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Monday, 14 July, 2025
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साल 2025 की पहली छमाही में मेघालय का बर्निहाट सबसे प्रदूषित शहर, दिल्ली दूसरे स्थान पर: विश्लेषण

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नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) एक नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, असम-मेघालय सीमा पर स्थित बर्निहाट, 2025 की पहली छमाही में भारत का सबसे प्रदूषित शहर है, जबकि दिल्ली दूसरे स्थान पर है।

स्वतंत्र अनुसंधान संगठन सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण के अनुसार, बर्निहाट में पीएम 2.5 (हवा में मौजूद ढाई माइक्रोमीटर या इससे कम व्यास के कण) की औसत सांद्रता 133 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई, जबकि दिल्ली का पीएम 2.5 स्तर राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक से दोगुना, 87 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया।

हाजीपुर (बिहार), गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश), गुरुग्राम (हरियाणा), पटना, सासाराम (बिहार), तलचर (ओडिशा), राउरकेला (ओडिशा) और राजगीर (बिहार) 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हैं।

मिजोरम का आइजोल वर्ष की पहली छमाही में देश का सबसे स्वच्छ शहर रहा।

सीआरईए के अनुसार, जनवरी से जून तक, सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों (सीएएक्यूएमएस) वाले 293 शहरों में से 239 में 80 प्रतिशत से अधिक दिनों के लिए सूक्ष्म कण संबंधी आंकड़े उपलब्ध थे।

वहीं, 239 शहरों में से 122 में वायु गुणवत्ता वार्षिक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक रही, जबकि 117 शहर वार्षिक सीमा से नीचे रहे।

सीआरईए ने कहा कि दिल्ली में निर्धारित अवधि पूरी कर चुके वाहनों के परिचालन की अनुमति नहीं देने जैसे प्रतिबंध लागू करना वायु गुणवत्ता प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन इसमें केवल वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के जोखिमों पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया है तथा प्रदूषण के अन्य महत्वपूर्ण स्रोतों को नजरअंदाज किया गया है।

पोर्टल फॉर रेगुलेशन ऑफ एयर पॉल्यूशन इन नॉन-अटेनमेंट सिटीज (पीआरएएनए) और आईआईटी-दिल्ली के अध्ययनों के अनुसार, परिवहन (17 से 28 प्रतिशत) और धूल (17 से 38 प्रतिशत) के अलावा, कई अन्य क्षेत्रों का पीएम (सूक्ष्म कण) के स्तर में महत्वपूर्ण योगदान है। इनमें आवासीय दहन (8 से 10 प्रतिशत), कृषि दहन (4 से 7 प्रतिशत) और औद्योगिक गतिविधियां एवं बिजली संयंत्र (22 से 30 प्रतिशत) शामिल हैं।

ये अध्ययन दर्शाते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता का संकट केवल वाहनों से होने वाले उत्सर्जन या मौसमी बायोमास के दहन के कारण नहीं है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न स्रोतों से होने वाले निरंतर उत्सर्जन के कारण भी है।

सीआरईए के विश्लेषक मनोज कुमार ने बताया कि उदाहरण के लिए, उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, दिल्ली के आसपास अधिकांश ताप विद्युत संयंत्रों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) जैसी महत्वपूर्ण प्रदूषण नियंत्रण तकनीक अब भी उपलब्ध नहीं हैं।

वर्ष 2025 के मध्य तक, राष्ट्रीय राजधानी के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित 11 में से केवल दो संयंत्रों – एनटीपीसी दादरी और महात्मा गांधी ताप विद्युत संयंत्रों – में ही एफजीडी चालू अवस्था में पाये गए।

सीआरईए ने कहा कि यह नियामक अंतराल सख्त वाहन नीतियों के माध्यम से प्राप्त लाभों को कमजोर करता है और एक ऐसी असमानता को प्रदर्शित करता है, जहां कृषि स्रोतों को कड़ी जांच का सामना करना पड़ता है जबकि अन्य क्षेत्र अनियंत्रित रूप से प्रदूषण फैलाते रहते हैं।

भाषा सुभाष अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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