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Wednesday, 20 November, 2024
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एशियन सेंचुरी: चीन की नई विदेश नीति में पड़ोसियों को प्राथमिकता देने की बात, फुटनोट में भारत का जिक्र

चीन ने बुधवार को अपनी विदेश नीति का एक दस्तावेज़ जारी किया जिसमें उसने एशिया के सामने आने वाली चुनौतियों, पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों में सुधार और BRI परियोजनाओं सहित अन्य बातों का उल्लेख किया है.

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नई दिल्ली: चीन ने एक नया विदेश नीति दस्तावेज़ जारी किया है जो पड़ोसियों के साथ संबंधों को प्राथमिकता देने का आह्वान करता है. साथ ही यह दस्तावेज बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की वकालत करता है और इसमें इस बात की चेतावनी भी दी गई है कि शीत युद्ध की मानसिकता “दोबारा उभर रही है”.

पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के महत्व पर जोर देने के बावजूद दस्तावेज़ में भारत के बारे में कोई उल्लेख नहीं है. हालांकि, 2020 में हुए सीमा पर गतिरोध को लेकर एक फुटनोट जोड़ा गया है. 

फ़ुटनोट में, भारत का उल्लेख उन 27 देशों के साथ किया गया है जिनके साथ चीन ने साझेदारी और सहयोग स्थापित किया है.

बुधवार को जारी दस्तावेज़ में इसके पड़ोस में “क्षेत्रीय सैन्य गठबंधन”, “विशेष क्लब” और “ब्लॉक टकराव” के उदय का भी उल्लेख किया गया है.

हालांकि, यह किसी भी समूह को लेकर नहीं है, लेकिन यह एशिया के लिए अमेरिकी धुरी और क्वाड जैसे गुटों पर एक अप्रत्यक्ष रूप से कटाक्ष लगता है, जिसमें भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. 

चीन पहले भी क्वाड और मालाबार अभ्यास सहित कई सुरक्षा और रक्षा मुद्दों पर अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते सहयोग की आलोचना करता रहा है. साथ ही इसमें ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों को शामिल करने के प्रयास पर भी तंज कसता रहा है.

‘नए युग में अपने पड़ोसियों को लेकर चीन की विदेश नीति पर दृष्टिकोण’ शीर्षक वाले इस दस्तावेज़ को चार अध्यायों में विभाजित किया गया है:

1) एशिया को नए अवसरों और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

2) अपने पड़ोसियों के साथ चीन के संबंधों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है.

3) नए युग में चीन की पड़ोसियों को लेकर कूटनीति की अवधारणाएं और प्रस्ताव 

4) नए युग में “एशियाई सदी” के लिए एक नई सोच.

विदेश नीति दस्तावेज़ चीनी और भूटानी अधिकारियों द्वारा सीमा वार्ता का एक दौर पूरा करने और औपचारिक राजनयिक संबंधों की दिशा में काम करने पर सहमति जताने के बाद आया है. दस्तावेज़ में कहा गया है, “हॉटस्पॉट मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और नियंत्रित किया गया है.”

चीन और फिलीपींस के बीच लगातार समुद्री तनाव बढ़ रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बुधवार को चेतावनी दी कि विवादित दक्षिण चीन सागर में किसी भी हमले की स्थिति में वाशिंगटन मनीला की रक्षा करेगा.

दस्तावेज़ में कहा गया है, “चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका को आपसी सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहयोग के आधार पर एशिया-प्रशांत की स्थिति को लेकर ठोस बातचीत में शामिल होना चाहिए और क्षेत्रीय स्थिरता तथा विकास में सकारात्मक योगदान देना चाहिए.”

चीन के विदेश मंत्री वांग यी इस सप्ताह अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं.

गुरुवार को वाशिंगटन पहुंचे वांग ने स्वीकार किया कि चीन और अमेरिका के बीच मतभेद हैं लेकिन उन्होंने कहा कि दोनों देशों के साझा हित भी हैं.

‘शीत युद्ध की मानसिकता फिर से उभर रही है’

चीनी विदेश मंत्रालय के नीति दस्तावेज़ में “शीत युद्ध” मानसिकता का दावा किया गया है. शीत युद्ध अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच दशकों के तनाव को कहा जाता है जो द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद शुरू हुआ था. 

इसमें कहा गया है, “शीत युद्ध की मानसिकता फिर से उभर रही है; एकपक्षवाद, संरक्षणवाद और आधिपत्यवाद बड़े पैमाने पर चल रहा है. वर्तमान वैश्विक शासन पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका है.”

इस बीच, एशिया को असमान आर्थिक विकास के साथ-साथ सुरक्षा मुद्दों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इसमें कोरियाई प्रायद्वीप मुद्दे और अफगानिस्तान को एशिया के सामने आने वाली चुनौतियों के उदाहरण के रूप में उद्धृत करते हुए कहा गया है, “कुछ देशों ने क्षेत्रीय सैन्य गठबंधन बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं.”

चीन का अपने पड़ोसियों के साथ जमीन और समुद्र पर कुल 17 क्षेत्रीय विवाद हैं.

हालांकि, दस्तावेज़ में कहा गया है कि बीजिंग ने 12 पड़ोसियों के साथ भूमि पर क्षेत्रीय विवादों को सुलझा लिया है. इसमें उन्होंने दक्षिण कोरिया, रूस, मंगोलिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, लाओस और वियतनाम को शामिल किया गया है.

दस्तावेज़ “चीन-आसियान मुक्त व्यापार समझौता 3.0” के विकास को गति देने पर भी जोर देता है, जिसके बारे में कहा गया है कि यह क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (एशिया-प्रशांत देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता) को “प्रभावी ढंग से लागू” करेगा. 


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‘उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट और रोड सहयोग’

इस महीने की शुरुआत में चीन ने अपने तीसरे BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) फोरम की मेजबानी की, जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भाग लिया. हालांकि, कुल मिलाकर इस आयोजन में पिछले आयोजनों के मुताबिक काफी कम नेताओं की भागीदारी देखी गई.

पिछले महीने नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन में, भारत, अमेरिका और अन्य देशों ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEEC) की घोषणा की, जिसे बड़े पैमाने पर चीन के BRI के जवाब के रूप में देखा जाता है. इटली, जो BRI से बाहर हो गया है, भी IMEEC का हिस्सा है.

अपने विदेश नीति दस्तावेज़ में, चीन का कहना है कि बीजिंग ने 24 “पड़ोसी देशों” के साथ बेल्ट एंड रोड सहयोग दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें तिमोर-लेस्ते भी शामिल है. यह एक छोटा सा दक्षिण पूर्व एशियाई देश जहां भारत ने पिछले महीने अपना दूतावास स्थापित करने का फैसला किया था.

दस्तावेज़ में कहा गया है, “उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट और रोड सहयोग को बढ़ावा देने के लिए, चीन पड़ोसी देशों के साथ रेलवे और राजमार्गों की कनेक्टिविटी कॉरिडोर परियोजनाओं को प्राथमिकता देगा और नए अंतर्राष्ट्रीय भूमि-समुद्र व्यापार कॉरिडोर के विकास में तेजी लाएगा.”

‘दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने से बचेगा चीन’

“एशियाई सदी” और भू-राजनीति के एक नए युग के लिए अपने दृष्टिकोण में, चीन का कहना है कि वह अन्य देशों के विकास पथ का सम्मान करते हुए और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचते हुए अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की दृढ़ता से रक्षा करेगा.

ताइवान पर, दस्तावेज़ एक नई नीति पर जोर देता है और कहता है कि चीन “राष्ट्रीय पुनर्मिलन” जारी रखेगा और ताइवान की स्वतंत्रता के आह्वान का विरोध करेगा.

इसमें कहा गया है, “वन-चाइना पॉलिसी को बनाए रखने में हम जितने अधिक स्पष्ट हैं, अलगाव को रोकने के लिए हमारे उपाय उतने ही अधिक सशक्त हैं.”

क्षेत्रीय सहयोग के तहत, दस्तावेज़ शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का विशेष उल्लेख करता है, इसे “सबसे बड़े भौगोलिक कवरेज और जनसंख्या वाला व्यापक क्षेत्रीय संगठन” कहता है.

SCO नौ सदस्यीय समूह है जिसमें चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान और ईरान शामिल हैं. उज्बेकिस्तान और ईरान आधिकारिक तौर पर इस जुलाई में इसमें शामिल हुए हैं.

हालांकि, SCO को बड़े पैमाने पर चीन के नेतृत्व वाले ब्लॉक के रूप में देखा जाता है. भारत ने पड़ोस में “क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान” करने की आवश्यकता के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए मंच का उपयोग किया है.

गुरुवार को किर्गिस्तान के बिश्केक में सरकार के प्रमुखों की SCO परिषद के 22वें सत्र में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि क्षेत्र में कनेक्टिविटी परियोजनाओं को “क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए” और “अव्यवहार्य ऋण” से बचना चाहिए.

उन्होंने IMEEC की भी वकालत करते हुए कहा कि यह क्षेत्र के लिए ताकत बढ़ाने वाला हो सकता है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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