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शुक्रवार, 4 जुलाई, 2025
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सीईसी में ‘हितों का टकराव’ वन संरक्षण मामलों में नतीजों को प्रभावित कर सकता है : सेवानिवृत्त नौकरशाह

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नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) साठ पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने प्रधान न्यायधीश को पत्र लिखकर दावा किया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) में ‘‘हितों का टकराव’’ वन संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाले मामलों के नतीजों को प्रभावित कर सकता है।

पूर्व सचिवों, राजदूतों, पुलिस प्रमुखों तथा वन अधिकारियों समेत 60 पूर्व अधिकारियों ने 30 जून को लिखे अपने खुले पत्र में कहा कि चार सदस्यीय सीईसी में वर्तमान में भारतीय वन सेवा के तीन पूर्व अधिकारी और एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक शामिल हैं, जिन्होंने कई वर्षों तक पर्यावरण मंत्रालय के साथ भी काम किया है। उन्होंने कहा कि समिति में कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं हैं।

पत्र में कहा गया है कि सीईसी के दो सदस्य हाल में वन महानिदेशक और पर्यावरण मंत्रालय में विशेष सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

पत्र में कहा गया है, ‘‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में शीर्ष पदों पर रह चुके और नीति-निर्माण में करीबी रूप से शामिल रहे अधिकारियों वाली सीईसी से शायद ही यह उम्मीद की जा सकती है कि वह उच्चतम न्यायालय को स्वतंत्र सलाह दे, ऐसी सलाह जो उस सलाह से अलग हो जो उन्होंने सरकार में रहते हुए दी थी।’’

‘कंस्टीट्यशनल कंडक्ट ग्रुप’ के सदस्य इन सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने कहा कि 2002 में गठित सीईसी की संरचना 2023 तक संतुलित थी।

पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि पहले की सीईसी में न केवल सरकारी विशेषज्ञ शामिल थे, बल्कि दो स्वतंत्र सदस्य भी शामिल थे जिनमें से एक वन्यजीव विशेषज्ञ और एक उच्चतम न्यायालय के वकील थे। ‘‘इस प्रकार निष्पक्षता सुनिश्चित हुई और हितों के टकराव को रोका गया।’’

कुछ लोगों के एक समूह ने 2023 में वन संरक्षण संशोधन अधिनियम (एफसीएए) को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए कहा था कि इससे वनक्षेत्र में तेजी से कमी आएगी।

इस मामले में न्यायालय ने चार आदेश जारी किए हैं, जिनमें से एक आदेश गोदावर्मन आदेश, 1996 के अनुसार वनों की परिभाषा को बरकरार रखता है। मामले की अंतिम सुनवाई लंबित है।

सेवानिवृत्त अधिकारियों ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय में पदासीन रहने के दौरान एक मौजूदा सीईसी सदस्य ने वन संरक्षण संशोधन विधेयक को ‘तैयार किया और संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष उसका बचाव किया।’ उस समय अधिनियम, उसके नियम और दिशा-निर्देश सभी अधिसूचित किए गए थे।

उन्होंने कहा कि प्रतिपूरक वनरोपण के लिए अधिसूचित और राजस्व वनों के उपयोग की अनुमति देने वाले कई ज्ञापन कुछ वर्तमान सीईसी सदस्यों के कार्यकाल के दौरान भी जारी किए गए थे जो 1996 के गोदावर्मन निर्णय के विरुद्ध थे।

पत्र में आशंका जतायी गयी है कि एफसीएए, 2023 के खिलाफ मामलों के परिणाम से ‘‘सीईसी के हितों के टकराव को देखते हुए संभवतः समझौता किया जा सकता है’’, क्योंकि उच्चतम न्यायालय अपना अंतिम निर्णय देने से पहले सीईसी की सलाह पर निर्भर हो सकता है।

सेवानिवृत्त अधिकारियों ने कहा कि यह चिंता महाराष्ट्र के ‘झुडपी’ वनों (झाड़ीदार वनों) पर उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए आदेश में पहले ही परिलक्षित हो चुकी है।

उनका कहना है कि 22 मई, 2025 को दिये गये न्यायालय के आदेश में सीईसी की सलाह पर बहुत अधिक भरोसा किया गया, जिसने इन वनों को ‘प्रतिपूरक वनरोपण’ के लिए बेरोकटोक उपयोग करने की सिफारिश की।

पूर्व नौकरशाहों ने न्यायालय से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि सीईसी में केवल सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी नहीं बल्कि स्वतंत्र विशेषज्ञ भी शामिल हों और देश में ऐसे कई विशेषज्ञ हैं।

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक (केरल) प्रकृति श्रीवास्तव, पूर्व राजदूत नवरेखा शर्मा, पूर्ववर्ती योजना आयोग के पूर्व सचिव एन सी सक्सेना और पूर्व स्वास्थ्य सचिव के सुजाता राव शामिल हैं।

भाषा राजकुमार अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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