बेंगलुरु, 15 नवंबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि रोजगार के अवसरों में ‘‘दृष्टि बाधित’’ व्यक्तियों की तुलना में ‘‘दृष्टिहीन’’ व्यक्तियों को वरीयता दी जानी चाहिए, बशर्ते कि उनकी दिव्यांगता उनके कर्तव्यों के निर्वहन की क्षमता में बाधा नहीं डाले।
न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (केएसएटी) के एक पूर्व आदेश के खिलाफ स्कूल शिक्षा विभाग की अपील को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया।
यह मामला मैसूरु जिले के पेरियापटना तालुक में अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाली दृष्टिहीन उम्मीदवार एच एन लता से जुड़ा है। लता ने 2022 में एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कन्नड और सामाजिक अध्ययन शिक्षक के पद के लिए आवेदन किया था। उनका नाम आठ मार्च, 2023 को जारी चयन सूची में शामिल किया गया था।
हालांकि, 4 जुलाई, 2023 को उनका आवेदन खारिज कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने केएसएटी के समक्ष इस फैसले को चुनौती दी। न्यायाधिकरण ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, उन्हें 10,000 रुपये का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया और नियुक्ति प्राधिकारी को तीन महीने के भीतर उनके आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
स्कूल शिक्षा विभाग ने इस फैसले का विरोध करते हुए दलील दी कि ‘‘दृष्टि बाधित’’ और ‘‘दृष्टिहीन’’ उम्मीदवारों के लिए आरक्षण को अलग-अलग श्रेणियों के रूप में माना जाना चाहिए। विभाग ने दावा किया कि न्यायाधिकरण ने इस अंतर को नजरअंदाज किया है।
मामले की समीक्षा करने पर, उच्च न्यायालय की पीठ ने विभाग के रुख से असहमति जताई। न्यायाधीशों ने कहा कि पूर्ण रूप से दृष्टिहीन व्यक्ति के स्नातक प्राथमिक शिक्षक की जिम्मेदारियों को संभालने के संदर्भ में और खासकर सामाजिक अध्ययन और कन्नड जैसे विषयों को लेकर चिंताएं हो सकती हैं, लेकिन इस तरह की दलील से सहमत नहीं हुआ जा सकता है क्योंकि उम्मीदवार इस भूमिका के लिए शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करती है।
अदालत ने दृष्टिहीन व्यक्तियों में अक्सर देखी जाने वाली सकारात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डाला। पीठ ने होमर, जॉन मिल्टन, लुई ब्रेल, हेलेन केलर और बोलेंट इंडस्ट्रीज के सीईओ श्रीकांत बोला सहित उल्लेखनीय ऐतिहासिक हस्तियों का हवाला दिया, जिन्होंने दृष्टिहीन होने के बावजूद बड़ी सफलता हासिल की।
भाषा सुरभि वैभव
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