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Saturday, 23 November, 2024
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यूपी में 10 सीट पर उपचुनाव से पहले ‘बांग्लादेश के हिंदू खतरे में हैं’ बना भाजपा का नया चुनावी मुद्दा

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा की करारी हार के बाद योगी की ट्रेडमार्क हिंदुत्व की बयानबाजी लौट आई है. वे सपा की जातिवादी राजनीति का मुकाबला करने के लिए बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठा रहे हैं.

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नई दिल्ली: पांच साल पहले ऐसा लग रहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उग्र बयानबाजी के दिन अब बीते दिनों की बात हो गए हैं. 2019 के आम चुनाव के बाद, भगवाधारी योगी आदित्यनाथ ने अपनी कट्टर हिंदुत्व की छवि को ताक पर रख दिया और खुद को देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में विकास के चैंपियन के रूप में पेश किया.

2022 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने खुद को हिंदुत्व की साख वाले उत्तर प्रदेश के विकास पुरुष के रूप में बेचना शुरू किया, जो अगले पांच सालों में राज्य की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा.

लेकिन इस साल के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की करारी हार के बाद, 52-वर्षीय साधु-राजनेता की ट्रेडमार्क हिंदुत्व की बयानबाजी फिर से शुरू हो गई है.

उत्तर प्रदेश में 10 महत्वपूर्ण विधानसभा उपचुनावों की तैयारियां चल रही हैं, योगी आदित्यनाथ मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले का मुद्दा उठा रहे हैं, ताकि खोई हुई साख वापस मिल सके और समाजवादी पार्टी की जातिवादी राजनीति का मुकाबला करने के लिए हिंदुत्व की भावनाओं को मजबूत किया जा सके.

राम मंदिर मुद्दे के कमजोर पड़ने और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के राज्य में राजनीतिक बढ़त हासिल करने के साथ, भाजपा और संबद्ध हिंदुत्व संगठन पूरे राज्य में चुनाव वाले क्षेत्रों में बांग्लादेश मुद्दे पर विरोध रैलियां और मार्च निकाल रहे हैं.

आदित्यनाथ ने 26 अगस्त को आगरा में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, “क्या आप देख रहे हैं कि बांग्लादेश में क्या हो रहा है? वे गलतियां यहां नहीं होनी चाहिए. बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे.”

मथुरा में एक अन्य कार्यक्रम में उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर चुप रहने और अपने वोट बैंक के बारे में अधिक चिंतित होने के लिए विपक्ष की आलोचना की. योगी आदित्यनाथ ने कृष्ण जन्मोत्सव समारोह में कहा, “जो लोग दुनिया के हर मुद्दे पर मुखर हैं, उनका मुंह बांग्लादेश पर बंद है, क्योंकि उनका वोट बैंक खत्म हो जाएगा.”

उन्होंने कहा, “ये लोग फिलिस्तीन तो देखते हैं, लेकिन बांग्लादेश नहीं. बांग्लादेश में मंदिर तोड़े गए और हिंदुओं की हत्या की गई…लेकिन ये दल हिंदुओं के मुद्दे पर नहीं बोलेंगे. ये लोग अपने चुनावी फायदे के लिए समाज को बांटना चाहते हैं. हमारे लिए देश पहली प्राथमिकता है.”

मथुरा में उनकी टिप्पणी 7 अगस्त को अयोध्या में उनके बयान की याद दिलाती है, जब शेख हसीना के देश छोड़कर भाग जाने के बाद बांग्लादेश में हिंसा बढ़ गई थी. उन्होंने कहा था, “भारत का पड़ोस जल रहा है, मंदिर तोड़े जा रहे हैं, हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है. अतीत की गलतियों से सीख लेने और सनातन धर्म पर आए संकट के खिलाफ एकजुट होने की ज़रूरत है.”

अयोध्या जाने के तीन दिन बाद मिल्कीपुर निर्वाचन क्षेत्र के दौरे पर उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में बचे 90 फीसदी हिंदू दलित समुदाय से हैं.

उन्होंने कहा, “जिनके मुंह सिले हुए हैं, वो जानते हैं कि उनका वोट बैंक नहीं है, लेकिन वे हिंदू हैं. हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम उनके दुख में साथ दें.”

उन्होंने कहा, “बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पक्ष या विपक्ष का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मानवता का मुद्दा है और मानवता की रक्षा के लिए आवाज उठाना हमारी जिम्मेदारी है. हम जीवन भर इस जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे.”

शेख हसीना के देश छोड़कर चले जाने के बाद से ही सोशल मीडिया पर हिंदुओं पर हमलों की खबरें भरी पड़ी हैं, लेकिन बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने कहा कि अल्पसंख्यकों पर हमलों की खबरें “बढ़ा-चढ़ाकर” पेश की गई हैं और उन्होंने भारत को आश्वासन दिया कि वह बांग्लादेश में हिंदुओं और सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं.


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ध्रुवीकरण की राजनीति

मुख्यमंत्री का ध्रुवीकरण की राजनीति पर वापस लौटने का फैसला हैरान नहीं करता.

अजय मोहन बिष्ट यानी योगी आदित्यनाथ हमेशा से एक उग्र हिंदुत्व नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं, जिनकी अतीत में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने और “लव जिहाद”, “तीन तलाक” और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के उनके कड़े रुख के लिए आलोचना की गई है.

हालांकि, 2017 से मुख्यमंत्री रहे इस जोशीले वक्ता के गोरखपुर में काफी प्रशंसक हैं, जहां कुछ लोग उन्हें हिंदू भगवान का अवतार मानते हैं.

इसलिए, विधानसभा उपचुनावों से पहले हिंदुत्व की राजनीति की वापसी अप्रत्याशित नहीं है.

आगामी उपचुनाव भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा है, क्योंकि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें 62 से घटकर इस साल 33 रह गई हैं. दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी राज्य की 80 सीटों में से 37 सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.

हालांकि, चुनाव आयोग ने अभी उपचुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं की है, लेकिन भाजपा के साथ-साथ विपक्षी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने भी उच्च-दांव वाले उपचुनावों की तैयारी शुरू कर दी है.

भाजपा के लिए उपचुनावों में जीत पार्टी के आत्मविश्वास को बहाल करेगी और 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले उसका मनोबल बढ़ाएगी और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस के लिए, उपचुनावों में सफलता लोकसभा की जीत की गति को बनाए रखेगी.

करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, फूलपुर, मझवां और सीसामऊ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. अखिलेश यादव समेत नौ विधानसभा सदस्यों के लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद ये सीटें खाली हुई थीं. समाजवादी पार्टी के एक विधायक को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

योगी आदित्यनाथ इन 10 सीटों पर उपचुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, उनकी नज़र कुछ ऐसे प्रमुख क्षेत्रों पर है जहां भाजपा संसदीय चुनाव में विपक्ष से हार गई थी. वे अयोध्या जिले के मिल्कीपुर में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी खुद संभाल रहे हैं, क्योंकि सुरक्षित सीट मानी जाने वाली अयोध्या में भाजपा की अप्रत्याशित लोकसभा हार को योगी आदित्यनाथ के लिए व्यक्तिगत नुकसान के रूप में देखा गया था. समाजवादी पार्टी के विधायक अवधेश प्रसाद ने 10 साल से सीट पर काबिज भाजपा के मौजूदा सांसद को हराकर जीत हासिल की.

​​अयोध्या के अलावा योगी आदित्यनाथ आंबेडकर नगर के कटेहरी पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां समाजवादी पार्टी के विधायक ने भाजपा उम्मीदवार को हराया था.


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हिंदू भावनाओं को एकजुट करना

बीजेपी और योगी आदित्यनाथ दोनों ही उपचुनावों में कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं.

जीत के लिए बेताब बीजेपी बांग्लादेश मुद्दे को उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.

बीते कुछ हफ्तों में बीजेपी और उसके सहयोगी हिंदूवादी संगठनों ने गाजियाबाद से लेकर अयोध्या और आंबेडकर नगर तक चुनावी इलाकों में इस मुद्दे पर कई विरोध मार्च निकाले हैं. इन रैलियों में बांग्लादेश मुद्दे को उठाया गया, ताकि लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक के संविधान परिवर्तन की बहस के कारण बिखर चुके हिंदूवादी मूल मतदाताओं को एकजुट किया जा सके.

14 अगस्त को अंबेडकर नगर में एक विरोध मार्च निकाला गया, जहां कटेहरी विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होना है और बांग्लादेश के हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए उप-विभागीय मजिस्ट्रेट को एक ज्ञापन सौंपा गया.

16 अगस्त को बीजेपी के गाजियाबाद जिला अध्यक्ष वेद पाल उपाध्याय ने वीएचपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ गाजियाबाद जिले में विरोध मार्च निकाला, जहां उपचुनाव होने हैं.

हिंदू धार्मिक नेता स्वामी ओम प्रपन्नाचार्य ने 28 अगस्त को बलरामपुर जिले में भाजपा, आरएसएस, विहिप और हिंदू रक्षा समिति द्वारा आयोजित बांग्लादेश पर जन आक्रोश रैली में कहा, “जब पूरा देश जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण की पूजा कर रहा था, तब बांग्लादेश में भगवान नारायण की मूर्ति को नष्ट कर दिया गया, आभूषण लूट लिए गए और पुजारी को प्रताड़ित किया गया. इस देश के हिंदू हिंदुओं के खिलाफ इन अत्याचारों को बर्दाश्त नहीं करेंगे और उन्हें एकजुट होना चाहिए.”

भाजपा का कहना है कि उसकी रणनीति बांग्लादेश मुद्दे का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश में हिंदू समुदाय को एकजुट करने के लिए करना है, जहां पार्टी हिंदू वोटों के विभाजन और विपक्ष के जाति-आधारित सामाजिक न्याय के वादे के कारण हार गई थी.

बलरामपुर में भाजपा के जिला अध्यक्ष प्रदीप सिंह ने कहा कि पार्टी बांग्लादेश के हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों का मुद्दा उठा रही है ताकि हिंदुओं को याद दिलाया जा सके कि विखंडन ने हिंदुओं की ताकत को कमजोर कर दिया है.

सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “और अगर वे जाति के आधार पर विभाजित होंगे, तो उन्हें बांग्लादेश में पीड़ित हिंदुओं की तरह पीड़ा होगी. हमें एकजुट होना होगा.”

उत्तर प्रदेश में भाजपा के उपाध्यक्ष पदमसेन चौधरी ने भी यही भावना दोहराई.

चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, “हम बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं और यह भी कि कैसे कुछ ताकतें हिंदुओं को नष्ट करना चाहती हैं. एकजुट रहने का समय आ गया है. हमें उम्मीद है कि लोकसभा में बचे हुए कुछ लोग अब हिंदू पहचान पर फिर से एकजुट होंगे.”

हिंदुत्व की राजनीति का फिर से उभरना अप्रत्याशित नहीं है. यह पार्टी की मूल विचारधारा है और पिछले चुनावों में इसने अच्छा काम किया है.

उपचुनावों के प्रभारी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपा उपाध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा, “हमारी सफलता का सूत्र हिंदुत्व पहचान की राजनीति के साथ विकास है. इसलिए हम किसी ऐसे दूसरे सूत्र पर नहीं जा सकते, जिसका परीक्षण न हुआ हो.”

“इसलिए हम बांग्लादेश मुद्दे के ज़रिए हिंदुओं को जागृत कर रहे हैं, ताकि लोकसभा चुनाव के बाद खोई हुई साख वापस पा सकें और समाजवादी पार्टी की जाति की राजनीति से लड़ सकें.”

अखिलेश यादव का नारा पीडीए — पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक — उत्तर प्रदेश में हाशिए पर पड़े दलित और ओबीसी समुदायों के बीच गूंज रहा है, जो संसद में सबसे अधिक सांसद भेजता है. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशिकांत पांडे ने कहा कि भाजपा जातिगत दरारों से लड़ने के लिए हिंदुत्व पहचान के मुद्दे को उठाकर खोई हुई ज़मीन हासिल करना चाहती है.

पांडे ने दिप्रिंट से कहा, “आरएसएस और भाजपा ने हिंदुत्व को आत्मसात करने की परियोजना के लिए वर्षों से काम किया है. अब समाजवादी पार्टी ने अपनी सामाजिक न्याय की राजनीति के जरिए चुनौती पेश की है. भाजपा उसी रणनीति के जरिए मंडल पार्टियों से लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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