(श्रुति भारद्वाज)
नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) दिल्ली सरकार विवादास्पद आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) से संबंधित सभी दस्तावेज पहली बार सार्वजनिक करने जा रही है।
इस अधिनियम का इस्तेमाल आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर किया गया था।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, मीसा से संबंधित सभी उपलब्ध फाइलें अंतिम मंजूरी के लिए गृह विभाग को भेज दी गई हैं। प्रक्रिया पूरी होते ही, दस्तावेज का डिजिटलीकरण कर उन्हें आम लोगों के लिए उपलब्ध करा दिया जाएगा।
सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘इसका उद्देश्य भारत के राजनीतिक इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय को संरक्षित और साझा करना है। यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि यह प्रक्रिया समयबद्ध तरीके से पूरी हो।’’
उन्होंने बताया कि मीसा से संबंधित दस्तावेज अन्य चार करोड़ दस्तावेज के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किये गए।
सूत्रों ने बताया कि इन दस्तावेज में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं और लोगों के विवरण और रिपोर्ट शामिल हैं।
यह कदम आपातकाल की 50वीं बरसी के बाद, उससे संबंधित ऐतिहासिक अभिलेखों, विशेष रूप से मीसा के तहत की गई गिरफ्तारियों से संबंधित अभिलेखों में बढ़ती रुचि के बीच उठाया गया है।
वर्ष 1975 और 1977 के बीच आपातकाल के दौरान, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी सहित कई विपक्षी नेताओं को मीसा के तहत हिरासत में लिया गया था।
शाह जांच आयोग के अनुसार, उस दौरान 35,000 से अधिक लोगों को बिना किसी मुकदमे के निवारक हिरासत में रखा गया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक अशांति के मुद्दों से निपटने के लिए 1971 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा मीसा कानून लाया गया था।
पच्चीस जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के आपातकाल के दौरान, मीसा असहमति की आवाज दबाने का एक प्रमुख माध्यम बन गया, जिसके कारण पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, छात्रों और राजनीतिक विरोधियों सहित हजारों लोगों को हिरासत में लिया गया।
वर्ष 1978 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर इस अधिनियम को अंततः निरस्त कर दिया गया।
भाषा सुभाष पवनेश
पवनेश
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