पटना: नाटककार और थिएटर आर्टिस्ट मृत्युंजय शर्मा एक छोटे से अंधेरे कमरे में बैठकर अपने आने वाले नाटक ‘नास्तिक भगत’ की स्क्रिप्ट को पलट रहे हैं. वह नाटक के डायलॉग को पढ़ने की कोशिश में लगे हुए हैं. कमरे में अंधेरा होने के चलते उन्हें स्किप्ट पढ़ने के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि केवल एक छोटी सी खिड़की के पर्दे से रोशनी कमरे तक पहुंच रही है. 23 अप्रैल को होने वाले इस प्ले के चलते उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ-साफ दिख रही हैं. वह कहते हैं, “अभी हमें इस प्ले के लिए बहुत कुछ करना है. रिहर्सल और लोगों के सामने प्ले करने में बहुत अंतर होता है.”
20 वर्षों से नाटक कर रहे और वेब सीरीज खाकी: द बिहार चैप्टर में अभिनय कर चुके शर्मा कहते हैं, “पटना के अधिकांश थिएटर कलाकार इसी तरह से काम करते हैं. यहां सरकारी सहायता की कमी है. थिएटर कलाकारों को घर पर या निजी थिएटरों में रिहर्सल करना पड़ता है, जहां न तो पर्याप्त जगह होती है और न ही पर्याप्त संसाधन.”
पटना का एक समृद्ध थिएटर कल्चर रहा है. लेकिन अब तक यहां नई दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) जैसे सरकार द्वारा वित्त पोषित प्रशिक्षण संस्थानों का अभाव था. केवल कुछ छोटे निजी स्वामित्व वाले थिएटर समूह ही यहां की प्रतिभा को जीवित रखे हुए हैं. लेकिन, पटना अब बदलने के लिए तैयार है. पटना नगर निगम ने घोषणा की है कि वह राजा घाट के पास गंगा के किनारे एक खाली इमारत में शहर का पहला सरकारी ड्रामा स्कूल बनाएगी. इसके लिए उसने अपने बजट में 5 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया है. यह पहली बार है कि कोई नगर निगम ड्रामा स्कूल शुरू करेगा.
बिहार के थिएटर कलाकारों और उम्मीदवारों के लिए, यह लंबे समय से चल रहे इंतजार के बीच आशा की एक किरण है.
शर्मा कहते हैं, “पहले यहां सैकड़ों लोग थे जो पूरी तरह से थिएटर के प्रति समर्पित थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में कई लोगों ने अलग-अलग पेशे अपना लिए. इसका कारण यह है कि यहां कोई व्यवस्था नहीं है, कोई संस्था नहीं है, और कोई भविष्य नहीं है.” शर्मा लगभग 30 मेंबर्स के साथ ‘रंग मार्च’ नाम से पटना स्थित थिएटर ग्रुप चलाते हैं.
पटना में नाट्य प्रतिभा का एक लंबा इतिहास रहा है. पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, विनोद सिन्हा, विनीत कुमार, रमेश राजहंस, प्यारे मोहन सहाय, गोपाल शरण सिंह, अजीत गांगुली और जितेंद्र सहाय जैसे कुछ बड़े नाम हैं, जिन्होंने अपना करियर पटना के थिएटर जगत से शुरू किया. पटना थिएटर की एक प्रमुख हस्ती परवेज़ अख्तर को नाट्य निर्देशन में उनके योगदान के लिए 2015 में साहित्य नाटक अकादमी पुरस्कार मिला.
पटना नगर निगम के आयुक्त अनिमेष कुमार पराशर दिप्रिंट से कहते हैं, “पटना में थिएटर का एक बड़ा कल्चर है और लंबे समय से यहां एक ड्रामा स्कूल खोलने की मांग की जा रही थी.” उन्होंने आगे कहा कि बजट और भवन तय होने के साथ नगर निगम सिलेबस, सीटों की संख्या और परिचालन संबंधित दिशानिर्देश स्थापित करने के लिए बिहार सरकार के कला और संस्कृति विभाग और NSD से संपर्क करेगा.
बड़ा राजनीतिक मामला?
पटना में भिखारी ठाकुर स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक, वरिष्ठ नाटककार हरिवंश (वह अपने सरनेम का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते हैं) के अनुसार, पटना को उत्तर भारत में सबसे जीवंत थिएटर दृश्यों में से एक माना जाता है, यहां तक कि पटना अपने सुनहरे दिनों में दिल्ली को भी पीछे छोड़ दिया था. हालांकि, उन्होंने दावा किया कि नाटकों की कठोर राजनीतिक प्रकृति ने इसे कमजोर किया और इसके विपरीत काम किया.
हरिवंश कहते हैं, “पटना कंटेंट के मामले में दिल्ली से बेहतर हुआ करता था. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बिहार में (सामाजिक और राजनीतिक) आंदोलनों की पृष्ठभूमि रही है. जमींदारी आंदोलन, किसान आंदोलन, आदिवासी आंदोलन, सब यहीं हुए. इन आंदोलनों का प्रभाव नाटकों में भी दिखाई देता था.”
“कलाकार नाटक के माध्यम से सरकार के प्रति अपना विरोध व्यक्त करते थे. और यही एक बड़ा कारण था कि सरकार ने कभी इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया. सरकार ने हमेशा इसे कमजोर करने की कोशिश की है.”
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पटना से निकले कई नाटकों ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति बटोरी है. भिखारी ठाकुर की बिदेसिया, जो बिहार और पूर्वांचल के पुरुषों को रोजगार के लिए परदेश जाने और इस दौरान उनकी घर की महिलाओं की मुश्किलों पर प्रकाश डालती है. दूसरी हृषिकेश सुलभ की बटोही है, जो जाति उत्पीड़न के साथ नाटककार और कवि भिखारी ठाकुर के संघर्षों पर आधारित है. पटना के थिएटर कलाकार गोविंद कुमार कहते हैं, “इन नाटकों का मंचन पूरे भारत और यहां तक कि विदेशों में भी किया गया है. बिदेसिया के देश-विदेश में हजारों प्ले हुए हैं.”
कुमार ने कहा कि दशकों से पटना में थिएटर कलाकारों ने NSD के ब्रांच खोलने की मांग कर रहे हैं, यहां तक कि कई बार प्रदर्शन भी हुए हैं, लेकिन उनकी दलीलें कभी सुनी नहीं गई. अभी NSD का वाराणसी, बेंगलुरु, अगरतला और गंगटोक में क्षेत्रीय परिसर है. NSD के अध्यक्ष परेश रावल ने भी लगातार मजबूत थिएटर परंपराओं और “छिपी हुई प्रतिभा” वाले स्थानों पर अधिक कैंपस खोलने की वकालत करते रहे हैं. इसी साल जनवरी में उन्होंने “सभी प्रमुख शहरों” में नए केंद्र बनाने की आवश्यकता दोहराई थी.
लेकिन बिहार में सरकार की ओर से ठोस कार्रवाई के अभाव में, प्राइवेट प्लेयर्स ने अब तक इस कमी को पूरा किया है. इस साल की शुरुआत में, हाउस ऑफ वैरायटी नामक एक नया अत्याधुनिक सेंटर पटना में खोला गया. अभिनेता सुमन सिन्हा द्वारा स्थापित, यह एक सांस्कृतिक केंद्र है जो देश भर से नाटकीय प्रस्तुतियों की मेजबानी करता है. जनवरी से अब तक हाउस ऑफ वैरायटी ने लगभग 10 नाटकों का मंचन किया है, जिनमें निठल्ले की डायरी, शक्कर के पांच दाने, डी फॉर ड्रामा और कमला सुरैया जैसे नाटक शामिल हैं.
ऐसे प्रयासों के बावजूद, एक बड़े राज्य-संचालित थिएटर संस्थान की कमी का मतलब है कि प्रतिभाशाली लोगों के लिए अवसर कम हैं. प्रस्तावित सरकार द्वारा संचालित ड्रामा स्कूल के साथ, अब थिएटर प्रेमियों के बीच आशा की एक नई किरण है.
पिछले आठ सालों से पटना के ‘रंगम’ थिएटर से जुड़े अभिनेता रश राज ने कहा, “यदि आप ड्रामा स्कूल में पढ़ते हैं, तो आपको सही मार्गदर्शन के साथ-साथ डिग्री भी मिलेगी, जो आपके लिए और नए दरवाजे खोलेगी.”
NSD, MPSD, FTII में जाने की होड़
पटना का थिएटर काफी हद तक अपने-आप में समृद्ध है, लेकिन महत्वाकांक्षी कलाकारों को एक कड़वी वास्तविकता का सामना भी करना पड़ता है- NSD और उसके क्षेत्रीय केंद्रों, भोपाल स्थित मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा (MPSD) और फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे (FTII) जैसे दूर के सरकारी संस्थानों में सीमित सीटों में दाखिला पाने के लिए शहर के कलाकारों के बीच भयंकर प्रतिस्पर्धा है. अवसरों की कमी के कारण हर साल अनगिनत सपने टूट जाते हैं.
शर्मा ने कहा, “हर साल NSD दिल्ली में पटना से केवल एक या दो कलाकारों का चयन हो पाता है.”
उन्होंने कहा कि दूसरे प्रोफेशन के विपरीत, थिएटर में डिग्री होने के बाद भी नौकरी की गारंटी नहीं है, लेकिन एक बड़े संस्थान से डिग्री रोजगार के दूसरे दरवाजे खोल देती है.
शर्मा कहते हैं, “NSD की अपनी लॉबी है. वहां के पुराने छात्र किसी भी अन्य कलाकार की तुलना में वहां पढ़ने वाले या पढ़ चुके अन्य कलाकारों को अधिक महत्व देते हैं. हालांकि, इसमें कुछ गलत नहीं है. आईआईटी और आईआईएएम जैसे संस्थानों के छात्र भी अपने जूनियर्स की मदद करते हैं. अगर पटना में कोई ड्रामा स्कूल होगा और वहां से निकले छात्र भविष्य में अच्छा नाम कमाएं तो वे भविष्य में यहां के अन्य दूसरे छात्रों की मदद करेंगे. ये कुछ कारण हैं जो कलाकारों को ड्रामा स्कूल में जाने के लिए प्रोत्साहित करता है.”
रंगम से जुड़ी थिएटर आर्टिस्ट विभा ने बताया कि प्राइवेट थिएटर में नए लोगों को एक छोटी सी भूमिका के लिए भी सालों इंतजार करना पड़ सकता है, जिसका मतलब है कि उनकी प्रतिभा लोगों की नजरों से ओझल रहती है. उन्होंने कहा, “ड्रामा स्कूल खुलने से कलाकारों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप प्रवेश मिलेगा.”
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