शिमला: आईपीएस अधिकारी और बद्दी की पुलिस अधीक्षक इल्मा अफरोज़ के साथ मतभेदों के कारण चर्चा में आए दून के कांग्रेस विधायक राम कुमार चौधरी का राजनीतिक करियर विवादों से भरा रहा है, जो समय-समय पर सुर्खियों में रहे हैं.
चौधरी के साथ तनाव की खबरों के बीच बद्दी की एसपी इल्मा अफरोज़ इस महीने की शुरुआत में अपना सरकारी आवास खाली करने के बाद लंबी छुट्टी पर चली गईं हैं. बद्दी-दून क्षेत्र में अवैध रेत खनन पर कार्रवाई के दौरान उन्होंने विधायक की पत्नी कुलदीप कौर के वाहनों पर जुर्माना लगाया था. हालांकि, चौधरी ने अफरोज़ को छुट्टी पर भेजने में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है.
इस साल जनवरी में बद्दी में एसपी के पद पर तैनात होने के बाद से अफरोज़ का चौधरी के साथ टकराव चल रहा है. शुरुआत में चौधरी से संबंध रखने वाले स्क्रैप डीलर रामकिशन ने कथित तौर पर पुलिस पर दबाव बनाने के लिए खुद पर हमला करवाया था. मामले को लेकर राजनीतिक दबाव से बेपरवाह अफरोज़ ने मामले को गंभीरता से लिया, जिससे चौधरी के साथ तनाव बढ़ गया.
इसके बाद, सितंबर में चौधरी ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा में अफरोज़ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन पर जासूसी करने और उनके ड्राइवर को उनके खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया. विशेषाधिकार समिति अभी भी प्रस्ताव पर विचार कर रही है.
इसकी शुरुआत के बारे में नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी दिप्रिंट को बताया, “जब वे जिले में आईं, तो उन्हें एक सुचारु कार्यकाल के लिए ‘मैडम’ से मिलने की सलाह दी गई थी.”
सभी आरोपों को खारिज करते हुए चौधरी — जो कांग्रेस के गढ़ दून से दो बार विधायक रह चुके हैं — ने 13 नवंबर को मीडिया से कहा कि उनका किसी के साथ कोई विवाद नहीं है.
चौधरी, जो कुछ दिन पहले तक मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) का पद संभाल रहे थे, ने कहा, “एसपी मैडम छुट्टी पर चली गई हैं; यह कोई तबादला नहीं है. इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है. यह सब विपक्ष द्वारा मेरी छवि खराब करने की एक चाल है. मेरे पास किसी को छुट्टी पर भेजने का कोई अधिकार नहीं है. मैंने अपने क्रशर और वाणिज्यिक वाहनों को पट्टे पर दे दिया है.”
यह विवाद चौधरी के उतार-चढ़ाव भरे राजनीतिक करियर में एक और झटका है. 2012 के ज्योति हत्याकांड में शामिल होने से लेकर अवैध खनन को लेकर चल रहे तनाव तक, चौधरी की राजनीतिक यात्रा कानूनी लड़ाइयों, आरोपों और एक दूसरे से जुड़े व्यापार-राजनीति गठजोड़ से भरी रही है.
राजनीतिक विरासत और पारिवारिक कारोबार
55-वर्षीय चौधरी हिमाचल के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिन्होंने 2012 और फिर 2022 के चुनाव में दून विधायक के रूप में अपनी जगह सुरक्षित की है.
यह सीट ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रही है, पार्टी ने 1967-2007 तक इस सीट पर कब्ज़ा किया था. चौधरी के पिता लज्जा राम ने उस अवधि में कई बार दून का प्रतिनिधित्व किया.
भाजपा की विनोद कुमारी चंदेल ने 2007 में सीट जीती थी, लेकिन चौधरी ने चंदेल को हराकर 2012 में कांग्रेस के लिए दून को फिर से हासिल कर लिया. भाजपा के परमजीत सिंह ने 2017 के चुनाव में सीट सुरक्षित की, लेकिन चौधरी ने 2022 के चुनाव में दून विधायक के रूप में अपनी स्थिति फिर से हासिल कर ली.
चौधरी के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के साथ घनिष्ठ संबंध, जिन्होंने उन्हें 2022 में मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया, ने उनके राजनीतिक उत्थान को और मजबूत किया है.
हालांकि, उनकी राजनीतिक सफलता विवादों में उलझी हुई है.
चौधरी का परिवार, विशेष रूप से उनकी पत्नी, बादली-दून क्षेत्र में क्रशर और खनन उद्योगों से जुड़ी रही हैं. निर्वाचन आयोग के साथ दायर 2022 के हलफनामे के अनुसार, दंपति के पास काफी वाणिज्यिक वाहन हैं.
आयकर विभाग ने चौधरी की पत्नी से 2022-23 वित्तीय वर्ष के लिए 23.04 लाख रुपये का कर मांगा है — एक ऐसा घटनाक्रम जिसने दंपति की राजनीतिक जांच को और बढ़ा दिया है.
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ज्योति हत्याकांड और अधिकारियों के साथ टकराव
चौधरी का नाम पहली बार 2012 में ज्योति हत्याकांड में राष्ट्रीय सुर्खियों में आया था, जो कई सालों तक उन्हें परेशान करता रहा.
पंजाब के होशियारपुर की 24-वर्षीय ज्योति हरियाणा के पंचकूला में चुनाव के दौरान मृत पाई गई थीं. उनके पास से चौधरी के नाम का एक विजिटिंग कार्ड मिला था, जिसमें उनके पिता ने चौधरी पर उनकी बेटी की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था.
यह मामला तब और बढ़ गया जब 20 दिसंबर 2012 को जांच के दौरान चौधरी फरार हो गए — यह वह दिन था जब दून से उसकी पहली चुनावी जीत हुई थी. हालांकि, बाद में जनवरी 2013 में उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और लंबी सुनवाई के बाद 2014 में उन्हें बरी कर दिया गया. अपनी कानूनी जीत के बावजूद, विवाद के कारण तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सुक्खू ने उन्हें कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया था.
कानून प्रवर्तन के साथ चौधरी के रिश्ते खराब रहे हैं. 2016 में आईपीएस अधिकारी गौरव सिंह के साथ उनकी झड़प ने सुर्खियां बटोरीं, जो उस समय अवैध खनन के खिलाफ अभियान चला रहे थे.
सिंह ने चौधरी की पत्नी के वाहन पर अवैध रूप से खनन की गई सामग्री ले जाने के आरोप में जुर्माना लगाया, जिससे सार्वजनिक विवाद पैदा हो गया. चौधरी ने सिंह के तबादले के लिए पैरवी की, जो अंततः हुआ भी.
इस घटना ने सार्वजनिक आक्रोश को जन्म दिया, जिसमें कार्यकर्ताओं ने अदालत में तबादले को चुनौती दी.
बद्दी पर नियंत्रण और राजनीतिक तनाव
हिमाचल का बद्दी क्षेत्र दून निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है, जो अपने समृद्ध खनन और स्क्रैप उद्योगों के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक महत्व रखता है.
स्थानीय कानून प्रवर्तन और राजनीतिक हस्तियों ने इन उद्योगों को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए राजनीतिक संरक्षण की ज़रूरत की ओर इशारा किया है. चौधरी के परिवार का खनन, ट्रक ऑपरेटर यूनियन और स्क्रैप व्यवसाय में उनकी भागीदारी के कारण बद्दी में काफी प्रभाव रहा है.
उनके भाई, हरभजन सिंह चौधरी, स्थानीय ट्रक यूनियन के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, जिससे क्षेत्र में परिवार का प्रभुत्व और मजबूत होता है.
हालिया खबरों से पता चलता है कि चौधरी का बद्दी और नालागढ़ में राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के साथ मतभेद चल रहा है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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