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Monday, 25 November, 2024
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हरियाणा चुनाव से ठीक पहले राम रहीम फिर जेल से बाहर, बलात्कार के दोषी को अब तक मिली 235 दिन की आज़ादी

21 दिनों के लिए बाहर रहने के बाद राम रहीम फरलो की पूरी अवधि के लिए यूपी के बागपत के बरनवारा गांव में डेरा आश्रम में रहेगा. 2017 के बाद से यह छठी बार है जब उसे पैरोल/फरलो दी गई है.

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गुरुग्राम: हरियाणा में विधानसभा चुनाव से बमुश्किल दो महीने पहले बलात्कार के दोषी और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर फरलो पर बाहर है और इस बार 21 दिनों के लिए. उसे मंगलवार सुबह रोहतक की सुनारिया जेल से रिहा किया गया और तब से वे उत्तर प्रदेश के बागपत के बरनवारा गांव में संप्रदाय के आश्रम में है.

2017 में पहली बार दोषी ठहराए जाने के बाद से डेरा प्रमुख को पैरोल या फरलो दिए जाने का यह 10वां मामला है और हरियाणा, पंजाब या राजस्थान में चुनाव से पहले छठा मामला है, जहां उसके समर्थक बड़ी संख्या में है. वे 235 दिनों से जेल से बाहर है.

25 अगस्त, 2017 से राम रहीम दो महिला अनुयायियों के बलात्कार के लिए 20 साल की जेल की सज़ा काट रहा है. इसके अलावा, उसे दो आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई: एक जनवरी 2019 में पत्रकार राम चंद्र छत्रपति की हत्या में और दूसरी अक्टूबर 2021 में पूर्व डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या में.

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस साल मई में दूसरे मामले में उसे बरी कर दिया.

Infographic: Shruti Naithani | ThePrint
इन्फोग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए मारे गए पत्रकार राम चंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि परिवार इस महीने की शुरुआत में राज्य सरकार को डेरा प्रमुख को पैरोल या फरलो देने का विवेकाधिकार देने के हाई कोर्ट के फैसले से निराश है.

उन्होंने पूछा, “क्या यह विडंबना नहीं है कि हरियाणा सरकार एक ऐसे व्यक्ति को पैरोल के लिए अच्छे आचरण का प्रमाण पत्र दे रही है जो 2017 में दोषी ठहराए जाने पर 36 लोगों की मौत और हिंसा में करोड़ों की सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार था?”

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए हरियाणा के जेल मंत्री रंजीत सिंह चौटाला से संपर्क किया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

इस साल 9 अगस्त को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने डेरा प्रमुख की अस्थायी रिहाई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य सरकार को बिना किसी “मनमानी या पक्षपात” के अनुरोध पर विचार करना चाहिए. नतीजतन, हरियाणा की भाजपा सरकार ने इस शर्त पर फरलो की अनुमति दी कि फरलो की पूरी अवधि के दौरान राम रहीम बरनावा में डेरा आश्रम में रहेगा.


यह भी पढ़ें: फिर से पैरोल पर बाहर बलात्कारी-हत्यारे गुरमीत राम रहीम पर इतनी मेहरबान क्यों है हरियाणा की BJP सरकार


पैरोल/फरलो पर क्या कहता है कानून

हरियाणा सरकार ने इस साल मार्च में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हाई कोर्ट द्वारा इस संबंध में जारी निर्देश के तहत राम रहीम को पैरोल देने से इनकार कर दिया था.

तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और न्यायमूर्ति लपिता बनर्जी की पीठ ने निर्देश जारी किया था, लेकिन मुख्य न्यायाधीश शील नागू और अनिल क्षेत्रपाल की एक अन्य पीठ ने 9 अगस्त को स्पष्ट किया कि सरकार हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिजनर्स (टेम्पररी रिलीज) एक्ट, 2022 के तहत फैसला लेने में सक्षम है.

हरियाणा सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से तीन दिन पहले 19 जनवरी को राम रहीम को 50 दिन की पैरोल भी दी थी. रिहाई के तुरंत बाद, उसने एक वीडियो बयान जारी कर अपने अनुयायियों से दिवाली की तरह “राम जी का त्योहार” मनाने के लिए कहा.

अंशुल छत्रपति ने पूछा, “जब राज्य सरकार शुरू से ही राम रहीम के साथ मिली हुई है और यह सभी के लिए बिल्कुल स्पष्ट है, तो ऐसी सरकार पर विवेकाधिकार कैसे छोड़ा जा सकता है?”

उन्होंने आरोप लगाया कि हरियाणा में भाजपा सरकार ने डेरा प्रमुख को खुश करने के लिए हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिजनर्स (टेम्पररी रिलीज) एक्ट, 2022 लाया, क्योंकि वह पहले के पैरोल कानूनों के तहत पात्र नहीं था.

हालांकि, इस साल जनवरी में राम रहीम की अस्थायी रिहाई के बाद दिप्रिंट से बात करते हुए जेल मंत्री ने ऐसी चिंताओं को कम करके आंका था.

रणजीत सिंह चौटाला ने कहा था, “अधिनियम के अनुसार, एक दोषी कैदी प्रति कैलेंडर वर्ष में 10 सप्ताह (70 दिन) तक की पैरोल के लिए पात्र है, जिसे दो अलग-अलग अवधि में लिया जा सकता है. इसके अलावा एक कैदी को एक कैलेंडर वर्ष में तीन सप्ताह (21 दिन) तक की फरलो दी जा सकती है, लेकिन यह समय एक ही निरंतर अवधि में लिया जाना चाहिए.”

उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में राजनीतिक विचार अप्रासंगिक हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “कोई अपराधी जेल अधीक्षक के पास पैरोल या छुट्टी के लिए आवेदन करता है और अगर सज़ा सात साल से कम है तो डिप्टी कमिश्नर द्वारा रिहाई के आदेश जारी किए जाते हैं, या अगर सज़ा सात साल से अधिक है तो कमिश्नर द्वारा.”

डेरा सच्चा सौदा और राजनीति

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के पास एक बड़ा और प्रभावशाली संप्रदाय है, जो हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पड़ोसी राज्यों में उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत देता है.

इन राज्यों के शीर्ष राजनीतिक नेता, दिवंगत प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर बादल, भतीजे मनप्रीत सिंह बादल, पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, भाजपा नेता अनिल विज, कुलदीप बिश्नोई, हरियाणा कांग्रेस के नेता दीपेंद्र हुड्डा और अशोक तंवर पहले भी डेरा का आशीर्वाद लेने के लिए आ चुके हैं.

अपने तीन प्रमुखों – शाह मस्ताना बलूचिस्तानी, शाह सतनाम सिंह और गुरमीत राम रहीम सिंह के जन्मदिवस को मनाने के लिए आयोजित वार्षिक कार्यक्रमों के दौरान देखी गई भीड़ को देखते हुए, डेरा के पूरे भारत में लाखों अनुयायी हैं. इसके अनुयायियों का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आता है, जिनमें से कई दलित हैं.

शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आपदा राहत के क्षेत्र में इसके परोपकारी कार्यों ने समुदायों के बीच इसके प्रभाव और समर्थन को बढ़ाने में मदद की.

राम रहीम के नेतृत्व में सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा ने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ संबंध बनाए रखे और कई बार कांग्रेस और भाजपा दोनों को समर्थन दिया.

हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले, डेरा ने भाजपा का खुलकर समर्थन किया और पार्टी ने पहली बार राज्य में बहुमत वाली सरकार बनाई. सिरसा में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद राम रहीम का नाम लिए बिना डेरा के परोपकारी कार्यों की सराहना की, जो उस समय आपराधिक आरोपों का सामना कर रहा था.

मतदान के दिन से पहले, हरियाणा के तत्कालीन भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय 13 अक्टूबर को 40 पार्टी उम्मीदवारों के साथ राम रहीम से मिलने गए, ताकि उसका “आशीर्वाद” लिया जा सके. सरकार के गठन के बाद, विजयवर्गीय के साथ 18 से अधिक विधायकों और कई मंत्रियों ने राम रहीम से मुलाकात की और समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया.

इसके अलावा, 2017 में अपनी सज़ा से कुछ दिन पहले, राम रहीम ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ उनके गृह जिले करनाल में स्वच्छता अभियान के दौरान एक मंच साझा किया था.

नाम न छापने की शर्त पर संप्रदाय के एक अनुयायी ने बताया, 1990 में अपने पूर्ववर्ती शाह सतनाम सिंह से राम रहीम के कार्यभार संभालने के बाद से ही डेरा ने इस क्षेत्र की राजनीति में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था.

पंजाब में 2007 के विधानसभा चुनावों से पहले राम रहीम की राजनीतिक भूमिका ने भी विवाद को जन्म दिया था, जब डेरा ने अपने अनुयायियों से कांग्रेस को वोट देने के लिए कहा था. शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने चुनाव जीता, लेकिन मालवा क्षेत्र में प्रमुख सीटें हार गई – जहां डेरा की अच्छी-खासी मौजूदगी है.

उसी साल बाद में पंजाब पुलिस ने सलाबतपुरा में एक समागम के दौरान गुरु गोविंद सिंह की तरह ‘वेशभूषा’ पहनने के लिए राम रहीम पर ‘ईशनिंदा’ का मामला दर्ज किया था. तब से डेरा अपनी राजनीतिक भूमिका को लेकर अधिक सतर्क हो गया है, वो सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन अपनी ‘राजनीतिक मामलों की शाखा’ के माध्यम से इसमें दखल देता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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