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Sunday, 13 July, 2025
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मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति 27 साल बाद अपने परिवार से मिला

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बरेली (उप्र), 13 जुलाई (भाषा) बरेली जिले में मानसिक बीमारी के कारण अपने परिवार से बिछड़े 70 वर्षीय बुजुर्ग 27 साल के बाद आखिरकार अपने परिवार के पास पहुंच गये।

परिजनों के मुताबिक, रमेश 27 साल पहले बिजनौर के नहटौर में अपनी बहन के यहां जाने की बात कहकर घर से निकले थे लेकिन वह न तो कभी वहां पहुंचे और न ही कभी वापस आए। उन्होंने बताया कि उन्हें सालों तक खोजा गया और फिर उम्मीद छोड़ दी गयी। सभी को लगा कि वह अब जीवित नहीं हैं।

रमेश को मुम्बई पुलिस ने छह फरवरी 2025 को मुंबई के एकता नगर रेलवे कॉलोनी में अस्त-व्यस्त अवस्था में भटकते हुए पाया था। पुलिस ने उन्हें देखभाल के लिये ग्रेस फाउंडेशन के सुपुर्द कर दिया था। बाद में उन्हें दीर्घकालिक देखभाल और उपचार के लिए कर्जत स्थित श्रद्धा पुनर्वास फाउंडेशन भेज दिया गया।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, मनोचिकित्सक डॉक्टर भरत वटवानी की देखरेख में रमेश पर मनोचिकित्सा उपचार का असर होने लगा और कुछ याददाश्त वापस आने पर उन्होंने अपना नाम बताया और कहा कि वह उत्तर प्रदेश के बरेली के निवासी हैं जिसके बाद रमेश को आगे के इलाज और परिवार का पता लगाने में सहायता के लिए बरेली के रजऊ परसुपुर स्थित मानसिक पुनर्वास केंद्र मनोसमर्पण सेवा संस्थान में स्थानांतरित कर दिया गया।

संस्थान के संस्थापक और मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा ने बताया कि टीम ने निरंतर परामर्श के माध्यम से रमेश की याददाश्त वापस लाने की लगातार कोशिश की।

शर्मा के मुताबिक, हालांकि इस दौरान रमेश को अपने पिता सुदामा, बहन कांता और बहनोई भुगन के नाम याद आए, लेकिन उनकी तलाश किये जाने से कोई नतीजा नहीं निकला।

उन्होंने बताया कि कामयाबी उस वक्त मिली जब रमेश को नहटौर में भुने चने बेचने वाले पूरन और सुभाष के नाम याद आये और सामाजिक कार्यकर्ता मुकुल कुमार के नेतृत्व में एक टीम ने नहटौर में सुभाष का पता लगाया जिसने खुद को रमेश का करीबी रिश्तेदार बताया।

शर्मा ने बताया कि सुभाष की पहचान की पुष्टि होने पर नहटौर में रहने वाली रमेश की बहन शीला देवी से संपर्क किया गया और वह अपने खोए हुए भाई को वीडियो कॉल पर देखकर रो पड़ीं जिसके बाद सुभाष मनोसमर्पण सेवा संस्थान पहुंचे, जहां उनका रमेश से भावुक पुनर्मिलन हुआ।

सुभाष ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए कहा, ”रमेश 27 साल पहले यह कहकर चले गए थे कि वह नहटौर में हमारी बहन से मिलने जा रहे हैं, लेकिन न तो कभी पहुंचे और न ही कभी वापस आए। हमने उन्हें सालों तक खोजा, फिर उम्मीद छोड़ दी। हम सभी को लगा कि वह अब नहीं रहे।”

उन्होंने कहा, ”हमारी मां माला देवी ने जीवन भर उनका इंतज़ार किया। वह कहती थीं कि रमेश एक दिन लौट आएंगे। दुख की बात है कि यह दिन देखने के लिये अब वह इस दुनिया में नहीं हैं।”

सामाजिक कार्यकर्ता मुकुल कुमार और रंजीत मौर्य सहित मनोसमर्पण की टीम द्वारा औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रमेश को आधिकारिक तौर पर उनके परिवार को सौंप दिया गया।

मनोसमर्पण संस्था से जुड़े वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर सर्वेश चंद्रा ने बताया कि संस्था सड़कों पर भटकते बेसहारा और मानसिक रूप से बीमार लोगों को मुफ्त देखभाल और पुनर्वास प्रदान करने के लिए काम करती है।

भाषा सं. सलीम नोमान

नोमान

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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