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Friday, 15 November, 2024
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कलकत्ता HC का राजनीतिकरण — अभिजीत गंगोपाध्याय की बेंच से BJP तक की यात्रा पर छिड़ी बहस

कुछ लोगों का मानना है कि इससे कलकत्ता हाई कोर्ट की छवि पर असर पड़ेगा और सत्तारूढ़ टीएमसी के खिलाफ उनके आदेशों को राजनीति से प्रेरित करार दिया जा सकता है. इस बीच, टीएमसी पहले ही ठीक यही आरोप लगाते हुए बयान दे चुकी है.

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कोलकाता: सोमवार की सुबह, कलकत्ता हाई कोर्ट में शोर सामान्य से अधिक तेज़ था. गेट पर तैनात पुलिसकर्मियों से लेकर गलियारों में हलचल करने वाले वकीलों और यहां तक कि अदालत के क्लर्कों तक, हर कोई — न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय का देश के सबसे पुराने हाई कोर्ट से अपनी निर्धारित सेवानिवृत्ति से सिर्फ पांच महीने पहले अचानक इस्तीफा देने के बारे में चर्चा कर रहा था.

शताब्दी भवन की पांचवीं मंजिल पर उनके कक्ष के बाहर मिलने वालों की कतार लगी थी — साथी न्यायाधीश, वकील, लेखा विभाग के अधिकारी और यहां तक कि केंद्रीय कार्यालयों के नागरिक भी. कुछ लोग उपहार स्वरूप किताबें लेकर पहुंचे, कुछ ने सेल्फी ली, जबकि वकीलों ने उनके अदालत कक्ष के क्षणों को याद किया और अपनी शुभकामनाएं दीं.

कुछ समय पहले, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय को पश्चिम बंगाल में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों द्वारा “भगवान” कहा जाता था.

इस बीच बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से बीजेपी को अभी बाकी 23 सीटों पर नामों का ऐलान करना बाकी है.

कलकत्ता HC ने पहले ऐसा नहीं देखा है — एक मौजूदा न्यायाधीश राजनीति में शामिल होने के लिए न्यायपालिका छोड़ रहा है. हाई कोर्ट के बार सचिव बी. बसु मल्लिक के अनुसार, इसका कलकत्ता हाई कोर्ट की सम्मानजनक छवि पर गहरा प्रभाव पड़ेगा जो कभी भी आसानी से नहीं मिटेगी.

मल्लिक ने कहा, “नागरिक न्यायपालिका के बारे में बहुत सोचते हैं, लेकिन नेताओं के बारे में नहीं. जस्टिस गंगोपाध्याय ने जो किया है उससे कलकत्ता हाई कोर्ट की छवि को ठेस पहुंचेगी. स्वाभाविक रूप से लोग सवाल करेंगे कि क्या सत्तारूढ़ टीएमसी के खिलाफ उनके आदेश राजनीति से प्रेरित थे. कानूनी तौर पर, उन्होंने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया है, पद छोड़ने के बाद और सक्रिय राजनीति में शामिल होने से पहले किसी भी प्रैक्टिसिंग जज के लिए कूलिंग-ऑफ अवधि के लिए कोई प्रावधान नहीं हैं, लेकिन न्यायपालिका और राजनीति के एक-दूसरे से जुड़े होने के बारे में लोगों की धारणा अब स्पष्ट हो गई है.”

हालांकि, गंगोपाध्याय पहले न्यायाधीश नहीं हैं जिन्होंने राजनीति जीवन की शुरुआत करने के लिए समय से पहले सेवानिवृत्ति ली है. 1967 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कोका सुब्बा राव ने कांग्रेस के ज़ाकिर हुसैन के खिलाफ विपक्षी उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अपनी सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले इस्तीफा दे दिया था. 1983 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बहारुल इस्लाम ने असम की बारपेटा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अपनी सेवानिवृत्ति से छह सप्ताह पहले इस्तीफा दे दिया था.

वकील प्रियंका टिबरेवाल ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, जस्टिस गंगोपाध्याय जैसे और ईमानदार लोगों को राजनीति में आना चाहिए. टिबरेवाल को भाजपा ने 2021 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ भवानीपुर उपचुनाव लड़ने के लिए नामित किया था.

पिछले महीने हुए बार चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने अध्यक्ष सहित 15 में से 10 सीटें हासिल कीं. भाजपा ने पहले हासिल की गई अपनी तीन सीटों से बढ़कर शेष पांच सीटें हासिल कर लीं.

हालांकि, मल्लिक का कहना है कि वकीलों के लिए खुले तौर पर कुछ राजनीतिक संबद्धताएं होना ठीक है क्योंकि एक वकील एक ग्राहक के लिए मामले लड़ रहा है, “लेकिन एक न्यायाधीश से अपेक्षा की जाती है कि वे उन मामलों को निष्पक्ष तरीके से सुने जो उन्हें सौंपे गए हैं क्योंकि वे शपथ के अधीन हैं.”


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‘राजनीतिक लड़ाई अदालत में चल रही है’

मल्लिक के मुताबिक, न्यायपालिका के राजनीतिकरण में टीएमसी का ही हाथ है.

बसु मल्लिक ने समझाया, “आप देखिए, जब महाधिवक्ता पश्चिम बंगाल सरकार के लिए मामले लड़ रहे थे, तो ब्रीफ पार्टी से आ रहा था, न कि गृह विभाग से. इस प्रकार, आप देखें, तृणमूल शासन के तहत किसी भी एजी ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. बीजेपी ने टीएमसी को चुनौती देने के लिए इस मौके का फायदा उठाया है, यही कारण है कि आप विपक्ष और सरकार के बीच मामलों में वृद्धि देख रहे हैं. राजनीतिक लड़ाई खुली अदालत में चल रही है और अब इसके कारण एक न्यायाधीश राजनीति में शामिल हो गए हैं.”

एक युवा वकील, जिन्होंने हाल ही में अपनी फर्म शुरू की है और पहले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय में काम किया था, ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या न्यायाधीश से भाजपा नेता बने हालिया आदेश बिना पक्षपात के थे या नहीं. कलकत्ता हाई कोर्ट के बारे में जो सुर्खियां थीं और लिखी जा रही हैं, वे स्वतंत्र न्यायपालिका की छवि पर स्थायी निशान होंगी.”

इस बीच, टीएमसी ने बंगाल सरकार के खिलाफ घोटाले के आरोपों का बोझ हल्का करने के लिए इस मौके का फायदा उठाने में तेज़ी दिखाई है, खासकर तब जब न्यायाधीश ने पिछले वर्षों में इसके खिलाफ 14 केंद्रीय एजेंसी जांच का आदेश देकर पार्टी को मुश्किल स्थिति में डाल दिया था.

टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में टिप्पणी की, “जिस तरह से उन्होंने अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार फैसले लिए, वे न्यायिक प्रणाली पर एक काला धब्बा बन गए थे. मैंने पहले भी कहा था कि उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट की गरिमा को भंग किया है.” बनर्जी तृणमूल कांग्रेस के मौजूदा सांसद हैं, कलकत्ता हाई कोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं और सुप्रीम कोर्ट में भी राज्य की ओर से पेश हुए हैं.

मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा, “लोगों को पंक्तियों के बीच में ध्यान से पढ़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि वे बीजेपी के संपर्क में हैं और बीजेपी उनके संपर्क में है. लोग इसका मतलब समझने में होशियार हैं.” सांसद ने पहले गंगोपाध्याय द्वारा एक न्यूज़ चैनल को दिए गए इंटरव्यू को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

दिप्रिंट से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज अशोक गांगुली ने कहा कि जस्टिस गंगोपाध्याय का राजनीति में शामिल होने का फैसला निजी था और उन्होंने किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया है. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि गंगोपाध्याय बंगाल में राजनीतिक बहस के केंद्र में भी रहे हैं, इसलिए यह उनके लिए नया नहीं होगा. गांगुली ने कहा, “न्यायाधीश गंगोपाध्याय द्वारा पारित आदेश योग्यता पर आधारित थे. मुझे नहीं लगता कि उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए ये आदेश पारित किए. उनके आदेशों ने न्याय के लिए लड़ रहे लोगों को आशा दी.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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