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Wednesday, 20 November, 2024
होमफीचर‘हर वक्त स्ट्रैस, आठ से बढ़कर 12 घंटे काम’ — PSU बैंक कर्मचारी की सरकारी नौकरी नहीं है आसान

‘हर वक्त स्ट्रैस, आठ से बढ़कर 12 घंटे काम’ — PSU बैंक कर्मचारी की सरकारी नौकरी नहीं है आसान

सरकारी बैंक के कर्मचारी म्यूचुअल फंड, बीमा बेचते हैं और कभी लॉग आउट नहीं करते. उनके पास मुश्किल टारगेट और ‘हर महीने बेस्ट परफॉर्मेंस’ के प्राइज़ का स्ट्रेस भी है.

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नई दिल्ली: लगातार तीन साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद रोहित नेगी को 2017 में पब्लिक सेक्टर के एक बैंक में सरकारी नौकरी मिल गई. नेगी ने स्टेबिलिटी, वर्क-लाइफ बैलेंस और सोशल रेप्युटेशन की उम्मीद में कॉर्पोरेट की हौड़ को पीछे छोड़ दिया था, जो एक सरकारी नौकरी अक्सर भारतीयों को दिलाती है. 2024 तक तेज़ी से आगे बढ़ते हुए, अब वे कॉर्पोरेट की दुनिया में लौटना चाहते हैं क्योंकि सरकारी नौकरी की दुनिया उतनी अच्छी नहीं है जैसी उन्होंने सोची थी. टारगेट्स, परफॉर्मेंस प्रेशर, काम के अधिक घंटे, मंथली असेसमेंट और कभी-कभी अपमान की चिंता पूरे दिन सताती रहती है.

मध्य दिल्ली के बैंक में फाइलों और सिस्टम से घिरे हुए नेगी ने कहा, “मैं हर समय नौकरी छोड़ने या बदलने के बारे में सोचता रहता हूं. मैं कम सैलरी पर भी काम कर लूंगा पर मैं इस प्रेशर और स्ट्रैस से बचना चाहता हूं. हमें सब कुछ करना है. यह अब केवल बैंकिंग तक नहीं रह गया है, म्यूचुअल फंड, हाउस लोन, कार लोन, सरकारी योजनाएं, क्लाइंट को कॉल करना — लिस्ट कभी खत्म नहीं होती.”

35-वर्षीय नेगी 2005 के एक लोन के मामले में डिटेल्स चैक कर रहे हैं, जिसमें ग्राहक ने किश्तें नहीं भरी हैं. यह उनकी नौकरी की जिम्मेदारियों में एक एक्स्ट्रा काम है, जिसमें ग्राहक को कॉल करना, अदालतों और ग्राहकों से मिलना शामिल है.

बतौर मैनेजर उनकी मुख्य जिम्मेदारियों में हाई नेट-वर्थ वाले निजी (HNI) खाते खोलना, यह सुनिश्चित करना कि रोज़ाना के काम ठीक से चले और लोन और अन्य बाकी फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स को बढ़ावा दिया जाए.

भारत में सरकारी नौकरियों का आकर्षण पिछले कुछ दशकों में कम होता दिखाई दे रहा है क्योंकि नई प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में जिम्मेदारियों का विस्तार हो रहा है. सरकारी स्वामित्व वाले बैंक में काम करने का मतलब अब 9 से 5 बजे तक की आरामदायक नौकरी करना नहीं रह गया है.

मैं हर समय नौकरी छोड़ने या इसे बदलने के बारे में सोचता रहता हूं. मैं कम सैलरी पर भी काम कर लूंगा

— रोहित नेगी, पीएसयू बैंक कर्मचारी

नए ज़माने के बैंकरों के पास मुश्किल टारगेट और ‘हर महीने बेस्ट परफॉर्मेंस’ के पुरस्कार का स्ट्रेस है जिसके कारण उन्हें लंबे समय तक काम करना पड़ता है, जिससे परिवार के लिए कम समय बचता है. सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों और प्राइवेट सेक्टर के कर्ज़दाताओं के बीच सांस्कृतिक अंतर तेज़ी से कम हो रहा है. कर्मचारियों को स्ट्रैस की प्रॉब्लम है, जबकि मैनेजमेंट उनके मेंटल हेल्थ के लिए नए प्रोग्राम्स शुरू कर रहा है. कर्मचारियों की कमी एक और क्षेत्र है जिसकी कई बैंकर्स शिकायत करते हैं, लेकिन इस टॉक्सिक वर्क कल्चर से भी बैंकों में नौकरी के लिए आने वाले इच्छुक युवाओं को नहीं रोका है.

मई में ज़ूम मीटिंग में कर्मचारियों को डांटते हुए केनरा बैंक के प्रबंधक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था. मैनेजर ने कहा था, “मुझे अपने परिवार की परवाह नहीं है; मुझे अपने परिवार की बिल्कुल भी परवाह नहीं है. मुझे केनरा बैंक की परवाह है. इसलिए सभी को क्लियर मैसेज: अगर, हफ्ते के अनुसार, सोमवार से शनिवार तक, काम नहीं हो रहा है, तो शनिवार या रविवार को, जब भी छुट्टी हो और आप दयालुता से जवाब नहीं देते हैं, तो सभी के लिए चीज़ें अलग होंगी, चाहे वे अधिकारी हो, मुख्य प्रबंधक हो या एजीएम हो.”

भारत में सरकारी नौकरियों का स्थायी आकर्षण पिछले कुछ दशकों में कम होता दिख रहा है क्योंकि नई प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में जिम्मेदारियों का विस्तार हो रहा है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
भारत में सरकारी नौकरियों का स्थायी आकर्षण पिछले कुछ दशकों में कम होता दिख रहा है क्योंकि नई प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में जिम्मेदारियों का विस्तार हो रहा है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

30-वर्षीय अमित कुमार भी राष्ट्रीय राजधानी में एक सरकारी बैंक में काम करते हैं और इस वर्क-लाइफ बैलेंस पर जोर देते हैं.

उन्होंने कहा, “कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मैं किसी कॉल सेंटर में काम करता हूं, सुबह नौ बजे से मुझे सभी प्रकार के लोगों के कॉल आते हैं. हर दिन कम से कम 30-35 कॉल, जिनमें से आधे टारगेट देते हैं और बाकी मुझे याद दिलाते हैं कि मैं बेकार हूं.”


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हर वक्त तनाव वाली नौकरी

अश्वनी राणा ने 2019 में जनरल मैनेजर के पद से रिटायर होने से पहले कैनरा बैंक में 37 साल तक काम किया. करीब तीन दशक तक बैंक यूनियन का हिस्सा रहे राणा बैंक कर्मचारियों द्वारा आत्महत्या करने और लगातार बढ़ते टारगेट के बीच सीधा संबंध देखते हैं.

कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मैं किसी कॉल सेंटर में काम करता हूं, सुबह नौ बजे से मुझे सभी प्रकार के लोगों के कॉल आते हैं. हर दिन कम से कम 30-35 कॉल, जिनमें से आधे टारगेट देते हैं और बाकी मुझे याद दिलाते हैं कि मैं बेकार हूं

— अमित कुमार, पीएसयू बैंक कर्मचारी

राणा ने कहा, “मैं आपको पूरी जिम्मेदारी के साथ बता रहा हूं कि पिछले एक दशक में ही पूरे भारत में इस तरह की आत्महत्याओं की संख्या 500 से अधिक है. इसका मुख्य कारण यह है कि सीनियर मैनेजमेंट द्वारा बैंकर्स पर ‘टारगेट’ हासिल करने का दबाव डाला जाता है.”

जनधन खाते खोलने से लेकर जीवन ज्योति सुरक्षा योजना और जीवन ज्योति बीमा योजना तक, बैंक कर्मचारी हर सरकारी योजना पर काम करते हैं. खाते से आधार कार्ड और पैन कार्ड लिंक करना एक एक्ट्रा काम है.

नेगी ने कहा, “जब हम ऐसी योजनाओं पर काम करते हैं तो हम कुछ दिनों के लिए बाकी काम को अलग रख देते हैं और प्राथमिकता के आधार पर इन योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं.”

और प्राइवेट प्रतिस्पर्धा तो है ही.

1990 के दशक की शुरुआत में भारत के आर्थिक उदारीकरण ने कई निजी क्षेत्र के कर्ज़दाताओं को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश करते देखा. वे प्रतिस्पर्धी थे, बाज़ार को बेहतर समझते थे और बहुत जल्द ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एहसास हो गया कि वह अपने बिजनेस को बिना किसी दबाव के दृष्टिकोण के साथ आगे नहीं बढ़ा सकते. प्राइवेट सेक्टर की बैंकिंग ने सरकारी बैंकों के व्यवहारिक केंद्र को बदल दिया, जिससे वह बाज़ार की नई वास्तविकताओं के करीब आ गए.

रोहित नेगी हमेशा संभावित ग्राहकों की तलाश में रहते हैं — चाहे वह अपनी बेटी को छोड़ने जा रहे हों या किराने का सामान खरीद रहे हों. उनकी नवीनतम चुनौती एक संभावित ग्राहक को ढूंढना है जो 20 लाख रुपये का कार लोन लेना चाहता हो.

नेगी ने कहा, “जब मेरा टागरेट पूरा नहीं होता, मैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को म्यूचुअल फंड, लोन आदि खरीदने में मदद के लिए फोन करता हूं. मैंने सभी से मदद मांगी है. फैमिली ग्रुप में भी मैसेज डाला है, जिसमें पूछा गया है, ‘अगर कोई कार खरीद रहा है, तो प्लीज़ लोन मुझसे लें’.”

नेगी पर हर 15 दिन में 15 लाख रुपये का कार लोन बेचने का दबाव है. इसके अलावा, उन्हें हर महीने 25 लाख रुपये का हाउसिंग लोन भी बेचना है.

जबकि उनके बैंक ने औपचारिक रूप से 9 से 9 बैंकिंग की घोषणा नहीं की है, नेगी हर दिन अपनी दिल्ली स्थित शाखा में 12 घंटे बिता रहे हैं.

बैंकिंग सेक्टर बहुत बड़ा है और आप किसी से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वो सब कुछ जानता हो. हाल के वर्षों में हमारा वर्कलोड बढ़ गया है और हम अक्सर मीटिंग्स में अपमानित महसूस करते हैं

— रोहित नेगी, पीएसयू बैंक कर्मचारी

सुबह 9 बजे दिल्ली स्थित अपने बैंक में पहुंचने पर नेगी को बायोमेट्रिक मशीन का सामना करना पड़ता है. हालांकि, दफ्तर से लॉग-आउट टाइम शाम 7-8 बजे है, लेकिन नेगी अक्सर रात 9 बजे तक काम करते हैं, लेकिन जब वे ब्रांच से बाहर निकलते हैं, तो वे असल में बाहर नहीं निकलते. काम के देर से आने के दस्तावेज़ सबूत को ऊपरी प्रबंधन द्वारा हतोत्साहित किया जाता है.

नेगी की अपनी नौकरी के प्रति प्रतिबद्धता की एक कीमत है. वे अक्सर पारिवारिक समारोहों, दोस्तों के जन्मदिन और सालगिरहों में शामिल नहीं हो पाते. उनकी पत्नी बबीता नेगी ने दुख जताया, “हम केवल रविवार को ही उनके साथ वक्त बिता पाते हैं, लेकिन कभी-कभी उन्हें तब भी काम करना पड़ता है. हम कई दिन से बाहर नहीं गए हैं. वे हमारी बेटी के साथ समय नहीं बिताते.”

पिछले सात सालों में वरिष्ठ प्रबंधक ने तीन राज्यों – महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली में आठ बार तबादले देखे हैं. अब, उन्हें डर है कि मैनेजमेंट को नाराज़ करने से उनका एक और तबादला हो सकता है, जिससे उनकी बेटी की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है क्योंकि उसने अभी-अभी स्कूल जाना शुरू किया है. हर समीक्षा मीटिंग के दौरान, जब बोलने की बारी आती है तो उनका दिल तेज़ी से धड़कता है.

नेगी ने कहा, “बैंकिंग बहुत बड़ा क्षेत्र है और आप किसी से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वो सब कुछ जानता हो. हाल के वर्षों में हमारा वर्कलोड बहुत बढ़ गया है और हम अक्सर मीटिंग्स में अपमानित महसूस करते हैं.”

जब नेगी ने नौकरी ज्वाइन की थी, तो उन्हें नहीं मालूम था कि मैनेजमेंट के लिए उन्हें नौकरी से निकालना इतना आसान होगा.

कुछ हफ्ते पहले, नेगी की ब्रांच में एक साथी बैंकर ने गलती से मैच्योरिटी से एक दिन पहले फिक्स्ड डिपॉजिट की राशि जारी कर दी. ग्राहक ने कम मैच्योरिटी राशि जमा करने का आरोप लगाते हुए शिकायत की. मैनेजमेंट ने कर्मचारी को चेतावनी पत्र जारी करने में देर नहीं लगाई और उसे अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी. कुछ मामलों में ऐसी कार्रवाई बर्खास्तगी में समाप्त होती है.

नेगी ने कहा, “नौकरी से निकालना आसान नहीं है, लेकिन यह मुश्किल भी नहीं है.”

उन्होंने कहा कि बैंकिंग के काम में गलतियां होने की संभावना रहती है.

जनधन खाते खोलने से लेकर जीवन ज्योति सुरक्षा योजना और जीवन ज्योति बीमा योजना तक, बैंक कर्मचारी हर सरकारी योजना पर काम करते हैं. आधार कार्ड और पैन कार्ड को खाते से जोड़ना एक्स्ट्रा काम है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
जनधन खाते खोलने से लेकर जीवन ज्योति सुरक्षा योजना और जीवन ज्योति बीमा योजना तक, बैंक कर्मचारी हर सरकारी योजना पर काम करते हैं. आधार कार्ड और पैन कार्ड को खाते से जोड़ना एक्स्ट्रा काम है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

दिप्रिंट ने जिन कई बैंक कर्मचारियों से बात की, उन्होंने समीक्षा बैठकों के दौरान बर्खास्तगी की धमकियों का सामना करने की बात स्वीकार की.

नेगी ने कहा, “हम अक्सर सुनते हैं, ‘क्या आपको अपनी नौकरी पसंद नहीं है? शायद आपको यह जगह अब पसंद नहीं है? अगर आप यह काम नहीं करेंगे, तो आपको वीकेंड पर भी काम करना होगा’.”

बैंकर्स ने कहा कि 2019 के बाद से हालात और भी खराब हो गए हैं, जब नरेंद्र मोदी सरकार ने परिचालन दक्षता में सुधार और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करने के लिए बैंकिंग का विस्तार करने के लिए 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की घोषणा की थी. इस दौरान छोटे कर्ज़दाताओं को बड़े बैंकों के साथ विलय करते हुए देखा गया, जिससे भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की संख्या 2017 में 27 से घटकर 12 हो गई.

विलय की गई बैंक संस्थाओं में मूल रूप से बड़े बैंक से संबंधित लोगों को पदोन्नति के मामले में वरीयता दी जाती है. कुमार ने कहा कि उनके पास एक सहज क्षेत्र था, वरिष्ठ उन्हें पहले से जानते थे और यहां तक ​​कि मीटिंग्स में भी, वे चुटकुले सुनाते थे और छोटे बैंकों के कर्मचारी अपमानित और उपेक्षित महसूस करते थे.

बैंकिंग क्षेत्र में तनाव बैंक कर्मचारियों द्वारा सरकार की निजीकरण योजनाओं के खिलाफ की गई हड़तालों में भी दिखाई देता है. उन्होंने सेवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बैंकों में अधिक भर्ती की मांग की है.

हाल के वर्षों में, बैंकिंग परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. कंप्यूटर के आगमन से मैन्युअल कागज़ी कार्रवाई आसान हो गई, जिससे बैंक कर्मचारियों को निपटना पड़ता था, लेकिन दबाव तब बढ़ा जब बेकिंग सॉफ्टवेयर को संचालित करने के लिए ज़रूरी लोगों को काम पर नहीं रखा गया.

तकनीक अधिक, कर्मचारी कम

बैंकिंग क्षेत्र में तकनीक के प्रवेश से पहले, बैंक शाखाओं में आने वाले लोगों की संख्या अधिक होती थी, कर्मचारियों और ग्राहकों को लगभग सभी काम मैन्युअली करने पड़ते थे. हालांकि, अब सेवानिवृत्त हो चुके बैंकरों की पीढ़ी का कहना है कि इस क्षेत्र में कर्मचारियों की कमी है.

राणा ने कहा, “चूंकि, बैंकिंग इंडस्ट्री तकनीक आधारित हो गई है, इसलिए उन्होंने निजी क्षेत्र की नकल करने के बारे में सोचा है, लेकिन दोनों का ग्राहक आधार अलग-अलग है. पीएसबी में ग्रेड डी की नौकरियां लगभग समाप्त हो गई हैं. क्लर्क कम हैं. बैंकों को लगता है कि अधिकारी आधारित होने से उन्हें लाभ हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं है.” ग्रेड डी के कम कर्मचारियों की मौजूदगी से बैंकिंग के रोज़ाना के काम में देरी होती है.

उन्होंने कहा, “कई जगहों पर कर्मचारियों की कमी है. अगर किसी का तबादला हो जाता है या वह सेवानिवृत्त हो जाता है, तो उसके लिए कोई प्रतिस्थापन नहीं होता. टारगेट पूरा करना होता है, लेकिन कर्मचारी उपलब्ध नहीं कराए जाते. इसके लिए बैंक की ट्रेड यूनियन भी जिम्मेदार है, क्योंकि वह खुलकर अपनी आवाज़ नहीं उठाते.”

डिजिटलाइजेशन के साथ, नौकरियां आसान हो गई हैं, लेकिन बैंकों में लोगों की संख्या कम है. अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा, “हमें डिजिटल रूप से काम करने के लिए अभी भी लोगों की ज़रूरत है.”

और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों के प्रति ईर्ष्या है.

बैंक ट्रेड यूनियन के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, “सेविंग्स में 50 प्रतिशत बाज़ार हिस्सेदारी के बावजूद निजी बैंक सरकार और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं को लागू करने में शायद ही योगदान दे रहे हैं, लेकिन कोई भी उनसे सवाल नहीं करता है.”

बैंक कर्मचारी संघ पिछले कुछ समय से भारतीय बैंक संघ के साथ कर्मचारियों की कमी का मुद्दा उठा रहा है, यहां तक ​​कि हड़ताल भी कर रहा है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में लोगों की भर्ती के मुद्दों पर विचार करने के लिए 2009 में गठित खंडेलवाल समिति ने शहरी केंद्रों में अधिकारी-क्लर्क का अनुपात 1:0.50 और अर्ध-शहरी और ग्रामीण केंद्रों में 1:0.75 करने की सिफारिश की थी.

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, “हम इन सिफारिशों का विरोध कर रहे हैं. हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अधिकारियों की संख्या पर्याप्त नहीं है, लेकिन यह क्लर्क के पद से बेहतर है. क्लर्क कर्मचारियों की भारी कमी है.”

बैंकिंग क्षेत्र में भी तबादला नीति का हथियारीकरण देखा गया है.

राणा ने कहा, “पहले वे स्थानीय स्तर पर तबादले करते थे, अब वे केवल डराने के लिए तबादले करते हैं, कर्मचारियों को उत्तर से दक्षिण की ओर भेज रहे हैं. जो भी मानवता थी, वह बैंकों से खत्म हो गई है.”

कई जगहों पर कर्मचारियों की कमी है. अगर किसी का तबादला हो जाता है या वह सेवानिवृत्त हो जाता है, तो उसकी जगह कोई नहीं आता. टारगेट तो पूरा करना है, लेकिन कर्मचारी उपलब्ध नहीं कराए जाते

— अश्वनी राणा, पूर्व कर्मचारी, केनरा बैंक

तब और अब

रामबीर उपाध्याय 2017 में पीएसयू बैंकों में से एक में मुख्य प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने अपनी नौकरी से होने वाली आय से अपने तीन बच्चों की शादी की. उन्होंने कहा कि बैंकर के रूप में उनका सफर काफी संतोषजनक रहा.

उपाध्याय ने कहा, “हमारे समय में टीम स्पिरिट थी. अपमान के लिए कोई जगह नहीं थी. मेरे पास अपने परिवार और दोस्तों के लिए समय था. मैं अपने बच्चों के लिए पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में गया हूं और यहां तक कि छुट्टियों पर भी गया, जिसकी कल्पना करना आज के समय में थोड़ा मुश्किल है.”

2006 से 2013 के बीच, सीनियर मैनेंजमेंट में बड़ी संख्या में लोग सेवानिवृत्त हुए. बैंकों में मौजूदा प्रतिभा पूल उनकी नौकरी संभालने के लिए तैयार नहीं था.

यूनियन बैंक के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक ने कहा, “कई जूनियर मैनेजर बिना एक्सपीरियंस के ही सीनियर मैनेंजमेंट प्रबंधन में प्रमोट हो गए. इसलिए, कुछ हद तक, जब आप दबाव को बहुत सफलतापूर्वक नहीं संभाल सकते, तो आप इसे जूनियर पर डाल देते हैं.”

उपाध्याय बैंकिंग में नौकरी की सलाह नहीं देते हैं.

“मैं मीटिंग में लोगों को अपमानित किए जाने के बारे में वायरल वीडियो और खबरें देखता हूं. वह नौकरी छोड़ रहे हैं. जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. परिवार के साथ समय बिताना महत्वपूर्ण है. मैं कभी भी युवा बच्चों को ऐसी नौकरी करने का सुझाव नहीं देता जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इतना बुरा असर डालती है.”

निजी क्षेत्र की बैंकिंग ने सरकारी बैंकों के व्यवहारिक केंद्र को बदल दिया, जिससे वह नई बाज़ार वास्तविकताओं के करीब आ गए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
निजी क्षेत्र की बैंकिंग ने सरकारी बैंकों के व्यवहारिक केंद्र को बदल दिया, जिससे वह नई बाज़ार वास्तविकताओं के करीब आ गए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

लेकिन कुछ सेवानिवृत्त बैंकरों ने कहा कि बैंकिंग की नौकरी कभी आसान नहीं थी.

66-वर्षीय बृज मोहन 2018 में पंजाब नेशनल बैंक से महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए. अपने तीन दशकों से अधिक के करियर में उन्होंने छोटे शहरों सहित ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में काम किया. उनका बार-बार तबादला होता था, वह देर रात तक काम करते थे, बैंक जाते थे और ग्राहकों को पत्र लिखते थे.

उन्होंने कहा, “उस समय भी यह आसान नहीं था. स्ट्रैस था. हमें ग्राहकों को पत्र लिखने पड़ते थे और कभी-कभी हमें बैंक तक पैदल जाना पड़ता था क्योंकि कोई और रास्ता नहीं था.”

लेकिन मोहन इस बात से सहमत थे कि एचडीएफसी और आईसीआईसीआई जैसे बैंकों के बीच व्यापार के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है.

उन्होंने कहा, “बैंक कर्मचारियों के लिए घर का किराया, कम ब्याज दर वाले लोन और नौकरी की सुरक्षा जैसे भत्ते भी हैं.”

एक अन्य सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंकर ने दिप्रिंट से बात करते हुए स्वीकार किया कि बैंकिंग में हमेशा टारगेट होते हैं, लेकिन कई नई चीज़ों को जोड़ने की ओर इशारा किया.

यूनियन बैंक के एक पूर्व अध्यक्ष ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “टारगेट कल्चर पहले भी मौजूद थे, लेकिन म्यूचुअल फंड या बाकी फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स बेचने जैसी गतिविधियां लगभग 17-18 साल पहले आई थीं. तब से दबाव बढ़ गया है.”

मैं मीटिंग्स में लोगों के अपमानित होने के बारे में ये वायरल वीडियो और खबरें देखता हूं. मैं कभी भी युवा बच्चों को ऐसी नौकरी करने का सुझाव नहीं देता जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इतना बुरा असर डालती है

— रामबीर उपाध्याय, 2017 में एक पीएसयू बैंक से सेवानिवृत्त

इन पुरानी सरकारी संस्थाओं में प्रतिस्पर्धा का कल्चर शामिल करना मैनेजमेंट ने कॉर्पोरेट क्षेत्र से सीखा है.

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से महाप्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त हुए एक अन्य पूर्व बैंकर ने कहा, “यह कहना कि अगर आप अपने आंकड़े के एक्स नंबर को पूरा करते हैं, तो आपको इतना प्रोत्साहन मिलेगा, लोगों को अपने जूनियर पर दबाव डालने को मजबूर करता है.”

ये प्रोत्साहन ज्यादातर थर्ड-पार्टी बीमा बेचने वाले बैंक कर्मचारियों से आते हैं. अगर वह टारगेट पूरा करते हैं, तो उन्हें हर 100 रुपये की बिक्री पर 30 रुपये मिलते हैं. यह बहुत प्रतिस्पर्धी माहौल बनाता है.

नेगी ने कहा, “जो लोग टारगेट पूरा नहीं कर पाते हैं, वो नौकरी करने के बाद भी कमतर महसूस करते हैं.”


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फिर भी बनना चाहते हैं बैंकर

भारत के सरकारी बैंकों में टॉक्सिक वर्क कल्चर को उजागर करने वाली रिपोर्ट्स और लेख और वायरल वीडियो के बावजूद, छात्र बैंकिंग सेक्टर में नौकरियों के लिए इच्छुक दिखते हैं.

कोचिंग सेंटर्स में दाखिले जारी है और हालांकि, कुछ बैंकिंग परीक्षाओं में आवेदकों की संख्या में गिरावट देखी गई है, लेकिन अन्य में यह बढ़त लगातार बनी हुई है.

बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर पदों के लिए आवेदकों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है. 2017-18 में उम्मीदवारों की संख्या 11.27 लाख थी, जो 2022 में घटकर 5.74 लाख हो गई, जो पिछले पांच वर्षों में लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट है. हालांकि, भारतीय स्टेट बैंक के प्रोबेशनरी ऑफिसर पदों के लिए आवेदकों की संख्या स्थिर बनी हुई है, जो पिछले पांच वर्षों में हर साल लगभग 10 लाख है.

Adda247 में जनरल अवेयरनेस एजुकेटर वैभव श्रीवास्तव ने कहा, “छात्रों के लिए सरकारी नौकरी के बहुत सारे विकल्प नहीं हैं. हम अपने यहां दाखिलों में वृद्धि देख रहे हैं और छात्र बैंकिंग नौकरियों में आ रहे हैं. हालांकि छात्र कभी भी केवल एक परीक्षा के लिए आवेदन नहीं करते हैं और अन्य परीक्षाओं की भी तैयारी करते हैं.”

विलय की गई बैंक संस्थाओं में, मूल रूप से बड़े बैंक से संबंधित लोगों को पदोन्नति के मामले में वरीयता दी जाती है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
विलय की गई बैंक संस्थाओं में, मूल रूप से बड़े बैंक से संबंधित लोगों को पदोन्नति के मामले में वरीयता दी जाती है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

22-वर्षीय मोहिनी तीन साल से बैंकिंग में नौकरी की तैयारी कर रही हैं, लेकिन बैंकिंग उनका एकमात्र विकल्प नहीं है; उन्होंने रेलवे, आरबीआई आदि में पदों के लिए भी आवेदन किया है.

मोहिनी ने कहा, “घर पर बैठकर अपने परिवार पर निर्भर रहने की तुलना में नौकरी करना बेहतर है. हर नौकरी में दबाव होता है, यहां तक ​​कि प्राइवेट नौकरी में भी, लेकिन कम से कम नौकरी मिलने के बाद आपको भत्ते और पैसे मिलेंगे.”

धारणा की लड़ाई

सोशल मीडिया और मीम्स दिखाते हैं कि भारतीय सरकारी कर्ज़दाताओं के बारे में क्या सोचते हैं. हीरोपंती फिल्म से अभिनेता टाइगर श्रॉफ का स्क्रीनशॉट एसबीआई के वर्क कल्चर को बताने के लिए इस्तेमाल किया गया है. फिल्म के डायलॉग को बैंक पर मज़ाक करने के लिए बदल दिया गया है. “छोटी बच्ची हो क्या समझ नहीं आता, एसबीआई मतलब लंच.”

लेकिन बैंक उस धारणा की लड़ाई लड़ रहे हैं.

वह ग्राहकों की ज़रूरतों के प्रति धीमी प्रतिक्रिया देने वाली अपनी इमेज से बाहर निकलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. वे नए ज़माने की मशहूर हस्तियों की इमेज का लाभ उठाकर ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं, जिनसे करोड़ों भारतीय जुड़े हुए हैं.

भारतीय स्टेट बैंक के पास धोनी, पंजाब नेशनल बैंक के पास विराट कोहली और बैंक ऑफ बड़ौदा के पास शैफाली वर्मा उनके ब्रांड एंबेसडर हैं.

धोनी ने ऐसे ही एक विज्ञापन में कहा, “एसबीआई बदल रहा है, क्योंकि हम बदलते देश के फैन्स हैं.”

जब ग्राहक अपनी शिकायतों के बारे में सोशल मीडिया पर शिकायत करते हैं, तो बैंक उन शिकायतों का समाधान करके या उनकी शिकायतों को आगे बढ़ाकर जवाब देते हैं.

जुलाई में एक यूज़र ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एटीएम में फंसे कैश के बारे में शिकायत की और इसे एक्स पर पोस्ट किया.

पोस्ट में लिखा था, “नमस्ते @canarabank @syndicatebank @HitachiATM @RBIteam. मैं अपने पैसे वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा हूं, जो असफल निकासी के दौरान एटीएम में फंस गया था. मैं @syndicatebank से अनुरोध करता हूं कि कृपया बैंक के साथ मेरे द्वारा की गई शिकायत पर गौर करें. अधिक जानकारी के लिए थ्रेड देखें.”

कुछ ही मिनटों के भीतर, केनरा बैंक ने ट्वीट का जवाब दिया.

बैंक ने लिखा, “नमस्ते सलमान, हमें हुई असुविधा के लिए खेद है. हम आपसे अनुरोध करेंगे कि आप अपने अकाउंट की डिटेल्स और ब्रांच का IFSC हमें DM (डायरेक्ट मैसेज) के माध्यम से साझा करें ताकि आपकी बेहतर सहायता हो सके. धन्यवाद!”

सोशल मीडिया ने बैंक के काम को और भी आसान बना दिया है. ग्राहक पहले से ज़्यादा जागरूक हैं और अगर उन्हें कोई असुविधा होती है, तो वह अपने फोन का इस्तेमाल करने के लिए तैयार रहते हैं.

नेगी ने कहा, “कुछ दिन पहले एक ग्राहक ने हमारे प्लैटफॉर्म पर ऑनलाइन शिकायत भेजी और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया. अब हमारे एक सहकर्मी मुश्किल में हैं. डिजिटल युग में हमें ग्राहकों के साथ बहुत सावधान रहना पड़ता है.”

हमें हर महीने कर्मचारियों से दबाव और अपमान की शिकायतें मिलती हैं. हमने उन कर्मचारियों के लिए कुछ काउंसलिंग सेशन आयोजित किए हैं जो गंभीर तनाव का सामना कर रहे हैं

— एक प्रमुख पीएसयू बैंक की एचआर टीम के सदस्य


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सहायता यहां है

पिछले साल नवंबर में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने अपने कर्मचारियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य प्रोग्राम शुरू किया था. मेडिटेशन सेशन और फेस-टू-फेस के साथ-साथ वर्चुअल काउंसलिंग भी उपलब्ध कराई गई है.

एक प्रमुख पीएसयू बैंक की एचआर टीम के सदस्य ने कहा, “हमें हर महीने कर्मचारियों से दबाव और अपमान की शिकायतें मिलती हैं. हमने उन कर्मचारियों के लिए कुछ काउंसलिंग सेशन आयोजित किए हैं जो गंभीर तनाव का सामना कर रहे हैं.”

उक्त एचआर ने कहा कि उनकी मध्य दिल्ली शाखा के 20 लोगों में से अधिकांश इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं.

उन्होंने बताया, “अब यह पेशा डिमांड वाला और अधिक टारगेट-आधारित हो गया है, लेकिन अब उद्योग ऐसा ही होता जा रहा है. यह बैंकों पर नहीं बल्कि सरकार पर है. सरकार को इस बारे में कुछ करना चाहिए.”

लेकिन कर्मचारियों ने कहा कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न को उठाने के लिए कोई आंतरिक व्यवस्था नहीं है. नई दिल्ली में काम करने वाले एक पीएसयू बैंक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “वह जानते हैं कि उनके साथ कुछ नहीं हो सकता क्योंकि प्रबंध निदेशक उनकी रक्षा करते हैं. सब कुछ सहने और यह प्रार्थना करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है कि किसी दिन चीज़ें बेहतर हो जाएं.”

33-वर्षीय अमित कुमार यूनियन बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर के पद पर काम करते हैं और अपनी पत्नी, बेटी और माता-पिता के साथ रहते हैं. मार्च में कुमार के पिता को अस्पताल ले जाना पड़ा और डॉक्टर ने वीक डेज़ में अपॉइंटमेंट दिया. वह ऑफिस के काम के बोझ के कारण छुट्टी नहीं ले सके.

डिजिटलीकरण के साथ, नौकरियां आसान हो गई हैं, लेकिन बैंकों में लोगों की संख्या कम हो गई है. बैंक कर्मचारी संघ पिछले कुछ समय से भारतीय बैंक संघ के साथ कर्मचारियों की कमी का मुद्दा उठा रहा है, यहां तक ​​कि हड़ताल भी कर रहा है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
डिजिटलीकरण के साथ, नौकरियां आसान हो गई हैं, लेकिन बैंकों में लोगों की संख्या कम हो गई है. बैंक कर्मचारी संघ पिछले कुछ समय से भारतीय बैंक संघ के साथ कर्मचारियों की कमी का मुद्दा उठा रहा है, यहां तक ​​कि हड़ताल भी कर रहा है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

यहां तक ​​कि जब उनकी सात वर्षीय बेटी चाहती है कि वे रविवार को उसे फिल्म देखने ले जाएं, तो भी कुमार अपना वादा पूरा नहीं कर पाते.

कुमार ने कहा, “मैं उसे फिल्म देखने ले जाना चाहता हूं, पर आज मेरे पास वक्त नहीं है, लेकिन अभी हर बैंक कर्मचारी की यही ज़िंदगी है. यह सबसे कठिन गणना है जिसे हम सही नहीं कर सकते.”

यह रिपोर्ट सरकारी नौकरी सीरीज़ का हिस्सा है जो सरकारी नौकरियों की बदलती प्रकृति पर नज़र रखता है.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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