लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया है और पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा है कि अगर उन्हें कुछ होता है तो वे आकाश को अपना नेता मानें. यह निर्णय उनकी पहले की उन घोषणाओं के विपरीत है कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी परिवार से कोई नहीं होगा.
28 साल के आकाश के पास एमबीए की डिग्री है और उनके लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार, उन्होंने नोएडा के एक निजी स्कूल से अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड में प्लायमाउथ विश्वविद्यालय से पढ़ाई की. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा उस वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, सितंबर 2017 में उन्हें औपचारिक रूप से बसपा कार्यकर्ताओं से परिचित कराया गया था.
तब से, उन्हें चार बार की मुख्यमंत्री के “उत्तराधिकारी” के रूप में देखा गया है, जिन्होंने उन्हें 2019 के आम चुनाव के दौरान बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में नियुक्त किया था.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ एक घंटे तक चली बैठक के अंत में, मायावती ने रविवार को अपना निर्णय आधिकारिक कर दिया. उन्होंने उनसे कहा कि ”उनके साथ कोई अनहोनी होने पर आकाश को उनका उत्तराधिकारी मानें, जैसे बीएसपी संस्थापक कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बताया था.”
मुख्यमंत्री के रूप में मायावती के चौथे कार्यकाल (2007-12) के दौरान उनके ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) के तौर पर काम करने वाले ए.एन. भास्कर ने दिप्रिंट को बताया, “बहन जी ने कहा कि जैसे कांशीराम जी ने उनके नाम की घोषणा की थी, उसी तरह अगर उन्हें कुछ होता है तो आकाश को उनका उत्तराधिकारी माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह हमें आज (रविवार) पहले ही इसके बारे में सूचित कर रही हैं. फिलहाल, बहन जी सुप्रीमो हैं.”
उन्होंने कहा कि जबकि मायावती ने कहा कि आकाश फिलहाल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों में पार्टी के कामकाज की देखरेख करेंगे, वह आने वाले दिनों में यूपी में पार्टी की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए भी उन पर भरोसा करेंगी.
आकाश आनंद बैठक में उपस्थित थे, क्योंकि वह पार्टी की हाल की राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय बैठकों में रहे हैं. बैठक में शामिल हुए पार्टी नेताओं के मुताबिक, बसपा प्रमुख को अपने मंच पर चढ़ने के बाद उनके कंधे पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते देखा गया.
आकाश को अपना उत्तराधिकारी नामित करने के फैसले को पार्टी के भीतर मायावती (67) द्वारा अगली पीढ़ी को कमान सौंपने के रूप में देखा जा रहा है.
पूर्व एमएलसी और पश्चिम बंगाल व ओडिशा के लिए पार्टी के प्रभारी अतर सिंह राव ने दिप्रिंट को बताया कि “बहन जी” को पार्टी के उन नेताओं ने निराश किया, जिन पर उन्होंने पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए भरोसा किया था. उन्होंने कहा, “कई लोगों को उपाध्यक्ष बनाया गया, लेकिन वे समय पर काम नहीं कर सके और अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर सके. फिर उन्होंने (आकाश ने) उस पर ध्यान दिया और वह इस भूमिका के लिए बिल्कुल उपयुक्त लगे.”
मायावती की उम्र की ओर इशारा करते हुए, राव ने कहा कि उनकी राय है कि वह नहीं चाहतीं कि बहुजन आंदोलन कमजोर हो, यही कारण है कि उन्होंने “समय पर” अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
‘बहुजन मिशन’ का नया चेहरा
पिछले कुछ समय से यह स्पष्ट था कि आकाश आनंद को एक बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनावों में एसपी-बीएसपी गठबंधन की हार के बाद राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किए जाने के बाद उनकी जिम्मेदारियां कई गुना बढ़ गईं.
बसपा नेता उदयवीर सिंह ने रविवार को बैठक के बाद कहा, “बहन जी ने कहा कि वह (आकाश) यूपी और उत्तराखंड को छोड़कर उन राज्यों की देखभाल करेंगे जहां पार्टी कमजोर है.”
पूर्व एमएलसी और विधायक भीमराव अंबेडकर ने कहा, “वह (आकाश) राष्ट्रीय समन्वयक हैं, बहन जी को जहां भी उनकी आवश्यकता महसूस होगी वह वहां जाएंगे. देश भर में युवा बसपा कार्यकर्ता उनका इंतजार कर रहे हैं और वह जहां भी जाएंगे उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया जाएगा.”
“बहुजन मिशन को आज नया जीवन मिला है. बहन जी 18 घंटे काम करती हैं लेकिन लोग फिर भी उंगली उठाते हैं. जब आकाश काम करना शुरू करेंगे तो इससे कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार होगा.”
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विरोधाभासों का टाइमलाइन
मायावती ने हमेशा पार्टी के भीतर अपने परिवार के सदस्यों को बढ़ावा देने से इनकार किया है. 2007 में और फिर 2019 में, उन्होंने सार्वजनिक घोषणा की कि उनका उत्तराधिकारी उनके परिवार का सदस्य नहीं होगा.
2018 में, उन्होंने घोषणा की कि उनके भाई आनंद कुमार – आकाश आनंद के पिता और राजनीति में आने से पहले एक लो प्रोफ़ाइल व्यवसायी – ने बिना किसी संगठनात्मक भूमिका के बीएसपी की सेवा करने की पेशकश की थी, जबकि उस वक्त उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु कांशी राम की प्रतिबद्धता भी याद थी कि वे ताउम्र ब्रह्मचारी रहेंगे और उनके रिश्तेदारों का उनकी राजनीतिक विरासत पर दावा नहीं होगा.
हालांकि, 2017 तक, मायावती ने पहले ही अपने भाई को इस शर्त पर पार्टी का उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया था कि वह कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे. 2018 में भाई-भतीजावाद के आरोपों के बीच आनंद कुमार को उस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया था. यह निर्णय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग द्वारा उनके बारे में पूछताछ से पहले लिया गया था.
हालांकि, उनके भाई और भतीजे पार्टी के शीर्ष पदों पर वापस आ गए जब उन्होंने जून 2019 में उन्हें क्रमशः उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया.
मायावती को ट्विटर से जुड़ने के लिए मनाया
पार्टी नेताओं के अनुसार, पार्टी की सोशल मीडिया पर उपस्थिति के पीछे आकाश आनंद का हाथ है और उन्हें बसपा प्रमुख को ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) में पर आने के लिए मनाने का श्रेय दिया जाता है.
भास्कर ने कहा, “वह पार्टी के सोशल मीडिया के लिए काम करते रहे हैं और उनका काम पहले भी अच्छा रहा है. यह संभव है कि लोग उनके बारे में तब तक नहीं जानते थे जब तक वह पार्टी हलकों में एक प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं बन गए. लेकिन उनकी भागीदारी तब बढ़ी जब उन्हें राष्ट्रीय समन्वयक बनाया गया. वह पहले भी काम कर रहे थे, लेकिन उनके काम को उजागर नहीं किया गया.”
पार्टी में आकाश की बढ़ती भूमिका 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद स्पष्ट हो गई जब मायावती ने कहा कि वह पार्टी द्वारा किए गए कार्यों के बारे में वास्तविक प्रतिक्रिया इकट्ठा करने के लिए उन्हें राज्य के विभिन्न हिस्सों में भेजेंगी. इसी तरह, आकाश को हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में ज़मीनी स्तर पर चुनावी तैयारियों की देखरेख करते हुए देखा गया था.
मतदान के दिन से कुछ दिन पहले जब मायावती ने चुनाव वाले राजस्थान और मध्य प्रदेश की यात्रा की, तब तक आकाश दोनों राज्यों में चुनावी तैयारियों की समीक्षा कर रहे थे.
अगस्त में, जब बसपा ने धौलपुर से जयपुर तक 14 दिवसीय “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय संकल्प यात्रा” शुरू की, तो आकाश ने इस कार्यक्रम का प्रबंधन किया और पूरे राजस्थान में 100 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में कई जगह जनमानस को संबोधित किया.
बसपा की मध्य प्रदेश इकाई के एक नेता ने कहा, “उन्होंने (आकाश ने) विधानसभा चुनावों से पहले मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया और बहन जी के निर्देशों को ज़मीनी कार्यकर्ताओं तक पहुंचाया.”
‘आकाश का प्रभाव अभी भी ज्यादा नहीं’
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बसपा प्रमुख की रविवार की घोषणा इस बात का संकेत है कि उन्होंने संन्यास लेने का मन बना लिया है. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशिकांत पांडेय ने दिप्रिंट को बताया कि शायद मायावती को अहसास हो गया है कि उनके राजनीतिक करियर का चरम निकल चुका है.
उन्होंने कहा, “जिस तरह मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश और अन्य लोगों ने अतीत में कमान सौंपी है, उसी तरह उन्हें भी एहसास हुआ होगा कि अगली पीढ़ी को कमान सौंपने का समय आ गया है. उन्होंने महसूस किया होगा कि यह उनके उत्तराधिकारी का अभिषेक करने का सही समय है, यह सोचकर कि वह एक युवा चेहरा हैं और राज्य में बसपा की खराब होती स्थिति में मदद कर सकते हैं.”
हालांकि, पांडेय ने कहा कि आकाश आनंद की नियुक्ति अलग है क्योंकि कांशी राम हमेशा कहते थे कि उनके परिवार से कोई भी उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं होगा और मायावती ने भी इसी तरह के बयान दिए थे.
“हालांकि, जहां अपने नेता की पूजा करने वाले पुराने कार्यकर्ता उनके फैसले को पसंद कर सकते हैं, वहीं पार्टी में युवा लोग यह सोचकर इस पर सवाल उठा सकते हैं कि मायावती अलग नहीं हैं. उन्हें लग सकता है कि जो पार्टी सामाजिक न्याय के मुद्दे पर उभरी, उसने कुछ अलग नहीं किया.”
यह कहते हुए कि सत्ता हस्तांतरण का पार्टी की किस्मत पर बहुत कम प्रभाव पड़ने की संभावना है, उन्होंने कहा: “हालांकि मुलायम से अखिलेश को सत्ता का हस्तांतरण धीरे-धीरे हुआ, लेकिन आकाश लंबे समय तक जनता की नजरों से छिपे रहे. उन्होंने पूरे राज्य को कवर नहीं किया और न ही उन्हें सार्वजनिक रैलियों में देखा गया जैसा कि अन्य राजनेताओं के मामले में देखा जाता है.”
यह बताते हुए कि बसपा के बहुत सारे कार्यकर्ता अभी भी उनसे अच्छी तरह से परिचित नहीं हैं, उन्होंने कहा, “आकाश आनंद का प्रभाव अभी भी बहुत ज्यादा नहीं है और उनकी पहुंच व्यापक नहीं है.”
पांडेय ने दिप्रिंट को बताया, “यह कहना मुश्किल है कि वह लोगों से जुड़ पाएंगे. लोगों तक पहुंचने में समय लगेगा.”
UP के राजनीतिक समीकरणों के लिए इसका क्या मतलब है
पांडेय के अनुसार, बसपा की कमज़ोर चुनावी किस्मत को देखते हुए, यूपी यानि उस राज्य में जहां वह 2007 में बसपा बहुमत के साथ सत्ता में आई थी और जो किसी भी अन्य राज्य की तुलना में लोकसभा में सबसे अधिक सांसद भेजता है, द्विध्रुवीय बने रहने की संभावना है. एक तरफ भाजपा और उसके सहयोगी दल और दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी (सपा) और उसके सहयोगी दल.
उन्होंने कहा, ”आने वाले चुनावों में भी बसपा को किनारे किए जाने की संभावना है क्योंकि मुस्लिम उससे अलग हो गए हैं और उनमें से अधिकांश सपा के साथ हैं. इसलिए जहां तक राज्य की राजनीति का सवाल है, इस घोषणा से संभवत: कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा.”
बसपा 2017 में जीती गई दो सीटों की तुलना में 2022 के नगर निगम चुनावों में कोई भी मेयर सीट जीतने में विफल रही. और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, यह सिर्फ एक सीट पर सिमट गई, जो 1991 के बाद से इसका सबसे खराब चुनावी प्रदर्शन था.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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