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Wednesday, 18 December, 2024
होममत-विमतएक तमिल महिला का शरीर, परंपरा और प्रौद्योगिकी: चेन्नई की कलाकार ने कोलम और संस्कृति की नई कल्पना की

एक तमिल महिला का शरीर, परंपरा और प्रौद्योगिकी: चेन्नई की कलाकार ने कोलम और संस्कृति की नई कल्पना की

डिजिटल कलाकार संयुक्ता मधु ने सफेद कोलम डिज़ाइन को एक तमिल महिला की गहरे रंग की छाती पर और एक नग्न महिला आकृति की पीठ पर अंकित किया.

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चेन्नई: चावल के पाउडर से घरों के बाहर शुभ फर्श डिज़ाइन बनाने की एक परंपरागत तमिल परंपरा का अब चेन्नई की एक युवा कलाकार द्वारा एक साहसिक नारीवादी बयान देने के लिए उपयोग किया गया है.

तमिलनाडु में इस डिज़ाइन को कोलम के नाम से जाना जाता है. इसे लक्ष्मी को आमंत्रित करने के लिए भोर के समय घरों की दहलीज पर बनाया जाता है. बर्लिन स्थित डिजिटल कलाकार संयुक्ता मधु के लिए, दहलीज की अवधारणा महिलाओं के लिए गहन राजनीतिक अर्थ रखती है.

रामायण की सीता से लेकर आधुनिक भारत की महिलाओं तक, घर को सुरक्षित स्थान माना जाता है. घर की दहलीज के बाहर खतरा होता है.

Kolam art is drawn at the threshold of a house, which is a deeply political boundary for women | Photo: Rama Lakshmi, ThePrint
चेन्नई में जन्मी सीजीआई कलाकार संयुक्ता मधु ने एक तमिल महिला की काली छाती पर सफेद कोलम डिज़ाइन उकेरा | फोटो: रमा लक्ष्मी, दिप्रिंट

‘महिला का शरीर मेरा कैनवास है’

मधु ने सफेद कोलम डिज़ाइन को लेकर इसे एक गहरे रंग की त्वचा वाली तमिल महिला की छाती और एक नग्न महिला की पीठ पर अंकित कर दिया. फिर उन्होंने इन प्रतिमाओं को विशाल एलईडी स्क्रीन पर प्रदर्शित किया.

“मैं तमिलनाडु में घरों और मंदिरों के बाहर कोलम देखते हुए बड़ी हुई हूं. यह एक सीमा क्षेत्र को चिह्नित करता है जो एक सुरक्षित स्थान को दर्शाता है,” मधु ने चेन्नई में ‘रीइनकार्नेशंस – घोस्ट्स ऑफ ए साउथ एशियन पास्ट’ नामक एक नई प्रदर्शनी के उद्घाटन पर कहा. “इसलिए, मैंने एक महिला के शरीर पर कोलम लगाया. महिला शरीर मेरा कैनवस है. महिलाओं के लिए, ये दहलीजें सुरक्षित और सीमित, सुरक्षा और बोझ हो सकती हैं.”

इसके साथ, वह महिला शरीर और राजनीतिक शरीर (बॉडी पॉलिटिक) को एक साथ लाती हैं.

परंपरा का उल्लंघन और उसका उत्सव

संयुक्ता मधु की कला परंपरा का उल्लंघन करती है और साथ ही उसका उत्सव भी मनाती है – एक ऐसा कठिन कार्य जो वह अपनी दोहरी पहचानों के बीच संतुलन बना कर करती हैं. 29 वर्षीय सीजीआई कलाकार मधु अपना समय चेन्नई (जहाँ वह पैदा हुईं और पली-बढ़ीं) और बर्लिन (जहाँ वह अब काम करती हैं) के बीच बाँटती हैं. बर्लिन और पेरिस में प्रदर्शनों के बाद, यह मधु का भारत में पहला एकल शो है. उन्होंने कहा कि इस प्रदर्शनी में कार्यों का संग्रह “उनके दो ‘स्व’ के बीच एक संपर्क-सूत्र है.”

प्रदर्शनी में उनकी सात उत्कृष्ट कलाकृतियों का संग्रह प्रदर्शित किया गया है – कैनवास पर और 12-फुट डिजिटल स्क्रीन इंस्टॉलेशन पर. इनमें से प्रत्येक में, मधु एक तमिल महिला के शरीर पर परंपरा और तकनीक का त्रिकोण बनाती हैं. उनका प्रारंभिक बिंदु भारत और श्रीलंका की गहरे रंग की त्वचा वाली तमिल महिलाओं की धुंधली, औपनिवेशिक युग की काले और सफेद फोटोग्राफ थी. उन्होंने डिजिटल तकनीक और सीजीआई पात्रों का उपयोग किया – जिन्हें 3डी प्रोग्राम में मॉडल किया गया था – ताकि उनके गहनों, चेहरे के भावों और कपड़ों को बदलकर उन्हें निडर स्त्रीत्व के शक्तिशाली प्रतीक में बदला जा सके.

The artist's starting point were black-and-white photographs of dark-skinned Tamil women
कलाकार की शुरुआत काली चमड़ी वाली तमिल महिलाओं की ब्लैक-एंड-व्हाइट तस्वीरों से हुई थी | फोटो: रमा लक्ष्मी, दिप्रिंट

एक कलाकृति में, उन्होंने एक महिला के शरीर को ऐसे गहनों से सजाया जिनमें नुकीले उभार थे. उन्होंने इसका शीर्षक ‘द वॉरियर’ रखा.

The Warrior by Samyukta Madhu
योद्धा, द्वारा- संयुक्ता मधु | फोटो: रमा लक्ष्मी, दिप्रिंट

“मैंने उसके गहनों को कवच और हथियारों में बदल दिया है,” मधु ने कहा. चेन्नई के द कॉलेज के आंगन में आयोजित प्रदर्शनी में ज्यादातर महिलाएं शामिल हुईं. और आश्चर्यजनक प्रतिमाओं ने उनकी सेल्फी और रील्स के लिए एक उपयुक्त पृष्ठभूमि प्रदान की.

कई लोगों ने कहा कि उन्हें परिचित तमिल डिज़ाइन दिखाई दिए, लेकिन कलाकार द्वारा परंपरा के पुनरावलोकन पर वे चकित थे.

“वह परंपरा को ले रही है और इसे एक डिजिटल भविष्य पर प्रक्षिप्त कर रही है. अतीत और भविष्य सुंदर हैं. समस्या वर्तमान में है, हमारे वर्तमान में,” कलाकार और आभूषण डिज़ाइनर भाग्य शिवरामन ने कहा. “वह अपनी कला के साथ समय-यात्रा कर रही है.”

कोलम की तरह ही, मधु ने ‘द प्रीस्ट’ नामक एक कलाकृति में महिला के शरीर पर धातु के तमिल अक्षर भी अंकित किए हैं.

CGI artist Madhu with her artwork The Priest
मधु अपनी कलाकृति द प्रीस्ट के साथ | फोटो: रमा लक्ष्मी, दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “उसकी त्वचा से तमिल अक्षर निकल रहे हैं. वह पूजा कर रही है और श्लोक उसके शरीर से निकल रहे हैं. मैं साइंस फिक्शन के पात्रों से प्रेरित हूं.”

“उसकी त्वचा से ये तमिल अक्षर निकल रहे हैं. वह पूजा कर रही है और श्लोक उसके शरीर से निकल रहे हैं,” उन्होंने कहा. “मैं विज्ञान कथा साहित्य के पात्रों से प्रेरित हूं.”

गहरे रंग की त्वचा के उत्सव के माध्यम से, उन्होंने कहा कि वह भारतीय सौंदर्य मानकों में निहित गहरे रंगभेद को उलटना चाहती हैं. वह पूछती हैं कि अगर उपनिवेशवाद नहीं हुआ होता, तो क्या रंग को लेकर यह जटिलता इतने लंबे समय तक बनी रहती. उनका कहना है कि उनका काम एक साथ नारीवादी और उपनिवेशवाद विरोधी है.

“ये तस्वीरें सभी पुरुष ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा खींची गई थीं. वे इन महिलाओं को निष्क्रिय उपनिवेशिक प्रजा के रूप में देख रहे थे. मैं उन्हें मुख्य पात्रों के रूप में फिर से व्याख्या करना चाहती थी और उन्हें इस तरह विशाल स्क्रीन पर प्रक्षिप्त करना चाहती थी कि हम उनकी ओर देखें. मैं चाहती थी कि वे शक्ति और अधिकार को प्रदर्शित करें,” उन्होंने कहा.

(इस लेख को अंंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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