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Thursday, 21 November, 2024
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हिंदी थोपने के विरोध के बाद एचआरडी मंत्रालय ने नीति मसौदे में किया सुधार

गैर-हिंदी राज्यों विशेषकर तमिलनाडु और कर्नाटक के कई नेताओं ने इस शिक्षा नीति का विरोध किया था.

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नई दिल्ली: दक्षिणी राज्यों से विरोध के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) मसौदे में सुधार किया है. एनईपी के आलोचकों का कहना है कि गैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपी जा रही है.

इस पैराग्राफ का अब शीर्षक ‘त्रिभाषा फार्मूला में लचीलापन’ दिया गया है. इसमें कहा गया है कि छात्र जो तीन भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैं, वे ऐसा कक्षा 6 या 7 में कर सकते हैं.

यह संशोधन नीति के मसौदे में किया गया है और 30 जून तक जनता के सुझावों के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर रखा गया है. मसौदा नीति में यह भी कहा गया है कि तीन भाषा फार्मूला देश भर में लागू करने की जरूरत है. ऐसा बहुभाषी देश में बहुभाषा संचार क्षमताओं के लिए जरूरी है.

इसमें कहा गया, ‘इसे कुछ राज्यों, विशेष रूप से हिंदी-भाषी राज्यों में बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए. इसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण के लिए है, हिंदी-भाषी क्षेत्रों के स्कूलों को देश के अन्य हिस्सों की भाषाओं को सिखाना चाहिए.’

बता दें कि फ्लेक्सिबिलिटी के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए यह कहा गया कि जो छात्र कक्षा छह या सात में पढ़ाई कर रहे हैं अगर वो एक या तीन से अधिक भाषाओं को बदलना चाहते हैं तो वह ऐसा कर सकते हैं, अगर वह अपने बोर्ड की परीक्षा में तीनों भाषाओ (एक साहित्य की भाषा ) में प्रवीणता को प्रदर्शित करते हैं मूल मसौदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 में तीन-भाषा के फार्मूले ने गैर-हिंदी राज्यों में मातृभाषा के अलावा अंग्रेजी और हिंदी को शामिल करने की सिफारिश की, जबकि हिंदी-भाषी राज्यों में भारत के अन्य हिस्सों से अंग्रेजी और एक भारतीय भाषा को शामिल करना था.

नई शिक्षा मसौदा नीति में कहा गया था कि बहुभाषावाद भारत की जरूरत है जब तक कि विकसित दुनिया के रूप में इसे बोझ के बजाय किसी के सीखने और विस्तार करने का एक वरदान माना जाना चाहिए.

गैर-हिंदी राज्यों विशेषकर तमिलनाडु और कर्नाटक के कई नेताओं ने इस शिक्षा नीति का विरोध किया था. तमिलनाडु में विभिन्न पार्टी के नेताओं ने कहा था कि राज्य किसी भी फैसले को बर्दाश्त नहीं करेगा.

इसी भावना को देखते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कहा था कि केंद्र किसी भी भाषा को बाध्य नहीं कर सकता है. हालांकि, इस उग्र विवाद के बावजूद केंद्र ने कहा था कि यह नीति केवल परिवर्तनों के अधीन एक मसौदा था और यह सुनिश्चित किया कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा.

मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने शनिवार को एएनआई को बताया था कि ‘इस समिति का गठन नई शिक्षा नीति को बनाने के लिए किया गया था. उस समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है. समिति की रिपोर्ट केवल मंत्रालय को मिली है. किसी भी राज्य में कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी.

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