कोच्चि, 22 नवंबर (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने दो दिन पहले भूस्खलन प्रभावित वायनाड में दिनभर की हड़ताल के लिए शुक्रवार को सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की आलोचना करते हुए कहा कि यह रवैया “गैर-जिम्मेदाराना” था।
न्यायमूर्ति ए.के. जयशंकरन नांबियार और न्यामूर्ति के.वी. जयकुमार ने 19 नवंबर को वायनाड में हुई हड़ताल पर नाराजगी जताते हुए उसे अस्वीकार्य करार दिया।
अदालत ने सवाल किया कि हड़ताल को कैसे जायज ठहराया जा सकता है और सत्तारूढ़ एलडीएफ ने ऐसा क्यों किया।
अदालत ने यह भी पूछा कि क्या हड़ताल विरोध जताने का एकमात्र तरीका है।
अदालत ने कहा कि बड़ी त्रासदी से प्रभावित इलाके में हड़ताल करना “निराशाजनक” था।
एलडीएफ और यूडीएफ ने जिले में भूस्खलन पीड़ितों को कई महीने बाद भी केंद्र सरकार की ओर से कथित तौर पर सहायता नहीं मिलने के विरोध में हड़ताल की थी।
सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों गठबंधन चाहते हैं कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार वायनाड में आए भूस्खलन को राष्ट्रीय आपदा घोषित करके पीड़ितों के राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए जल्द से जल्द आवश्यक सहायता प्रदान करे।
वायनाड जिले में तीन गांवों के भूस्खलन से बुरी तरह प्रभावित होने और 200 से अधिक लोगों की मौत मद्देनजर राज्य में प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम और प्रबंधन से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणियां कीं।
इस बीच, केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि पुनर्वास और राहत प्रयासों के लिए सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया जारी है।
केंद्र सरकार ने कहा कि वह पहले ही आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आपातकालीन राहत कार्यों के लिए राज्य को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) से 153 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है।
राज्य सरकार ने आपदा से 2,219 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया है।
भाषा जोहेब संतोष
संतोष
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