scorecardresearch
शुक्रवार, 27 जून, 2025
होममत-विमतवाइट रिवॉल्यूशन—कैसे शास्त्री के NDDB ने किसानों को केंद्र में रखने वाली अर्थव्यवस्था की नींव रखी

वाइट रिवॉल्यूशन—कैसे शास्त्री के NDDB ने किसानों को केंद्र में रखने वाली अर्थव्यवस्था की नींव रखी

1964 में गुजरात के दौरे ने लाल बहादुर शास्त्री को त्रिभुवनदास के. पटेल द्वारा स्थापित और वर्गीज़ कुरिएन द्वारा कुशलता से प्रबंधित डेरी के सहकारी मॉडल के लाभों के बारे में कायल कर दिया था.

Text Size:

मई 1964 से जनवरी 1966 तक 18 महीनों की अपनी छोटी-सी कार्य-अवधि में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारत में हरित क्रांति की नींव डालने के साथ-साथ श्वेत क्रांति लाने में भी निर्णायक भूमिका निभाई थी. इसके अलावा उन्होंने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान पर पहली जीत हासिल करने में भारत का नेतृत्व भी किया था. देश को उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का प्रेरणादायी नारा भी दिया. उनकी समाधि को ‘विजय घाट’ नाम दिया गया, जो काफी उपयुक्त भी है.

शास्त्री दिल्ली में मोतीलाल नेहरू मार्ग की जिस 1 नंबर कोठी में रहते थे उसे अब ‘लाल बहादुर शास्त्री स्मारक’ के नाम से जाना जाता है. यहां उनकी कुछ धरोहरों को; भारत आईं गणमान्य हस्तियों के साथ उनकी तस्वीरों; और मुगलसराय, वाराणसी, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में बीते उनके प्रारंभिक जीवन की कुछ यादों को संजो कर रखा गया है. उन्होंने जिन छह संस्थानों की स्थापना की, उन सबने भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर स्थायी प्रभाव डाला, लेकिन उन पर काफी कम ध्यान दिया गया है.

शास्त्री की कार्य-अवधि में ‘नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी)’, ‘कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज़ (सीएसीपी)’, ‘फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई)’, बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स (बीएसएफ)’, ‘सेंट्रल विजिलेन्स कमीशन (सीवीसी)’, और ‘सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई)’ की स्थापना हुई.

इन संस्थाओं ने 2025 में अपने 60 साल पूरे किए. यह आकलन करने का यह अच्छा मौका है कि इनकी स्थापना जिन उम्मीदों के साथ की गई थी उन पर ये खरे उतरे या नहीं. जाहिर है, इतने वर्षों में वातावरण और संदर्भ में भारी बदलाव आ गया है. इसलिए सवाल यह है कि ये संस्थाएं वक़्त के साथ कदम मिलाकर चलीं या नहीं, और इनमें अपने दावे रखने वालों की अपेक्षाओं को इन्होंने पूरा किया या नहीं?

आइए, सबसे पहले हम इनमें से सबसे सफल और प्रमुख संस्था, आणंद की ‘एनडीडीबी’ से शुरू करें, जिसे भारत में सहकारिता आंदोलन का ‘ध्रुवतारा’ कहा जाता है. 1965 में वर्गीज़ कुरिएन की अध्यक्षता में स्थापित इस संस्था को1987 में ‘एनडीडीबी एक्ट’ के तहत वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया.

संयोग से संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया है. यह हमें यह आकलन करने का अवसर उपलब्ध कराता है कि ‘एनडीडीबी’ ने किसानों और प्राथमिक उत्पादकों को सहकारी संगठनों, उत्पादक किसानों के संगठनों, और ‘कंपनीज़ एक्ट, 2013’ की धारा 8 के तहत ‘उत्पादक कंपनियों’ में सक्रिय भूमिका निभाने में कितनी भूमिका निभाई है.

‘एनडीडीबी’ केवल दूध नहीं बल्कि खाद्य तेलों, बाजरा, ऑर्गनिक उत्पादों, फलों, और ‘ग्रीन’ (प्रदूषण मुक्त) इनर्जी को भी आगे बढ़ाता है. ‘एनडीडीबी’ समूह के साथ जुड़ा सबसे प्रमुख ब्रांड है ‘अमुल’, जिसका टर्नओवर 90,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. इसकी सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी है ‘नंदिनी’, जो सहकारी संस्था ‘कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ)’ का एक ब्रांड है और जिसका वार्षिक टर्नओवर 23,000 करोड़ रुपए का है. इसके बाद 15,037 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली ‘मदर डेरी’ का नंबर आता है. ये तीनों टॉप ब्रांड अपने सबसे करीबी प्रतिस्पर्द्धी कॉर्पोरेट कंपनी नेस्ले से काफी आगे हैं. नेस्ले के दूध तथा दुग्ध उत्पादों के डिवीजन का टर्नओवर करीब 7,600 करोड़ रुपये का है. वैसे, दूध तथा उससे जुड़े सेक्टरों में कीमत निर्धारण और कीमत प्राप्ति मुख्यतः ‘एनडीडीबी’ द्वारा प्रोत्साहित सहकारी संस्थाएं तय करती हैं.

स्थापना 1964 में, सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिवस 31 अक्टूबर को आणंद के अपने दौरे में शास्त्री ने रात एक दुग्ध उत्पादक किसान पंजाबभाई पटेल के घर में बिताई थी. ग्रामीणों के साथ शास्त्री की बातचीत ने उन्हें त्रिभुवनदास के. पटेल द्वारा स्थापित और वर्गीज़ कुरिएन द्वारा कुशलता से प्रबंधित डेरी के सहकारी मॉडल के लाभों के बारे में कायल कर दिया.

अगली सुबह शास्त्री ने कुरिएन से कहा : “हमने अपने दुग्ध सहकारी समितियों में सबसे सक्षम तथा अनुभवी आइएएस अधिकारियों को तैनात किया है लेकिन कोई भी इतनी सफल नहीं है. आपलोगों ने अलग क्या किया है?”

कुरिएन का जवाब था : “सर, खेड़ा में मैं किसानों का कर्मचारी हूं. अगर मैं सफल नहीं हुआ तो वे मेरी छुट्टी कर सकते हैं. दूसरी जगहों पर किसान किसानों की समिति को नियंत्रित करने वाले सरकारी अधिकारियों की ‘प्रजा’ हैं.”

शास्त्री सहमति में मुस्करा दिए : “डॉ. कुरिएन, आप जो कर रहे हैं उसे पूरे देश में लागू करने में आपको मेरी मदद करनी पड़ेगी. मैं चाहता हूं कि आप नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड की अध्यक्षता करें.”

कुरिएन तैयार तो हो गए लेकिन दो शर्ते रखीं : “पहली यह कि मैं ‘एनडीडीबी’ को ज्वाइन नहीं करूंगा, खेड़ा दुग्ध सहकारी समिति का कर्मचारी ही रहूंगा. दूसरी शर्त यह कि मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा इसलिए ‘एनडीडीबी’ का मुख्यालय आणंद में ही रहेगा.”

शास्त्री ने दोनों शर्ते मान ली. इस तरह आणंद इस सहकारिता आंदोलन का केंद्र बन गया. कुरिएन 1965 से 1998 तक ‘एनडीडीबी’ के कर्ताधर्ता रहे, और अविश्वसनीय रूप से लंबे इस कार्यकाल ने ऐसी व्यवस्थाओं और प्रक्रियाओं को स्थापित करने में मदद दी जो समय की कसौटी पर खरी उतरीं. इस संगठन को विभिन्न तरह के भौगोलिक इलाकों और आबादियों के बीच सफलता और विफलता से सीखने का मौका मिला. दुग्ध संघ हिमालय क्षेत्र से लेकर तलहटी तक, रेगिस्तानी इलाकों, सिंचित और असिंचित क्षेत्रों, महिलाओं के नियंत्रण वाले परिवारों से लेकर पुरुष वर्चस्व वाले गांवों तक फैल गए.

कुरिएन ने अपनी पगड़ी अपनी पूर्व शिष्या अमृता पटेल के सिर पर रख दी, जिनका कार्यकाल भी लंबा, 16 वर्षों का रहा. 2014 में, पूर्व कृषि व खाद्य सचिव टी. नंदकुमार को ‘एनडीडीबी’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन उन्होंने पांच वर्ष पूरे होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया. उनके बाद दिलीप रथ आए, जिन्होंने आईएएस सेवा से इस्तीफा देने के बाद ‘एनडीडीबी’ के एमडी का कार्यभार संभाला. इसके पांच साल बाद अंतरिम कार्यभार वर्षा जोशी ने संभाला, जो केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन व डेरी मंत्रालय की संयुक्त सचिव थीं और अभी भी बोर्ड में पदेन सदस्य के रूप में मौजूद हैं. वर्तमान में, मीनेश सी. शाह ‘एनडीडीबी’ के अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक हैं.

बुनियादी सिद्धांत

बीते छह दशकों में टेक्नोलॉजी, संचालन व्यवस्था, और समर्थक सेवाओं में कई परिवर्तन हुए हैं लेकिन बुनियादी सिद्धांत कायम रहे हैं. कुरिएन शुरू से ही इस बात पर ज़ोर देते रहे कि उगाही के जरिए जो भी दूध आता है उसे स्वीकार किया जाए, उन्होंने उसकी कोई न्यूनतम या अधिकतम मात्र तय नहीं की. इसलिए जिस घर की सर्वेसर्वा महिला है, जिसके बच्चे स्कूल जाते हैं और जिसके पास एक ही गाय है वह एक लिटर से कम दूध भी ला सकती है जबकि ज्यादा मवेशी रखने वाला परिवार 10 लिटर तक दूध भी ला सकता है. सारे दूध को तौला जाता था, एक सेंट्रिफ्यूज मशीन से उसका परीक्षण किया जाता था और दूध में ‘ठोस तत्व’ और मलाई के अनुपात से कीमत दी जाती थी. इस तरह दूध में पानी मिलाने की चाल को हतोत्साहित किया जाता था.

किसानों को ने केवल तकनीकी जानकारियां दी जाती थीं बल्कि अपनी समिति के चुनाव से लेकर प्राथमिक, जिला और शीर्ष समितियों के संचालन और प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया जाता था. इसलिए आश्चर्य नहीं कि दूसरे क्षेत्रों की सहकारी समितियों की तुलना में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां सबसे अव्वल रही हैं.

इस बीच, ‘एनडीडीबी‘ ने कृषि व्यवसाय में प्रोजेक्ट आधारित दूसरी गतिविधियां भी शुरू की— खाद्य तेलों से लेकर मदर डेरी और फलों-सब्जियों (‘सफल’) तक, प्रतिरक्षा विज्ञान और कृषि व्यवसाय प्रबंधन के क्षेत्र में भी. ‘एनडीडीबी‘ ने संबद्ध संगठनों को अपनी रणनीति के मामले में लचीला रुख अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. एक ब्रांड के रूप में ‘अमुल’ को पूरे देश में फैलाने के लिए उसने बड़े संग्राहकों और ‘प्रोसेसरों’ के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि वह देश के सभी महानगरों और प्रथम और द्वितीय स्तर के शहरों में पहुंच जाए.

इतना ही नहीं, ‘एनडीडीबी‘ किसानों से जुड़े हर क्षेत्र तक अपना दायरा बढ़ाता रहा है. उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाने वाली व्यवस्था को अपनाना एक चीज है लेकिन उसने इस पैमाने से आगे जाकर भी अपना दायरा बढ़ाया है.

‘एनडीडीबी‘ ने भारत में सुजुकी के ‘आर ऐंड डी सेंटर’ के साथ मिलकर ‘मृदा’ (मिट्टी) नाम से सबसे नया उपक्रम शुरू किया है. इसका उद्देश्य पूरे देश में बायो-गैस प्लांट लगाना है. यह एक-दूसरे से असंबद्ध, डेरी और ऑटोमोबाइल सेक्टरों को जोड़ने का प्रयास है. इससे दुग्ध उत्पादक किसान स्वच्छ बिजली और ऑर्गेनिक खाद के उत्पादन के लिए गोबर के कुशल उपयोग ज्यादा लाभ कमा सकेंगे.

यह चक्रीय अर्थव्यवस्था को व्यवहार में लाने की कोशिश है, जिसमें शृंखला का हर तत्व दूसरी प्रक्रिया के लिए इनपुट का काम करता है और कोई भी चीज बेकार नहीं मानी जाती. चारा आदि का पता लगाने के लिए ‘एनडीडीबी‘ ‘इसरो’ के साथ भी जुड़ रहा है, हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन के लिए स्टार्ट-अप की मदद कर रहा है, और इस कोशिश में जुटा है कि कृषि क्षेत्र में 5 करोड़ से ज्यादा दुग्ध उत्पादक उस शृंखला से जुड़ें जिसके स्वामित्व, नियंत्रण और मुनाफे में उनकी हिस्सेदारी हो.

वैसे, ‘एनडीडीबी‘ को विफलताओं का भी सामना करना पड़ा. ‘एपीएमसी’ की जकड़न को तोड़ने के लिए स्थापित ‘सफल नेशनल एक्सचेंज’ लड़खड़ा गया, जबकि इसकी कुछ सहयोगी कंपनियों को बंद करना पड़ा. ‘एनडीडीबी‘ को सीएजी, सीवीसी, और आरटीआई के दायरे में लाने के लिए सरकारी आदेश की जरूरत पड़ी. किसान संगठनों का नियंत्रण केवल उनके सदस्यों के हाथ में हो यह आग्रह सहकारी समितियों के मामले में तो चलेगा लेकिन ‘एनडीडीबी‘ देश में सहकारिता का एक सबसे बड़ा फंडिंग संस्थान भी है.

इस साल के अंत में लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिवस वाले सप्ताह में ‘एनडीडीबी‘ उन छह संस्थानों में शुमार होगा जिनकी विरासत पर चर्चाएं की जाएंगी और ये केवल आत्मप्रशंसा तक सीमित नहीं रहेंगी बल्कि यह भी विचार किया जाएगा कि आगामी दशकों में क्या नयी रणनीति बनाई जा सकती है, जबकि सहकारिता के दर्शन के बुनियादी सिद्धांत मजबूती से कायम रहेंगे.

यह लाल बहादुर शास्त्री और उनके द्वारा बनाए गए संस्थानों पर आधारित लेखों की सीरीज की पहली कड़ी है.

संजीव चोपड़ा एक पूर्व आईएएस अधिकारी और वैली ऑफ वर्ड्स के महोत्सव निदेशक हैं. हाल तक, वह लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के निदेशक थे. उनका एक्स हैंडल @ChopraSanjeev है. चोपड़ा लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल (एलबीएस म्यूज़ियम) के ट्रस्टी भी हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं. 

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: सिक्किम के सीएम रहे दोरजी खलनायक से नायक कैसे बन गए


 

share & View comments