अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तानी हुकूमत और प्रधानमंत्री इमरान खान को खुश होने का मौका दे दिया है. जैसा कि अंदेशा लगाया गया था कि ट्रंप और खान के बीच बैठक उत्सुक पाकिस्तानियों के मानकों के हिसाब से बहुत अच्छी हुई. इमरान खान अब यह दावा करके स्वदेश लौट सकते हैं कि उन्होंने पाकिस्तान के अंतररष्ट्रीय अलगाव को तोड़ा है. अफगानिस्तान में शांति के प्रयासों में केंद्रीय भूमिका हासिल की है और यहां तक कि कश्मीर के सवाल में ट्रंप की रुचि को भी उजागर किया है.
इमरान खान और पाकिस्तानी हुकूमत को इसकी जरूरत थी. हालांकि यह और भी संक्षिप्त हो सकती थी. ट्रंप द्वारा इमरान खान को गले लगाना चीन को असमंजस में डाल देगा, भले ही चीन अपनी सामान्य असंवेदनशीलता बनाए रखे और सार्वजनिक तौर पर चिंता जाहिर करने से बचे. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में गिरावट जारी है और नए निवेश के कोई संकेत भी नहीं है. पाकिस्तान ने पिछले एक साल में 16 बिलियन डॉलर का उधार लिया है, निर्यात स्थिर बना हुआ है और विदेशी मुद्रा भंडार 8 बिलियन डॉलर से अधिक नहीं बढ़ा है.
इसके अलावा, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज ने पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत में इमरान खान के समर्थन की अनिश्चतता दिखाते हुए पंजाब प्रांत में भारी भीड़ को आकर्षित किया है. भारी-भरकम रणनीति, सेना का समर्थन और मीडिया पर शिकंजा इस तथ्य को नहीं बदल सकता है कि मरियम नवाज अपने पिता के समर्थन के आधार को मजबूत कर रही है. वह इमरान खान और हुकूमत के लिए चुनौती बन गई हैं.
ऐसे माहौल में ट्रंप के साथ मुलाकात एक अच्छा संकेत है. संयुक्त राज्य अमेरिका और ट्रंप के बारे में इमरान खान के पिछले बयानों कि चिंता न करें. लेकिन, ट्रंप का प्यार कुछ हद तक अस्थिर है, जिस तरह इमरान खान को उनके यू-टर्न के लिए जाना जाता है, कुछ चीजें जिसका उन्होंने न केवल बचाव किया है, बल्कि ‘असली नेता’ के संकेत भी दिए हैं.
ट्रंप सबसे अच्छे रूप में
ट्रंप मेहमाननवाज थे इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रंप अचानक पाकिस्तान समर्थक हो गए हैं. ट्रंप अफगानिस्तान से डील करने के बदले में पाकिस्तान की मदद चाहते थे. उन्होंने वैसा ही किया जैसा पाकिस्तान चाहता था. ट्रंप ने पाकिस्तान और इमरान खान की प्रशंसा की, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने उत्तर कोरिया के किम जोंग उन की प्रशंसा मानक प्रक्रिया के तहत सौदा करने के लिए की थी.
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याद है कि जब ट्रंप ने कहा था कि हम दोनों को प्यार है? या जब उन्होंने कहा कि उन्हें उत्तर कोरिया के तानाशाह से एक ‘सुंदर पत्र’ मिला है, जिसे उन्होंने परमाणु वार्ता के लिए प्रगति का संकेत बताया था? कोरियाई प्रायद्वीप में कोई बड़ी सौदेबाजी नहीं हुई है और ट्रंप को जल्द ही एहसास हो गया कि दक्षिण एशिया के मुद्दे रियल एस्टेट की वार्ताओं की तुलना में अधिक जटिल हैं.
उदाहरण के लिए, पाकिस्तान ने भले ही तालिबान के साथ अमेरिकी को सीधी नेगोसिएशन की सुविधा दी हो. लेकिन, अगर वह युद्ध विराम के लिए सहमत नहीं होते हैं और अफगान सरकार से बात करने से इनकार करते हैं, तो तालिबान को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराना बंद करने की संभावना नहीं है. ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका जीते, लेकिन अभी तक तथाकथित अफगान शांति वार्ता तालिबान की जीत के लिए सिर्फ एक उपाय लगता है.
अफगानिस्तान में 10 दिन में युद्ध ख़त्म करने और सामूहिक विनाश वाले डोनाल्ड ट्रंप के बयान के बाद अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कड़ी आपत्ति जताई है. यह तालिबान विरोधी अफगानों को एकजुट करने का प्रभाव हो सकता है, उन्हें सख्त रुख के लिए तैयार करना, जिसे अमेरिका अब ‘इंट्रा-अफगान डायलॉग’ कहता है.
इमरान खान के गर्व के अल्पकालिक क्षण
अमेरिका ने उस समय से अब तक एक लंबा सफर तय किया है. जब उसने अफगानिस्तान के नेतृत्व वाली शांति प्रक्रिया की मांग की और अफगानिस्तान के अंदर तालिबान के हमलों के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन अब भी, तालिबान दुश्मन बना हुआ है और सभी जानते हैं कि उनके नेता कहां रहते हैं. यदि शांति वार्ता विफल हो जाती है, तो ट्रंप की युद्ध को समाप्त करने की कल्पना अनिवार्य रूप से पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाएगी.
पाकिस्तान चाहता है कि अमेरिका भारत को कश्मीर पर कुछ नए विचार-विमर्श करने के बदले में अमेरिका को तालिबान से बात करने में मदद करे. यह अमेरिका की क्षमताओं से भी परे हो सकता है. जिस तरह भारतीय विदेश मंत्रालय ने कश्मीर पर अमेरिका की मध्यस्थता के बारे में ट्रंप की टिप्पणी के एक घंटे से भी कम समय में स्पष्ट कर दिया, भारत अपनी स्थिति से नहीं हटेगा भारत-पाकिस्तान मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए.
अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत और पाकिस्तान को द्विपक्षीय रूप से बातचीत करने की अमेरिकी नीति को दोहराते हुए मध्यस्थता के बारे में टिप्पणियों को वापस ले लिया है. अमेरिका भारत से पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए कह सकता है, लेकिन भारत तब भी मना करने की क्षमता रखता है. जब तक कि पाकिस्तान स्थित जिहादी समूहों के बारे में उसकी शिकायतों का समाधान नहीं किया जाता.
डोनाल्ड ट्रंप-इमरान खान की बैठक के बावजूद, पाकिस्तान-संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंध बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है. पाकिस्तानी चाहते हैं कि ट्रंप और अमेरिका पड़ोसी देशों के साथ समस्याओं को हल करें और पाकिस्तान को उसका वर्चस्व बनाने में मदद करें. लेकिन ऐसा अभी नहीं होगा.
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ट्रंप मध्यवर्गीय अमेरिका की भावना को दर्शाते हैं, जब वह कहते हैं कि अमेरिका दुनिया का पुलिसकर्मी नहीं हो सकता. इसका एक आधार यह है कि अमेरिका भी दुनिया का समाधानकर्ता नहीं हो सकता है.
इमरान खान की ‘महान’ ओवल ऑफिस में बैठक (खान-ट्रंप मुलाकात) का गर्व बहुत ही अल्पकालिक होगा. पाकिस्तान की समस्याओं का वास्तविक समाधान सैन्यवाद और आतंकवाद को समाप्त करने में है. पाकिस्तान को एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है, जिसे ऋण और सहायता की हमेशा जरूरत न पड़े और अफगानिस्तान और भारत सहित अन्य पड़ोसियों के साथ वास्तविक मित्रता हो. देश की जातीय, धार्मिक और राजनीतिक विविधता को पनपने की अनुमति देता है. मौजूदा समय में कोई संकेत नहीं है कि पाकिस्तान इनमें से किसी को भी हासिल कर सकता है.
अगर पाकिस्तान किसी भी तरह अफगानिस्तान के संबंध में अमेरिकी उम्मीदों को पूरा करने में सक्षम होता है, तो यह अंत में निराश होने वाला है. अफगान शांति वार्ता ने पाकिस्तान को अस्थायी लाभ दिया है. लेकिन एक बार जब अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकल जाएगा, तो ट्रंप के लिए पाकिस्तान का महत्व कम हो जाएगा.
ट्रंप ने इमरान खान से मुलाकात के दौरान कहा कि ‘पाकिस्तान एक बड़ा देश है’, वह किसी दिन पीछे मुड़कर देखेंगे और याद करेंगे कि भारत और भी बड़ा है.
(हुसैन हक़्क़ानी वाशिंगटन डीसी स्थित हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण एवं मध्य एशिया विभाग के निदेशक हैं. वह 2008-11 की अवधि में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत थे. उनकी लिखी किताबों में ‘पाकिस्तान बिटवीन मॉस्क़ एंड मिलिट्री’, ‘इंडिया वर्सेस पाकिस्तान: व्हाई कान्ट वी बी फ्रेंड्स’ और ‘रीइमेजिंग पाकिस्तान’ शामिल हैं. यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)
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