लखनऊ, 24 नवंबर (भाषा) चुनावी राजनीति बहुत कठिन होती है क्योंकि इसमें बहुत तेजी से बदलाव होता है। खासकर उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में जहां नौ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों के नतीजों ने सत्तारूढ़ भाजपा को लोकसभा चुनावों में लचर प्रदर्शन के बाद फिर से शीर्ष स्थान पर पहुंचा दिया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगस्त में ही ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों के साथ उपचुनावों के लिए पार्टी के अभियान की राह तय कर दी थी। इस नारे को हिंदू एकता को मजबूत करने के लिए बड़ी चतुराई से गढ़ा गया था और यह उपचुनावों में गूंजता रहा।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘लंबे समय से समाजवादी पार्टी की राजनीति उसके ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) फैक्टर के इर्द-गिर्द घूमती रही है। वह एक खास समुदाय और जाति से जुड़ा था। भाजपा ने एक नए ‘एम-वाई’ दृष्टिकोण के साथ इसे बदल दिया है। इस ‘एम-वाई’ फैक्टर का मतलब है मोदी-योगी। ये दोनों नेता अपने विकास के आख्यान से राजनीतिक विमर्श को बदल रहे हैं और इस उपचुनाव ने फिर से योगी जी की प्रभावशीलता को दिखाया।’
उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीट के उपचुनाव के लिए शनिवार को हुई मतगणना में भाजपा ने छह सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) को एक सीट मिली।
आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे ने मुरादाबाद की मुस्लिम बहुल कुंदरकी सीट पर भाजपा की जीत में बहुत बड़ा प्रभाव डाला। यहां पार्टी ने तीन दशकों में जीत हासिल नहीं की थी, लेकिन इस बार मतदाता भाजपा के रामवीर सिंह के पीछे एकजुट हो गए।
रामवीर ने कहा, “ सपा ने मुसलमानों को हल्के में लिया और हमने मतदाताओं को सपा नेताओं के इस दावे के बारे में बताया कि उनकी पार्टी के चुनाव चिह्न पर कोई भी उम्मीदवार जीत सकता है।”
रामवीर ने कहा, ‘आखिरकार उन्हें एहसास हुआ कि हमारे विरोधियों द्वारा गलत तरीके से बदनाम किए जाने के बावजूद, केवल भाजपा ही उन्हें वोट बैंक के जाल से बाहर निकाल सकती है और निश्चित रूप से हमारे नेतृत्व ने इसमें मदद की।’
कुंदरकी की जीत का महत्व इतना था कि शनिवार शाम को महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की शानदार जीत के बाद दिल्ली में भाजपा कार्यालय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में भी इसका उल्लेख हुआ।
उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि जहां भाजपा का वोट बैंक मजबूत हुआ, वहीं सपा का भरोसेमंद मुस्लिम वोट बैंक बिखर गया जिसने 2022 के उप्र विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनावों में भी बड़ी संख्या में पार्टी को वोट दिया था। ‘ब्रांड योगी’ को बढ़ावा मिला है जबकि अखिलेश यादव को कुछ और काम करना है।’
यहां तककि मैनपुरी की करहल सीट के अपने पारिवारिक गढ़ में भी सपा का जीत का अंतर घट गया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में यह सीट लगभग 67000 वोट के प्रभावशाली अंतर से जीती थी। मगर यह अंतर इस बार घटकर 14000 वोट ही रह गया। करहल सीट पर अखिलेश के भतीजे तेज प्रताप यादव ने अपने दूर के रिश्तेदार अनुजेश यादव को हराया।
कानपुर की सीसामऊ सीट के उपचुनाव में भी सपा का जीत का अंतर काम हो गया। यहां पर सपा की नसीम सोलंकी लगभग 8000 वोट से जीत हासिल कर सकीं।
मुख्य विपक्षी दल ने 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद हासिल की गई रफ्तार खो दी है। उस समय सपा ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीट में से 37 पर जीत हासिल की थी जबकि भाजपा 33 सीट ही प्राप्त कर सकी थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में मीरापुर विधानसभा क्षेत्र एक और सीट थी, जहां मुस्लिमों की अच्छी खासी मौजूदगी है। रालोद ने 2022 के चुनावों में यह सीट जीती थी। उस समय वह सपा के साथ गठबंधन में थी।
रालोद के नेता रोहित अग्रवाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘ रालोद के पास समाज के सभी वर्गों का एक समर्पित वोट बैंक है और हमारे नेता जयंत चौधरी में लोगों का विश्वास एक बार फिर भारी जीत के साथ दिखा।’
कांग्रेस ने उपचुनाव में सपा को समर्थन देने की घोषणा की थी और उसने चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि दोनों पक्षों के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि गठबंधन में ‘सब ठीक है’, लेकिन स्थानीय स्तर पर असहमति के स्वर सुनाई दिए।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अरविंद सिंह ‘गोप’ ने कहा, ‘गठबंधन में कुछ भी गलत नहीं है। कांग्रेस ने हमारी मदद की। हार का मुख्य कारण सरकारी मशीनरी का बड़े पैमाने पर और खुलेआम दुरुपयोग था और लोग 2027 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर उसे इसका एहसास कराएंगे।’
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को सबसे ज़्यादा निराशा का सामना करना पड़ा। उनके उम्मीदवार बुरी तरह से चुनाव हार गए, जिससे पार्टी पर फिर से ‘वोट कटवा’ होने का आरोप लगने लगा।
मायावती ने रविवार को अनियमितताओं का आरोप लगाने के बाद घोषणा की कि उनकी पार्टी अब कोई उपचुनाव नहीं लड़ेगी।
कांग्रेस सचिव शाहनवाज आलम ने कहा, ‘बसपा के बारे में क्या कहा जा सकता है? हम सभी जानते हैं कि यह भाजपा की ‘बी’ टीम रही है और इस चुनाव ने भी यह साबित कर दिया है क्योंकि इसने चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि ‘इंडिया’ गठबंधन की संभावनाओं को कम करने के लिए लड़ा था।’
भाषा मनीष सलीम नोमान
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