मुम्बई : अगले साल होने वाले आम चुनावों से 6 महीने से भी कम समय पहले और मराठा आरक्षण मुद्दा गरम होने के बीच, महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति ने सोमवार को दावा किया कि उसे महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में हुए स्थानीय ग्राम पंचायत चुनावों में “भारी जीत” मिली है.
महायुति भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठबंधन को दिया गया नाम है.
महाराष्ट्र की 2,359 ग्राम पंचायतों और 130 रिक्त सरपंच पदों के लिए मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ और कोंकण में रविवार को चुनाव हुए. महाराष्ट्र में ग्राम पंचायत चुनाव पार्टी चिन्हों पर नहीं लड़े जाते, हालांकि ज़मीनी स्तर पर चुनाव लड़ने वाले अक्सर पार्टियों के साथ जुड़ जाते हैं.
उन्होंने कहा, जबकि मतगणना अभी भी चल रही, भाजपा ने 1,000 से अधिक ग्राम पंचायतों में जीत हासिल करने का दावा किया है – उसके अनुसार, यह राज्य में सबसे अधिक संख्या है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले ने सोमवार शाम मीडिया को बताया कि 1,700 से अधिक पंचायतें महायुति के साथ होंगी. “दिलचस्प बात यह है कि इनमें से 60 प्रतिशत एमवीए के साथ थे.”
लेकिन विपक्षी एमवीए- जिसमें कांग्रेस, एनसीपी के शरद पवार गुट और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) का गठबंधन शामिल है, वह सत्तारूढ़ गठबंधन के दावे का विरोध कर रहा है.
सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए, महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के प्रमुख नाना पटोले ने भाजपा के बयानों को “झूठा” बताया.
उन्होंने मुंबई में संवाददाताओं से कहा, “अगर उनमें साहस है, तो उन्हें स्थानीय निकाय चुनाव कराना चाहिए.”
सोमवार का घटनाक्रम न केवल अगले साल के आम चुनाव से पहले आया है, बल्कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से भी पहले आया है, जो अगले साल की दूसरी छमाही में होगा. यह ऐसे समय में आया है जब सत्तारूढ़ दल मराठों के लिए आरक्षण को लेकर असमंजस में हैं – यह एक राजनीतिक रूप से शक्तिशाली समूह है, जो राज्य की आबादी का 33 फीसदी है और मुख्य रूप से मराठवाड़ा में केंद्रित है.
लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने रविवार के चुनावों पर बहुत अधिक जोर देने के प्रति आगाह करते हुए कहा कि किसी भी स्पष्ट रुझान को बताना मुश्किल है. उनका मुख्य कारण यह है कि जिन ग्राम पंचायतों में चुनाव हुए वे बिखरी हुई थीं और चुनावी आधार संसदीय या विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों से भी बहुत छोटा था.
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश अकोलकर ने दिप्रिंट को बताया, “मुझे यहां कोई रुझान नहीं नजर आ रहा है क्योंकि ये चुनाव लगभग 500 वाले लोगों के निर्वाचन क्षेत्र में लड़े जाते हैं. इसमें जानने के लिए बहुत कुछ नहीं है क्योंकि यह राज्य चुनावों या यहां तक कि निगम चुनावों का संकेत नहीं होगा, जिनमें निर्वाचन क्षेत्र बहुत बड़े होते हैं.”
लेकिन इसने राज्य की सत्तारूढ़ पार्टियों को ग्रामीण महाराष्ट्र पर प्रभाव का दावा करने से नकारा नहीं है.
सीएम एकनाथ शिंदे ने सोमवार को मीडिया से कहा, “पिछले एक साल में, हमारी सरकार ने समाज के सभी वर्गों को न्याय देने की दिशा में काम किया है. एमवीए सरकार ने जो भी परियोजनाएं रोक दी थीं, हमने उन्हें फिर से शुरू करने के लिए कड़ी मेहनत की. और यही विश्वास की बात है जो लोगों ने हम पर दिखाया है.”
अपनी ओर से, राज्यसभा सांसद और अजीत पवार गुट के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने सोमवार शाम को एक पोस्ट में उपमुख्यमंत्री को बधाई दी.
Congratulations to Nationalist Congress Party and our leader Ajitdada Pawar on the remarkable success in the Gram Panchayat elections! This victory is a testament to the dedication and hard work of our party members and the trust of the people.
As we move forward, let us…
— Praful Patel (@praful_patel) November 6, 2023
उन्होंने लिखा, “जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, आइए हम जमीनी स्तर पर महाराष्ट्र के विकास के लिए अपनी अटूट प्रतिबद्धता दोहराएं. हम मिलकर ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाएंगे, बुनियादी ढांचे का विकास करेंगे, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और प्रत्येक नागरिक के लिए समृद्धि बढ़ाएंगे.”
यह भी पढ़ें : दिल्ली वायु प्रदूषण पर शीर्ष सर्जन बोले- यह हेल्थ इमरजेंसी, 25-30 सिगरेट के बराबर रोज जहरीली हवा ले रहे
बड़े उलटफेर
हालांकि, पंचायत चुनावों की कार्यप्रणाली को देखते हुए ये नतीजे अभी भी बहस का विषय हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर हुए घटनाक्रम स्पष्ट हैं. उदाहरण के लिए, ऐसा प्रतीत होता है कि अजित पवार गुट ने बारामती पर कब्ज़ा जमा लिया है – जो दशकों से पवार परिवार का गढ़ रहा है. वहां उनके पैनल का दावा है कि उन्होंने 32 में से 30 ग्राम पंचायतें जीत ली हैं.
बारामती कई पीढ़ियों से पवार परिवार के पास है- अपने राजनीतिक करिअर के पिछले 50 वर्षों में उन्होंने जो 14 चुनाव लड़े, उनमें से एक को छोड़कर सभी संसदीय क्षेत्र से थे.
वर्तमान में, उनकी बेटी सुप्रिया सुले लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं. वहीं दूसरी तरफ, उनके भतीजे अजित वहां से विधायक हैं.
गौरतलब है कि एनसीपी के शरद पवार गुट ने बारामती में कभी चुनाव ही नहीं लड़ा.
अन्य बड़े उलटफेर भी हुए. उदाहरण के लिए, कर्जत जामखेड़ – यह शरद पवार के पोते रोहित पवार का विधानसभा क्षेत्र है, जहा महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता राम शिंदे का पैनल जीत गया है.
इसी तरह, एमपीसीसी प्रमुख नाना पटोले का गढ़ माने जाने वाले भंडारा में भी उनका पैनल बीजेपी से हार गया.
एक अन्य बात महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री और अजीत पवार गुट के वरिष्ठ नेता दिलीप वाल्से पाटिल के गढ़ पुणे के अंबेगांव में हुई है. यहां, पाटिल का पैनल अपने ही गठबंधन सहयोगी, शिवसेना से हार गया.
इस बीच, शिवसेना के सांगोला विधायक शाहजीबापू पाटिल के पैनल उस विधानसभा क्षेत्र में ग्राम पंचायतें हार गए हैं.
उलटफेर के बावजूद, कर्जत जामखेड़ के विधायक रोहित पवार का मानना है कि ये चुनाव कुछ भी संकेत नहीं देते.
रोहित पवार ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा, “अपने निर्वाचन क्षेत्र में, मैंने व्यक्तिगत रूप से चीजों की निगरानी नहीं की.” “जो जीतते हैं वे हमारे हैं और जो हारते हैं वे भी हमारे हैं.” इसलिए अगर कोई इससे लोकसभा या विधानसभा के लिए रुझान तय कर रहा है तो मैं उन्हें शुभकामनाएं देना चाहता हूं.”
काउंटर में एमवीए का दावा
इस बीच, एमवीए ने काउंंटर क्लेम किया है. महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री और एनसीपी के शरद पवार गुट के नेता अनिल देशमुख ने दावा किया कि नागपुर में, एमवीए ने 60 प्रतिशत ग्राम पंचायतें जीतीं हैं.
उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश, मिजोरम, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना चुनावों का जिक्र करते हुए मीडिया को बताया, “भाजपा राज्य के बारे में बड़े-बड़े दावा कर सकती है. एक महीने में, पांच राज्यों के चुनावों में तस्वीरें साफ हो जाएंगी.”
उन्होंने आगे कहा, ‘यहां भी, जब शरद पवार, शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे और कांग्रेस नेता लोकसभा चुनाव से पहले राज्य का दौरा करेंगे, तो तस्वीर साफ हो जाएगी. फिलहाल, भाजपा को कुछ भी दावा करने दीजिए.”
शिवसेना (यूबीटी) नेता अंबादास दानवे का भी मानना है कि इन चुनावों में कोई स्पष्ट रुझान सामने नहीं आया. उनके अनुसार, कुछ स्थानों पर, एमवीए ने सरपंच पद जीता लेकिन उसका पैनल अन्य पदों पर हार गया, जबकि कुछ अन्य स्थानों पर, पैनल जीता लेकिन सरपंच उम्मीदवार हार गए.
दानवे ने दिप्रिंट को बताया, ”लोकसभा और विधानसभा चुनावों (अगले साल) में रुझान स्पष्ट हो जाएंगे.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि इन चुनावों में पार्टियों को जीत के विरोधाभासी दावे करते देखना असामान्य नहीं है, जहां राजनीतिक दलों से ऊपर लोकल व्यक्तियों को महत्व दिया जाता है.
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने दिप्रिंट को बताया, ”कैनवास जितना छोटा होगा, (व्यक्तिगत) उम्मीदवार का वजन उतना ही अधिक होगा.” “राज्य-स्तरीय मुद्दों का कुछ प्रभाव हो सकता है लेकिन इतना नहीं कि इसे एक रुझान कहा जाए.”
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : दिल्ली में हवा और ज़हरीली, आवाजाही पर रोक, जानिए क्या है बीएस-III और बीएस-IV गाड़ियां जिन पर रहेगा बैन