नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-गुवाहाटी के अनुसंधानकर्ताओं ने जीवित कोशिकाओं और पर्यावरण में हानिकारक धातुओं की उपस्थिति का पता लगाने के लिए एक अभिनव एवं किफायती तरीका विकसित किया है।
अधिकारियों के अनुसार, यह नवाचार जैविक प्रणालियों में धातु विषाक्तता का पता लगाने और प्रबंधन में सुधार कर रोग निदान एवं पर्यावरण निगरानी में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
अनुसंधान से संबंधित निष्कर्ष रिपोर्ट ‘जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री सी’ और ‘मैटेरियल्स टुडे केमिस्ट्री’ जैसी प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है।
आईआईटी-गुवाहाटी में भौतिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर सैकत भौमिक ने कहा, ‘‘हमारे अनुसंधान के केंद्र में अत्याधुनिक सामग्री ‘पेरोव्स्काइट नैनोक्रिस्टल’ है जो अपने असाधारण गुणों के लिए जानी जाती है, जो धातु आयनों का पता लगाने के लिए आदर्श है। मानव बाल से लगभग एक लाख गुना छोटे ये नैनोक्रिस्टल महत्वपूर्ण तरीकों से प्रकाश के साथ संपर्क करते हैं, जिससे वे जीवित कोशिकाओं के अंदर ‘फ्लोरोसेंट’ जांच के रूप में काम करने में सक्षम होते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, पानी में उनके त्वरित क्षरण ने पहले उनके अनुप्रयोगों को सीमित कर दिया है।’’
भौमिक ने कहा कि इसके समाधान के लिए अनुसंधानर्ताओं ने सिलिका और पॉलिमर कोटिंग्स में ‘पेरोव्स्काइट नैनोक्रिस्टल’ को समाहित किया है, जिससे पानी में उनकी स्थिरता और कम तापमान पर उत्सर्जित होने वाले प्रकाश (ल्यूमिनसेंट) की तीव्रता में काफी वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह बदलाव सुनिश्चित करता है कि नैनोक्रिस्टल लंबे समय तक अपनी कार्यक्षमता बनाए रखते हैं, जिससे वे व्यावहारिक उपयोग के लिए अत्यधिक प्रभावी हो जाते हैं। उन्नत नैनोक्रिस्टल विशिष्ट तरंगदैर्ध्य के तहत चमकदार हरी रोशनी उत्सर्जित करते हैं, जिससे पारा आयनों का सटीक पता लगाने में मदद मिलती है।’’
भाषा नेत्रपाल अविनाश
अविनाश
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