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Friday, 22 November, 2024
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दक्षिण भारत हिंदी पट्टी से कम धार्मिक नहीं है, प्यू सर्वे ने उत्तर-दक्षिण विभाजन को खत्म कर दिया

प्यू के 2020-2021 सर्वे के अनुसार, रीति-रिवाजों में अंतर है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के संदर्भ में उत्तर-दक्षिण विभाजन का कोई सबूत नहीं है.

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हाल के दिनों में समकालीन भारत में उत्तर-दक्षिण विभाजन की प्रमुखता पर बार-बार बहस होती रही है. चुनाव के नतीजों से लेकर व्यक्तिगत मान्यताओं और पूजा करने के तरीकों तक, इन दोनों क्षेत्रों को अक्सर अलग-अलग बताया जाता रहा है. इस निरर्थक न्यूनीकरणवादी दृष्टिकोण से दावा यह भी किया गया है कि जहां दक्षिण भारत तर्कसंगतता और धर्मनिरपेक्ष आधुनिकता का पैरोकार है, वहीं हिंदी पट्टी रूढ़िवादिता और धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों से ग्रस्त रहती है.

हालांकि, अनुभवजन्य सबूत इसे जुमला बताते हैं. पूरे भारत में 2020-2021 में प्यू इंटरनेशनल द्वारा धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं पर किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, हमने पाया कि विशिष्ट अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों की घटनाओं में कुछ अंतर हो सकते हैं, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं, जो उत्तर और दक्षिण भारत के बीच किसी बड़े अंतर को दर्शाता हो. ज़ाहिर है, हिंदुओं के बीच धार्मिक प्रथाएं पूरे देश में सर्वव्यापी हैं.

अपने विश्लेषण में हम बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को हिंदी पट्टी के राज्यों के रूप में वर्गीकृत किया और आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और तेलंगाना को दक्षिण भारतीय राज्यों की लिस्ट में रखा. धार्मिक मान्यताओं के विभिन्न आयामों पर हम उत्तर और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच बहुत कम अंतर पाते हैं.


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विभाजन को पाटना

सबसे पहले, ईश्वर में आस्था. यहां तक कि दक्षिण में भी, नास्तिकता अल्पसंख्यक वर्ग (2 प्रतिशत) तक ही सीमित है. हम दोनों क्षेत्रों के हिंदुओं में ईश्वर के प्रति लगभग एक जैसी आस्था पाते हैं. सर्वे में हिंदी पट्टी और दक्षिण भारत में क्रमशः 99 प्रतिशत और 98 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनकी ईश्वर में आस्था है.

हालांकि, दोनों क्षेत्रों में अधिकांश हिंदुओं के लिए धर्म महत्वपूर्ण है, लेकिन अंतर अलग-अलग है. हिंदी पट्टी में, 10 में से लगभग नौ हिंदुओं (89 प्रतिशत) ने कहा कि वे धर्म को अपने जीवन में बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं, जबकि आंध्र प्रदेश के अलावा इन कईं राज्यों में ये संख्या लगभग दो-तिहाई (68 प्रतिशत) है.

दूसरा, रोज़ाना पूजा करना एक मुख्य पहलू है. सर्वे में हिंदी पट्टी में लगभग चार में से पांच (81 प्रतिशत) हिंदुओं और दक्षिण भारत में 10 में से सात से अधिक (72 प्रतिशत) ने कहा कि वो हफ्ते में कम से कम एक बार पूजा करते हैं. दक्षिण भारत में यह आंकड़ा उत्तर की तुलना में कम हो सकता है, लेकिन फिर भी यह अत्यधिक उच्च स्तर की धार्मिकता का संकेत देता है.

तीसरा, जबकि दक्षिण भारतीय हिंदुओं द्वारा घर पर पूजा करने की संभावना थोड़ी कम हो सकती है, वे मंदिर जाने में अधिक नियमित हैं. लगभग 62 प्रतिशत ने बताया कि वे हफ्ते में कम से कम एक बार मंदिर जाते हैं, जबकि हिंदी पट्टी में यह आंकड़ा 57 प्रतिशत है. दिलचस्प बात यह है कि यह अंतर मुख्य रूप से दक्षिण भारत में दलितों और ओबीसी के बीच मंदिरों में जाने की अधिक आवृत्ति के कारण है. उदाहरण के लिए उत्तर में 51 प्रतिशत हिंदू ओबीसी ने सप्ताह में कम से कम एक बार मंदिर जाने की सूचना दी, जबकि दक्षिण में इसी समूह में यह 60 प्रतिशत तक था. इसी तरह दक्षिण भारत के दलितों का एक बड़ा हिस्सा नियमित रूप से मंदिर जाता है.

चौथा, हमने पाया कि दोनों क्षेत्रों में चार में से पांच परिवारों ने शुभ अवसरों, विवाह जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों की तारीखें तय कीं. वास्तव में, दक्षिण में अनुपात (90 प्रतिशत) उत्तर (84 प्रतिशत) की तुलना में थोड़ा अधिक था.

अंततः, जबकि दोनों क्षेत्रों में अधिकांश व्यक्ति धार्मिक उपवास करते हैं. इसका प्रचलन काफी अलग है. सर्वे में, उत्तर भारत के 85 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने धार्मिक व्रत-उपवास की बात की, जबकि दक्षिण भारतीय हिंदुओं में दो-तिहाई (68 प्रतिशत) से थोड़ा अधिक था.

हालांकि, विभिन्न प्रथाओं और रीति-रिवाजों में संलग्नता के संदर्भ में धार्मिकता दोनों क्षेत्रों में समान है, लेकिन धर्म से जुड़े महत्व में कुछ उल्लेखनीय अंतर हैं. उदाहरण के लिए जबकि उत्तर (98 प्रतिशत) और दक्षिण (91 प्रतिशत) में लगभग सभी व्यक्तियों ने कहा कि धर्म उनके लिए बहुत या कुछ हद तक महत्वपूर्ण था. उत्तर भारत के राज्यों में 10 में से लगभग नौ उत्तरदाताओं (89 प्रतिशत) ने कहा कि धर्म उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था, जबकि दक्षिण में संख्या कम, लेकिन फिर भी बड़ा अनुपात (68 प्रतिशत) था. लगभग एक-चौथाई उत्तरदाताओं ने धर्म को कुछ हद तक महत्वपूर्ण माना.

नेटफ्लिक्स पर ब्रिटिश ड्रामा सीरीज़ द क्राउन में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का किरदार तत्कालीन निवर्तमान प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर से टिप्पणी करता है कि कैसे आलोचकों ने उनके मतभेदों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है और कई चीज़ों को नज़रअंदाज कर दिया है जो उनके बीच समान थीं. दुर्भाग्य से, यही बात उन लोगों के लिए भी सच है जो धार्मिक उत्तर-दक्षिण विभाजन को बुनियादी अंतर के रूप में सामने लाते हैं. हालांकि, उत्तर और दक्षिण या यहां तक कि पूरे दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच धार्मिकता में कुछ हद तक अंतर निश्चित रूप से निर्विवाद है, लेकिन इन दोनों क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण अंतर का दावा करना गलत होगा.

(प्रणव गुप्ता कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले में राजनीति विज्ञान में डॉक्टरेट कैंडिडेट हैं. डॉ. ओमकार जोशी मैरीलैंड यूनिवर्सिटी, कॉलेज पार्क में समाजशास्त्र विभाग और मैरीलैंड जनसंख्या अनुसंधान केंद्र में एक रिसर्च फेलो हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं और किसी भी संगठन की स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते जिससे लेखक संबद्ध हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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