नई दिल्ली : दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) का ‘सिलेबस विवाद’ बदस्तूर जारी है. नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एनडीटीएफ) के रसाल सिंह सिलेबस में बदलाव की अपनी मांग पर अड़े हैं. सिंह का आरोप है कि बदलाव के लिए रिवीजन कमेटी के पास भेजे गए सिलेबस की ‘कॉस्मेटिक सर्जरी’ की गई. उनके ऐसे आरोपों और दक्षिणपंथी समूहों के दबाव के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) की एक्जिक्यूटिव काउंसिल ने एक बार फिर से सिलेबस में बदलाव के लिए इसे रिवीजन कमेटी के पास भेजा दिया है.
रसाल सिंह के ऐसे आरोपों पर डीयू में अग्रेज़ी के प्रेफोसर सैकत घोष ने कहा, ‘रसाल सिंह को पता ही नहीं कि वो क्या बात कर रहे हैं. गुजरात से जुड़ी जिस कहानी पर विवाद है वो रिवीजन के बाद सिलेबस से हटा दिया गया.’ घोष ने आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि दक्षिणपंथियों ने अपना होमवर्क नहीं किया और किए गए हर बदलाव के लिए अकादमिक तर्क मौजूद है.
कैसे शुरू हुआ विवाद
चार महीने पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एक कमेटी बनाई थी. इसका काम स्नातक के सभी विषयों की समीक्षा करना था. समीक्षा का आधार केंद्र सरकार द्वारा जारी किया गया ‘लर्निंग आउटकम करिकुलम फ्रेमवर्क’ से जुड़ा एक नोटिफिकेशन था. समीक्षा करने के लिए यूनिवर्सिटी के तमाम विभागों ने अपने विषयों के विशेषज्ञों सहित कई प्रोफेसरों को इस काम में लगाया.
यूनिवर्सिटी की मानक संस्था के पास भेजे जाने से पहले प्रतिक्रिया के लिए ताज़ा समीक्षाएं विभागों की वेबसाइटों पर मई में पोस्ट की गईं. इस दौरान इससे जुड़ी कोई आपत्ति नहीं उठी. हालांकि, जब 11 जुलाई को इसे अकादमिक विषयों की स्टैंडिग कमेटी के पास भेजा गया तो मामले ने राजनीतिक मोड़ ले लिया.
इसी दौरान आरएसएस से जुड़े एनडीटीएफ के रसल सिंह ने इन चार विषयों से जुड़े ‘विवादित कंटेट’ को लेकर सवाल उठाए. उनकी मांग है कि विवादित विषयों को हटाया जाए. इसी विवाद में आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) पर भी गंभीर आरोप लगे हैं.
डीयू की छात्र नेता और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) दिल्ली की अध्यक्ष कवलप्रीत कौर ने आरोप लगाए कि एबीवीपी के छात्र टीचरों को धमकी दे रहे हैं. 16 जुलाई की रात को आधा दर्जन से अधिक प्रोफेसर्स को वीसी ऑफिस के पिछले दरवाजे से निकलना पड़ा था. एबीवीपी के छात्र अंग्रेज़ी और इतिहास समेत चार विभागों के प्रोफेसरों को उनके हवाले किए जाने की मांग कर रहे थे. हालांकि, एबीवीपी दिल्ली के मीडिया प्रभारी आशुतोष सिंह ने इन आरोपों का सिरे से खारिज किया है. उनका कहना है कि वे बस प्रदर्शन कर रहे थे.
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ताज़ा मामला
सिंह और दक्षिणपंथी सूमहों की मांग के बाद सिलेबस में संशोधन किए गए. रविवार को यूनिवर्सिटी के एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सामने संशोधित सिलेबस को पास कराने के लिए अंतत: पेश किया गया. इस दौरान दक्षिणपंथियों ने सिलेबस के ‘विवादित विषयों’ की ‘कॉस्मेटिक सर्जरी’ का आरोप लगाया.
आरोप के जवाब में प्रोफेसर घोष का कहना है कि रसाल सिंह की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यूनिवर्सिटी पर जमकर दबाव बना रखा है. इन्हीं की सरकार है इसलिए सिलेबस तैयार करने में शामिल लिबरल पक्ष के तर्क को अनदेखा कर दिया गया.
दबाव में आते हुए काउंसिल ने चार विषयों से जुड़े कंटेंट को रिवीजन कमेटी के पास भेज दिया है. अब सिलेबस को 31 जुलाई तक अंतिम रूप देने के लिए एक ओवरसाइट कमेटी बनाई गई है. इस कमेटी के बार में प्रोफेसर घोष का कहना है कि किसी को पता ही नहीं कि ये कमेटी क्या है?
किन चीज़ों को लेकर है विवाद
अंग्रेज़ी, इतिहास, राजनीति-शास्त्र और समाज-शास्त्र विभागों जैसे चार विभागों से जुड़े ‘विवादित विषयों’ को फिर से समीक्षा के लिए वापस भेज दिया गया है. आरोप है कि ये वामपंथी विचारधारा से भरे हैं और इनमें राष्ट्रवादी विचारधारा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ख़िलाफ़त की गयी है.
अंग्रेजी के सिलेबस में गुजरात दंगों की पृष्ठभूमि से जुड़ी एक कहानी ‘मणिबेन उर्फ बीवी जान’ को लेकर विवाद था. आरोप है कि कहानी में संघ से जुड़े बजरंग दल, शिशुगृह (शिशु मंदिर) और शाखा से जुड़े पात्रों को गलत ढंग से पेश किया गया था. 2002 के गुजरात दंगों में इनकी भूमिका लुटेरों और हत्यारों की दिखाई गई है. हालांकि, इसे पहले ही हटा दिया गया है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के अकैडमिक काउंसिल के भी सदस्य डॉक्टर रसाल सिंह रसाल ने कहा, ‘मैंने स्टैंडिंग कमेटी की मीटिंग में आपत्तिजनक हिस्सों को हटाने की मांग की थी लेकिन संबंधित विभागों ने कोई सुनवाई नहीं की. पाठ्यक्रमों में 30% की जगह 100% तक बदलाव किये गये हैं.’
दक्षिणपंथी समूह का आरोप है कि अंग्रेज़ी विभाग द्वारा ही तैयार किए गए पाठ्यक्रम में बताया गया कि भगवान विष्णु, शिव, कार्तिकेय और गणेश एलजीबीटी थे. इसके आधार और सबूत भागवतपुराण, स्कंदपुराण, शिवपुराण जैसे भारतीय संस्कृति के आधार-ग्रंथों के ऊपर वामपंथियों द्वारा लिखे गये ‘सेम सेक्स लव इन इंडिया’ जैसे माध्यमों से दिए गये हैं. लेकिन इस पर सैकत घोष ने कहा कि उस दौर में एलजीबीटी जैसा कुछ था ही नहीं और नए प्रस्ताव में अंग्रेज़ी की साइट पर ऐसा कुछ भी नहीं है.
‘कम्युनिकेशन स्किल्स’ पेपर में पूरा लिटरेचर भरे जाने का आरोप है. विरोध करने वालों का पक्ष है कि ‘इंडियन राइटिंग इन इंग्लिश’ जैसे कोर्स की जगह ‘लिटरेचर एंड कास्ट’ और ‘इंटेरोगेटिंग क्वियरनेस’ जैसे नए पेपर शुरू किए गए. इतिहास के पाठ्यक्रम से राजपूत इतिहास, अमीर खुसरो, शेरशाह सूरी और बाबा साहब आंबेडकर को गायब किया गया.
‘डेमोक्रेसी ऑन वर्क’ जैसे कोर्स में सिर्फ नक्सलवाद और वामपंथ का इतिहास शामिल किये जाने पर भी विवाद है. ‘हिस्टोरियंस क्राफ्ट’ कोर्स में महाभारत का वह पाठ शामिल किया गया है जिसमें ‘कृष्ण एंड अर्जुन को प्राणियों को जघन्य हत्यारे के तौर पर दिखाया गया.’
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राजनीति-शास्त्र के पाठ्यक्रम में ‘भारतीय सामाजिक आंदोलन’ विषय में माओवाद को शामिल किये जाने पर विवाद है. रामकृष्ण मिशन, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, खुदाई खिदमतगार आदि जैसे बाकी भारतीय सामाजिक आंदोलन गायब किए जाने पर भी विवाद है.
हालांकि, सिलेबस को लेकर हो रहे विवाद पर दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डूटा) की सदस्य प्रोफेसर आभा देव ने कहा, ‘सिलेबस बनाने में पूरी तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया गया है. इसे बनाने में बहुत से लोग शामिल थे लेकिन जिस तरह से एक विचारधारा द्वारा विवाद किया जा रहा है उसका कोई अंत नहीं है.’ हालांकि, कड़े विरोध के बीच ‘आपत्तिजनक’ विषयों को एक बार फिर से रिवीजन के लिए भेज दिया गया है.