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Tuesday, 17 December, 2024
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RLD की जाट एकजुटता और सपा के मुस्लिम-ब्राह्मण समीकरण से बागपत में करीबी मुकाबले के लिए मंच कैसे तैयार

कई साल बाद पहली बार चरण सिंह के परिवार से कोई भी पारंपरिक लोकसभा सीट बागपत से चुनाव नहीं लड़ रहा है. रालोद के बीजेपी के साथ गठबंधन से यहां के मुसलमान खुद को ‘ठगा’ हुए महसूस कर रहे हैं.

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बागपत: उत्तर प्रदेश के बागपत लोकसभा क्षेत्र के मुस्लिम बहुल इदरीशपुर गांव में अपने घर में 56-वर्षीय मोहम्मद अनीस आंगन में बिछी खाट पर बीड़ी पीते हुए खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमने हमेशा राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को वोट दिया है, लेकिन इस बार हम इंडिया गठबंधन का साथ देंगे.”

अनीस, एक जाट मुस्लिम, बागपत में अपने समुदाय के कई लोगों में से एक हैं, जिनके लिए यह यकीन करना मुश्किल है कि रालोद ने आम चुनाव के लिए भाजपा से हाथ मिलाया है.

अनीस ने पूछा, “(रालोद प्रमुख) जयंत (चौधरी) से यह उम्मीद नहीं थी. मुश्किल वक्त में भी हम रालोद के साथ रहे हैं. मुसलमानों और जाटों के बीच भाईचारा (जयंत के दादा) चौधरी चरण सिंह की विरासत थी, लेकिन जयंत ने सब कुछ खत्म कर दिया. हम कब तक उनका साथ देंगे?” उनके गांव में करीब 3,500 मतदाता हैं.

रालोद-भाजपा गठबंधन ने बागपत में मुसलमानों और जाटों के बीच दरार को और गहरा कर दिया है, जहां लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में शुक्रवार को मतदान होना है.

Mohammad Anees, a Jat Muslim | Krishan Murari | ThePrint
मोहम्मद अनीस, एक जाट मुस्लिम | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

जयंत के पिता दिवंगत अजीत सिंह द्वारा स्थापित, आरएलडी पार्टी जाटों को अपने मुख्य मतदाता मानती है. अनुमान है कि बागपत में 28 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और मुस्लिम और जाट कुल मिलाकर 50 प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं. इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चरण सिंह के समय से ही दोनों समुदायों ने इस सीट पर नतीजों को प्रभावित किया है.

बागपत के बड़ौत तहसील के एक अन्य जाट मुस्लिम, 71-वर्षीय चौधरी सैमुद्दीन तोमर ने कहा कि चरण सिंह ने हमेशा जाटों और मुसलमानों को एक साथ रखा है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “दोनों समुदाय बड़े प्रेम से रहते थे, लेकिन अजित सिंह के ज़िंदा रहते ही दोनों के बीच दूरियां आने लगीं और फिर जयंत ने बीजेपी से हाथ मिलाकर दूरियां बढ़ा दीं. हमारे पास इंडिया गठबंधन (उम्मीदवार) को वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.”

31-वर्षीय तराबुद्दीन ने भी इसी बात को दोहराते हुए भाजपा पर आरोप लगाया. उन्होने कहा, “भाजपा ने जाटों और मुसलमानों के बीच दरार पैदा की और जयंत को अपने पाले में लाकर दरार को और बढ़ा दिया है. हम हमेशा से रालोद के मतदाता रहे हैं, लेकिन हम उन लोगों के साथ खड़े नहीं हो सकते जो भाजपा के साथ जाएंगे. हम अब बदलाव चाह रहे हैं.”

चरण सिंह तीन बार बागपत से सांसद रहे, जबकि अजित सिंह 2009 से 2014 तक अपने आखिरी कार्यकाल में सात बार इस सीट से चुने गए. तब से भाजपा के सत्यपाल सिंह इस सीट से जीत रहे हैं. इस सीट से उनकी पहली जीत 2013 में जाटों और मुसलमानों से जुड़े मुजफ्फरनगर दंगों के बाद हुई थी.

जबकि बागपत को चरण सिंह के परिवार का पारंपरिक गढ़ माना जाता है, पहली बार, परिवार से कोई भी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ रहा है.

भाजपा-रालोद गठबंधन के बाद, सीट रालोद को दे दी गई और उसने चरण सिंह के साथ काम करने वाले पार्टी के वफादार राजकुमार सांगवान को मैदान में उतारा है. राष्ट्रीय स्तर के इंडिया ब्लॉक का हिस्सा समाजवादी पार्टी (सपा) ने ब्राह्मण अमरपाल शर्मा को मैदान में उतारा है, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने प्रवीण बैंसला को टिकट दिया है, जो गुर्जर समुदाय से आते हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए सांगवान, जो 40 साल से आरएलडी से जुड़े हुए हैं, ने कहा कि “हम हमेशा मुसलमानों के साथ रहे हैं”.

RLD’s Baghpat candidate Rajkumar Sangwan (second from right) | Krishan Murari | ThePrint
रालोद के बागपत प्रत्याशी राजकुमार सांगवान (दाएं से दूसरे) | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “भाजपा में शामिल होकर हम उनके खिलाफ नहीं खड़े हैं, लेकिन यह तय करेंगे कि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे.”

जाटों और मुसलमानों के बीच दरार पर सांगवान ने कहा, “हमें नहीं लगता कि हमारा कोई वोट कटा है.”

उन्होंने कहा, “हम अपनी विचारधारा के साथ आगे बढ़ रहे हैं. हम किसी भी अन्याय के पक्ष में नहीं खड़े हैं. लोगों को मुझ पर और रालोद पर भरोसा है कि हम सभी को साथ लेकर चलेंगे.”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि बागपत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में से एक है और यहां दिलचस्प मुकाबला होने वाला है.

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर शशि कांत पांडे ने दिप्रिंट को बताया: “चरण सिंह और अजीत सिंह कई बार इस सीट से जीते. हालांकि, अजित सिंह ने कई बार वफादारी बदली, चरण सिंह के समय से, जाटों, गुर्जरों और मुसलमानों ने एक घातक संयोजन बनाया और आरएलडी का समर्थन किया.”

पाण्डेय ने बताया, “अब जब जयंत ने वफादारी बदल ली है और अचानक भाजपा में शामिल हो गए हैं, तो मुसलमानों को भाजपा के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है और वे पार्टी से डरते भी हैं. इस सीट पर लगभग 4 लाख की मुस्लिम आबादी है जो इस बार सपा की ओर जाती दिख रही है, जबकि बसपा ने गुर्जर उम्मीदवार उतारकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है.”


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बागपत का चुनावी समीकरण

बागपत में अनुमानित 16.5 लाख मतदाता हैं, जिनमें मुस्लिम 4 लाख, जाट 3.5 लाख, ब्राह्मण 1.5 लाख, गुर्जर 1.25 लाख, दलित 1.8 लाख और राजपूत एक लाख हैं. बाकी में छोटे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समूह शामिल हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी ने भाजपा के सत्यपाल सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़ा था और 23,000 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे. तब बड़ी संख्या में जाट बीजेपी के साथ चले गए थे, जिससे आरएलडी के वोट बैंक में सेंध लग गई थी.

इस साल चरण सिंह को भारत रत्न देने की भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की घोषणा से बागपत का किसान वर्ग, खासकर जाट समुदाय खुश बताया जा रहा है.

मंगलवार को बड़ौत के मशहूर जाट कॉलेज में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की रैली में बड़ी संख्या में जाट शामिल हुए. कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर धर्मवीर सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “यह जाटों का गढ़ है और यहां के लोग हमेशा चरण सिंह के साथ खड़े रहे हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जयंत चौधरी किसके साथ गए हैं — यहां के लोग उनके प्रति समर्पित हैं.”

RLD & BJP supporters sit together at a joint rally of the two parties | Krishan Murari | ThePrint
दोनों दलों की संयुक्त रैली में रालोद और भाजपा समर्थक एक साथ बैठे हुए | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

सिंह ने उस वक्त को याद किया जब चरण सिंह छपरौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे और जाट कॉलेज में बैठकें किया करते थे. “चौधरी साहब बस एक बार आते थे और कहते थे चुनाव को देख लेना तुम सब. लोगों का उन पर अटूट विश्वास रहा है.”

हालांकि, जाटों के बीच एक वर्ग ऐसा भी है जो बीजेपी-आरएलडी गठबंधन से नाखुश है.

बड़ौत के जाट निवासी रवींद्र तेवतिया, जयंत के भाजपा के साथ गठबंधन करने से नाराज़ थे, जिस पार्टी का रालोद परंपरागत रूप से विरोध करता रहा है. उन्होंने पूछा, “आज हम उस व्यक्ति के साथ चले गए हैं जिसके खिलाफ हम लड़ते रहे हैं. उसने अपना वजूद नहीं रखा. चरण सिंह की विरासत को नुक्सान पहुचाया. कर्मचारी परेशान हैं, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है. पिछले कुछ साल में हमारे समुदाय के कई लोग भाजपा में शामिल हुए हैं और जयंत भी इसमें शामिल हुए हैं. तो अब हमें कहां जाना चाहिए?”

अब तक आरएलडी के साथ खड़े रहे मुस्लिम समुदाय के लोग आदित्यनाथ की रैली में नज़र नहीं आए. निर्वाचन क्षेत्र के मुसलमानों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयानों का हवाला देते हुए बताया कि उन्होंने भाजपा का समर्थन क्यों नहीं किया.

आदित्यनाथ ने रैली में आरोप लगाया था कि “कांग्रेस भारत में शरिया कानून लाना और तालिबान शासन लागू करना चाहती थी”. मोदी ने भी अपनी टिप्पणी से राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस का मानना ​​है कि देश के संसाधनों पर “पहला अधिकार” मुसलमानों का है.

बागपत के मुस्लिम निवासियों के अनुसार, जयंत के भाजपा में शामिल होने से वे सपा और कांग्रेस गठबंधन का विकल्प चुनेंगे.

‘छोटी OBC जातियों के वोट निर्णायक साबित होंगे’

ब्राह्मण चेहरे अमरपाल शर्मा को टिकट देकर सपा मुस्लिम और ब्राह्मण समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है, जिनकी कुल मिलाकर बागपत में लगभग 5.5 लाख वोट हैं. वहीं, बसपा ने गुर्जर उम्मीदवार उतारकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है और उसे गुर्जर और दलित वोटों पर भरोसा है, जिनकी संख्या 3 लाख से ज्यादा है.

प्रोफेसर पाण्डेय ने दिप्रिंट को बताया, “त्रिकोणीय मुकाबले के कारण छोटी ओबीसी जातियों के वोट निर्णायक साबित होंगे. पिछली बार की तरह इस बार भी कांटे की टक्कर हो सकती है. बसपा प्रत्याशी को जितने वोट मिलेंगे, उससे हार-जीत का अंतर तय होगा. सपा और बसपा के उम्मीदवारों के चयन ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.”

हालांकि, पाण्डेय ने कहा कि मतदाता चुप थे और ज़मीन पर कोई “लहर” दिखाई नहीं दे रही थी.

Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath in conversation with RLD chief Jayant Chaudhary in Baghpat last week | ANI
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले हफ्ते बागपत में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी से बातचीत करते हुए | फोटो: एएनआई

2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के बाद से जाटों और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं. हालांकि, अजित सिंह और फिर जयंत ने भाईचारा सम्मेलन आयोजित करके दूरियों को पाटने की कोशिश की, लेकिन जयंत के हालिया कदम ने ऐसे सभी प्रयासों को कमजोर कर दिया है. पाण्डेय ने कहा, “जयंत को भाईचारा सम्मेलनों से सफलता मिली, लेकिन अब जब उन्होंने अपनी वफादारी बदल ली है, तो बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता उनसे छिटक जाएंगे.”

उन्होंने कहा कि मुसलमानों के जाने से भाजपा का वोट रालोद को मिलेगा.

पाण्डेय ने कहा, “भाजपा ने जाट समुदाय के वोटों में भी सेंध लगाई है. जयंत ने सोचा होगा कि अगर वे बीजेपी में शामिल हो गए तो जाट वोट एकजुट हो जाएगा, लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि क्या मुस्लिमों के अलग होने से जयंत बाकी समुदायों के वोट अपनी ओर आकर्षित कर पाएंगे. वे कितना ला सकते हैं?”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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