नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) भारत में दृष्टि संबंधी विकार ‘यूआरई’ की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए जन जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ ऑप्टोमेट्री (नेत्र संबंधी) शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत करने की आवश्यकता है। एक नयी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, यूआरआई की स्थिति में आंख के असामान्य आकार या लंबाई के कारण प्रकाश रेटिना पर केन्द्रित नहीं हो पाता, जिसके परिणामस्वरूप दृष्टि धुंधली हो जाती है। मायोपिया (निकट दृष्टिदोष), हाइपरोपिया (दूर दृष्टिदोष) और दृष्टिवैषम्य यूआरआई विकार के अंतर्गत आते हैं।
गैर सरकारी संगठन इंडिया विजन इंस्टीट्यूट (आईवीआई) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘भारत में यूआरआई को संबोधित करना’ में विशेष रूप से 100,000 अतिरिक्त ऑप्टोमेट्रिस्ट (नेत्रदृष्टि की जांच करने वाला वाला व्यक्ति) और तकनीशियन के साथ वंचित ग्रामीण क्षेत्रों में नेत्र देखभाल पेशेवरों की कमी से निपटने का आह्वान किया गया।
रिपोर्ट के सह-लेखक आईवीआई के सीईओ विनोद डेनियल और आईवीआई सलाहकार समिति के अध्यक्ष रामचंद्रन पी हैं। डेनियल ने कहा कि यूआरई भारत में दृष्टि दोष का प्रमुख कारण बना हुआ है, जो 59 प्रतिशत वयस्कों और 7.5 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करता है। 20 करोड़ से अधिक लोगों के पास उपयुक्त चश्मे तक पहुंच नहीं है, जिसके परिणाम स्वरूप भारत में सालाना एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होता है।
रिपोर्ट में भारत में यूआरआई से निपटने के लिए व्यापक उपायों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिसमें जन जागरूकता बढ़ाने, ऑप्टोमेट्री शिक्षा में सुधार लाने और चुनौती से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने की बात कही गई है।
भाषा आशीष माधव
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