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Sunday, 24 November, 2024
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छत्तीसगढ़ के संघर्ष प्रभावित बस्तर के गांवों में बच्चे — NEET, UPSC और NDA जैसे बड़े सपने देखते हैं

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ वामपंथी उग्रवाद से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक रहा है, लेकिन बेहतर शिक्षा सुविधाओं का मतलब है कि बच्चे ऊंचे लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं.

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बीजापुर/दंतेवाड़ा: लक्ष्मी, पिंटू, मैतू और सुमित्रा सभी की उस दिन की एक जैसी यादें हैं, जब उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई — पहले, हथियारबंद लोगों का उनके घरों में आना, उनके पिता और मां को घसीटकर ले जाना और फिर, दूर से गोलियों की आवाज़ें.

इस प्रकरण के बारे में उनकी यादें कभी-कभी धुंधली हो जाती हैं, लेकिन इन अनाथों के लिए बस्तर में प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और भारतीय राज्य के बीच उग्र संघर्ष के घाव अभी भी ताज़ा हैं.

12वीं कक्षा की छात्रा लक्ष्मी कतलम ने दिप्रिंट को बताया, “जब मैं चारों ओर देखती हूं और अपने सहपाठियों को पाती हूं, जो खुशी-खुशी अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, तो अक्सर मुझे दुख होता है. ऐसे पल आते हैं जब मुझे अकेलापन महसूस होता है.

उन्होंने बताया कि जब उनके माता-पिता की कथित तौर पर माओवादियों ने हत्या कर दी थी, तब वह प्री-स्कूल में थीं और उन्हें इस घटना के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं है.

हालांकि, लक्ष्मी एक बात निश्चित रूप से जानती हैं — उन्हें सशस्त्र बलों में शामिल होना है.

उन्होंने कहा, “जब मैं छोटी बच्ची थी, तभी से मैंने सशस्त्र बलों में शामिल होने और नक्सलियों को दूर करने का सपना देखा है.” उन्होंने आगे कहा, “मैं राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) परीक्षा के साथ-साथ कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) में भी बैठूंगी.”

लक्ष्मी आस्था विद्या मंदिर की छात्रा हैं, जो एक रेजिडेंशियल स्कूल है. दंतेवाड़ा के जाउंगा गांव के पास स्थित ये स्कूल 2013 में शुरू हुआ था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में 200 से ज्यादा ऐसे सरकारी बालक-बालिका आश्रम स्कूल हैं.

A balak ashram school at Chhindar in Dantewada | Sourav Roy Barman | ThePrint
दंतेवाड़ा के छिंदर में एक बालक आश्रम स्कूल | फोटो: सौरव रॉय बर्मन/दिप्रिंट

आस्था विद्या मंदिर के रिकॉर्ड बताते हैं कि स्कूल में कुल 1,170 स्टूडेंट्स हैं — जिनमें से 589 लड़कियां हैं — और इसके 85 प्रतिशत छात्र अनुसूचित जनजाति (एसटी) से हैं.

छत्तीसगढ़ की 90-सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में 7 और 17 नवंबर को मतदान होंगे. बस्तर जहां ये स्कूल स्थित हैं, इसी राज्य का एक जिला है.

राज्य वामपंथी उग्रवाद (LWE) से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक रहा है — इस मार्च में लोकसभा में एक अनस्टार्ड सवाल के बारे में गृह मंत्रालय (एमएचए) के जवाब के अनुसार, वामपंथी उग्रवादियों द्वारा 2018 और 2022 के बीच 1,132 “हिंसक घटनाओं” में से एक तिहाई के लिए छत्तीसगढ़ ज़िम्मेदार है. आंकड़ों से पता चलता है कि ऐसी हिंसा में मारे गए 168 सुरक्षा बलों के जवानों और 335 नागरिकों में से 70-90 प्रतिशत कथित तौर पर छत्तीसगढ़ से थे.

बस्तर जैसे अशांत क्षेत्रों में आस्था विद्या मंदिर जैसे स्कूल बहुत राहत देते हैं, खासकर जब से बच्चों को अक्सर माओवादियों और अब समाप्त हो चुके सलवा जुडूम – एक राज्य-प्रायोजित मिलिशिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में खारिज कर दिया था, दोनों द्वारा संघर्ष में शामिल किया गया है.

स्कूल की वाइस-प्रिंसिपल कुमुद गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि इसे राज्य के स्वामित्व वाले राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) से फंड मिलता है और यह अपनी उच्च कक्षाओं में साइंज और ह्यूमैनिटीज़ दोनों प्रदान करता है.

गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, “साइंस और ह्यूमैनिटीज़ सब्जेक्ट चुनने वाले स्टूडेंट्स की संख्या लगभग बराबर है, लेकिन जो लोग विज्ञान चुनते हैं, उनमें से अधिकांश मैथ्स के बजाय बायोलॉजी लेना पसंद करते हैं और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) में बैठने के लिए जिला प्रशासन की मदद से आयोजित हमारी मुफ्त कोचिंग कक्षा के लिए साइन अप करते हैं. कई लड़कियां नर्सिंग के क्षेत्र में शामिल होना चाहती हैं.”


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‘हमें भागना पड़ा’

लक्ष्मी की तरह, नीलू कुंजम के पिता भी हिंसा के शिकार थे, लेकिन वह नहीं जानती कि हत्या की गोली किसने चलाई — माओवादी, भारत के उग्रवाद विरोधी सुरक्षा बल, या सलवा जुडूम.

12वीं कक्षा की एक अन्य छात्रा नीलू ने दिप्रिंट को बताया, “मुझे जो याद है वह यह है कि जब यह हुआ तब मैं पांचवीं कक्षा में थी.”

जब वह 10वीं कक्षा में थीं, तब उसने फैसला किया कि वह अंततः सिविल सेवा परीक्षा देगी. 17-वर्षीय नीलू ने कहा, “मैं एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी बनना चाहती हूं. मैं यह किसी दबाव में या कहने के लिए नहीं कह रही हूं.”

नौवीं कक्षा की 14-वर्षीय छात्रा सुमित्रा मंडावी को उनके चार भाई-बहनों के साथ स्कूल लाया गया था जब माओवादियों ने कथित तौर पर उनके पिता और उनके परिवार के कई अन्य सदस्यों को गोली मार दी थी. जब यह घटना घटी तब सुमित्रा पांच साल की थीं और लक्ष्मी की तरह उन्हें भी इस घटना के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं है.

उन्होंने लंबे अंतराल के बीच कहा, “लेकिन मुझे याद है कि गांव वाले कह रहे थे कि उन्होंने मेरे पिता को पास की नदी में खींच लिया और उन्हें मार डाला. बाद में मेरी मां भी गायब हो गईं. हमें गांव से भागना पड़ा.”

सुमित्रा इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती हैं. वह और उनके भाई-बहन छुट्टियों के दौरान हॉस्टल में रहते हैं — यही एकमात्र घर है जिसे वे अब जानते हैं. उसके दो भाई, मैतू (कक्षा 9 में) और पिंटू (कक्षा 10), कहते हैं कि वे स्कूल से सबसे दूर 66 किमी दूर चित्रकोट झरना तक गए हैं.

हालांकि, अपनी बहन के विपरीत, मैतू को पढ़ाई में बहुत कम रुचि है. 14 साल के इस शरारती और खुशमिज़ाज़ लड़के को क्रिकेट सबसे ज्यादा पसंद है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, सज्जनों के खेल के अधिकांश प्रेमियों की तरह, वह वर्तमान में चल रहे वर्ल्ड कप में व्यस्त हैं, हालांकि वो पिछले कुछ मैच नहीं देख पाए क्योंकि उनके हॉस्टल में टीवी ने काम करना बंद कर दिया था, उनकी आवाज़ में अफसोस भरा था.

उन्होंने कहा, “महेंद्र सिंह धोनी मेरे पसंदीदा हैं. मैं एक दिन क्रिकेटर बनने का सपना देख रहा हूं.”

बेहतर शिक्षा सुविधाएं, बड़े सपने

19 मार्च, 2013 को लोकसभा में अपने लिखित जवाब में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने कहा कि वामपंथी उग्रवादी समूह, विशेष रूप से सीपीआई (माओवादी), बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों से नाबालिगों की भर्ती करते हैं.

प्रतिक्रिया के अनुसार, इसके पीछे का विचार “उन्हें उनकी समृद्ध पारंपरिक सांस्कृतिक विचारधारा से दूर करना और उन्हें माओवादी विचारधारा में शामिल करना” है.

सरकारी प्रतिक्रिया के मुताबिक, “ऐसे बच्चों को मुखबिर के रूप में कार्य करने, लाठी जैसे गैर-घातक हथियारों से लड़ने आदि जैसे विविध कार्य करने के लिए कहा जाता है. इसके बाद, 12 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद, उन्हें अन्य बाल इकाइयों जैसे ‘चैतन्य नाट्य मंच’, ‘संघम’, ‘जन मिलिशिया’ और ‘दलम’ में विभाजित किया जाता है.

इसमें कहा गया है कि सीपीआई (माओवादी) बच्चों को हथियार चलाने और विभिन्न प्रकार के इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) के इस्तेमाल का प्रशिक्षण देता है. सरकार ने कहा, “‘जन मिलिशिया’ और ‘दलम’ में भर्ती किए गए बच्चे सुरक्षा बलों के साथ सशस्त्र आदान-प्रदान में भी भाग लेते हैं, जहां उन्हें सामरिक रूप से सबसे आगे धकेल दिया जाता है.”

हालांकि, माओवादी अब कम हो गए हैं – मार्च में लोकसभा में उल्लिखित सरकार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में वामपंथी हिंसा में 2022 में 77 प्रतिशत की कमी आई है, 2000 के दशक की शुरुआत में प्रभावित जिलों की संख्या 200 से कम होकर 90 रह गई है.

आंकड़ों से पता चलता है कि हिंसा का भौगोलिक प्रसार भी काफी कम हो गया है, 2022 में 45 जिलों के केवल 176 पुलिस स्टेशनों ने वामपंथी हिंसा की रिपोर्ट की है, जबकि 2010 में 96 जिलों के 465 पुलिस स्टेशनों ने रिपोर्ट की थी.

हिंसा में यह गिरावट दंतेवाड़ा जिले के पाहुरनार गांव के निवासी राजमन कश्यप जैसे छात्रों के लिए शिक्षा तक अधिक पहुंच में भी तब्दील हो गई है. किसानों का यह 17-वर्षीय बेटा, जब 5वीं कक्षा में था, तब उसे दंतेवाड़ा के छोटे तुमनार के एक सरकारी आवासीय विद्यालय में भर्ती कराया गया था.

राजमन, जो अब 12वीं कक्षा के छात्र हैं, ने दिप्रिंट को बताया, “कक्षा 10 के बाद, मैंने साइंस स्ट्रीम चुनी. अब मैं नीट देना चाहता हूं और डॉक्टर बनना चाहता हूं.”

हीरानार गांव में 9वीं कक्षा का छात्र 14-वर्षीय चंदन भवानी अपनी बोली जाने वाली अंग्रेज़ी को बेहतर बनाने पर काम कर रहा है. चंदन का घर पड़ोसी गांव में है, लेकिन वह स्कूल के हॉस्टल में रहना पसंद करता है. बड़ी मुस्कुराहट के साथ उसने अंग्रेज़ी में कहा, “अंग्रेज़ी मेरा पसंदीदा विषय है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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