नई दिल्ली: मुगल शासकों के नाम पर रखी गई सड़कों के नाम बदलने, इतिहास की किताबों से मुगल साम्राज्य के पाठ हटाने, मुगल काल के मकबरों पर सवाल उठाने और मुगल बादशाहों को हमलावर बताने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक ऐसा स्मारक फिर से शुरू किया है, जिसका सीधा संबंध मुगलों से है — शीश महल.
दिल्ली के शालीमार बाग में 17वीं सदी में बना यह मुगल काल का शीश महल वही जगह है, जहां कहा जाता है कि औरंगज़ेब का ताजपोशी समारोह हुआ था. इसे बुधवार को दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दोबारा जनता के लिए खोला. उनके साथ केंद्रीय संस्कृति व पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और सांसद प्रवीण खंडेलवाल भी मौजूद रहे.
मुगल स्मारक हमेशा से विवादों में रहे हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सरकारी बंगले (6, फ्लैगस्टाफ रोड) को तंज कसते हुए “शीश महल” कहा था क्योंकि उस पर खर्च को लेकर सवाल उठे थे.
बुधवार के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा, “उन्होंने अपने आराम के लिए शीश महल बनवाया था, लेकिन हमारी सरकार ने जनता के लिए शीश महल बनवाया है. बस इतना ही कहना चाहती हूं कि ये शीश महल यूं ही शान से खड़ा रहे.”

गुप्ता ने दिल्ली सरकार की विरासत संरक्षण की कोशिशों की तारीफ की और कहा कि ऐतिहासिक धरोहरों को आम लोगों के लिए खोला जाना ज़रूरी है.
हालांकि, उनका यह बयान देश के बाकी हिस्सों में हो रही राजनीति से बिल्कुल उलटा नज़र आया. इस साल की शुरुआत में नागपुर में हिंदू संगठनों ने औरंगज़ेब के मकबरे को हटाने की मांग की थी.
साल 2015 में दिल्ली की औरंगज़ेब रोड का नाम बदलकर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया था. यह प्रस्ताव तब के बीजेपी सांसद महेश गिरी ने दिया था.
इसी तरह, एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा की इतिहास की किताबों से मुगल साम्राज्य के पाठ हटा दिए हैं, जबकि महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने भी अकबर, शाहजहां और औरंगज़ेब जैसे मुगल शासकों से जुड़े अध्यायों को पाठ्यक्रम से हटा दिया है.
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, “जो लोग भारत की मिली-जुली विरासत को मानते हैं, उनके लिए यह सब आम है, लेकिन बीजेपी की राजनीति अब हास्यास्पद होती जा रही है. वह औरंगज़ेब से नफरत करने का दावा करते हैं, फिर भी देश भर के सैकड़ों खस्ताहाल ऐतिहासिक स्थलों में से उन्होंने उसी जगह को संवारने का फैसला किया, जहां 31 जुलाई 1658 को औरंगज़ेब ने खुद को सम्राट घोषित किया था — शालीमार बाग.”
खेड़ा ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर भी हमला बोलते हुए कहा, “जो खुद मुगलों और मुसलमानों के खिलाफ राजनीति करती हैं, वही अब विरासत की बातें कर रही हैं. यह सबसे बड़ा ढोंग है.”
उन्होंने आगे कहा, “इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि बीजेपी अब औरंगज़ेब की विरासत को संभालने और बढ़ावा देने वाली पार्टी बन गई है. शीश महल भारत की साझा विरासत का प्रतीक है, जो हमारे मध्यकालीन इतिहास यानी मुगल इतिहास से जुड़ा है — वही इतिहास जिसे बीजेपी, रेखा गुप्ता समेत, हमेशा बदनाम करती रहे हैं. अब अपनी नफरत की छवि बदलने के लिए उसी इतिहास को सांस्कृतिक गर्व बताकर प्रचार कर रहे हैं, जिसे पहले विदेशी आक्रमणकारी कहकर नकारते थे.”
शाहजहां से औरंगज़ेब तक: शीश महल की कहानी
शीश महल को 1653 में मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी इज़्ज़-उन-निसा बेगम ने बनवाया था. यह कश्मीर के प्रसिद्ध शालीमार बाग की याद में बनवाया गया था.
यह महल मुगल बागों की वास्तुकला का शानदार उदाहरण है, जिसे शाही परिवार के आराम और सुकून के लिए शाहजहांनाबाद (पुरानी दिल्ली) की भीड़-भाड़ से दूर बनाया गया था.
इसकी इमारत ईंटों और चूने के प्लास्टर से बनी है. इसकी दीवारों पर फूलों और पौधों की खूबसूरत चित्रकारी की गई है.
मुख्य इमारत में एक सुंदर मंडप (पैविलियन) है, जिसके बीच से पानी की नहर गुज़रती है — यह मुगल वास्तुकला की खास पहचान है.
शीश महल के पास लाल बलुआ पत्थर से बनी एक दूसरी इमारत भी है, जिसे कभी हमाम (शाही स्नानघर) के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.

पिछले साल उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को शीश महल के जीर्णोद्धार की योजना बनाने का निर्देश दिया था.
इस मरम्मत प्रोजेक्ट के तहत सामने के बाग को पारंपरिक चारबाग शैली में दोबारा सजाया गया, लाल बलुआ पत्थर की पगडंडियां और बैठने की जगहें बनाई गईं, साथ ही मौसम के हिसाब से रंग-बिरंगे फूल भी लगाए गए.
लाल किले से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित इस शीश महल को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि यही वह जगह है जहां औरंगज़ेब का ताजपोशी समारोह हुआ था.
इतिहासकार और लेखिका स्वप्ना लिडल ने दिप्रिंट से कहा, “औरंगज़ेब ने शहर से दूर इस जगह को इसलिए चुना था क्योंकि दिल्ली के लोग उनसे नाराज़ थे. साथ ही, उन्हें डर भी था क्योंकि उनका भाई दारा शिकोह, जो उनकी ताजपोशी में सबसे बड़ी रुकावट था, उस समय दिल्ली में ही मौजूद था.”


शालीमार बाग: कभी शाही ठिकाना, अब लोगों की सुकून भरी जगह
शालीमार बाग कभी मुगल काल के शहर का हिस्सा हुआ करता था. बाकी मुगल बगीचों की तरह इसे भी आराम और सुकून के लिए बनाया गया था.
करीब सौ साल बाद, इसी महल और बाग को ब्रिटिश अफसरों ने भी गर्मियों में छुपने और सुकून पाने की जगह के तौर पर इस्तेमाल किया.
आज यह बाग, जिसे अब दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) संभाल रहा है, आसपास के लोगों के लिए हरे-भरे आराम की जगह बन चुका है.
यहां हर शाम बुजुर्ग लोग योग करते हैं. महिलाएं दिनभर के काम के बाद सुकून की सैर के लिए आती हैं और बच्चे पार्क के एक छोटे से हिस्से में खेलते हैं.
स्थानीय निवासी ममता मिश्रा, जो उस दिन ताजा टिंडे की पत्तियां तोड़ रही थीं, उन्होंने कहा, “हम तो सालों से इस पार्क में आ रहे हैं. पहले जब यहां गेट नहीं था, तब हम आसानी से अंदर आ जाया करते थे. ये जगह तो वेस्ट दिल्ली की इस कंक्रीट की भीड़ में सुकून देने वाली है.”
आज भी यहां भीड़-भाड़ रहती है और माहौल काफी खुशनुमा होता है.
मुख्य गेट के बाहर भुने हुए भुट्टे बेचने वाले लाइन से खड़े रहते हैं, तो वहीं बच्चे आइसक्रीम की दुकान पर भीड़ लगाए रहते हैं. शालीमार बाग अब आसपास के परिवारों के लिए एक छोटी सी पिकनिक वाली जगह बन चुका है. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बुधवार को मुगल काल के शीश महल का उद्घाटन किया था.


कहानियां, यादें और ‘गंगा घर’ तक सुरंग का किस्सा
शालीमार बाग और शीश महल के आसपास रहने वाले लोगों के लिए यहां आना अब रोज़मर्रा की आदत बन चुकी है. इलाके के हर किसी को पता है कि यह एक ऐतिहासिक इमारत है. मगर वक्त के साथ-साथ यहां की लोककथाएं भी लोगों की यादों में बस गई हैं.
सुनिता चौहान, जो शालीमार कॉलोनी में रहने वाले एक परिवार की बहू हैं, बताती हैं कि वे पिछले 25 साल से इस स्मारक में आ रही हैं.
उन्होंने कहा, “शाम की सैर के दौरान हम इस इमारत को घूमने जाया करते थे. यहां एक लंबी सुरंग भी है.” उनके मुताबिक, यह सुरंग ‘गंगा घर’ तक जाती है, जहां एक रानी कभी गंगा नदी से मंगवाए गए पानी से स्नान करती थीं.
उन्होंने आगे कहा, “हमारे बुजुर्गों ने हमें राजा-रानी की कहानियां सुनाई थीं, जो कभी यहां रहते थे.” सुनिता यह भी मानती हैं कि शालीमार बाग में कभी हिंदू शासकों का भी राज रहा होगा.
आज शीश महल के चारों तरफ सरकारी क्वार्टर, ‘शीश महल’ नाम की अपार्टमेंट कॉलोनी और कई बस्तियां हैं.
कई दशकों तक यह एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) संरक्षित स्मारक उपेक्षित पड़ा रहा और दिल्ली की प्रदूषण भरी हवा में धीरे-धीरे खराब होता गया. हाल ही में हुए मरम्मत कार्य से अब इस इमारत को कुछ हद तक फिर से पहचान मिल रही है और इसके साथ ही इसके इर्द-गिर्द की राजनीति पर भी चर्चा शुरू हो गई है.
इस मुद्दे पर लेखिका और टिप्पणीकार सबा नक़वी ने कहा, “यह तो सब जानते हैं कि आरएसएस, बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद का सांस्कृतिक एजेंडा है, लेकिन अगर कोई जगह सिर्फ सामान्य पुरातत्व संरक्षण के तहत संवरी है, तो उसका स्वागत होना चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा, “हां, आज का दौर ऐसा है कि किसी भी चीज़ को राजनीतिक रंग दिया जा सकता है — हमें बस उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसा न हो क्योंकि हम इस सच्चाई से कभी नहीं भाग सकते कि भारत में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली जगह ताज महल है. हम एक समाज के तौर पर खुद में ही विरोधाभासी हैं — हमारे भीतर दो तरह की सोच साथ-साथ चलती हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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