बिलिमोरा, गुजरात: ऐसा हर दिन नहीं होता कि आसमान से सोना गिरता हो, लेकिन गुजरात के नवसारी जिले के बिलिमोरा गांव में 100 साल पुराने घर में चार मज़दूरों के साथ ऐसा ही हुआ. लकड़ी की छत टूटने के साथ ही सोने के सिक्कों का झरना बहने लगा.
यह जनवरी 2023 का समय था. माना जाता है कि ब्रिटिश काल के 240 सिक्के, जिनकी कीमत कम से कम 1.11 करोड़ रुपये थी, मजदूरों के साथ बिलिमोरा से गुजरात के वलसाड और फिर मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के एक छोटे से गांव सोंडवा तक गए, जहां वह तब तक छिपे रहे — जब तक कि पुलिस की छापेमारी, आदिवासियों का विरोध और मध्य प्रदेश पुलिस पर सिक्के चुराने का आरोप सामने नहीं आया.
जैसे ही बात फैली और एक अकेले सिक्के की तस्वीरें वायरल हुईं, इसने दो राज्यों के कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शामिल करते हुए सोने की उन्मादी खोज शुरू कर दी. मध्य प्रदेश के अलीराजपुर के चार पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया, आदिवासी परिवारों को गिरफ्तार कर लिया गया और गुजरात में नवसारी पुलिस की अपराध शाखा ने दो महीने से भी कम समय में पांच बार मध्य प्रदेश का दौरा किया.
उन्होंने कड़ी मेहनत से मज़दूरों और यहां तक कि एक स्थानीय जौहरी से भी नकदी बरामद की. कई महीनों की तलाश के बाद पुलिस टीम दिसंबर 2023 में 240 सोने के सिक्कों के साथ गुजरात लौट आई. तब से, सोने ने सार्वजनिक कल्पना पर कब्जा कर लिया है — इतिहासकारों, पुलिस अधिकारियों, वकीलों और अदालतों को बहस में शामिल कर लिया है.
हर कोई, ठेकेदार से लेकर मज़दूरों तक, एएसआई और अब नष्ट हो चुकी पैतृक संपत्ति का मालिक — ब्रिटेन के लीसेस्टर से उड़ान भरने वाला एक एनआरआई — लाखों डॉलर का सवाल पूछ रहा है: इस संपत्ति को कौन रखेगा? यह राष्ट्रीय खजाना हो सकता है — और ‘खोजने वाले रखने वाले’ और ‘मालिक’ के विचित्र विचार सरकार के साथ कोई मतभेद नहीं पैदा कर रहे हैं.
लगभग 7.98 ग्राम के वजनी सोने के सिक्के, जिनमें से प्रत्येक पर किंग जॉर्ज पंचम की तस्वीर उकेरी गई है, अब नवसारी में पुलिस गोदाम में एक तिज़ोरी में बंद हैं. वे मोटे किनारे से बने चमचमाते सोने के जैसे हैं, मानो उन्हें हाल ही में बनाया गया हो और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और पुलिस के अलावा किसी की भी उन तक पहुंच नहीं है.
डेक्कन कॉलेज, पुणे में पुरातत्व के प्रोफेसर अभिजीत दांडेकर ने कहा, “यह सिक्कों की एक विशेष सीरीज़ का हिस्सा है जो 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान जारी किए गए थे और महारानी एलिजाबेथ, विक्टोरिया और किंग जॉर्ज पंचम के समय तक जारी रहे.”
रहस्य यह है कि इतने समय तक सिक्के छिपे कैसे रहे. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सुझाव दिया कि चूंकि वे एक लकड़ी के बक्से में सुरक्षित थे और जर्ज़र हो चुके ऊंची छत में बने हिस्से में छिपाए गए थे, इसलिए यह दशकों तक किसी के ध्यान में नहीं आए. नवसारी पुलिस टीम के लिए पुनर्प्राप्ति एक अच्छा काम है, ऐसा अक्सर नहीं होता कि उन्हें खजाने की खोज में जाने का मौका मिले.
नवसारी जिले के एक पुलिस अधीक्षक सुशील अग्रवाल ने कहा, “यह एक बड़ी कोशिश थी जिसमें गुजरात से मध्य प्रदेश तक काफी आना-जाना शामिल था. इतनी संपत्ति (जिले में) पहले कभी बरामद नहीं हुई थी और यह चांदी नहीं, बल्कि सोना है.”
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जिस दिन सोना बरसा
जब हवाबेन ने स्थानीय ठेकेदार सरफराज कराडिया को अपने पति के दो मंजिला पैतृक घर के हिस्से को तोड़ने का काम सौंपा, तो किसी ने इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं. यह बिलिमोरा की एक शांत सड़क पर कई पुराने घरों में से एक था, इसका मुख्य गेट सीधे चौड़ी सड़क पर खुलता था, एक समय तक जीवंत रहा ये मकान 40 साल के एकांत के बाद गंदे गहरे हरे रंग में बदल गया था.
जेसीबी ने पहले ही इमारत का एक हिस्सा ढहा दिया था और कराडिया ने मध्य प्रदेश के आदिवासी जिले अलीराजपुर के सोंडवा गांव से आदिवासी मज़दूरों के एक समूह को जेसीबी के साथ अंदर लकड़ी की छतें तोड़ने के लिए बुलाया. जिस दिन सोने की बारिश शुरू हुई उस दिन भी वे साइट पर नहीं था.
दो मज़दूर, राजू भैदिया और उनकी पत्नी बजरी, अपने फावड़े और हथौड़ों के साथ निचली मंज़िल पर थे, जब उन्होंने खड़खड़ाहट और गड़गड़ाहट की आवाज़ें सुनीं. जैसे ही उन्होंने छत के खुले छेद से पहली मंजिल की ओर देखा, उन पर कम से कम 12 फीट की ऊंचाई से ज़मीन की ओर सिक्के गिर रहे थे. घबराहट में उन्होंने अन्य दो मज़दूरों, अपने रिश्तेदारों, रामकुबाई भयड़िया और उनके नाबालिग बेटे को सूचित किए बिना, सिक्के इकट्ठा करना शुरू कर दिया.
पुलिस को दिए गए उनके बयानों के आधार पर घटनाओं के क्रम को जोड़ते हुए एसपी ने कहा, “यह दिखाता है कि व्यक्तियों के बीच अविश्वास था.” लेकिन रामकुबाई और उनके बेटे ने शोर सुना, ऊपरी मंजिल से नीचे पहुंचे और सोने की मदद करने लगे. जितना उन्होंने अपनी ज़िंदगी में देखा होगा यह संपत्ति उससे कहीं अधिक थीं.
अब ध्वस्त हो चुका घर बिलीमोरा के बलिया परिवार की पैतृक संपत्ति का आधा हिस्सा था. संपत्ति का एक हिस्सा, चमकीले नारंगी रंग में रंगा हुआ था, जहां सारी सुविधाएं थी, — यह हवाबेन के बहनोई, शब्बीरभाई बलिया का घर है, जो यहां पले-बढ़े तीन भाइयों में से एक हैं. (तीसरा भाई जिसने संपत्ति का अपना हिस्सा हवाबेन को बेच दिया, वह ऑस्ट्रेलिया में है.)
लेकिन दो महीने पहले मकान का जर्जर हिस्सा ढह गया. शब्बीरभाई के परिवार में दहशत फैल गई क्योंकि उनके घर के कुछ हिस्सों में भी दरारें आ गईं. दोनों घरों में पीछे की दीवार और लकड़ी के बीम और खंभे आपस में जुड़े हुए हैं. ब्रिटेन में हवाबेन के परिवार को पच्चीसों कॉलें की गईं, जो ढांचे को ढहाने की व्यवस्था करने के लिए भारत आए थे.
कराडिया को ठेका दिया गया. वो पास ही के शहर में रहता था, लेकिन परिवार उसे जानता था और आखिरकार जनवरी 2023 में काम शुरू हुआ. किसी भी मज़दूर ने कराडिया को सिक्कों के भंडार के बारे में सूचित नहीं किया. कोई भी उनकी निगरानी नहीं कर रहा था क्योंकि वे एक महत्वहीन कार्य में लगे हुए थे.
खोज के बाद कई दिनों तक, राजू, बजरी, और रामकुबाई और उसके बेटे ने घर पर काम किया, हर एक ईंट, बीम और बार को उखाड़ दिया. उन्होंने बलिया परिवार के सदस्यों से बातचीत की, लेकिन सोने का कोई ज़िक्र नहीं किया.
शब्बीरभाई के 30 साल के बेटे शोएब ने कहा, “इतने नज़दीक होने के बावजूद हमें इस सोने के बारे में कुछ नहीं पता था.”
12वें दिन मज़दूर चले गए. उनके ठेकेदार के पास पड़ोसी शहर वलसाड में उनके लिए एक और काम था. उन्होंने फरवरी के अंत तक वह काम पूरा किया और मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के सोंडवा गांव में अपने घर लौट आए.
महीनों तक, सोने के सिक्के गांव में ही पड़े रहे, जब तक कि जुलाई में पुलिस ने रामकुबाई के घर पर छापा नहीं मारा.
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खजाने की खोज
सोने से भरपूर, राजू और रामकुबाई ने अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने खेतों में ट्यूबवेल और सिंचाई की व्यवस्था करवाई. रामकुबाई के एक रिश्तेदार ने मोटरसाइकिल खरीदी, दूसरे ने कार खरीदने की अपनी योजना के बारे में डींगें मारीं. उनकी नई संपत्ति के स्रोत के बारे में बड़बड़ाहट शुरू हो गई. पुलिस के अनुसार, ग्रामीणों को यकीन था कि उन्होंने अवैध शराब का कारोबार शुरू कर दिया है.
फिर, जब रामकुबाई कुछ सिक्के एक स्थानीय जौहरी, गोपाल ओमप्रकाश गुप्ता के पास ले गईं, तो सिर चकरा गया. फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं. अब, हर कोई उसके ‘अनोखे’ सोने के सिक्कों के बारे में बात कर रहा था. सोंडवा पुलिस के खबरी (मुखबिरों) के नेटवर्क ने इसे पकड़ लिया और 19 जुलाई को चार पुलिसकर्मियों की एक टीम ने अवैध शराब के कारोबार पर नकेल कसने के बहाने रामकुबाई के घर पर छापा मारा.
अगले दिन, रामकुबाई सीधे सोनवाड़ा थाने पहुंची और चार अधिकारियों-एसएचओ विजय देवड़ा और कांस्टेबल राकेश डावर, सुरेश चौहान और वीरेंद्र सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और उन पर उसके हिस्से के सोने के सिक्के चुराने का आरोप लगाया. तब तक गांव में हंगामा मच गया था, निवासियों का दावा था कि पुलिस आदिवासियों को निशाना बना रही थी और परेशान कर रही थी.
नवसारी पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “यह अलीराजपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति बन गई, जहां लगभग 97 प्रतिशत आदिवासी आबादी है. मामले को पुलिस द्वारा आदिवासी ग्रामीणों को परेशान करने के तौर पर देखा जा रहा था और यह (विधानसभा) चुनाव के समय सामने आ रहा था. बमुश्किल तीन हफ्ते पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में सार्वजनिक रैलियों के साथ दिसंबर चुनाव के लिए भाजपा के अभियान की शुरुआत की थी.”
इस बात से चिंतित होकर कि चुनाव के दौरान विरोध प्रदर्शन एक मुद्दा बन जाएगा, सोनवाड़ा पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की. रामकुबाई की 20 जुलाई की शिकायत के आधार पर, 240 सोने के सिक्के चुराने के आरोप में चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 379 के तहत एफआईआर दर्ज की गई. इन आरोपों की जांच के लिए मध्य प्रदेश पुलिस ने एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था.
लीसेस्टर में हवाबेन को अगली सुबह एक कॉल से जगाया गया. यह एक जानने वाले की ओर से था जिसे उसने अब ध्वस्त हो चुके घर की चाबियां सौंपी थीं. हवाबेन ने घबराई हुई कॉल को याद करते हुए कहा, “मध्य प्रदेश से पुलिस आपके घर आई है. बाद में एमपी पुलिस सीधे उनके पास पहुंची.”
उन्होंने कहा, “पुलिस ने पूछा कि क्या मैंने ठेकेदार कराडिया को काम पर रखा है. तब मुझे पता चला कि घर को गिराए जाने के दौरान सोना मिला था.”
उसके बहनोई और पड़ोस में रहने वाले उसके परिवार से भी पूछताछ की गई. चिकन की दुकान चलाने वाले शोएब अमेरिका में थे जब उनके परिवार ने उन्हें पुलिस के आने की सूचना दी. उनके पास भी ऐसी ही कॉल आई थी.
उन्होंने कहा, “उन्होंने मुझे बताया कि मध्य प्रदेश पुलिस ध्वस्त संपत्ति को देखने के लिए मज़दूरों के साथ हमारे घर आई थी और हमें बात करने के लिए थाने आने के लिए कहा था.”
तब तक, गुजरात में नवसारी पुलिस को सोने के गायब होने के बारे में पता चल गया था, लेकिन उन्हें किनारे रहने के लिए मज़बूर होना पड़ा. वे जांच नहीं कर सके क्योंकि एफआईआर मध्य प्रदेश में दर्ज की गई थी.
लेकिन अक्टूबर तक, हवाबेन लापता सोने के बारे में सैकड़ों सवालों के साथ बिलिमोरा लौट आईं. उन्होंने ठेकेदार समेत आदिवासी परिवारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. नवसारी पुलिस के लिए मामले की तह तक जाना काफी था. उन्होंने मज़दूरों और ठेकेदार पर आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 114 (अपराध होने पर मौके पर मौजूद उकसाने वाला) के तहत एफआईआर दर्ज की.
यह इस बात की होड़ बन गई कि सोने के सिक्के पहले कौन ढूंढेगा-नवसारी पुलिस या मध्य प्रदेश में उनके समकक्ष, जो तीन महीने से व्यस्त थे.
गुजरात पुलिस ने कैसे सुलझाया मामला?
एसपी सुशील अग्रवाल ने 15 पुलिसकर्मियों की तीन टीमें तैनात कीं जिनका मुख्य काम मज़दूरों की तलाश करना था. दो महीनों में टीमों ने बारी-बारी से अलीराजपुर तक लगभग 300 किमी की पांच बार यात्रा की.
पुलिस ने मीडिया में केवल एक सिक्के की तस्वीर देखी थी.
जांच से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “पुलिसकर्मियों के निलंबन से जुड़े पिछले मामले के कारण स्थानीय पुलिस बहुत सहयोग नहीं कर रही थी. हमें गांव में होने वाली गतिविधियों का अंदाज़ा लगाने के लिए भेष बदलना पड़ा.”
जानकारी लेने के लिए टीम सादे कपड़े पहनकर आदिवासियों से घुलने-मिलने लगी. यह अंडरकवर ऑपरेशन दो महीनों में पांच दौरों में चलाया गया.
अलीराजपुर के बाज़ारों और गांव के केंद्र में सुनी और उनके साथ साझा की गई गपशप के अंशों के माध्यम से गुप्त पुलिस वालों को रामकुबाई द्वारा अपने घर की मरम्मत के बारे में पता चला. अफवाहों का बाज़ार गर्म था, लेकिन आदिवासी परिवारों तक पहुंचना पुलिस के अनुमान से कहीं बड़ी चुनौती साबित हो रहा था.
जांच अधिकारियों में से एक ने कहा, “इलाका खतरनाक था, उनके घर पहाड़ियों की चोटी पर स्थित थे. एक समय तो दो पुलिसकर्मी गिर गए और गुजरात लौट गए. एक अन्य जांच अधिकारी को संदेह था कि स्थानीय लोगों के समर्थन के कारण रामकुबाई और अन्य लोग आसानी से उनसे बच सकते हैं.
नवसारी क्राइम ब्रांच के दो रात के ऑपरेशन फेल हो गए थे. आखिरकार, पुलिस ने 26 दिसंबर की दोपहर को चारों- रामकुबाई, उसके बेटे, राजू और बजरी को पकड़ लिया.
उनकी गिरफ्तारी के बाद, नवसारी अपराध समूह कुछ ही दिनों में सोने के सिक्के बरामद करने में सक्षम हो गया — राजू और बजरी से 175 और रामकुबाई से 24. कुछ को उनके खेतों में दफनाया गया, कुछ चावल की बोरियों में छिपाए गए थे. पुलिस ने सुनार गुप्ता का भी पता लगाया और उसके पास से 41 सिक्के एकत्र किए. रामकुबाई और राजू के भाई ने उन्हें कर्ज के लिए गिरवी रखा था.
प्रोफेसर दांडेकर, जो एक मुद्राशास्त्र विशेषज्ञ भी हैं, के अनुसार सिक्के भारत में लेनदेन के लिए नहीं थे. जिस चमकदार अवस्था में वे पाए गए, उससे पता चलता है कि वे किसी भी समय “प्रचलन में नहीं थे या उपयोग में नहीं थे”.
नवसारी पुलिस ने भी कुछ खुदाई की और पाया कि वे संप्रभु सोना थे जिन्हें 1917-1931 के बीच लंदन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में ढाला गया था. एसपी अग्रवाल ने कहा, “लेकिन एक साल के लिए 1918 में, उन्हें बॉम्बे में ढाला गया था, जो उन्हें गायकवाड़ राजवंश के तहत एक गोदी शहर बिलिमोरा में समाप्त होने की वजह बता सकता है.”
यह सोना किसका है?
हवाबेन के लिए पिछले कुछ महीने अवास्तविक रहे हैं जिन्होंने अभी तक कुख्यात सोना नहीं देखा है. शोएब भी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या हुआ था. जब पुलिस परिवार के पास पहुंची, तो तुरंत ठेकेदार से संपर्क किया गया, जिसे मीडिया के माध्यम से ही इसके बारे में पता चला, लेकिन वो सभी को बता रहा है कि और भी सिक्के मिलेंगे.
शोएब ने कहा, “कराडिया ने शुरू में मुझे बताया कि मज़दूरों को 700 सिक्के मिले. जब मैंने और दबाव डाला, तो उसने कहा कि 900 सिक्के हैं और फिर अंततः उसने कहा कि उन्हें लगभग 1,900 सिक्के मिले हैं.”
सिक्कों की खोज से परिवार को कोई हैरानी नहीं थी. शोएब यह कहानियां सुनते हुए बड़ा हुआ था कि उसके पूर्वज कितने अमीर थे. उसने कहा, “ऐसी कहानियां थीं कि कैसे मेरे पूर्वज अपनी बेटियों को शादियों में ढेर सारा सोना देते थे.”
हवाबेन अभी भी भारत में अपने पिता के साथ बिलिमोरा के पास रंकुवा गांव में हैं. उसे नहीं मालूम कि उसका अगला कदम क्या होगा, लेकिन इसमें संभवतः वकील शामिल हैं.
उसने कहा, “फिलहाल, पुलिस काम कर रही है. मैं उनसे बात करूंगी और सोचूंगी कि आगे क्या करना है.”
पुलिस का कहना है कि हवाबेन को अपना स्वामित्व साबित करना होगा, जबकि खजाने से टकराने वाले चार आदिवासी पहले ही अपना दावा ठोक चुके हैं. इस बीच, वडोदरा में एएसआई ने सिक्कों के बारे में अध्ययन किया और अपनी रिपोर्ट लिख रही है. एसपी का कहना है, “आगे क्या करना है, यह तय करने से पहले हम रिपोर्ट का इंतज़ार करेंगे.”
सोने के सिक्कों की बारिश होने के एक साल से भी ज्यादा समय बाद भी पुराने घर का कोई पता नहीं है. ज़मीन से मलबा हटाकर समतल कर दिया गया है, लेकिन हवाबेन और शोएब नतीजे से संतुष्ट नहीं हैं. वे जानना चाहते हैं कि वे सिक्के कहां हैं जो मध्य प्रदेश के चार पुलिसकर्मी ले गए.
हवाबेन ने कहा, “यह सिर्फ 240 सिक्के नहीं हैं. वहां और भी हैं. इसलिए मैंने पुलिस से उनकी तलाश करने को कहा है.”
हर कोई आश्वस्त है कि बिलिमोरा और अलीराजपुर के बीच कहीं न कहीं सोने का एक और बर्तन है.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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