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Tuesday, 26 November, 2024
होममत-विमतवीजी सिद्धार्थ का केस बताता है कि मोदी सरकार नागरिकों से नर्म रवैये से काम ले

वीजी सिद्धार्थ का केस बताता है कि मोदी सरकार नागरिकों से नर्म रवैये से काम ले

भारत को नागरिकों को आश्वस्त करने वाली कानूनी सुरक्षा की आवश्यकता है, और संस्थागत संरक्षण जो उन्हें सहारा दे, न कि केंद्रीय अधिकारियों को ज्यादा ताकत.

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कैफे कॉफी डे के मालिक वीजी सिद्धार्थ ने कथित खुदकशी से पहले जो ‘नोट’ लिखा था उसमें उन परेशानियों का जिक्र है जिनको लेकर मरणोपरांत उन्हें काफी सहानुभूति हासिल हो रही है. इन परेशानियों में निश्चित ही टैक्स अफसरों द्वारा तंग किया जाना भी शामिल है. इसके जवाब में आयकर विभाग ने एक विस्तृत ब्यौरा जारी किया है जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि ‘कॉफी किंग’ ने कबूल किया था कि उनकी करीब 350 करोड़ रुपये की आय ऐसी है जिसका कोई हिसाब-किताब नहीं है. लेकिन इस मामले के किसी जानकार ने कथित तौर पर कहा है कि टैक्स अफसरों ने सिद्धार्थ के शेयर जब्त करने में जल्दबाज़ी की. पूरे तथ्य समय आने पर सामने आ जाएंगे. संभव है कि दूसरे मामलों की तरह यह मामला भी उस विडंबनापूर्ण दुनिया को उजागर कर दे जिसमें हमारे व्यवसायियों को काम करना पड़ता है (जैसी कि उनकी धारणा है).

टैक्स को लेकर परेशान करने के आरोप पर बिजनेस समुदाय और आम लोगों ने भी प्रतिक्रिया दी है. वित्त मंत्री भी पूरे मामले से अवगत हैं. अपने बजट भाषण में उन्होंने प्राचीन संगम साहित्य से चित्रमय उपमा देते हुए कहा था कि हाथी अगर धान के खेत में घुस जाए तो वह जितना खाएगा नहीं उससे ज्यादा बर्बाद कर देगा. यहां 16 साल पहले वित्त मंत्री रहे जसवंत सिंह के बजट भाषण की इन पंक्तियों को भी याद करना ठीक रहेगा कि ‘सबसे पहले तो हम इस बात को कबूल करें हमारे नागरिकों में जो उद्यमशीलता और रचनात्मकता है वह हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है.’ आगे उन्होंने कहा था कि ‘हमें शक्की, परेशान करने वाली, जोर-जबर्दस्ती करने वाली व्यवस्था से विश्वास पर आधारित ‘ग्रीन चैनेल’ वाली व्यवस्था की ओर बढ़ना है. मैं यह अपने देशवासियों पर पूरे भरोसे के बूते ही करूंगा.’


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करदाताओं से सम्मान के बर्ताव पर ज़ोर देकर जसवंत सिंह ने उस समय अपना कद ऊंचा कर लिया था. इसलिए आज यह याद करना जरूरी है कि उन्होंने क्या वादा किया था— ‘अब भविष्य में, सबसे पहले तो यह ध्यान रखा जाएगा कि किसी तलाशी या कुर्की में जो भी शेयर बरामद होंगे उन्हें किसी भी हाल में जब्त नहीं किया जाएगा. दूसरे, ऐसी कार्रवाई में कोई इक़बालिया बयान नहीं लिया जाएगा. तीसरे, आयकर विभाग के संयुक्त आयुक्त से नीचे के पद का कोई अधिकारी सर्वे का आदेश नहीं जारी करेगा. अंत में, सर्वे के दौरान जब्त खाते को मुख्य आयुक्त की पूर्व अनुमति के बिना 10 दिन से ज्यादा नहीं रखा जाएगा.’

अब जिन व्यवसायियों को टैक्स सर्वे या तलाशी अथवा कुर्की-जब्ती का सामना करना पड़ा है वही बताएंगे कि इन वादों का कितना पालन हुआ. वैसे, अच्छी बात यह है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के कारण औसत करदाताओं के लिए टैक्स का मामला सरल और सुरक्षित हो गया है. सबसे अहम बात यह है कि इसके कारण करदाता और कर अधिकारी में सीधा आमना-सामना न होने के कारण परेशान किए जाने या घूसख़ोरी के मामले खत्म हुए हैं. मोदी सरकार के आते ही भ्रष्टाचार के आरोप में दो दर्जन से ज्यादा टैक्स अधिकारियों की छुट्टी कर दी गई थी. इससे उनके महकमे को कड़ा संदेश गया था.

लेकिन लॉर्ड ऐक्टन की मशहूर उक्ति ‘सत्ता भ्रष्ट करती है और निरंकुश सत्ता निरंकुश रूप से भ्रष्ट करती है’ के मुताबिक तो हाल के टैक्स और दूसरे छापों में एक खास चीज़ दिखाई पड़ती है. ये छापे मुख्यतः उनके यहां ही डाले गए, जो इस सरकार के विरोधी या आलोचक रहे हैं. इस बीच सरकार संसद से ऐसे कानून पास कराने में जुटी रही है, जो तमाम विभागों के अधिकारियों को लोगों को गिरफ्तार करने, उन पर मुकदमा ठोकने, उन्हें आतंकवादी घोषित करने, जब्ती करने के ज्यादा अधिकारों से लैस करें, जबकि इससे बचाव की कोई व्यवस्था नहीं बनाई जा रही है और राज्यों को कमजोर करके केंद्र को ज्यादा ताकतवर बनाया जा रहा है.


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अब ट्रैफिक के नियम ऐसे बनाए जा रहे हैं कि गति सीमा तोड़ने पर जेल भेजा जा सकता है. दूसरे देशों में कठोर सज़ा बेहद गंभीर उल्लंघनों के लिए होती है. गृहमंत्री ने आश्वासन दिया है कि नये अधिकारों का दुरुपयोग नहीं होगा. लेकिन जिस देश में ताकत का दुरुपयोग आम बात हो, वहां सबसे ताकतवर और अच्छे इरादों वाला मंत्री भी क्या इसकी गारंटी दे सकता है? ऐसे में क्या जसवंत सिंह वाला मुलायम तरीका ज्यादा उपयुक्त नहीं होगा?

खास तौर से उन्नाव की वारदात के बाद लोग ऐसी वैधानिक सुरक्षा की जरूरत महसूस करने लगे हैं जिसके तहत आम नागरिक को अतिवादी किस्म की सज़ा से बचने के लिए पुलिस के पास पच्चीस बार अपील करने या मजबूती देने वाले संस्थागत उपायों की शरण लेने की नौबत न आए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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