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Monday, 16 December, 2024
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दिल्ली चुनाव पर नज़र, केजरीवाल से मुकाबले में सांसदों की विफलता, BJP आलाकमान ने लोकसभा में बदले 5 चेहरे

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि बीजेपी को AAP और अरविंद केजरीवाल से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. विभिन्न कारकों और सूचनाओं ने चुनाव टिकट तय किए, लेकिन सबसे बड़ी कसौटी जीतने की क्षमता थी.

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नई दिल्ली: 2 मार्च को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए 195 उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट की घोषणा की, जिसमें 34 मौजूदा सांसदों को हटा दिया गया. इनमें से पांच दिल्ली से हैं, जहां पार्टी को आम आदमी पार्टी (आप) और उसके प्रमुख अरविंद केजरीवाल से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

लिस्ट से यह भी संकेत मिलते हैं कि 2019 में उत्तर पश्चिम दिल्ली से जीतने वाले सूफी गायक हंस राज हंस को इस बार टिकट से दूर रखा जा सकता है. सीट बरकरार रखने वाले दिल्ली के एकमात्र सांसद भोजपुरी अभिनेता-गायक और दिल्ली भाजपा इकाई के पूर्व प्रमुख मनोज तिवारी हैं, जो उत्तर पूर्वी दिल्ली का प्रतिनिधित्व करते हैं.

जिन अन्य सांसदों को बदला गया है उनमें पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन (चांदनी चौक), केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी (नई दिल्ली), क्रिकेटर से नेता बने गौतम गंभीर (पूर्वी दिल्ली), दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे सांसद प्रवेश वर्मा (पश्चिमी दिल्ली), और रमेश बिधूड़ी (दक्षिणी दिल्ली) और शामिल हैं.

पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर और केजरीवाल की लोकप्रियता का मुकाबला करने की उम्मीद में इन सभी सीटों पर नए चेहरों को शामिल करने का फैसला किया है.

माना जाता है कि बीजेपी बिधूड़ी जैसे उन विवादास्पद सांसदों को दंडित कर रही थी, जिन्होंने साथी सांसद दानिश अली या वर्मा पर हमला किया था, जिन्होंने कई विवादास्पद बयान दिए थे, लेकिन, पार्टी सूत्रों ने कहा कि यह फैसला प्रदर्शन, मतदाताओं के साथ अलगाव और निर्वाचन क्षेत्रों में आप की वृद्धि का मुकाबला करने में असमर्थता पर आधारित था.

दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव, जो फरवरी में होने हैं, लोकसभा चुनाव के कुछ ही महीने दूर हैं और “प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी चिंता अरविंद केजरीवाल हैं.”

नेता ने कहा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी के व्यस्त अभियान और केजरीवाल के खिलाफ कुछ सफलताओं के बावजूद, “लोगों के बीच उनकी छवि खराब नहीं हुई है”.

नेता ने दावा किया, “भारत की पूरी सरकार दिल्ली में बैठी है, लेकिन दिल्ली में भाजपा के भारी राजनीतिक निवेश के बावजूद, यह महत्वपूर्ण क्षेत्र भाजपा के हाथ से बाहर है.”

बीजेपी नेता ने कहा, “हमने केजरीवाल के दिल्ली मॉडल का मुकाबला करने के लिए “फ्रीबी” का राग शुरू किया, लेकिन हिमाचल और कर्नाटक के झटके के बाद बीजेपी को अपना ट्रैक बदलना पड़ा. हम पहले पूर्वांचल के मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मनोज तिवारी को दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष के रूप में लाए, फिर छोटे समूहों और झुग्गी झोपड़ियों में सूक्ष्म स्तर पर लड़ने के लिए आम कार्यकर्ता आदेश गुप्ता को अध्यक्ष के रूप में लाए, जो केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत हैं, लेकिन भाजपा की किस्मत नहीं बदली.”

उन्होंने कहा, “हमने सभी प्रयोग दिल्ली में किए. पार्टी को दिल्ली में नए चेहरों और रणनीति की ज़रूरत है.”

बीजेपी के एक अंदरूनी सूत्र के मुताबिक, “प्रधानमंत्री मोदी ने एक बैठक में बीजेपी नेताओं से दिल्ली के सभी सात सांसदों को बदलने के लिए विकल्प तलाशने को कहा था, लेकिन उनकी सीट पर कोई अच्छा रिप्लेसमेंट उम्मीदवार न होने के कारण मनोज तिवारी बच गए और पूर्वांचल के मतदाताओं के बीच उनकी विश्वसनीयता है.”

बीजेपी चुनाव समिति के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि विभिन्न कारक और इनपुट टिकट तय करते हैं, लेकिन सबसे बड़ी कसौटी जीतने की क्षमता थी.

नेता ने कहा, “सर्वे में कुछ मौजूदा सांसदों का मतदाता जुड़ाव कम था, कार्यकर्ता खुश नहीं थे और वे जनता के लिए दुर्गम पाए गए, लेकिन पार्टी की सबसे बड़ी चिंता न केवल सत्ता विरोधी लहर थी, बल्कि अपने निर्वाचन क्षेत्रों में केजरीवाल को रोकने के लिए उनका प्रदर्शन और अगले साल के विधानसभा चुनावों में इसका संभावित प्रभाव था.”

उन्होंने कहा, “यही कारण है कि सत्ता विरोधी लहर को रोकने और केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए नई ऊर्जा लाने के लिए नए चेहरों को पेश किया गया.”

2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली में केजरीवाल की लगातार जीत के बावजूद भाजपा ने मोदी लहर के कारण 2014 और 2019 में सभी सात सीटें जीतकर लोकसभा चुनावों में अपनी सीट सुरक्षित रखी. दो विधानसभा चुनाव और 2022 में नगर निगम चुनाव हारने के बावजूद पार्टी को यह जीत मिली.

बीजेपी के तीसरे वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी अपना पूरा ध्यान लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव पर लगाएगी. उन्होंने कहा कि केजरीवाल को चुनौती देने के लिए दिल्ली में प्रवेश वर्मा और रमेश बिधूड़ी की ज़रूरत है.

नेता ने दिप्रिंट को बताया, “पार्टी ने स्थिति के अनुसार नेताओं की कार्य जिम्मेदारियों में बदलाव किया. विष्णु देव साय को 2019 में छत्तीसगढ़ से लोकसभा टिकट नहीं दिया गया था, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद वे राज्य प्रमुख और मुख्यमंत्री बन गए. राजनीति अप्रत्याशित है और पार्टी बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढलती रहती है.”


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हटाने के कारण

बीजेपी की लिस्ट जारी होते ही केजरीवाल ने दिल्ली बीजेपी सांसदों पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि दिल्ली को सात मौजूदा भाजपा सांसदों से कुछ हासिल नहीं हुआ क्योंकि जब भी केंद्र और उपराज्यपाल द्वारा उनकी सरकार का काम रोका जाता था तो वे ताली बजाते थे.

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर, नई दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी और उत्तर पश्चिम दिल्ली के सांसद हंस राज हंस के खिलाफ सबसे बड़ी शिकायत मतदाताओं तक पहुंच न होना और मतदाताओं से संपर्क टूटना है.

उन्होंने कहा कि विनम्र स्वभाव के बावजूद हर्ष वर्धन का प्रभाव फीका पड़ रहा था. वे मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और वी.के. मल्होत्रा के बाद सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले दिल्ली के नेताओं में से एक हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी उनकी सीट पर नया चेहरा चाहती है.

सूत्रों में से एक ने कहा, “बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा सक्रिय थे, लेकिन पार्टी उन्हें दिल्ली संगठनात्मक भूमिका सौंपने और इन सीटों पर आप-कांग्रेस गठबंधन को कोई मौका नहीं देने के लिए नए चेहरे लाने पर विचार कर रही थी.”

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने केवल दो मौजूदा सांसदों — पूर्वी दिल्ली के महेश गिरी और उत्तर पश्चिम दिल्ली के उदित राज को टिकट देने से इनकार कर दिया. इसने पांच मौजूदा सांसदों को दोहराया और दो नए चेहरे जोड़े — पूर्वी दिल्ली में गंभीर और उत्तर पश्चिम दिल्ली में हंस.

2024 में मनोज तिवारी को छोड़कर, भाजपा ने सभी छह मौजूदा सांसदों को टिकट देने से इनकार कर दिया है (पांच को टिकट नहीं दिया गया है और हंस राज हंस भी टिकट कटने की कतार में हैं).

लेखी की जगह पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को लिया गया, जिन्हें एक साल पहले दिल्ली इकाई में पदोन्नत किया गया था. बांसुरी की वक्तृत्व कौशल और युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल करने की क्षमता प्रमुख कारक थे जिन्होंने उनके पक्ष में काम किया.

पार्टी ने परवेश वर्मा की जगह पूर्व मेयर और जाट महिला उम्मीदवार कमलजीत सहरावत को टिकट दिया है. बिधूड़ी की जगह एक अन्य गुर्जर, रामवीर सिंह बिधूड़ी को लाया गया, जो 2020 में केजरीवाल के खिलाफ निर्दलीय जीते थे. रामवीर सिंह बिधूड़ी के लंबे राजनीतिक करियर और विधानसभा रिकॉर्ड को महत्व दिया गया.

इसी तरह, पार्टी ने प्रवीण खंडेलवाल को चुना, जो पिछले बीते कुछ साल में केंद्रीय मंत्रियों के साथ लगातार समस्या निवारण बैठकों के लिए चांदनी चौक के व्यापारियों के बीच लोकप्रिय हैं, उन्होंने हर्ष वर्धन की जगह ली, जो कोविड संकट के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय से हटाए जाने के बाद गायब हो गए थे.

उक्त भाजपा नेता ने कहा कि पूरा चयन विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया था. उन्होंने कहा, “बीजेपी विधानसभा चुनावों का इंतज़ार कर रही है और 2020 के राज्य चुनावों में मीनाक्षी लेखी, हर्ष वर्धन, परवेश वर्मा और रमेश बिधूड़ी के निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी भाजपा विधायक नहीं जीता.”

नेता ने दावा किया कि ये सांसद अपने लोकसभा क्षेत्र में किसी भी विधायक की जीत सुनिश्चित करने में विफल रहे.

नेता ने दावा किया, “भाजपा के पास आठ विधायक हैं. तीन पूर्वी दिल्ली से और तीन मनोज तिवारी के उत्तर पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से जीते. रामवीर सिंह बिधूड़ी अपनी योग्यता के दम पर जीते और अन्य ने उत्तर पश्चिम दिल्ली से जीत हासिल की. यहां तक कि नगर निगम चुनावों में भी इन सांसदों का (कार्य) प्रदर्शन खराब रहा.”

2022 के निगम चुनाव में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मीनाक्षी लेखी के निर्वाचन क्षेत्र में 25 वार्डों में से, भाजपा ने केवल पांच जीते — सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे खराब. पश्चिमी दिल्ली में प्रवेश वर्मा के निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी ने 38 में से 13 वार्ड जीते. हंस राज हंस के निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी ने 43 में से 14 पर कब्ज़ा किया.

रमेश बिधूड़ी के निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी ने 37 में से 13 वार्ड जीते और हर्ष वर्धन के चांदनी चौक निर्वाचन क्षेत्र में उसने 30 में से 16 वार्ड जीते.

नेता ने कहा, “गंभीर और तिवारी का प्रदर्शन बेहतर था. बीजेपी ने पूर्वी दिल्ली में 36 में से 22 वार्ड और उत्तर पूर्वी दिल्ली में 41 में से 21 वार्ड जीते. उम्मीदवार तय करते समय इन कारकों को भी ध्यान में रखा गया कि इन सांसदों ने आप को रोकने के लिए कैसा प्रदर्शन किया और अपनी सक्रियता और सत्ता विरोधी लहर के अलावा अन्य चुनावों में भाजपा की जीत सुनिश्चित की.”

आजमाया और परखा हुआ तरीका

सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए गुजरात की तरह मौजूदा विधायकों/सांसदों और यहां तक कि पूरे मंत्रिमंडल को बदलने का यह पीएम मोदी का आजमाया और परखा हुआ तरीका रहा है. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान गुजरात में नगरपालिका चुनावों से इसकी शुरुआत की थी.

2017 में बीजेपी ने दिल्ली नगर निगम चुनावों में अपने सभी मौजूदा पार्षदों को बदल दिया और 15 साल की सत्ता विरोधी लहर से बच गई. हालांकि, पार्टी 2022 के निगम चुनावों में ऐसा करने में विफल रही और 2020 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद AAP से हार गई.

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने उन राज्यों में अधिक मौजूदा सांसदों को टिकट देने से इनकार कर दिया है, जहां उसे छत्तीसगढ़ जैसी चुनौती का सामना करना पड़ा है, जहां कांग्रेस इतनी कमज़ोर नहीं है; असम, जहां बहुदलीय गठबंधन है और दिल्ली, जहां केजरीवाल का समर्थन बरकरार है.

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में पार्टी ने कई मौजूदा सांसदों को नहीं बदला है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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