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Monday, 25 November, 2024
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गुरुग्राम-मानेसर ऑटो हब में ट्रक ड्राइवरों से लेकर अस्थाई इंजीनियरों तक लाखों लोग बेरोज़गार

गुरुग्राम-मानेसर ऑटोमोबाइल पट्टी में मारुति, हीरो और होंडा के संयंत्रों में नए कर्मचारियों की छुट्टी की जा चुकी है, सुरक्षित बचे कर्मचारी अपनी बारी आने की आशंका में चिंतित.

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गुरुग्राम/मानेसर/नई दिल्ली: मारुति सुजुकी के गुरुग्राम संयंत्र के पास एक ट्रांसपोर्टर के दफ्तर के सामने लाइन में लगे 49 वर्षीय ट्रक ड्राइवर मोहम्मद मिराज का चेहरा धुएं से काला पड़ चुका है.

वह लंबे समय से मारुति कारों को पूर्वोत्तर के राज्यों में ले जाने का काम करते रहे हैं, पर दो महीने से अधिक समय से उन्हें कोई ट्रिप नहीं मिला है. ट्रिप नहीं मिलने का सीधा मतलब है कोई कमाई नहीं होना, क्योंकि अधिकांश ट्रक ड्राइवर स्थाई नौकरी में नहीं हैं.

मिराज ने बताया, ‘धंधा पहले से आधा भी नहीं रह गया है. बस 30 प्रतिशत काम रह गया है पहले के मुकाबले.’

मिराज की पत्नी और पांच बच्चे बिहार में अपने गांव में रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरे बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. मेरे फीस नहीं चुका पाने के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई है. मेरा बेटा इंटर में प्रथम आया था और उसे महिंद्रा की तरफ से पुरस्कृत किया गया था, पर अब उसे पढ़ाई छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा है.’

‘हम बिज़नेस में आई मंदी के खत्म होने की उम्मीद कर रहे हैं. मैं पहले ही कम कपड़े पहन रहा हूं, अब क्या मुझे नंगे रहना पड़ेगा? पता नहीं ये मंदी क्यों छाई है… ऊपर वाले को ही पता होगा, या फिर सरकार जानती होगी. ऐसा ही रहा तो मैं वापस घर लौटने को मजबूर हो जाऊंगा या कहीं और काम ढूंढना होगा. पर असर हर कंपनी पर है, हमें काम कौन देगा?’

उनके दोस्त और साथी ट्रक ड्राइवर 50 वर्षीय मोहम्मद हिदायतुल्ला की भी यही दुविधा है, काम की उम्मीद में असहनीय परिस्थितियों में टिके रहें या उत्तर प्रदेश में अपने घर को लौट जाएं. उन्होंने बताया कि वे करीब 400 लोगों को रोज़गार देने वाले ट्रांसपोर्टर के पास बस एक ट्रिप की गुहार लगाने के लिए रोज आते हैं. हिदायतुल्ला ने बताया, ‘वे कहते हैं कि कोई काम है ही नहीं. हम तुम्हें क्या काम दें? पर इस जवाब से मेरे परिवार का पेट तो नहीं भरेगा.’

ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिक्री में आई भारी कमी का असर सिर्फ ड्राइवरों ही नहीं पड़ा है, बल्कि तमाम कंपनियों को अपना उत्पादन कम करना पड़ा है.

रिकॉर्ड गिरावट और छंटनी

उपभोक्ता मांग, खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में, भारी गिरावट तथा सख्त प्रावधानों के कारण पर्याप्त मात्रा में कर्ज उपलब्ध कराने में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की असमर्थता के चलते पिछले कुछ महीनों में ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिक्री में रिकॉर्ड गिरावट आई है. जुलाई में करीब 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और अधिकांश श्रेणियों में बिक्री दो दशकों के न्यूनतम स्तर पर रही. अगस्त के जो आंकड़े सामने आ रहे हैं. उससे स्थिति और खराब होने के संकेत मिल रहे हैं.

ग्राफ : चित्रण अरिन्दम मुख़र्जी

मारुति सुजुकी ने अगस्त में बिक्री 33 प्रतिशत कम रहने की घोषणा की, जबकि टाटा मोटर्स के लिए ये गिरावट 49 प्रतिशत की थी. इसी तरह हीरो मोटोकॉर्प की बिक्री में 21 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि महिंद्रा एंड महिंद्रा और टोयोटा किर्लोस्कर की बिक्री क्रमश 25 प्रतिशत और 21 प्रतिशत कम रही.

इस कारण कंपनियों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां गई हैं, न सिर्फ वाहन निर्माता कंपनियों में बल्कि वाहनों के कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों और डीलरशिप के स्तर पर भी. कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों के शीर्ष संगठन ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) का अनुमान है कि निर्माता कंपनियों ने उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की कटौती की है जिसका सीधा असर कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों पर पड़ रहा है, और इसके कारण 10 लाख लोगों का रोज़गार छिन सकता है.


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ऑटो सेक्टर की एक और शीर्ष संस्था सोसायटी ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्युफेक्चरर्स (सिआम) के अनुसार अभी तक 15,000 नौकरियां जा चुकी हैं, और यदि मंदी जैसी स्थिति आगे भी बनी रहती है तो अभी और नौकरियां जाएंगी. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के अनुसार मांग में कमी, स्टॉक पड़े रहने और पर्याप्त मात्रा में लोन उपलब्ध नहीं होने के कारण बड़ी संख्या में डीलरशिप बंद हुए हैं, और सिर्फ इस वजह से करीब 3 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी हैं.

इसके अलावा ट्रांसपोर्ट के मुख्यतया अनौपचारिक क्षेत्र में कितने लोगों के रोज़गार खत्म हुए हैं इसका आंकड़ा अभी एकत्रित नहीं किया जा सका है.

सारे आंकड़ों को एक साथ रखने पर यही ज़ाहिर होता है कि यदि आने वाले महीनों में भी आर्थिक सुस्ती का आलम कायम रहा तो करीब 14 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी.

कंपनियों का कहना है कि छंटनी के पहले दौर में नए या कम अनुभव वाले कामगारों पर गाज गिरती है क्योंकि सबसे पहले कंपनियां औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों से भर्ती बंद कर देती हैं और नए कामगारों के एक साल के कान्ट्रैक्ट का नवीनीकरण नहीं करती हैं.

भारत के युवाओं में बेरोज़गारी का ये बढ़ता आंकड़ा दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है. ऐसे वक्त जब अर्थव्यवस्था की विकास दर महज 5 प्रतिशत रह गई हो, युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करना मोदी सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी, खास कर जब युवाओं में बेरोज़गारी की दर पहले से ही बहुत ऊंची हो.

साफ दिखता डर

मानेसर के इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप (आईएमटी) में मारुति सुज़ुकी, होंडा मोटरसाइकिल, स्कूटर इंडिया लिमिटेड, देंसो इंडिया और बेलसोनिका कंपोनेंट्स समेत कई बड़ी ऑटोमोबाइल और कलपुर्जे की कंपनियों के संयंत्र हैं. यहां कामगारों के चेहरे पर छंटनी का डर साफ दिखता है, क्योंकि शुरुआती दौर की छंटनियों के बाद कंपनियों ने अब उत्पादन में कटौती की घोषणा की है. उल्लेखनीय है कि यहां कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए कामगारों की संख्या स्थाई नौकरी वालों की तुलना में दोगुनी है.

दोपहर की अपनी शिफ्ट पर जा रहे होंडा के एक कर्मचारी ने बताया, ‘मैं ठेकेदारी व्यवस्था के तहत पिछले करीब आठ वर्षों से नौकरी में हूं. अभी तो नौकरी में नए-नए आए लोगों की, एक साल का कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने पर, छुट्टी की जा रही है. पर कोई नहीं जानता कि मांग में कमी की स्थिति आगे भी बने रहने पर क्या होगा.’

अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर इस कर्मचारी ने बताया कि अभी हर साल सिर्फ 50 कर्मचारियों की नौकरी को ही स्थाई किया जाता है.

होंडा के प्लांट में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले एक कामगार ने कहा कि लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों की नौकरियां तो सुरक्षित हैं, पर अर्थव्यवस्था के कमज़ोर बने रहने पर कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए कर्मचारियों के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. उसने कहा, ‘यदि मांग ही नहीं हो, तो कंपनी के पास भी कर्मचारियों की छुट्टी करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है.’


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दो दिनों के लिए 7 और 9 सितंबर को गुरुग्राम और मानेसर संयंत्रों में उत्पाद बंद रखने की मारुति की घोषणा के बाद उसके मानेसर संयंत्र में कामगारों के चेहरे पर आशंकाएं और भी साफ झलकने लगी हैं. कंपनी ने उत्पादन रोकने की वजह नहीं बताई है, पर कामगारों के अनुसार ज़रूरत से ज़्यादा स्टॉक बन जाने के कारण ये फैसला किया गया है.

अपना नाम नहीं देने की शर्त पर मानेसर में मारुति के मेंटेनेंस विभाग के एक कर्मचारी ने कहा, ‘कारों की बिक्री गिर रही है और जाहिर तौर पर इसका उत्पादन पर असर पड़ रहा है. हमारी नौकरियां अभी तो सुरक्षित हैं, पर कोई नहीं जानता आगे क्या होगा.’

डर बेवजह भी नहीं है. श्रमबल में स्थाई कर्मचारियों का अनुपात 30-40 प्रतिशत ही होने के कारण, कंपनियों के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए कामगारों को हटाना आसान होता है. पिछले महीने मारुति सुज़ुकी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने कहा था कि कंपनी 3,000 अस्थाई कर्मचारियों की छुट्टी कर चुकी है और उनके कॉन्ट्रैक्ट को नहीं बढ़ाया गया है.

मारुति उद्योग कामगार संघ के महासचिव कुलदीप झंगू ने बताया कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में यह 19 वर्षों की सबसे भारी मंदी है. उन्होंने कहा, ‘गुरुग्राम-मानेसर ऑटो पट्टी में कम से कम डेढ़ से दो लाख अस्थाई कामगारों की छुट्टी की जा चुकी है. सर्वाधिक बुरा असर ऑटोमोबाइल के कलपुर्जों की कंपनियों में और ट्रांसपोर्टरों के यहां काम करने वालों पर पड़ा है.’

झंगू ने बताया कि मारुति ने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों से लोगों को भर्ती करना बंद कर दिया है और कार के कुछ मॉडलों के लिए काम के घंटे कम कर दिए गए हैं.

मंदी की वजह

दिप्रिंट से बात करते हुए मारुति सुज़ुकी इंडिया लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक शशांक श्रीवास्तव ने कहा कि बाज़ार में मंदी तो पिछले साल भर से है, पर पिछली तिमाही खास कर बुरी रही है.

ग्राफ : चित्रण अरिन्दम मुख़र्जी / दिप्रिंट

उन्होंने कहा, ‘फाइनेंस की कठिनाई, अर्थव्यवस्था का सुस्त पड़ना तथा प्रदूषण और सुरक्षा मानकों को कार्यान्वित करने से वाहनों की कीमतों का बढ़ना- ये हैं कुछ प्रमुख कारण.’ इस संबंध में उन्होंने बीमा की लागत बढ़ने और रजिस्ट्रेशन संबंधी टैक्स में बढ़ोत्तरी का भी जिक्र किया.

श्रीवास्तव ने कहा, ‘राज्यों ने रोड टैक्स बढ़ा दिए हैं. बीएस-IV और बीएस-VI मानकों को लेकर अस्पष्टता है. बिक्री में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है और उत्पादन की योजना तो बिक्री पर ही आधारित होती है. उत्पादन के संसाधनों को समायोजित करना पड़ता है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां श्रमबल का एक निश्चित हिस्सा अस्थाई कर्मचारियों का है और यदि मांग पर्याप्त नहीं हो तो फिर आप उनके कॉन्ट्रैक्ट को आगे नहीं बढ़ा सकते.’

हीरो मोटोकॉर्प के गुरुग्राम स्थित संयंत्र के एक कर्मचारी ने बताया कि पिछले साल त्योहार पूर्व के महीनों के मुकाबले इस बार उत्पादन और कामगारों की ज़रूरत, दोनों ही बहुत कम है. उसने कहा कि ना तो नौकरियां दी जा रही हैं और ना ही लोगों की छंटनी की जा रही है. पर, उसने कामगारों की मौजूदा चिंतनीय स्थिति के लिए मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए विभिन्न बदलावों को दोष दिया.

कलपुर्जा निर्माताओं और स्थानीय व्यवसायों की परेशानियां

बड़े वाहन निर्माताओं द्वारा उत्पादन में कटौती का कहीं बड़ा असर उनसे मिलने वाले ऑर्डर पर निर्भर कलपुर्जा कंपनियों पर पड़ता है. इंडिया पिस्टन रिंग्स के प्रबंध निदेशक और एसीएमए के अध्यक्ष राम वेंकटमणि ने कहा, ‘ओईएम (ऑरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफेक्चरर्स) कंपनियों ने करीब 15,000 लोगों की छंटनी करने की घोषणा की हैं. इसका मतलब है वाहनों के कलपुर्जा सेक्टर में एक लाख से 1.20 लाख रोज़गार का जाना. ये मुख्यत: प्रशिक्षुओं की नौकरियां होंगी.’

ग्राफ : चित्रण अरिन्दम मुख़र्जी / दिप्रिंट

ऑटोमोबाइल सेक्टर की परेशानियों का असर इससे संबद्ध संपूर्ण पारिस्थितिकी पर देखने को मिल रहा है. मानेसर और गुरुग्राम में वाहन संयंत्रों के इर्दगिर्द मौजूद हर तरह के व्यवसायों पर बुरा असर पड़ा है. चाय और पान बेचने वाले छोटे दुकानदार बिक्री में 50 प्रतिशत तक की कमी की बात करते हैं.


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आईएमटी मानेसर में चाय की दुकान चलाने वाले 40 वर्षीय शरद ने बताया कि उसके अनेक स्थाई ग्राहक वापस अपने गांवों-कस्बों को लौट चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘वे उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे पास के राज्यों से या फिर बिहार और उड़ीसा जैसे सुदूरवर्ती राज्यों से आते हैं. वे धाना और पास के दूसरे गांवों में किराए पर रहते हैं, पर बिना पगार के उनके लिए यहां टिके रहना संभव नहीं है. सब अपने घरों को लौट जाते हैं, इस उम्मीद में कि स्थिति सुधरने पर उन्हें बुलावा आएगा.’

भविष्य की आस

सरकार ऑटोमोबाइल सेक्टर की समस्याओं को दूर करने के लिए पिछले दिनों कुछ घोषणाएं कर चुकी है, पर सबकी नज़रें त्योहारों के मौसम पर टिकी हैं कि मांग में तेज़ी आती है या नहीं.

सरकार ने रजिस्ट्रेशन शुल्क में वृद्धि को स्थगित करने और बैंक ऋण की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने की घोषणा की थी. पर वाहन उद्योग अगले महीने जीएसटी परिषद की बैठक में जीएसटी में बड़ी कटौती की उम्मीद लगाए बैठा है. कारों पर अधिकतम श्रेणी का 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है, साथ ही लग्जरी कारों पर अतिरिक्त सेस (उपकर) भी लगाया जाता है.

यदि जीएसटी कम करने पर राज्य सहमत होते हैं, तो इसका मतलब होगा कारों को जीएसटी की अगली 18 प्रतिशत की श्रेणी में डाला जाना.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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