अहमदाबाद, 31 मार्च (भाषा) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की प्रमुख माधबी पुरी बुच ने कहा है कि टी+0 निपटान यानी सौदे वाले दिन ही कारोबार निपटान लागू करने की उपलब्धि हासिल करने में बहुत सारी समस्याओं का समाधान करना पड़ा और व्यक्तिगत स्तर पर असुविधाएं भी हुईं।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर सबसे पहले कुछ हासिल करने लिए काफी मशक्कत करनी होती है और यह ठीक वैसा ही है जैसा कि ‘प्याज की परत-दर-परत’ उतारना।
भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (आईआईएमए) के वार्षिक दीक्षांत समारोह में बुच ने यह भी कहा कि भारतीयों की वर्तमान पीढ़ी भारत को नई ऊंचाई पर देखने की राह पर है।
उन्होंने शनिवार को 59वें वार्षिक दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आईआईएमए के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मेरे सहकर्मी अक्सर मुझसे कहते हैं कि मेरे साथ समस्या का समाधान करना प्याज की परत-दर-परत उतारने जैसा है। इस प्रक्रिया में हर किसी के लिए समस्या होती है। लेकिन जब आप प्याज की परत-दर-परत छीलते हैं, तो आपको अचानक एहसास होता है कि ऐसी कोई समस्या बची नहीं है।’’
शेयर बाजार बीएसई और एनएसई ने बृहस्पतिवार को चुनिंदा शेयरों के लिए वैकल्पिक आधार पर टी+0 या उसी दिन व्यापार निपटान का ‘बीटा’ संस्करण पेश किया। इस व्यवस्था में निवेशकों को फिलहाल 25 प्रतिभूतियों में लेनदेन का विकल्प दिया गया है।
बुच ने कहा कि उन्होंने जो सही है उसे करने के मंत्र का दृढ़ता से पालन किया, चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, उन्होंने उसे हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि… मेरा मंत्र बहुत सरल है। सही काम करो, चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो। कोई कसर न छोड़ें, चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो। इसमें अद्भुत बात यह है कि दस में से आठ बार आप वास्तव में सफल होते हैं। और दो बार जब आप ऐसा नहीं कर पाते, तो आपको बिल्कुल भी पछतावा नहीं होता।’’
बुच ने कहा कि छात्र आगे बढ़ने के लिए अपना स्वयं का मंत्र खोजेंगे। इस मंत्र के साथ काम करना उनके लिए आसान होगा।
सेबी प्रमुख छात्रों से यह भी कहा कि अगर उन्हें अपनी यात्रा सहज और सुखद लगती है तो वे ज्यादा न सोचें। ‘बस प्रवाह के साथ आगे बढ़ते चलें।’
बुच ने कहा कि उनकी पीढ़ी नये भारत के उदय में शामिल हुई और इस लिहाज से बहुत भाग्यशाली थी।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी नजर में आपकी पीढ़ी और भी अधिक भाग्यशाली है। आप नए भारत की ऊंचे मुकाम देखने की राह पर हैं।’’
भाषा रमण पाण्डेय
पाण्डेय
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