्रतिशत तक बचाने में मदद मिली.
2019 से 2024 तक, आप सरकार ने दिल्ली में महिलाओं को 153 करोड़ बार मुफ्त बस यात्रा की सुविधा प्रदान की है. पूर्व वित्त मंत्री आतिशी ने पिछले साल के बजट में कहा था कि लगभग 11 लाख महिलाएं प्रतिदिन मुफ्त यात्रा करती हैं.
दिल्ली के 2024-25 के आर्थिक सर्वे के अनुसार, 2020-21 में गुलाबी टिकटों की संख्या 17.7 करोड़ थी, जो 2022-23 में बढ़कर 40 करोड़ हो गई.
दिल्ली में पिंक टिकट शुरू होने के चार साल बाद, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भी यही किया. 2023 में, उसने दिल्ली की तर्ज पर शक्ति योजना शुरू की. सिर्फ़ दो सालों में, इसने महिलाओं द्वारा 475 करोड़ मुफ़्त बस यात्राओं का रिकॉर्ड बनाया है. इस साल, आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने इसके मॉडल का अध्ययन करने के लिए कर्नाटक का दौरा किया.
दिल्ली की नई भाजपा सरकार के तहत, पिंक टिकट कार्यक्रम जारी है—लेकिन आलोचनाओं से अछूता नहीं रहा. दिल्ली के परिवहन मंत्री ने इसके व्यापक दुरुपयोग का आरोप लगाया है.
उन्होंने अपने सचिवालय कार्यालय में दिप्रिंट को बताया, “सत्ता में आने के बाद हमने छापे मारे और पाया कि सरकारी ख़ज़ाने को खाली करने के लिए नकली पिंक टिकट बनाए जा रहे थे. हम एक उचित व्यवस्था लागू करेंगे.”
लेकिन हसनपुर डिपो के सत्य प्रकाश के लिए, सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ज़्यादा बसें.
उन्होंने कहा, “डीटीसी को एक दशक बाद नई ज़िंदगी मिली है, लेकिन व्यवस्था में सुधार के लिए समय चाहिए. ज़्यादा से ज़्यादा बसें ख़रीदने से ही डीटीसी के संकट का समाधान हो सकता है.”
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