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शुक्रवार, 27 जून, 2025
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बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन पर गरमाई सियासत, कांग्रेस-TMC ने जताई आपत्ति

दोनों ही पार्टियों ने लोगों को वोट देने के लिए अपनी पात्रता साबित करने के लिए जिस दस्तावेज़ की प्रक्रिया से गुजरना होगा, उस पर आपत्ति जताई है और इसे ‘धूर्त, खतरनाक’ विचार बताया है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने गुरुवार को चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का विरोध किया और 24 जून को घोषित इस कवायद के पीछे की मंशा पर सवाल उठाया.

कांग्रेस ने कहा कि चुनाव आयोग की योजना पर संदेह करने के लिए पर्याप्त कारण हैं, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसे “खतरनाक” और “लोकतंत्र के लिए चिंताजनक” बताया.

कांग्रेस के नेताओं और विशेषज्ञों के एक मजबूत समूह ने एक बयान में कहा कि यह प्रस्तावित बदलाव “समस्या का हल दिखाने वाला, लेकिन असल में धोखा देने वाला और शंका पैदा करने वाला विचार है.” समूह का गठन फरवरी में पार्टी द्वारा “भारत के चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन की निगरानी” करने के लिए किया गया था.

कांग्रेस ने कहा, “अब लाखों केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी यह तय करेंगे कि किसके पास सही कागज़ात हैं और किसके पास नहीं और बिहार चुनाव में कौन वोट डाल सकेगा. इससे सरकार की मशीनरी का इस्तेमाल करके मतदाताओं को जानबूझकर बाहर करने का बड़ा खतरा है.”

दोनों पार्टियों ने उस कागज़ी प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है, जिसके ज़रिए लोगों को यह साबित करना होगा कि वे वोट देने के योग्य हैं. चुनाव आयोग की योजना के मुताबिक, 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने पिता या मां की जन्मतिथि और/या जन्मस्थान से जुड़े दस्तावेज़ जमा करने होंगे.

2 दिसंबर, 2004 के बाद पैदा हुए लोगों को अपने माता-पिता दोनों के लिए यही साबित करना होगा. 1 जुलाई, 1987 से पहले पैदा हुए लोगों के लिए यह ज़रूरी नहीं होगा. चुनाव आयोग ने अपने कदम के पीछे तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, लगातार पलायन, विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल करने जैसे कारकों का हवाला दिया.

कांग्रेस ने कहा कि यह घोषणा अपने आप में इस बात को मानने जैसा है कि भारत की मतदाता सूचियों में “सब कुछ ठीक नहीं है” — और यह वही मुद्दा है जिसे वह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद से लगातार ज़ोर-शोर से उठा रही है. हालांकि पार्टी का कहना है कि चुनाव आयोग ने जो समाधान निकाला है, वह खुद समस्या से भी ज़्यादा खतरनाक है.

इसने कहा, “चुनाव आयोग ने 8 मार्च 2025 को आधार के ज़रिए मतदाता सूचियों को साफ करने का प्रस्ताव रखा था. यह तरीका पूरी तरह सही तो नहीं था, लेकिन बिहार में एसआईआर की तुलना में कहीं ज़्यादा व्यावहारिक था. अब सवाल यह है कि आयोग ने सिर्फ तीन महीने बाद अचानक आधार वाले प्रस्ताव को छोड़कर एसआईआर लागू करने का फैसला क्यों किया?”

पार्टी ने कहा, “महाराष्ट्र की मतदाता सूचियों को लेकर कांग्रेस पार्टी की लंबे समय से उठाई जा रही मांग और पहले चुनाव आयोग का उस पर सख्त रुख, साथ ही आयोग का संदिग्ध रवैया देखने के बाद, अब बिहार चुनाव से कुछ ही महीने पहले एसआईआर लागू करने की योजना पर शक करना बिल्कुल जायज़ है. कांग्रेस पार्टी एसआईआर का जोरदार विरोध करती है.”

पश्चिम बंगाल के दीघा में पत्रकारों से बातचीत करते हुए बनर्जी ने कहा कि चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राज्य और राष्ट्रीय दलों से परामर्श किए बिना ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकता.

उन्होंने सुझाव दिया कि यह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की योजना को पुनर्जीवित करने का प्रयास हो सकता है.

उन्होंने कहा, “गरीब लोगों के पास दस्तावेज़ कहां से आएंगे? क्या यह एनआरसी लागू करने की तैयारी है? सरकार का इरादा क्या है? कृपया साफ-साफ बताएं। इस देश में आखिर चल क्या रहा है? आप 1987 से 2004 के बीच जन्मे लोगों को निशाना बना रहे हैं — यानी 21 से 37-38 साल के बीच की उम्र वाले लोग. क्या सभी के पास अपने माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र होगा? आजकल तो कुछ लोगों के पास ये दस्तावेज़ होते हैं, लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था.”

मुख्यमंत्री ने कहा, “मोदीजी देश के प्रधानमंत्री हैं और मैं उस पद का सम्मान करती हूं, लेकिन चुनाव आयोग गृह मंत्री अमित शाह से जुड़ा हुआ है. असल में वही देश चला रहे हैं, लेकिन वे कुछ भी कर लें, मैं उनकी चालों को बेनकाब करने आई हूं. यह मामला गंभीर है और हमें मिलकर इसका मुकाबला करना होगा. मैं मीडिया के ज़रिए लोगों को सतर्क करना चाहती हूं.”

बनर्जी ने आगे कहा, “हमने तो बैटिंग शुरू कर दी है, अब मैं बाकी विपक्षी शासित राज्यों से कहूंगी कि वह बॉलिंग करें.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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