नई दिल्ली: हाल के हफ्तों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को कई बार संघर्ष करना पड़ा है. सीएम खुद को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए एक विकास समर्थक, अखिल भारतीय नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य लोकप्रिय नेता और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा छोड़े गए अंतर को भरना है. यादव का संघर्ष राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पुराने और नए नेताओं के बीच की खींचतान को उजागर करता है.
शुक्रवार को सागर में आयोजित बुंदेलखंड क्षेत्रीय औद्योगिक सम्मेलन में सीएम यादव के भाषण से पहले मध्य प्रदेश के दो वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह मंच छोड़कर बाहर चले गए क्योंकि मंच पर दोनों नेताओं के लिए उचित जगह नहीं थी.
सोशल मीडिया पर शिवराज सिंह कैबिनेट के दो मंत्रियों की एक कार में बैठकर जाने की तस्वीर वायरल हुई, जिसमें गोपाल भार्गव आगे की सीट पर और भूपेंद्र सिंह पीछे बैठे थे. बुंदेलखंड के इन दोनों नेताओं के बीच पहले भी मतभेद की खबरें आ चुकी हैं.
मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में दोनों नेताओं की अनुपस्थिति का ज़िक्र भी किया.
उनके जाने के बाद मंत्री और सागर से विधायक गोविंद सिंह राजपूत और शैलेंद्र जैन सीएम के साथ देखे गए. राजपूत के पूरे कार्यक्रम के दौरान सीएम के साथ बीच में बैठे रहने से भी भार्गव और सिंह नाराज़ हुए.
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भाजपा मंत्री के बयान पर गुस्सा
एक अन्य घटना में शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने मध्य प्रदेश के स्कूलों में गेस्ट टीचर्स को रेगुलर करने के अपने बयान से बवाल मचा दिया.
2023 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले, मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान ने 68,000 गेस्ट टीचर्स की महापंचायत के दौरान अतिथि शिक्षकों को रेगुलर करने और उनका वेतन दोगुना करने का वादा किया था. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ और गेस्ट टीचर्स 10 सितंबर से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
18 सितंबर को प्रदर्शनकारी शिक्षकों और विपक्ष द्वारा आलोचना किए गए एक बयान में उदय प्रताप ने कहा, “उन्हें रेगुलर क्यों किया जाए? अतिथि शिक्षकों को अतिथि नाम दिया गया है. अगर आप अतिथि हैं, तो आप घर पर कब्ज़ा नहीं कर सकते.”
अब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने रविवार को गेस्ट टीचर्स को आश्वासन दिया कि वह सरकार पर उनकी मांगों को पूरा करने के लिए दबाव डालेंगे. इस घटना ने पिछली सरकार द्वारा किए गए वादों को पूरा करने पर मतभेदों को उजागर किया.
भाजपा नेताओं में मतभेद बढ़े
भाजपा में अंदरूनी कलह के एक और मामले में पार्टी के चार नेताओं ने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता वीरेंद्र खटीक पर कांग्रेस के पूर्व उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह को उनके टीकमगढ़ लोकसभा क्षेत्र का सांसद प्रतिनिधि नियुक्त करने पर हमला बोला.
पूर्व मंत्री मानवेंद्र भंवर सिंह ने पिछले सप्ताह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “इस कांग्रेसी ने भाजपा विधायकों के काम में बाधा उत्पन्न की है और हमने केंद्रीय मंत्री के कार्य करने की शिकायत की है.”
उनके बयान का भाजपा विधायक ललिता यादव ने समर्थन किया और आरोप लगाया कि “केंद्रीय मंत्रियों को ऐसे व्यक्ति को कांग्रेस का पोलिंग एजेंट नहीं बनाना चाहिए, जिसने चुनाव में काम किया हो. हर विधायक को वीरेंद्र कुमार से परेशानी हो रही है.”
पूर्व विधायक राहुल लोधी और राकेश गिरी ने भी एक बयान में मानवेंद्र सिंह के आरोपों का समर्थन किया.
इसके जवाब में खटीक ने कहा, “मैंने कुछ लोगों के अवैध काम को रोका है और इसलिए वह इस तरह के आरोप लगा रहे हैं. अगर बाहर से आए लोग इस तरह के आरोप लगाने लगे तो हमें अपने कार्यकर्ताओं के अपराधी होने के प्रमाण पत्र की ज़रूरत नहीं है. कार्रवाई करना प्रशासन का काम है. अगर ऐसी शिकायतें प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचती हैं तो यह अच्छी बात है.”
सूत्रों ने बताया कि विवाद मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचने के बाद प्रदेश पार्टी अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने ललिता यादव और अन्य नेताओं को फोन कर सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर हमला न करने को कहा.
राकेश गिरी ने दिप्रिंट से कहा, “मैं विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार था और मेरे खिलाफ लड़ने वाले व्यक्ति को केंद्रीय मंत्री ने सांसद प्रतिनिधि नियुक्त किया था, इसलिए हमने यह मुद्दा उठाया.”
एक अन्य मौखिक विवाद में रीवा के सांसद और भाजपा नेता जनार्दन मिश्रा ने 15 सितंबर को भाजपा विधायक सिद्धार्थ तिवारी के दादा श्रीनिवास तिवारी की आलोचना की, जो कांग्रेस के प्रमुख ब्राह्मण नेता हैं.
15 सितंबर को रीवा में एक पुल के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने कहा, “श्रीनिवास तिवारी के समय सड़क की हालत बहुत दयनीय हुआ करती थी. अपने कार्यकाल में उन्होंने एक गड्ढा भी नहीं ठीक किया, जबकि राज्य में उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाता है. तिवारी आतंक, भय, लूट, गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार की राजनीति करते थे.”
तिवारी के पोते ने इस पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, “मेरे दादा श्रीनिवास तिवारी जिन्होंने लोगों की सेवा के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया, उन पर टिप्पणी करना उचित नहीं है, उन्हें अपने काम के लिए किसी से प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है.”
सिद्धार्थ ने दिप्रिंट से कहा, “मैंने केवल यह मुद्दा उठाया है कि लोग मेरे दादा श्रीनिवास तिवारी के बारे में क्या सोचते हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में हमेशा लोगों की सेवा की और यही कारण है कि लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं.”
सिद्धार्थ 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हुए. वे 2019 में रीवा में जनार्दन मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार थे. हालांकि मिश्रा ने सिद्धार्थ को हराया, लेकिन बाद में भाजपा के टिकट पर विधायक बनने के बाद विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण नेतृत्व के वर्चस्व को बनाए रखने की लड़ाई में दोनों नेताओं के बीच जुबानी जंग हुई.
नए और पुराने कार्यकर्ताओं में सामंजस्य की कमी
पूर्व भाजपा नेताओं और राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने पार्टी सदस्यों और नए शामिल होने वालों के बीच सामंजस्य की कमी से मतभेद पैदा हुए हैं.
मध्य प्रदेश में भाजपा के एक पूर्व मंत्री ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “पार्टी की राज्य इकाई में अंदरूनी कलह के बढ़ते मामलों के कई कारण हैं. पहला कारण यह है कि 10 महीने की सरकार के बावजूद मोहन यादव ने राज्य में बोर्ड और निगमों में नियुक्तियां नहीं की हैं.”
उन्होंने कहा, “कई नेता जिन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया या जिन्हें टिकट नहीं दिया गया और जो चुनाव से पहले कांग्रेस से शामिल हुए, वे सत्ता में अपनी हिस्सेदारी का इंतज़ार कर रहे हैं. नरोत्तम मिश्रा जो नई जॉइनिंग कमेटी के अध्यक्ष थे, उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले 2.58 लाख लोगों को भाजपा में शामिल किया. लगभग 90 प्रतिशत कांग्रेस से थे, अब उन्हें बोर्ड और अध्यक्ष के रूप में शामिल किया जाएगा. जो लोग मूल कैडर से हैं, वे ठगा हुआ महसूस करते हैं और उनका मोहभंग हो गया है.”
इसके अलावा, कैबिनेट में गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, बृजेंद्र यादव और उषा ठाकुर जैसे शिवराज सिंह चौहान के 10 मंत्रियों को मौका नहीं मिला — वह खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं.
पूर्व मंत्री अजय बिश्नोई ने कहा, “लोकसभा चुनाव के दौरान, बिना उनकी साख की जांच किए ही बहुत सारे नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया गया. अब पुराने कैडर को लगता है कि उनकी कीमत पर नए लोगों को प्रमुखता मिल रही है और इससे कैडर में नाराज़गी पैदा हो रही है.”
“कई मामलों में नेताओं को आयात करने से भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ. उदाहरण के लिए जबलपुर में भाजपा ने कांग्रेस से एकता ठाकुर को शामिल किया और सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को 5,000 कम वोट मिले. इसी तरह भाजपा ने पाटन में कांग्रेस से निकेश अवस्थी को शामिल किया, लेकिन लोकसभा में भाजपा के वोट 2,000 कम हो गए. इसका मतलब है कि कांग्रेस से नेताओं को आयात करने से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि कैडर और नाराज हो गया.”
राजनीतिक विश्लेषक एन.के. सिंह ने कहा, “असली मुद्दा यह है कि मूल कैडर को लग रहा है कि नए कैडर की कीमत पर उसे नज़रअंदाज किया जा रहा है.”
उन्होंने कहा, “यह 2020 में (ज्योतिरादित्य) सिंधिया के शामिल होने के बाद शुरू हुआ. दीपक जोशी, रुस्तम सिंह, वीरेंद्र रघुवंशी और भंवर शेखावत जैसे कई नेताओं ने इसी वजह से पार्टी छोड़ दी. कांग्रेस से नेताओं को शामिल करने से भाजपा को भले ही अस्थायी चुनावी लाभ मिला हो, लेकिन लंबे समय में कैडर में गुस्सा बढ़ रहा है, जो उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों की तरह उल्टा पड़ सकता है. ये प्रतिबिंब बताते हैं कि पुराने कैडर नए आयात के उदय को पचा नहीं पा रहे हैं. रीवा में सांसद जनार्दन मिश्रा का श्रीनिवास तिवारी के बेटे के खिलाफ गुस्सा दोनों के बीच बढ़ते संघर्ष का प्रतिबिंब था.”
भाजपा के एक अन्य पूर्व मंत्री ने कहा, “शिवराज ने अपने कार्यकाल के लंबे समय में पार्टी नेताओं के बीच सम्मान हासिल किया है. वे किसी भी नेता को फोन करते थे जो नाराज़ होता था या यहां तक कि किसी असंतुष्ट नेता को मनाने के लिए उसके घर भी पहुंच जाते थे. यादव को उनसे सीखना होगा कि कैसे पुराने और नए पार्टी नेताओं को एक साथ लाया जाए और दोनों के बीच संतुलन बनाया जाए और कैसे प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित किया जाए.”
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