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Sunday, 2 March, 2025
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रत्नागिरी में नवीनतम खोजों से ओडिशा की बौद्ध विरासत का पता लगने की उम्मीद

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(अरबिंद मिश्रा)

जाजपुर (ओडिशा), दो मार्च (भाषा) ओडिशा के रत्नागिरी की पहाड़ियों में पिछले तीन महीनों से 15 पुरातत्वविद् प्राचीन कलिंग की बौद्ध विरासत और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंधों को उजागर करने के लिए काम कर रहे हैं।

इन पुरातत्वविदों को एक तीर्थस्थल के परिसर से बुद्ध की प्रतिमाओं के तीन विशालकाय सिर, शिलालेख और स्तूप के अलावा अन्य अवशेष मिले हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षण पुरातत्वविद् (पुरी सर्कल) दिबिषदा ब्रजसुंदर गरनायक ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 80 किलोमीटर दूर जाजपुर जिले के रत्नागिरी में खुदाई 63 वर्षों के अंतराल के बाद पांच दिसंबर को शुरू हुई।

उन्होंने कहा कि बरामद सामग्री का महत्व उचित विश्लेषण के बाद ही पता चलेगा।

बुद्ध की प्रतिमाओं के सिर मिलने पर गुरनायक ने कहा, ‘ये पत्थर पर बनी बेहद खूबसूरत और उत्कृष्ट कलाकृतियां हैं। गर्दन पर झुर्रियां भी हैं।’

एक अन्य पुरातत्वविद् ने बताया कि 1958 से 1961 के बीच रत्नागिरी में हुई पहली खुदाई के दौरान भी इसी तरह कलाकृतियां मिली थीं, लेकिन उनके नाक और कान टूटे हुए थे।

उन्होंने कहा, “इस बार वे बिल्कुल सही आकार में हैं। बरामद किए गए पत्थर के तीन सिरों में से एक अब तक का सबसे बड़ा सिर है। यह लगभग 1.5 मीटर ऊंचा है। सिर को रखने के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर का एक आसन भी मिला है।”

गरनायक ने बताया कि खुदाई के दौरान पत्थर का एक हाथी भी मिला है।

उन्होंने बताया कि स्तूपों के साथ एक अन्य तीर्थस्थल परिसर का भी पता चला है।

गरनायक ने कहा, ‘इतनी बड़ी संख्या में स्तूपों की खोज से पता चलता है कि रत्नागिरी बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र था।’

पुरातत्वविदों को बुद्ध प्रतिमा की पत्थर की हथेलियां और उंगलियां भी मिलीं।

खुदाई से मिट्टी के बर्तन भी प्राप्त हुए, जिनके 1,200-1,300 वर्ष पुराने होने का अनुमान है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि ये वस्तुएं उस समय के लोगों की खान-पान की आदतों, आध्यात्मिक व्यवहार और सामाजिक संस्कृति के बारे में जानकारी दे सकती हैं। उन्होंने कहा कि इस स्थल पर पाए गए अन्य घरेलू सामान और कुत्तों और हाथियों जैसे जानवरों के मिट्टी के खिलौने भी उस समय के जीवन को समझने में मदद करेंगे।

उन्होंने बताया कि खुदाई में एक बुद्ध प्रतिमा, एक प्राचीन दीवार और आठवीं और नौवीं शताब्दी के अवशेष भी बरामद हुए हैं।

उन्होंने कहा कि रत्नागिरी ‘डायमंड ट्राएंगल’ का एक हिस्सा है। तीन बौद्ध स्थलों के संग्रह को ‘डायमंड ट्राएंगल’ कहते हैं। इसमें रत्नागिरी के अलावा उदयगिरि और ललितगिरि शामिल हैं। माना जाता है कि रत्नागिरी में पांचवीं से 13वीं शताब्दी के बीच बौद्ध धर्म का विकास हुआ था और नयी खोजों से इस क्षेत्र के इतिहास को गहराई से समझने में मदद मिल सकती है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि रत्नागिरी महायान और तंत्रयान बौद्ध धर्म का केंद्र था।

भाषा नोमान सिम्मी

सिम्मी

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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