नई दिल्ली: भाजपा के बारे में यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि वह अपने राजनैतिक फ़ैसले बिना किसी ऊहा-पोह में पड़े डंके की चोट पर लेती है. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी की जोड़ी तय कैलेंडर के हिसाब से फैसले डेडलाइन से ठीक पहले लेते हैं ताकि इवेंट की नाटकीयता और गोपनीयता अक्षुण्ण बनी रहे .
सरकार बनने के बाद पहला फ़ैसला संगठन के नए अध्यक्ष का लेना था. दोनों नेताओं ने संसद सत्र शुरू होते ही पहले दिन कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्डा की नियुक्ति कर दी. दूसरा फ़ैसला नए लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव का था, उनका 19 जून को शपथ होना था. 18 जून को नए अध्यक्ष के नाम की पार्टी ने घोषणा कर दी. जबकि यह फ़ैसला 17 जून को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में ही चुका था. राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ सदन के कामकाज की शुरुआत हो गई लेकिन एक फ़ैसला जो अभी लिया जाना बाकी है उसमें थोड़ा पेंच फंस गया है लेकिन ऐसा नहीं है कि वह फ़ैसला भी कैलेंडर के मुक़र्रर तारीख के हिसाब से देर हो जाएगा .
यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में हर राजनीतिक पार्टी को है ‘मुखिया’ की तलाश, उपचुनाव पर मंथन शुरू
मामला लोकसभा के उपसभापति का है भाजपा जिसे यह पद देना चाहती है वो पार्टी उसे लेना नहीं चाहती और जो पार्टी इसे लेना चाहती है उसे बीजेपी देना नहीं चाहती. भाजपा ने सबसे पहले तय परंपरा के मुताबिक विपक्षी दलों में वायएसआर रेड्डी की पार्टी को टटोला लेकिन जगन ने बड़ी विनम्रता से भाजपा के ऑफर को ना कह दिया
अपार जनमत के साथ चुनकर आए आंध्र प्रदेश के नए मुख्यमंत्री जगन रेड्डी ने एक शर्त लगा दी है कि अगर केन्द्र सरकार उसे विशेष राज्य का दर्जा देती है तब ही उनकी पार्टी उपसभापति का पद लेने के बारे में विचार करेगी. वाईएसआर संसदीय दल के नेता ने दप्रिंट से बातचीत में कहा कि उपसभापति के पद का कोई राजनैतिक महत्व नहीं है इसलिए हमने इसे लेने से मना कर दिया है . मोटी बात यह है कि जगन रेड्डी चंद्रबाबू नायडू वाली गलती नहीं दुहराना चाहते .
2014 के चुनाव के बाद चार साल तक चंद्रबाबू नायडू एनडीए के सदस्य इसलिए बने रहे ताकि केन्द्र से विशेष राज्य का पैकेज लेकर वो जगन की पार्टी से राज्य में लड़ सकें लेकिन जब वित्त मंत्रालय से नायडू को विशेष पैकेज नहीं मिला और न ही चंद्रबाबू के ड्रीम प्रोजेक्ट अमरावती के लिए प्रधानमंत्री से विशेष सहायता मिली तो नायडू को एनडीए से रिश्ता तोड़ना पड़ा लेकिन तबतक जगन राज्य में चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ अपनी पदयात्रा के ज़रिये माहौल बना चुके थे. बाबू को न माया मिली न राम .
बीजेपी के साथ जुड़ने के फायदे से ज्यादा नुक़सान है
जगन को राज्य विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम और ईसाई समुदाय का अच्छा खासा वोट मिला है जगन बीजेपी के साथ ज्यादा नजदीक जाकर अपने इस वोटबैंक को नाराज नहीं करना चाहते. जगन विशेष राज्य के मुद्दे पर बिना सरकार के साथ नजदीक गए राज्य में अपनी राजनैतिक पकड़ बनाए रख सकते हैं.
बिना किसी राजनैतिक फायदे वाली उप सभापति का पद लेते ही चंद्रबाबू नायडू इसे मुद्दा बना सकतें है. अभी भले जगन की राजनीति को ज्यादा फ़र्क़ न पड़े पर दो साल बीतते ही विशेष पैकेज पर राजनीति गरमा सकती है इसलिए जगन भाजपा के ट्रैप में फंसना नहीं चाहते. पर जगन के साथ बस एक दिक्कत है कि ढ़ेर सारे आर्थिक मामलों के केस में फंसे जगन भाजपा सरकार को नाराज भी नहीं कर सकते .
जगन भाजपा के विस्तार वादी राजनीति से बेहद चौकन्नें है .
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की दक्षिण के राज्यों में पार्टी के परचम फहराने की रणनीति का खुलासा करने के बाद दक्षिण के क्षेत्रीय दल बेहद चौकन्नें हैं. तेलंगाना में चंद्रशेखर राव भाजपा विस्तार की बढ़ती आंकाक्षा को देखकर नीति आयोग की बैठक से कन्नी काट ली तो आंघ्रप्रदेश में जगन फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं .
यह भी पढ़ें: कांग्रेस को कोटा की धरती से खत्म करने वाले ओम बिड़ला, कैसे बने मोदी-शाह की पहली पसंद
भाजपा को दक्षिण में विस्तार के लिए हर राज्य में किसी न किसी क्षेत्रीय दलों का सहारा चाहिये .जगन जानतें है कि किसी समय महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाली शिवसेना अब भाजपा के छोटे भाई का रोल भी मुश्किल से निभा पा रही है .तेलांगना में भाजपा टीआरएस के कंधों पर चढ़कर लोकसभा की 4 सीटें जीतने में कामयाब रही .
बीजेडी भी पद लेने को तैयार नहीं
जगन के मना करने के बाद सूत्र बताते भाजपा ने यह ऑफर बीजेडी को दिया है लेकिन बीजेडी भी इस पद को लेने में ख़ास इच्छा नहीं दिखा रही .
शिवसेना इच्छुक पर भाजपा तैयार नहीं
उपसभापति के पद पर दावेदार नहीं मिलती देख शिवसेना ने अपना पत्ता फेंका हैं कि वह इस पद पर अपने व्यक्ति को बिठा सकती है पर उसके लिए भाजपा तैयार नहीं है. एक तो शिवसेना एनडीए का हिस्सा है और यह पद विपक्षी दलों में किसी को देने की परंपरा है अब बची एआईडीएमके जिसके सदस्य थम्बिदुरई पिछले लोकसभा में उपसभापति रह चुके हैं या फिर सरकार बीजेडी को मनाने में कामयाब हो जाएगी या फिर मोदी शाह की जोड़ी पुरानी परंपराओं को तोड़ नई परंपरा डालेंगीं ?