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Friday, 15 November, 2024
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स्पीकर के फैसले को मराठी में समझाना, दस्तावेज़ पेश करना- उद्धव ठाकरे जनता से मांग रहे हैं न्याय

जनता न्यायालय में स्पीकर राहुल नार्वेकर के 'असली' शिवसेना पर फैसले के बाद महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा, 'आखरी फैसला जनता सुनाएगी.'

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मुंबई: पिछले सप्ताह महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुट को “असली शिवसेना” बताए जाने के बाद उनकी पार्टी के पहले सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रम में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को कहा, वह “न्याय के लिए लोगों के पास आए हैं.”

आउटरीच कार्यक्रम, जिसका शीर्षक ‘जनता न्यायालय’ वर्ली में आयोजित किया गया था, यह विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में उद्धव के बेटे आदित्य के पास है और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ने नार्वेकर के आदेश के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश की.

महाराष्ट्र स्पीकर का आदेश इस साल अप्रैल-मई में देश में होने वाले आम चुनाव और बाद में अक्टूबर में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले आया था.

लोगों से खचाखच भरे हॉल में उद्धव ने कहा, “अब मुझे सुप्रीम कोर्ट से आखिरी उम्मीद है, लेकिन लोकतंत्र में अंतिम फैसला जनता ही सुनाती है और इसलिए मैं न्याय के लिए जनता की अदालत में आया हूं.”

10 जनवरी को, शिव सेना के पूर्व नेता नार्वेकर, जो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में हैं, ने कहा कि शिंदे का गुट ही असली है. स्पीकर, मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो महीने की समयसीमा दिए जाने के बाद एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली शिवसेना के दो गुटों द्वारा दायर क्रॉस-याचिकाओं पर अपना फैसला सुना रहे थे, हालांकि, बाद में किसी भी गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराने से इनकार कर दिया.

नार्वेकर का फैसला भारत के चुनाव आयोग द्वारा आधिकारिक तौर पर शिंदे के गुट शिव सेना को पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न का अधिकार दिए जाने के ठीक एक साल बाद आया है.

ये सभी याचिकाएं उद्धव के नेतृत्व में तत्कालीन अविभाजित शिवसेना के खिलाफ शिंदे के 2022 के विद्रोह से जुड़ी हैं. शिंदे और उनके विधायकों के गुट ने महायुति बनाने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन किया, जिसमें पिछले साल जुलाई से, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजीत पवार के गुट भी शामिल है. महाराष्ट्र में गठबंधन सत्ता में है.

शिवसेना (यूबीटी) ने पिछले फरवरी में चुनाव आयोग के आदेश और पिछले हफ्ते महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के फैसले दोनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

मंगलवार के कार्यक्रम में, उद्धव ने न केवल सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन, बल्कि चुनाव आयोग के खिलाफ भी जमकर हमला बोला.

उन्होंने कहा, “हमें अब सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के खिलाफ एक और मामला दायर करना चाहिए. हमने चुनाव आयोग को 19 लाख हलफनामे सौंपे थे. उन्होंने इसके साथ क्या किया है? इन शपथ पत्रों को भरने के लिए हमारे शिवसैनिकों ने अपना पैसा खर्च किया. यह कुछ और नहीं बल्कि चुनाव आयोग का घोटाला है.”

उन्होंने नार्वेकर पर भी कटाक्ष किया, जिन्होंने पिछले हफ्ते अपने फैसले में कहा था कि कौन-सा गुट असली है, यह तय करने के लिए शिवसेना का 1999 का संविधान (और 2018 का संविधान नहीं) वैध था.

उद्धव ने सवाल किया, “अगर 1999 का पार्टी संविधान अंतिम वैध था और मैं पार्टी नेता या शिवसेना का प्रमुख नहीं था, तो बीजेपी ने 2014 में राज्य में सरकार बनाने के लिए समर्थन और 2014 और 2019 में लोकसभा के दौरान समर्थन के लिए मुझसे हस्ताक्षर क्यों लिए?”

इसके जवाब में महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने पूर्व सीएम पर उनके फैसले के बारे में गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, “मैंने जो फैसला सुनाया है, उसके बारे में गलतफहमी फैलाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, स्पीकर, राज्यपाल और चुनाव आयोग के खिलाफ टिप्पणी की है. ऐसा लगता है कि उन्हें (शिवसेना-यूबीटी) किसी भी संस्था पर भरोसा नहीं है.”


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‘लड़ने के लिए तैयार हूं’

मंगलवार को जनता की अदालत में, उद्धव ने कहा कि अब वे अपना मामला सीधे जनता के पास ले जाएंगे ताकि यह तय हो सके कि “क्या सही है और क्या गलत है”.

आलोचकों ने अक्सर उद्धव पर आरोप लगाया है, जो शिंदे के विद्रोह के बाद नवंबर 2019 से जून 2021 में अपनी सरकार के पतन तक मुख्यमंत्री थे.

कार्यक्रम में बोलते हुए, वरिष्ठ शिव सेना (यूबीटी) नेता अनिल परब ने दस्तावेज प्रस्तुत किए, उन्होंने दावा किया कि विचार के लिए अध्यक्ष को प्रस्तुत किया गया था. परब ने कहा, शीर्ष अदालत ने नार्वेकर को पार्टी के संविधान और नेतृत्व संरचना पर विचार करने के लिए कहा था, लेकिन स्पीकर ने उनके फैसले पर भरोसा करना चुना, जो चुनाव आयोग के फरवरी 2023 के फैसले पर आधारित था.

शिवसेना के 2018 के संशोधित संविधान में कथित तौर पर 2023 में चुनाव होने तक पांच साल की अवधि के लिए पक्ष प्रमुख (पार्टी प्रमुख) उद्धव ठाकरे का कार्यकाल तय किया गया था. उन्हें कथित तौर पर पार्टी में “सर्वोच्च अधिकार” भी दिया गया था और उन्होंने कहा था कि उनके फैसले नीतिगत और प्रशासनिक मामलों पर निर्णय अंतिम होगा.

नार्वेकर ने अपने फैसले में 2018 में शिवसेना के संविधान को अवैध घोषित कर दिया.

नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना (यूबीटी) पार्टी के कथित संशोधित 2018 संविधान पर भरोसा कर रही है, जबकि शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ने तर्क दिया कि 1999 के संविधान को रिकॉर्ड पर लिया जाना चाहिए, क्योंकि नया संविधान कभी भी चुनाव आयोग को प्रस्तुत नहीं किया गया था.

नार्वेकर ने कहा, “यदि दोनों गुटों ने अलग-अलग संविधान प्रस्तुत किया है, तो इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि विवाद उत्पन्न होने से पहले चुनाव आयोग को संविधान दाखिल किया गया था… प्रथम दृष्टया, रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि 1999 का संविधान प्रतिद्वंद्वी गुटों से पहले शिवसेना द्वारा चुनाव आयोग को प्रस्तुत किया गया था.”

हालांकि, परब ने 2013 और 2018 के बीच उद्धव और चुनाव आयोग के बीच पत्राचार दिखाने वाले दस्तावेजों का हवाला दिया, जिसमें ठाकरे को पार्टी अध्यक्ष के रूप में संबोधित किया गया था.

उन्होंने कहा, “हमने ये दस्तावेज़ और सबूत चुनाव आयोग को सौंपे लेकिन उन्होंने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अब हम इसे सुप्रीम कोर्ट में जमा करेंगे.”

कार्यक्रम के बाद आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में, उद्धव से पूछा गया कि उन्होंने पूरे प्रकरण से क्या समझा, तो उन्होंने जवाब में कहा, “मैं अब मैदान में आ गया हूं और लड़ने के लिए तैयार हूं. मैं नहीं डरता.”

उन्होंने कहा कि आगे चलकर ऐसी और भी जनता की अदालते लगाई जाएंगी.

उन्होंने मीडिया से कहा, “मैं सही हूं या गलत, इसका फैसला जनता को करने दीजिए. अगर वे मुझसे कहेंगे तो मैं घर बैठ जाऊंगा. लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या भारत का लोकतंत्र जीवित रहेगा.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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